शनिवार, 16 नवंबर 2019

साध्वी प्रज्ञा का जीवन

जितेश कुमार
बीते लोकसभा चुनाव, 2019 में मैं भोपाल था। तब मैंने लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया, मीडिया संपर्क तथा कई नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से चुनाव प्रचार को करीब से देखा, उसमें भाग लिया। साध्वी प्रज्ञा दीदी के चुनाव प्रचार में  उनके साथ प्रचार में शामिल रहा। मैं देख रहा था कि वैसे तो भोपाल भारत का भौगोलिक केंद्र पहले से ही था परंतु साध्वी प्रज्ञा के चुनाव में उतरने से भोपाल भारतीय लोकतंत्र के निर्णायक जनादेश का केंद्र बिंदु बन गया है।   
भगवा आतंक तथा हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों के जनक, आतंकी को अफजल जी, मौलाना जी पुकारने वाले, उसकी हत्या पर आंसू बहाने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह चुनावी मैदान में जैसे उतरे। साध्वी प्रज्ञा ने राजनीति में उतरने में देर नहीं की। जिस प्रकार वर्ष 2008 में मालेगांव धमाका में उनको फंसाया गया और घोर यातनाएं दी गई।
इन सबके पीछे दिग्विजय सिंह का हाथ रहा था। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा लोकसभा क्षेत्र भोपाल से भाजपा की प्रत्याशी के रूप में चुनाव में खड़ी हुई तो देश-दुनियां के मीडिया, नेता, यहां तक की आम जनता ने इसे चुनाव मात्र नहीं समझा, यह तो धर्म युद्ध था। हिंदुओं को आतंकी कहने वाले दिग्गी के सामने सनातनधर्म की सन्याशनी चुनाव लड़ रही थी और यह तय था कि साध्वी प्रज्ञा के राजनीति में उतरने से केवल भोपाल ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष में राजनीति का परिष्करण एवं परिमार्जन होने जा रहा था। 
भिंड जिले की लहार तहसील की रहने वाली प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म 2 फरवरी, 1970 को मध्यप्रदेश के दतिया जिले में हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। यही कारण था कि बाल्यकाल से ही प्रज्ञा का रुझान राष्ट्र और समाज कार्य की ओर रहा। सामाजिक संवेदनशीलता उन्हें अपने सामाजिक दायित्व के प्रति सजग, सचेत और संकल्पित करती रहीं। वह किसी न किसी रूप में समाज को अपना योगदान देती रहीं। अल्पआयु से ही उनकी लेखनी से कविताएं और गीत फूटने लगे। उनकी रचनाओं के केंद्र में राष्ट्र ही रहता था। सनातनी मूल्यों ने उनके व्यक्तित्व का श्रृंगार किया। वे वास्तव में अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति हैं। वर्ष 1987 में जब वह नवमीं कक्षा में थी तब उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्यता प्राप्त की लगभग 15 वर्षों तक सक्रिय रहीं। प्रारंभिक सदस्यता के बाद साध्वी शीघ्र ही नगर इकाई की प्रमुख बन गई फिर जिला इकाई और उसके पश्चात पूर्णकालिक के रूप में विदिशा और भिंड की विस्तारक रही। बाद में भोपाल और उज्जैन से संगठन मंत्री रही। उनके कार्यों को देखते हुये। कुछ ही वर्षों में उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान मिला। दुर्गा वाहिनी में भी उनकी सक्रिय भूमिका रहीं। इसी दौरान उन्होंने उज्जैन में वर्ष 1996 में प्रज्ञा उत्क्रांत सामाजिक संस्थान की स्थापना की और इसके माध्यम से परिवारिक विवादों में मध्यस्थता करते हुए समस्याओं का निराकरण किया। भारतीय संस्कृति में दृढ़ आस्था होने के कारण वो समझने और समझाने लगी कि वर्तमान परिवारिक विघटन और विखंडन के मुख्य कारण व कारण क्या है? उनकी सेवा कार्य का शनै: शनै: विस्तार होता गया। उसमें नये आयाम जुड़ते गये। वर्ष 1998 में उन्होंने भिंड जिले में जय वंदेमातरम सामाजिक संस्थान की स्थापना की और उसकी राष्ट्रीय अध्यक्षा रहीं। खेल में उनकी रुचि बचपन से ही प्रगाढ़ रही। कालांतर में वे कबड्डी की स्टेट प्लेयर बनी और आत्मरक्षा के आशय से उन्होंने कराटे की शिक्षा प्राप्त की और ब्लैकबेल्ट बनी। उन्होंने महिला सुरक्षा के लिए भी काम किया। गृहनगर लहार में छात्राओं के लिए अलग से सेंटर कॉलेज और महाविद्यालय बने इसके लिए उन्होंने वर्ष 1990 में सफल जनान्दोलन किया और सरकार से स्वीकृति प्राप्त कर उन्हें खुलवाया। 
राष्ट्रीय सेविका समिति की सदस्यता के रूप में उन्होंने चुनाव संबंधित कार्य में भी अपना कौशल दिखाया। वर्ष 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में उनकी सक्रिय भूमिका को सराहा गया। उन्होंने संकल्प लिया और अपने समिति संसाधनों से वे सश्रम सेवा कार्य में जुट गई। सेवा से मिलने वाले आनंद की अनुभूति व्यसनादि से अधिक मादक होती है। समय के साथ सेवा ही सेवक का स्वभाव बन जाता है। सेवा की यात्रा में स्वत्: दुर्लभ मनीष संत मिलने लगते हैं और सेवा कार्य के आयाम विकसित होने लगते हैं। वर्ष 2007 में ऐसा ही हुआ अवसर था अर्धकुंभ का और स्नान प्रयागराज। जूनागढ़ अखाड़े के महामंडलेश्वर परमपूज्य स्वामी अवधेशानंदगिरी जी महाराज से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली और पूर्ण रूप से सन्यासी जीवन में प्रवर्त हो गई और साध्वी प्रज्ञा बन गई। 
संघ के प्रभाव तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अनुभवों से साध्वी का आत्मविश्वास और दृढ़ होता गया। उन्हें लगने लगा कि राष्ट्रहित में अच्छा कार्य करने की आवश्यकता तो है ही साथ ही  असीम संभावनाएं भी है और वे उस पथ पर बढ़ चली। कभी सामूहिक रक्तदान, कभी गौसेवा के प्रकल्प तो कभी महिला सुरक्षा के उपकरण। वे धीरे-धीरे आयुर्वेद, योग, ध्यान और अध्यात्म के रहस्य व उनसे मिलने वाली चमत्कारिक लाभों से भी समाज को जोड़ने का प्रयास करने लगी। 
साध्वी प्रज्ञा एक प्रखर वक्ता थी जब वह राष्ट्रवाद और समाज की कुरीतियों पर अपना मंतव्य मंच से व्यक्त करती थी। तो वहां बैठे लोगों के हृदय में क्रांति की ज्वाला भड़क उठती थी। धीरे-धीरे साध्वी प्रज्ञा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के साथ-साथ महिला की भी ब्रांड एमेस्टर बन गई। और यह बात कुछ तथाकथित ढोंगी लोगों को रास नहीं आया। 
यही कारण था कि वर्ष 2008 में एक प्रायोजित षड्यंत्र के तहत मालेगांव मस्जिद में हुये बम विस्फोट में उनका नाम जोड़ा गया। कुछ कुत्सित राजनीतिज्ञों ने अपने आकाओं के निर्देश पर राष्ट्रद्रोह का बिगुल फूंक दिया। उस ह्रदय विदारक कालखंड की यातनाएं एवं प्रताड़नाओं के स्मरण से ही आंसू टपकने लगते हैं। साध्वी प्रज्ञा को तुरंत स्पष्ट हो गया कि देश और सनातन धर्म के शत्रुओं ने उन्हें मोहरा बनाया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में शांति प्रिय हिंदू समाज पर सबसे बड़ा हमला बोला गया था। गद्दार, हिंदू समाज पर लांछन लगा रहे थे। गद्दारों के सरगना ने तो भगवा आतंक और हिंदू आतंकवाद जैसे अपशब्दों से भारत भूमि और हिंदू धर्म को अपूर्णक्षति पहुंचाने का अक्षम्य अपराध किया था। साध्वी प्रज्ञा को तोड़ने के लिए उन्हें जेल में भयंकर यातनाएं दी गई। ज्ञात भारत के इतिहास में जिस प्रकार से जेल में साध्वी प्रज्ञा को यातनाएँ दी गई, इसका कोई दूसरा इतिहास नहीं। जेल में कई पुलिसकर्मी एकसाथ मिलकर उनको बेल्ट और जूते से तब तक मरते रहते थे जब तक वो बेहोश नहीं हो जाती थी। होश में लाने के लिए उन पर गर्म पानी फेंका जाता था फिर वही बेल्ट, जूतों यहां तक कि सिगरेट से उनके शरीर को जगह-जगह जलाया जाता था, उनको उठाकर जेल के दीवारों पर फेंका जाता था। उन्होंने बताया कि इसी बीच जेल एक दिन उनसे मिलने ढोंगी सन्यासी जिसकी आजकल अत्र-तत्र, सर्वत्र पिटाई होती रहती है, स्वामी अग्निवेश आये। उन्होंने कहा कि आप मालेगांव बम धमाके में अपना जुर्म कबूल करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख के इशारों पर ऐसा किया यह बयान दे। जेल में आपसे कोई मारपीट नहीं होगी। उल्टे आपको सभी प्रकार से सुख-सुविधा दिया जायेगा। जल्द ही आपकी रिहाई हो जायेगी। परंतु बचपन से ही साध्वी प्रज्ञा में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वो हिंदुत्व को कैसे लांक्षित कर सकती थी। उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया और सहज ही अपने लिए कष्ट के दिन मांग लिए। लेकिन समय ने करवट ली। 2014 के चुनाव ने देश के राजनीति को बदल दिया। नरेंद्र मोदी की सरकार आयी। उस समय गृहमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने साध्वी प्रज्ञा पर लगे आरोप की जांच के बाद उनको दोषी नहीं साबित होने के स्थिति में उन्हें छोड़ दिया गया। इस अग्नि परीक्षा से साध्वी प्रज्ञा बेदाग बाहर निकल गई। 
जब भोपाल से दिग्विजय सिंह चुनाव में उतरे तो विरुद्ध में साध्वी प्रज्ञा सामने खड़ी थी। उन्हें अपार जनसमर्थन मिला। साध्वी प्रज्ञा के चुनाव में उतरने से भोपाल लोकसभा सीट ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। चुनाव प्रचार के दौरान भोपाल में मैंने जो दृश्य देखे। सच में यह धर्म और पाप की लड़ाई थी। सौभाग्य से साध्वी प्रज्ञा को प्रचंड बहुमत से विजयी मिली।

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...