मंगलवार, 11 मई 2021

महानायक विनायक दामोदर सावरकर

जितेश कुमार
जिला प्रचारक, बेगूसराय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

विनायक दामोदर सावरकर एक महानायक थे। वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर से संबोधित किया जाता है। सावरकर क्रांतिकारी के साथ एक प्रखर वक्ता और राष्ट्रवादी लेखक भी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर की भूमिका भले ही राजनीतिक पूर्वाग्रह के कारण छुपाई जाती रही हो, लेकिन आज की पीढ़ी ने इतिहास में गुमनाम उन सभी पृष्ठों को खोजना शुरू कर दिया है और इसी गुमनाम पृष्ठों में दशकों तक दबे रहे, आजादी के महानायक प्रखर विचारक, दूरदर्शी प्रतिभा के धनी विनायक दामोदर सावरकर! वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 ई. को हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र प्रांत में पुणे के समीप बसा एक छोटे-सेगांव भांगूर में हुआ था। उनके पिता दामोदर पंत आस-पास के गांव में लोकप्रिय थे। लोग उन्हें सम्मान की नजर से देखते थे। सावरकर जी की मां राधाबाई सुसंस्कृत और धार्मिक वृत्ति की थी। बाल्यावस्था से ही सावरकर और उनके दोनों भाई राधा मां से गीता रामायण के पाठ सुनते सुना करते थे। राधाबाई अपने तीनों पुत्रों को वीर शिवाजी की कहानियां सुनाती थी। सावरकर जब अपने दोस्तों को मां द्वारा बतलाई कहानी को सुनाते हैं, तो पूर्णतः कहानी के पात्र बन जाते हैं और उनके जैसा ही व्यवहार करते। लेकिन यह प्रक्रिया ज्यादा दिन नहीं चल पायी। गांव में आयी महामारी की बीमारी में राधाबाई चल बसी। उस वक्त सावरकर की आयु मात्र आठ या नौ वर्ष की थी। उनके पिता दामोदर पन्त सावरकर और बड़े भाई गणेशराव ने उनका और उनके छोटे भाई नारायण दामोदर का लालन-पालन किया।  वे चाहते थे कि सावरकर पढ़े और आगे चलकर बैरिस्टर बने। पढ़ाई-लिखाई में सावरकर चतुर थे। हमेशा वर्ग में प्रथम आते थे। इसके साथ ही उनके मन में स्वाधीनता और आजादी के संघर्ष भी पनपते गये। उन दिनों '1857 की स्वतंत्रता संग्राम' के किस्से गांवों में खूब प्रचलित थी। सावरकर भी 1857 की क्रांति के किस्से सुनकर आग बबूला हो उठते। सावरकर में बाल्यकाल से ही क्रांतिकारी गुण कूट-कूट कर भरे थे। सावरकर आठवीं कक्षा के दौरान ही अंग्रेजों के विरुद्ध कविता व भाषण देने लगे थे। उनके ओजस्वी भाषण से लोगों में तिलमिलाहट उत्पन्न होती थी। इसी समय सावरकर ने एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन 'मित्र मेला' का गठन किया। जो क्रांतिकारी की भाषा बोलती थी और तिलक जी द्वारा प्रकाशित स्वाधीनता के लेख की जगह-जगह चर्चा करती और जनमानस को स्वाधीनता के लिए प्रेरित करती थी। इसी समय से तिलक जी सावरकर को जानने लगे थे। सावरकर अपने गुप्त क्रांतिकारी संगठन में रोज नये-नये छात्रों को जोड़ते थे। हमेशा नए छात्रों से परिचय करते और उन्हें अपनी मित्र मंडली में जोड़ते थे। सन् 1899 ई. में जब भांगूर गांव में दूसरी बार महामारी फैली थी। जिसमें सावरकर के पिता के साथ गांव के सैकड़ों लोग चल बसे थे। हर घर से चीख-पुकार की आवाज आती थी।  उनके अंतिम संस्कार के लिए भी लोग नहीं जाते थे। उन्हें डर था कि उन्हें बीमारी न फैल जाये। ऐसे में सावरकर की मित्र मेला के सदस्य उन्हें उनके दुख में शामिल होते और परिवारजन के साथ शमशान तक जाते हैं। यह प्रसंग सावरकर को सिर्फ क्रांतिकारी नहीं तो अपितु एक सामाजिक संवेदनशील महामानव  की पुष्टि करता है। पिता की मृत्यु के बाद घर की स्थिति दयनीय थी। जो कुछ थोड़ा बहुत था, उसे चोरों ने चुरा लिया। गणेशराव ने घर की जिम्मेदारी अपने सर पर ली। वह सावरकर की पढ़ाई जारी रखें। सन् 1902 में शिवाजी हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिए सावरकर पुणे गये।वहां फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक कला की पढ़ाई पूरी की। शिवाजी हाई स्कूल में सावरकर पर कई बार प्रतिबंध लगे थे। क्योंकि वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ कविता
और भाषण देते थे। ब्रिटिश शासन के प्रति सावरकर के विरोधाभास को सुनकर पुणे के गलियों में विरोध की लहर दौड़ दौड़ जाती थी। लोग सावरकर से जुड़ने लगे। उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ रही थी कि जब महारानी विक्टोरिया के जन्म दिवस समारोह का उन्होंने विरोध किया तो सैकड़ों विद्यार्थियों ने सावरकर के स्वर को हवा दी। इसके कारण मुख्य आरोपी सावरकर को मानकर एक माह के लिए स्कूल से निकाल दिया गया और साथ ही ₹10 के जुर्माने भी लगाए गए थे। तब सैकड़ों लोगों ने सावरकर को पत्र लिखकर जुर्माना की राशि  देने की विनती की थी। तब बाल गंगाधर तिलक ने वहां के प्रिंसिपल को एक पत्र को लिखी गई थी तब जाकर प्रतिबंध हटाए गए थे। प्रतिबंध हटने के बाद जब सावरकर  फर्ग्यूसन कॉलेज पहुंचे तो सभी छात्र विनायक दामोदर से जुड़ना चाहते थे। देखते ही दखते वहां भी क्रांति की लहर दौड़ पड़ी। कॉलेज में दिन-प्रतिदिन सावरकर की सामूहिक भाषण व्याख्यान होने लगे। सावरकर पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सन् 1904 में 'अभिनव भारत' नामक क्रांतिकारी संगठन की उद्घोषणा की। जिससे हजारों की संख्या में लोग जुड़े। 1905 में बंग-भंग के समय पूरे महाराष्ट्र में अभिनव भारत के कार्यकर्ताओं ने जनता को बंग-भंग के विरोध खड़ा किया। भारत में पहली बार ऐसा हुआ था, जब कोई क्रांतिकारी विदेशी कपड़ों को जलाकर विरोध प्रदर्शन किया हो। इसके बाद महाराष्ट्र में हर छोटे-बड़े चौराहे पर विदेशी कपड़ों की होलिका दहन शुरू हो गई। इसे भारतीय स्वाभिमान की पहली लड़ाई कहा जा सकता है, जब कोई क्रांतिकारी अंतः करण से स्वदेशी और भारतीयता की बात कर विदेशी कपड़ों की होली खेली हो। इस अभियान को आगे चलकर महात्मा गांधी  जैसे नेताओं ने अपनाया। सन् 1996 बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए सावरकर लंदन चले गये। उन्होंने देखा वहां भारतीयों के साथ निम्न दर्जा का बर्ताव किया जाता है, उन्होंने होटल के कोने में या बाहर बैठने की अनुमति थी। यही नहीं पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी क्लास रूम में पीछे बैठना पड़ता था। भारतीयों को टेबल-कुर्सी को बैठने नहीं दिया जाता था। ऐसे में सावरकर ने भारतीय मूल के लोगों से संपर्क किया और 'स्वतंत्र भारतीय समाज' की स्थापना की। जिसके प्रमुख सदस्य मदन लाल ढींगरा, वापट, लाला हरदयाल, मैडम भीखाजी कामा, चतुर्भुज व चितरंजन दास थे। सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे। जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई को वैश्विक रूप दिया। लंदन में सावरकर ने आयरलैंड, रूस, फ्रांस, इटली व जर्मनी के युवाओं से संपर्क किया। जो अपने स्तर से ब्रिटिश शासन का विरोध कर रहे थे। वैसे लोगों को एकत्रित किया जिन्हें अंग्रेजों ने गुलाम बनाया था। जो अपने मातृभूमि की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे।
सावरकर ने  1857 की क्रांति का विस्तृत अध्ययन किया और एक खोज पुस्तक द फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857 लिखी। यह पुस्तक ब्रिटिश शासन की पोल खोलने के साथ उन तमाम चाटूकारों, जिन्होंने ने 1857 की क्रांति को महज छोटा सा सैनिक विद्रोह बताया था के विपरीत इस  पुस्तक में  1857 की क्रांति की सटीक व्याख्या की गई थी। सावरकर ने अपनी खोजपूर्ण लेखिनी से सिद्ध कर दिया। 1857 की क्रांति केवल सैनिक विद्रोह नहीं बल्कि जन-
आंदोलन था। पुस्तक में 1857 की क्रांति की सत्यता से भयभीत होकर  शासन ने इसके प्रकाशन पर पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में रोक लगा दिया। फिर भी फ्रांस से उसका गुप्त प्रकाशन हुआ और इसकी गोपनीय वितरण भी भारत एवं अन्य ब्रिटिश साम्राज्य वाले  में देशों में हुआ। सावरकर ने गुरु गोविंद सिंह और सिखों का इतिहास लिखा। मैजिनी की जीवनी पर लिखी पुस्तक का मराठी भाषा में अनुवाद किया। इसकी प्रस्तावना से भयभीत होकर शासन इस पुस्तक पर भी बैन लगा दी। सावरकर एक क्रांतिकारी लेखक थे, इसका प्रमाण सावरकर के प्रत्येक पुस्तक को भारत में प्रकाशित नहीं होने देना था। पुस्तक के प्रकाशन से पहले ही उस पर बैन लगा देना। ब्रिटिश अधिकारी के अनुसार सावरकर के पुस्तक मेजनी में रासायनिक हथियार बनाने की तकनीक का भी उल्लेख किया गया था। इस प्रकार के आरोप लगाकर उनके पुस्तकों पर बैन लगा दिया गया। मदन लाल धींगरा सावरकर के मित्र और लंदन में स्वतंत्र भारतीय समाज के सदस्य भी थे ने सावरकर की जासूसी और सावरकर के पुस्तकों को बैन करने की मांग करने वाले ब्रिटिश अधिकारी विलियम हॉट कर्जन वायली की हत्या कर दी। इधर 'अभिनव भारत' के कार्यकर्ताओं ने पुणे के कलेक्टर जैक्सन की हत्या कर दी। दोनों के हत्याकांड के षडयंत्र में ब्रिटेन व भारत दोनों जगह सावरकर के  गिरफ्तारी की वारेंट निकाले गये। सावरकर की गिरफ्तारी हुई और उन्हें जहाज से समुद्र मार्ग के द्वारा भारत लाया गया। सावरकर जहाज से समुद्र में कूद पड़े और तैरकर फ्रांस बंदरगाह पहुंच गए, परंतु उनका पीछा करते हुए ब्रिटिश सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें पकड़ लिया। इस घटना ने सावरकर को रातों-रात विश्वविख्यात वीर सावरकर बना दिया।
सावरकर को भारत लाया गया उन्हें कालेपानी की सजा हुई। वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा दी गई। सावरकर को 1910 में अंधेमान स्थित सैल्यूलर जेल भेजा गया। जहां क्रांतिकारियों से जानवरों की तरह काम लिए जाते थे। छोटी-छोटी गलतियां पर पिटाई की जाती थी। कई क्रांतिकारियों ने इसी क्रूर यातनाएँ से आत्महत्या करना आसान समझा। लेकिन सावरकर ने उन सभी यातनाएँ  के बावजूद वहां के क्रांतिकारियों को एकत्रित किया। कई बार उन्हें इसके लिए अधिक शारीरिक कष्ट झेलना पड़ा, परंतु सावरकर डटे रहे। जेल की दीवारों पर उन्होंने छः हजार से अधिक कविता की पंक्तियां अपने नाखून से लिखी

और कंठस्थ की। महाराष्ट्र में सावरकर के प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ती जा रही थी आये दिन लोग अंग्रेजों पर हमलावर हो रहे थे इससे भयभीत अंग्रेजों ने सावरकर को 11 वर्षों के बाद अंडमान से रत्नागिरी जेल भेज दिया इसके 3 वर्ष बार उन्हें 1937 तक गृहबंदी रत्नागिरी में ही रहना पड़ा। इसी बीच सावरकर सामाजिक क्रांति में कूद पड़े। छुआछूत, रोटीबंदी और बेटीबंदी के विरुद्ध क्रांति की।  सामूहिक भोज का आयोजन किये। जिसमें सर्व समाज को शामिल किया। पतित पावन मंदिर का निर्माण करवाया। जिसमें सभी वर्ग जाति के लोग एक साथ पूजा में शामिल हो सकते थे, पहली बार दलित पुजारी को मंदिर में स्थापित किया। इस प्रस्ताव को सभी ने बड़े आदर से स्वीकार किया। सावरकर रत्नागिरी में गृहबन्दी के दौरान सैकड़ों सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। इसी बीच गई बड़े क्रांतिकारी व सामाजिक राजनीतिक नेताओं को टोली सवकरकर से परामर्श लेने आती रहती थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार भी कई बार सावरकर से मिली रत्नागिरी पहुंचे। महात्मा गांधी भी रत्नागिरी सावरकर से मिलने पहुंचे। 
जब 1937 में सावरकर पाबंदी से मुक्त हुए तो देश स्थिति की देखते हुए हिंदू महासभा से जुड़े और 6 वर्षों तक लगातार इसके अध्यक्ष बने रहें। जब भारत के बंटवारे के प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने लायी, तो सावरकर ने इसकी कड़ी आलोचना की। फिर भी बंटवारे की नींव पहले ही तैयार हो चुकी थी। अब तो किसके हिस्से में कितना आता है, महज बचा था। फिर भी सावरकर ने मुस्लिम लीग की साजिश का जोरदार विरोध किया था। उन्होंने एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की। जिसमें पंजाब व बंगाल को पाकिस्तान में मिलाने के लिए वहां बड़े पैमाने को मुसलमानों को बसाया जा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में जबरन धर्मांतरण का कार्य किया जा रहा है। सावरकर के इस रिपोर्ट के बाद देश में  मुस्लिम लीग का जबरदस्त विरोध शुरू हुआ।परिणाम भारत  खंडित हुआ तब बंगाल और पंजाब के बड़े हिस्से को सावरकर के कारण मुस्लिम भारत से अलग नहीं कर पाई थी। 
15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो सावरकर ने धर्म ध्वज भगवा व राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को एक साथ फहराया। सावरकर ने कहा आजादी की खुशी है तो वही राष्ट्र के खंडित होने का दुख भी है!
  
मैं कल से नहीं,
कालेपानी का कालकूट पीकर काल के कराल स्तंभों को झकझोर कर,
मैं बार-बार लौट आया हूं 
और फिर भी जीवित हूं। 
हारी मृत्यु मैं नहीं
               -----वीर सावरकर

आप हिन्दू मुस्लिम राजनीति करते है?

जवाब मेरे सलाह से आपको कुरान शरीफ पढ़ना चाहिए क्यों कि हिन्दू-मुस्लिम विवाद BJP के जन्म से पहले से है। और अधिक भयावह भी, वीभत्स भी। 
इस्लाम जबतक अपने मूल ग्रंथ कुरान में परिवर्तन नहीं करता तब तक वह ऐसे ही दुनिया से लड़ता रहेगा, इसलिए इंसानी जिंदगी की कीमत है तो कुरान से वह सब आयतों को हटाया जाये, जो केवल ख़ुदा को मानने वाले को ही जन्नत नशीब होता है यह कहता है और सभी धर्म के भगवान को शैतान मानता है, उनके पुजक को काफ़िर कहता है और इन काफिरों की हत्या से जन्नत नशीब होता है यह मानता है। पहले ऐसे विचार को खत्म करना होगा  हमने धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता मानवता और  विज्ञानवाद के लिए भी। उन आयतों को बदलने की मांग को जोड़ शोर से बोलना होगा जिसे वसीम रिजवी ने कुछ दिन पहले कहा है? 
हम हिन्दूओं की सोच संकीर्ण है या हिन्दू हृदय ऐसा ही रहा अबोध अविवेकी, भविष्यहीन। जो सिर्फ लालच पैसा और मोह में फंसा है, क्या किसी मुस्लिम को देखे है, देश के तरक्की रोजगार शिक्षा के लिए वोट करते? नहीं! वो सिर्फ उनके साथ है, जो उनको अल तकिया जिहाद करने देते है, लव जिहाद करने देते है, लैंड जिहाद करने देते है

और शरिया कानून के नाम पर औरतों को तीन तलाक , चार विवियाँ और चौदह बच्चे पैदा करने देते है। 
हम हिन्दू वास्तविक जानकारी से परे अविवेकी कुतर्क से घेरे है और अपने आप का पीठ थपथपा रहा है कि हम हिन्दू मुस्लिम राजनीति में नहीं पड़ते है बुद्धिजीवी है। हमने देश की तरक्की रोजगार से मतलब है अरे भाई यह देश रहेगा तो मरेगा कौन! और यह देश मिटेगा तो बचेगा कौन! इतनी मामूली सी बात नहीं समझ आती है। आपकी शक्ति क्या है, जिसके बल पर हम वो सब पा सकते है जिसकी हमने जरूरत है, क्या वो केवल शिक्षा है? रोजगार है?  बहुत सारे पैसे है? नहीं! वो हमारा देश है। जब तक यह सुरक्षित है, वो सबकुछ हम अपने बलबूते खड़ा कर सकते है, जिसकी हमने कभी कल्पना की थी। इस देश के प्रत्येक हिन्दू को इस राष्ट्र की सुरक्षा किन हाथो में है ऐसे लोगों का पक्षघर बनाता चाहिए। इतिहास में की भूल से सीखकर वतर्मान और भविष्य ठीक करना चाहिए। 
लेकिन सिर्फ नौकरी और मंहगाई के नाम जब हम निर्णय लेते हैं? और वर्तमान समस्या को केवल हिन्दू मुस्लिम की राजनीति कहकर पल्ले झड़ते है और बडी बडी बाते छोड़ते है तो इस दशा को देखकर गुस्सा कम और उन हिंदुओं पर तरस अधिक आता है। उनकी भी यह मनोदशा तब तक है जब तक उनके यहाँ मुस्लिम 70 प्रतिशत नहीं होते है, होते ही मेरी बाते यथार्थ और परम् सत्य नजर आएगा। किंतु तब आप कश्मीरी हिन्दू की तरह बहन बेटियों को उनके हवाले छोड़कर भागने या बलिदान होने के अलावे कुछ नहीं कर सकते। यही बात पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री योगेंद्र मंडल तब नहीं समझे थे और लाखों दलितों को पाकिस्तान में छोड़कर बंगाल में शरण लेकर रहे और गुमनाम मौत को स्वीकार किया। जिन्दगी भर नीम-भीम की, के कारण गुमनाम सजा काटी।  किन्तु उनके कारण जो लाखों दलित हिन्दू वहां फंस गए वो आज तक अपनी बहन बेटी को सुरक्षित नहीं कर पा रहे है। उन्ही दलित हिंदुओं में कुछ छिपते छिपाते भारत आये किन्तु यहां भी वह ऐसा ही जीवन व्यतीत कर रहे नागरिकता नहीं होने के कारण कोई सरकारी लाभ नहीं, नौकरी नहीं, उनके बच्चे अशिक्षित है। जब उनकी इस दुर्दशा को दूर करने से लिये किसी राष्ट्रपुरुष का स्वाभिमान जागृत हुआ तो उसने CAA लाया। जिससे किसी को कोई मतबल नहीं है क्यों कि जिसे हम नागरिकता दे रहे है वो पहले है यहां रह रहे है। फिर भी इन दानवी जिहादी प्रवृति के मुस्लिम और कुछ आधुनिकतावादी लोगों को यह बात अपच हो रहा है। ऐसे आधुनिकतावादी हिन्दू पर हमने तरस आता है।  हमें मोदी प्रधानमंत्री नहीं बल्कि एक अवसर मिला है इस अवसर को पहचानिए इतिहास केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं अपितु वर्तमान और भविष्य में वह गलती दोहराई न जाये इसके लिए भी पढ़ना चाहिए। मेरी इच्छा तो यही है और कोई योगेंद्र मंडल न बने...

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

अंधा गांव में कनहा राजा है नीतीश कुमार।

जितेश कुमार
पत्रकारिता छात्र
हमर बिहार में बहुत लोकप्रिय लोकोक्तियां बा अंधा गांव में कनहा राजा। आज से लगभग 15 साल पहले बिहार के राजनीति पर विचार करते है तो यह उपयुक्त लोकोक्तियां सटीक साबित होती है। 
हम बात कर रहें है, भजपा-जदयू गठबंधन 2005 की। जब पहली बार बिहार में भजपा-जदयू गठबंधन की जीत हुई थी और NDA के नेता श्री नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था। राजद गठबंधन की सरकार से जनता का मोह भंग होने के कारण, जनता ने अपना मत राजद के विरुद्ध में दिया था और NDA की जीत हुई और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। बिहार के लोगों
को अपने भावी मुख्यमंत्री के बहुत आशा थी, बिहार की गणना बीमारू राज्य में होती थी। नीतीश कुमार ने प्रथम कार्यकाल मैं कुछ करणीय कार्य किये जैसे राज्य मार्ग को दुरूस्त किया और बिजली के खंभे गांव-गांव तक पहुंचाये। पक्के स्कूलों तथा आंगनबाड़ी केंद्रों (समुदाय भवनों) का प्रत्येक पंचायत में निर्माण करवाया। किन्तु शिक्षा और रोजगार का कोई कार्य बिहार में इन्होंने नहीं किया। केवल आश्वासन ही बिहार के युवा पीढ़ी के हाथों में लगा। फिर भी जनता ने राजद से बेहतर कार्य करने का पुरस्कार दिया। दूसरे कार्यकाल में भी नीतीश कुमार बहुमत साबित करने में सफल रहें और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। कहते है ना जब गोकुल को श्री भगवान कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया तो कुछ लोग ऐसे थे जो लाठी पर्वत से अड़ा कर खड़ा कर दिये और अपनी महिमा मंडन करने लगे कि यह करिश्मा को वो अपने बलबूते किये है। ठीक ऐसा ही धमण्ड नीतीश बाबू में आया (दूसरा कार्यकाल) वो राजद के विरुद्ध मिलेने वाले वोट को अपनी प्रसंशा और लोकप्रियता समझने लगे और सत्ता के मदहोशी को संभाल नहीं सके। अपने आप को प्रधानमंत्री के भावी उमीदवार समझने लगे। किन्तु उसी समय गुजरात के कदावर और लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री बनने के लिए देशभर में जगह-जगह सभाएँ की और काँग्रेस के विरुद्ध उठ रहे आवाज को व्यापी बनाने में सफल रहें और प्रखर नायक ईमानदार छवि और कट्टर हिन्दू समर्थक राष्ट्रवादी नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए, मोदी ने नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने पर पानी फेर दिये और मोदी के इसी सफलता को देखते हुए भजपा को अपने कदावर नेता लालकृष्ण आडवाणी को साइड कर उनको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करना पड़ा। और अंततः 2014 में पूर्ण बहुमत के NDA की जीत हुई और मोदी  प्रधानमंत्री बने। लेकिन नीतीश बाबू खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं बनाये जाने के कारण गठबंधन से अलग हो गये थे और अपना मुख्यमंत्री पद भी इस आन पर त्याग दिया अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गये तो वो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे और नीतीश कुमार ने ऐसा ही किया जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाये। कुछ ही महीनों में जीतन राम मांझी जब रिमोड कंट्रोल की तरह कार्य करने को तैयार नहीं हुये तो फिर से मुख्यमंत्री पद पर नीतीश कुमार ने कब्ज़ा कर लिया। इस घटना से जदयू में फूट पड़ गई जीतन राम मांझी जदयू से इस्तीफा देकर अलग पार्टी बना लिये यह बात सर्व विदित है। दूसरे कार्यकाल के अंतिम 2 साल को देखे तो इसमें व्यक्तिगत धमण्ड के कारण नीतीश कुमार का इस्तीफा देने का ड्रामा करना और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना और फिर अपना नुकसान देखते हुए पुनः षडयंत्र कर मांझी को हटाना, खुद मुख्यमंत्री बनना। यह बात साफ साफ दर्शता है कि जिस मुख्यमंत्री को बिहार के लोगों ने नायक फ़िल्म के हीरो अनिल कपूर के रूप में देखा था। वही अपने अहंकार में 2 साल तक संवैधानिक पद का दुरप्रयोग करता रहा। और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के विरुद्ध जनता  उनको अपना विश्वास मत दिया करती थी और जिस राजद पार्टी के विरुद्ध में नीतीश कुमार दो-दो बार पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बने। उसी राजद पार्टी के साथ गठबंधन करके लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। किंतु कहते है ना भ्रष्टाचार के महासागर में छोटे छोटे भ्रष्टाचारी का प्रभाव कम होता है तेजस्वी-तेजप्रताप का साथ नीतीश कुमार को नहीं भया। राजद के कार्यकर्ताओं की दादागिरी और गुंडागर्दी से अपना नुकसान देखते हुये। फिर से NDA में शामिल हुये। ऐसे में देखे तो 2013 से 2018 तक केवल अपना कद ऊंचा करने लिए असफल प्रयोग करके बिहार के राजस्व को तहस नहस कर दिया। बिहार में शराब बन्दी हुई, मानव श्रृंखला बना। इसके बावजूद आज बिहार की जनता कहती है, शराब की
दुकान भले नीतीश कुमार ने बंद करवाये किन्तु होम डिलीवरी शुरू करवा दिये।
दूसरा परियोजना नल जल योजना भी फेल साबित हुआ। देखा जाये तो नीतीश कुमार अपने दूसरे और तीसरे कार्यकाल में केवल अपनी छवि चमकने में व्यस्त रहे ऐसे में बिहार की शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार में कोई सुधार नहीं हुई। जो आंगनबाड़ी केंद्र (समुदायिक भवन) इनके प्रथम कार्यकाल में बना था वो भूतिया खण्डर जैसा प्रतीत होता है सच तो यह है कि गांव के बच्चे उधर से गुजरने पर डर जाते है। बिहार में स्कूल की बड़ी-बड़ी दो मंजिला भवन तो बना किन्तु शिक्षा रसातल में पहुंच गई। फिर भी नीतीश कुमार डिंग बड़ी-बड़ी हाकते है। जनता करें भी तो क्या करें एक ओर लालू यादव का जंगलराज याद आता है तो देह सीहर जाता है, शाम होते ही लोग घर के बाहर नहीं निकलते थे, रोज हत्या, लुटपाट, बलात्कार और गुंडागर्दी से जनता को अब तक नीतीश कुमार ही सही लगते थे। कारण साफ है बिहार में  विकल्प नहीं। 
देखा जाये नीतीश कुमार 3.0 भी उसी जंगलराज के पैटर्न पर ही चल रही है। नीतीश कुमार अब हिन्दू-मुस्लिम तुष्टिकरण और जातपात की राजनीति पर उतर गये है। इनके कार्यालय में शिक्षा चिकित्सा बेरोजगारी गुंडागर्दी लुटपाट बढ़ते जा रहा है जैसा की राजद सरकार के समय था। आज भी बिहार में मुख्यमंत्री के लिए कोई  उम्मीदवार नहीं होने कारण नीतीश कुमार ही है, भजपा में गिरिराज सिंह ने थोड़ी हिम्मत दिखाई थी किन्तु वो भी अभी गठबंधन धर्म के कारण मौन और अलग-थलग पड़ गए है। ऐसे में नीतीश कुमार वैसे ही सत्ता का सुख भोग रहे है जैसे कि उपयुक्त लोकोक्तियां में कही गई है अँधे गांव में कनहा राजा

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

हिंदुत्व ही मेरा पक्ष है

राष्ट्रीय शक्ति का एकत्रितकरण होकर रहेंगा। आने वाले वर्षों में अपना देश, हमारी मातृ भूमि विश्व मानवता का, विश्व शांति का, विश्व समृद्धि का, विकास और प्रकृति संरक्षण का, मनुष्य ही नहीं, बल्की मोमिन और यीशु के बच्चे को भी मानवीय संभ्यता का पाठ पढ़ाने वाला है। वर्तमान का यह वर्ष 2020 एक युग सन्धि का दशक है। भारत समस्त आसुरी शक्तियों को नष्ट करके,
दुनिया में वैदिक धर्म, सनातन धर्म अर्थात हिन्दू धर्म की भगवा पताका लहराएगा। इससे पहले भाइयों कई प्रकार से ये आसुरी शक्तियां हमारे दैवीय कार्य में विध्न बाधा उतपन्न करने का प्रयास करेगी। हम जिन बिंदुओं पर कमजोर है वहां पर इन राक्षसी प्रवृति वाले प्रहार करेंगे। आज हम सब यही संदेश लेकर जाये हमनें जो भूले अब तक कि है। उसे कोसने का वक्त नहीं, उस पर भाषण देने का समय नहीं। यह समय है उन भूलों, उन दोषों का निराकरण करने का, उन पर विजय पाने का। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 से यही कार्य में लगा है हिंदुओं का संगठन। और यही मूल मंत्र को गाते हुए आगे बढ़ रहा है -
                                हिन्दव सोधरा सर्वे, न हिन्दू पतितो भवे।
                               मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता।।
अपने लक्ष्य के लिए सेतु के निर्माण में लगा है। हम सब  जानते है, जब त्रेता में भगवान राम का अवतार हुआ, तो उन्हें रावण जैसे वैश्विक आंतकी से युद्ध करना पड़ा। उससे पहले युद्ध की तैयारी होती है। भगवान राम जिस स्थान पर रुके थे जहां से रावण ने मां जानकी का अपहरण किया था, उससे कुछ दूरी पर ही उनके मामा का राज्य था, किन्तु भगवान ने उनकी सहायता नहीं ली, वो अयोध्या से चतुरंगी सेना मंगवा सकते थे। किंतु श्री राम ने यह भी किया। किया क्या वनवासियों, दलितों और वानरों की सेना का निर्माण किया। उन्हें प्रशिक्षण दिया और रावण जैसे अत्याचारी के वध के लिए तैयार किया। दोस्तों हमें भी ऐसे ही राम सेना का निर्माण करना है वह सेना कहाँ है वह सेना गांव में, तमान अभावग्रस्त पीड़ित वंचित समाज है खेतिहर किसान मजदूर है, जिसके पेट में अन्न नहीं शरीर पर वस्त्र नहीं। यही से भारत जागेगा हमें उनका संगठन करना है। इसलिए एक रणयुद्ध की तैयारी के लिए हमें बाजीराव पेशवा, मिहिर भोज, राणा सांगा, महाराणा प्रताप और शिवजी महाराज की भांति एक दिन में 16-16 घण्टे तक कठोरतम तप कर उनका संगठन  करता है। उनको प्रशिक्षित करना, उनको स्वावलंबी करना है, जिससे कोई यीशु का बच्चा पादरी, या कोई मोमिन मौलाना उसे पैसे, बल या छल किसी रूप में धर्म परिवर्तन न कर सके। आज हमने यह प्रतिज्ञा को दुहराना होगा हम हिन्दू है, सम्पूर्ण हिन्दू समाज तुलसी के पत्ते के भाँति पवित्र है। उसके आकर से उससे गुण नहीं बदलते है। सारा समाज अपना है हम सारे समाज के है। 

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

सेवा बस्ती में RSS ने मनाया मकर संक्रांति

मकर संक्रांति के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक 
संघ ने सेवा बस्ती में दलित, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजातिओं और 2008 के भीषण कोशी बाढ़ के बाद अपना घर-बाड़, जमीन संपति को छोड़कर पुनर्वास में निवास कर रहे। उन सभी अभावग्रस्त समाज के बीच समरसता उत्सव के रूप में मकर संक्रांति को मनाया। इस अवसर पर आरएसएस के सुपौल जिले के सहसंचालक मान्यवर संतोष अग्रवाल जी उपस्थित रहे। जिले के कार्यवाह श्रीमान आदित्य झा जी, सेवा प्रमुख राजेन्द्र जी, सहसेवा प्रमुख रामनरेश कौशिकी जी, जिला बौद्धिक प्रमुख बालकृष्ण जी, जिला महाविद्यालयिन प्रमुख संजीव कुमार सोनू, नगर कार्यवाह श्रीमान विकास जी, संपर्क प्रमुख मणिकांत श्रवण जी, व्यवस्था प्रमुख रजनीश जी, बाल प्रमुख विवेक जी और नगर के स्वयंसेवक बन्धु उपस्थित रहें। मकर सक्रांति उत्सव संघ के छः प्रमुख उत्सवों में एक है। संघ इसे समरसता उत्सव के तौर पर अपने स्थापना के बाद से ही मानता आ रहा है। मुख्यरूप से संघ इसे अस्पृश्यता के विरूद्ध सामाजिक क्रंति के रूप में मानता है। ऐसे वंचित समाज जिसे समाज ने वर्षों के अछूत कह के उनका मानभंग किया, उनका तिरस्कार किया हो, संघ ऐसे वंचितों के बीच मकर संक्रांति जैसे कई कार्यक्रम एवम उत्सवों का आयोजन करता है। संघ के सभी स्वयंसेवक चाहे वो किसी भी वर्ग के हो, सहज समर्पित और उत्साहपूर्वक बिना किसी पूर्वाग्रह के इसमें भाग लेते है। अब तो संघ के प्रयास से समाज के सज्जन पुरुष भी ऐसे उत्सवों, कार्यक्रमों के माध्यम से सेवा को स्वीकार करके उनके तरफ हाथ बढ़ाना शुरू किया। इसके पीछे संघ के स्वयंसेवक तपस्या रही है। शाखा के माध्यम से पहले खेल-खेल में संघ के स्वयंसेवक पक्का हिन्दू बने। जिनका ध्येय हिन्दू धर्म, हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू समाज का सर्वांगीण विकास रहा है। उन स्वयंसेवकों ने अपने आचरण व्यवहार कृतत्व से समाज में एक विमर्श को जन्म दिया। जिसने आज इस समाज विरोधी अस्पृश्यता को बहुत हद तक समाप्त कर दिया है। इस बार भी संघ के सुपौल नगर के स्वयंसेवकों ने मकर संक्रांति उत्सव के लिए ऐसे ही बस्ती का चयन किया जहां वंचित समाज की बहुलता थी,अमठो ख़रेल पुर्नवास और झकराही। झकराही में यह कार्यक्रम सुबह 8:30 से प्रारंभ हुआ और अमठो में 2:00 बजे से। अमठो में जिले से सेवा प्रमुख राजेन्द्र जी ने कहां कि मकर संक्रांति पर्व हिन्दू समाज की मूर्खता नहीं, दुनिया को अपने महान धर्म की ज्ञान शक्ति, वैज्ञानिकता का एक परिचय है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा। यह बात हजारों वर्ष पहले भारतीय मनीषियों ने बताया दिया था, जबकि कुछ वर्ष पहले दुनिया को यह ज्ञान हुआ। उन्होंने ये भी कहा इस पर्व को हिन्दू समाज दुनिया के चाहे किसी भी कोने में निवास करता हो बड़े हर्षोल्लास से मनाता है। तिल और गुड़ हमारे समाज के सामाजिक एकता बंधुत्व का परिचय है। यह परिचय है, सम्पूर्ण हिन्दू एक है। लाख विविधता के बावजूद एकता के सूत में ऐसा बँधा है जिसके बंधन को हजार वर्षों तक विदेशी शक्तियों ने काटने का प्रयास किया, किन्तु असफल रहा। हम सामज से शिक्षित लोग, सज्जन लोग आज ऐसे बस्तियों में जहाँ राम और रोटी एक साथ रहते है, नहीं पहुंचे, उनको गले नहीं लगाए तो वो उदासीन हो जाएंगे फिर समाज बांटने की संभावनाएं बढ़ सकती है। क्यों कि आज विदेशी ताकते ऐसे लोगों के बीच धन बल छल से हिन्दू समाज से अलग करने में लगी है। इसलिए हमनें और शक्ति से इनके बीच अपना विस्तार करना होगा। इससे संपर्क करना होगा। उन्होंने ने ये भी कहा आज के उत्सव से ग्रामीणों में संघ को लेकर एक आशा का स्वरूप का दिखा है हम इसे हर सम्भव पूरा करेंगे। 
भारत माता की जय!

रविवार, 15 दिसंबर 2019

CAB को लेकर साजिश; मीडिया डरी हुई


Jitesh kumar

Image result for CONGRESS पहले जिहादियों, बंगलादेशी और अब कांग्रेसियों का डर| सभी प्रकार के संवैधानिक प्रकिया के बावजूद महामहीम राष्ट्रिपति के हस्ताक्षर होने के उपरांत नागरिकता संशोधन बिल पास हुआ है| राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 125 जबकि विपक्ष में 99 वोट पड़े है| गृहमंत्री अमित साह ने राज्यसभा में विधेयक को पेश किया, जिस पर 6 घंटे बहस के बाद अमित साह ने सदन में विधेयक से संबंधित जवाब दिये| इसके बावजूद राज्यस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार पार्टी के हाईकमान का आदेश मानेंगे| क्या सोनीया गाँधी और राहुल गाँधी का निर्णय देश के संविधान से बड़ा है? इतने बड़े संविधान विरोधी मुद्दे को मीडिया दबा रही है, कारण क्या हो सकता है दलाली या डर? कुछ मीडिया संस्थानों को छोड़कर किसी ने CAB के बारे में सही जानकारी जनता को नहीं दिया है ये मीडिया घराने डिबेट के नाम पर देश को गुमराह कर रहें है| कानून की जानकारी रखने वाले बुद्दिजीवी, प्रोफ़ेसर, वकील, जज से इसके बारे में वास्तविक जानकारी साझा करनी चाहिए जिससे बिल के बारे में जनता को ठीक जानकारी मिले| किन्तु TRP और राजनितिक के चक्कर में डिबेट के नाम पर देश में मतभेद के बीज बोये जा रहे है| किसी ख़ास घटना पर मीडिया का हो-हल्ला और किसी घटना पर चुप्पी?


गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

शिवसंहिता योग की पुस्तक

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शिवसंहिता योग से सम्बन्धित संस्कृत ग्रन्थ है। इसके रचनाकार के नाम के बारे में पता नहीं है। इस ग्रन्थ में शिव जी ने  पार्वती को सम्बोधित करते हुए योग की व्याख्या कर रहे हैं। योग से सम्बन्धित वर्तमान समय में उपलब्ध तीन मुख्य ग्रन्थों में से यह एक है। दो अन्य ग्रन्थ हैं - हठयोग प्रदीपिका तथा घेरण्ड संहिता है। शिव संहिता में पांच अध्याय है इसमें ज्ञान का वर्णन है भगवान शिव दूसरे अध्याय में नाड़ी संस्थान का वर्णन करते हैं तीसरे अध्याय में पांच प्राण उप प्राण का वर्णन करते हैं व प्राणयाम का वर्णन करते हैं चौथा अध्याय मुद्रा प्रधान है व साधक की घट परिचय निष्पत्ति आदि अवस्था का वर्णन करते हैं पांचवे में 200 से अधिकश्लोक हैं इसमें साधक प्रकार व सप्त चक्रों विस्तृत वर्णन है। प्रथम अध्याय अद्वैत वेदान्त को सार रूप में प्रस्तुत करता है। दूसरे अध्याय में नाड़ी जाल का वर्णन है उसमें अन्यसे अलग साढ़े तीन लाख नाडीयों का वर्णन है। व 15 अन्य मुख्य नाड़ियां बताई गई हैं तीसरे अध्याय में प्राण अपान व्यान आदि पांच प्राण नाग कूर्म आदि पांच उपप्राण वर्णित हैं फिर कुम्भक सहित अनुलोम विलोम प्राणयाम के 4 प्रहर के अभ्यास के लिये कहा गया है फिर पदम् आसन आदि पांच आसन बताएं हैं में दस मुद्रामहा मुद्रा महाबंध उड्डियान आदि बंध विपरीत करनी खेचरी आदि को विस्तार से वर्णन किया पांचवे अध्याय में साधक के प्रकार अनुसार प्राप्ति में लगने समय विधि बताया है विशेष कर पांचवे में सात चक्रों का वर्णन हैं फिर कुछ साधारण व चमत्कारी विधियां हैं  शिवसंहिता क्रिया योग व श्रद्धा व विश्वास का समन्वय है व योग का महत्वपूर्ण ग्रंथ जो आजकल अध्ययन किया जा रहा है।

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...