बुधवार, 19 जून 2019

अभी कंप्यूटर बाबा और मिर्ची बाबा की समाधि इंतजार

जितेश कुमार

भोपाल। लोकसभा चुनाव में दिग्गविजय सिंह को जितवाने के लिए कंप्यूटर बाबा और मिर्ची बाबा के साथ शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद ऐड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिये थे। तंत्र-मंत्र, साधना और शंकराचार्य का आशिर्वाद भी दिग्गी को चुनाव में विजयी नहीं बना
सकी। वही मिर्ची बाबा और कंप्यूटर बाबा की समाधि वाला हट आज हास्य का पात्र बना हुआ है। इतना तो साफ हो गया साधु संतों का प्रभाव अब राजनीति से उठने लगा है। यह भारतिय संस्कृति के लिए अच्छी बात है। दुनिया के लोग इन संतों के बर्ताव से हमारा मजाक बनाते थे। ऐसे संतों को बेदखल करना ही चाहिए। अभी कंप्यूटर बाबा और मिर्ची बाबा की समाधि का इंतजार कर रहा हूँ।
जान जाये पर वचन न जाये। भारत की यही रीति है। वचन निभाने के लिए कई मनीषियों ने अपनी निजी महत्वाकांक्षा की तिलांजलि दे दी। भारत में समाधि लेने वाले संतों की कमी नहीं है। कई पाखंडी भी साधु रूप में भारत की संत परंपरा को तीतर-वितर करने में लगे है। इससे स्वयं वो ही मजाक के पात्र बन कर रह गये है। एक छ्द्म सन्यासी का रूप धारण कर जितना धन इन वैराग्य संतों ने बटोरा। उतना तो सफेद कुर्ता पहन कर, लोगों को मूर्ख बनाने वाले नेता ने भी नहीं कमाया होगा। लग्जरी कार और सेवन स्टार आश्रम। मीडिया के माध्यम से ही राम रहीम का आश्रम जनता ने देखा था क्या किसी हाई-फाई होटल से कम है, बिलकुल नही। 
अब तो सन्यासी राजनीति प्रत्याशी को चुनाव में जितवाने के लिए मिर्ची यज्ञ कर रहे और असफल होने पर समाधि लेने की बात कर रहे। कहाँ है कंप्यूटर बाबा और मिर्ची बाबा सांप - छछूंदर की तरह बिल में धुस गये।  भोपाल ने भारी मतों से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जनता ने वोट देकर विजयी बनाया है। लोकसभा में भी सपत समारोह खत्म हुआ। बाबा कही दिखे नहीं, मीडिया को ऐसे बाबाओं का पर्दाफास करना चाहिए। बताईये कोई कंप्यूटर बाबा है, नाम से ही झूठा और पाखंडी लगता है। लोग ऐसे बाबाओं के नाम से प्रदेश की खिल्ली उड़ा रहे है।
किसी ने तो यहां तक कहा बाबा के पास कंप्यूटर की कोई डिग्री भी है, या युहीं हिम्मत सिंह नाम लिख कर घर ने दुबके रहने की आदत है। एक मित्र ने कहा "दिग्विजय सिंह जैसे राजनीतिक चतुर व्यक्ति इसके चंगुल में कैसे फंस गया।" फेसबुक पर किसी ने पोस्ट लिखा  "अब समाधि दिलवाकर इन संतों को दिग्विजय भविष्य की राजनीति बचा सकते है।" संत समाज और प्रदेश की भोली भाली जनता ऐसे संतों का तिरस्कार कर अपना धर्म बचाये। मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी है ऐसे संतो का पर्दाफास कर जनता को आगाह करे है।

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