अमित शाह के बयान से बिहार भाजपा के कार्यकर्ता नाखुश है। नाराजगी, गुस्सा और कानाफूसी तो होना ही था। आज कार्यकर्ता अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। जिन वैचारिक अधिष्ठान पर वो भाजपा के कार्यकर्ता बने और तन मन धन से भाजपा
को सींचने में लगे हैं। जब उसी विचार पर कुठाराघात किया जा रहा है। सत्ता और कुर्सी के मोह जाल में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के द्वारा अपने ही पार्टी की रीती-नीति और विचार को ताक पर रखा जाता हो, यह भला किसे स्वीकार है? भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह ने एनडीए के नेता के रूप में नितीश कुमार का पक्ष लिया तो भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता इस फैसले से नाखुश दिखे। कारण शाह का बयान बीजेपी के संविधान में फिट नहीं बैठता है। भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी को लोगों ने अभी तक भूलाया नहीं है। अटल जी कहते थे जोड़-तोड़ कर सरकार बनती हो तो ऐसे सरकार को हम चिमटे से नहीं छूएंगे। अटल जी के सामने जब सत्ता और पार्टी के आदर्श विचार में किसी एक को चुनने की बाड़ी आयी तो उन्होंने ने पार्टी के विचार ,सिंद्धांत और रीति-नीति को चुना और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया। किंतु आज उन्हीं के पार्टी के दूसरी पीढ़ी में यह वैचारिक गुण नहीं दिखता है। लगता है यह अपने ही सिद्धांतों से विमुख हो गए हैं। किसी तरह सत्ता की प्राप्ति ही भाजपा की अंतिम मंजिल मालूम पड़ती है। हाल में ही देखा जाए तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रत्येक मुद्दे पर भाजपा को घेरने का प्रयास किया और विरोध किया है चाहे वह तीन तलाक का मामला हो, धारा 370 का मामला हो या राम मंदिर का मामला। जेडीयू बीजेपी के साथ नहीं दिखता है। फिर किस आधार पर शाह एनडीए के लिए नितीश कुमार की प्रशंसा करते हैं। इधर हाल फिलहाल में सरकार के क्रियाकलापों पर नजर डाला जाए। माननीय नितेश बाबू ने केवल धार्मिक तुष्टीकरण का ही कार्य किया है। इनके कार्यकाल में हजारों एकड़ सरकारी जमीन को अवैध रूप से मस्जिद मदरसा और कब्रिस्तान बनाने के लिए छोड़ दिया गया। उल्टे मस्जिद, मदरसा और कब्रिस्तान के चारदीवारी के लिए सरकारी पैसे खूब का खर्च हुए है। इनके अधिकारियों के द्वारा हिंदू संगठनों के विरुद्ध मुहिम चलाया जा रहा है, और अल्पसंख्यक समुदाय खास करके मुस्लिम समुदाय को अपराध करने की खुली छूट है। जगह-जगह पर इनके नेता और प्रशासन के नापाक गठबंधन के कारण मुस्लिमों द्वारा उत्पाद की घटना बढ़ी है। चर्चित सामूहिक बलात्कार कांड, सुपौल के प्रतापगंज के हुसैनाबाद की है। विजयादशमी के रात मेला देख कर लौटते हुए दो महिला और एक छोटी बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार होता है। उसके बाद उसमें से एक महिला को गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। यह कोई सामान्य घटना नहीं थी इसके बावजूद शासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया नहीं किसी भ्रष्ट अधिकारियों को निलंबित और दंडित किया गया। क्योंकि अधिकतर आरोपी मुस्लिम समुदाय से थे, सुपौल में हारून रशीद उपसभापति और यहां के डीएम, एसडीओ उसी समुदाय से आते हैं। सुपौल में मोहर्रम में जगह-जगह तलवारबाजी हुई। मैं स्वयं सहरसा से आने समय ऑटो से उतरकर 5 किलोमीटर पैदल चलकर सुपौल पहुंचा क्योंकि मुस्लिम समुदाय गाड़ियों को घेर कर तलवारबाजी कर रहा था। इसके बावजूद कोई प्रतिक्रिया प्रशासन के द्वारा नहीं किया गया। बात जब दुर्गा पूजा की होती है प्रशासन आरती के समय और साउंड बॉक्स की संख्या गिनने लगता है। दुर्गा पूजा समिति, बरेल के सदस्यों पर धारा 107, 116 (ग) लगाया जाता है। किन्तु रात्रि में मुख्य मार्ग पर मोहर्रम में मुस्लिमों के द्वारा तलवारबाजी करने पर प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं है। इस प्रकार के पक्षपाती निर्णय के पीछे क्या शासन का हाथ नहीं है? बिल्कुल है नीतीश कुमार के द्वारा हिंदुओं को प्रताड़ित व मुस्लिमों को खुलीछुट दिया जा रहा है मुस्लिम बलात्कारियों को बचाया जा रहा है और शांति पूर्वक धार्मिक आयोजन करने वाले लोगों पर प्रशासन कार्यवाही कर रहा हैं। और यह सब तब हो रहा है जब नीतीश कुमार के साथ भाजपा शासन में है। इसके बावजूद भी अगर एनडीए के नेता श्री नितीश बाबू है तो भाजपा किस मुंह से समाज के बीच वोट मांगने जाएगी? दुर्गा पूजा में हिन्दू समाज को झूठे और बेबुनियाद आरोप में कार्यवाही हो रही है इस आधार पर, या सुपौल में मुस्लिम समुदाय के बलात्कारियों को बचाया जा रहा है इस आधार पर। नीतीश कुमार के द्वारा चलाया जा रहा कथित तौर पर मुस्लिम तुष्टीकरण से बिहार पुनः अराजकता के चपेट में है। शाह को अपने बयान पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। नीतीश सरकार और प्रशासन का कार्य मुस्लिम तुष्टीकरण और टोपा-टोपी के खेल में उलझा है। इसका बिहार के विकास से कोई मतलब नहीं है। ऐसे में अगर एनडीए से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार बनते है तो भाजपा के कार्यकर्ता विद्रोह कर देंगे। क्यों कि वो शाह के बंधुआ मजदूर नहीं, पार्टी के वैचारिक समर्थक है। अधिकतर हिन्दू है।
को सींचने में लगे हैं। जब उसी विचार पर कुठाराघात किया जा रहा है। सत्ता और कुर्सी के मोह जाल में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के द्वारा अपने ही पार्टी की रीती-नीति और विचार को ताक पर रखा जाता हो, यह भला किसे स्वीकार है? भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह ने एनडीए के नेता के रूप में नितीश कुमार का पक्ष लिया तो भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता इस फैसले से नाखुश दिखे। कारण शाह का बयान बीजेपी के संविधान में फिट नहीं बैठता है। भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी को लोगों ने अभी तक भूलाया नहीं है। अटल जी कहते थे जोड़-तोड़ कर सरकार बनती हो तो ऐसे सरकार को हम चिमटे से नहीं छूएंगे। अटल जी के सामने जब सत्ता और पार्टी के आदर्श विचार में किसी एक को चुनने की बाड़ी आयी तो उन्होंने ने पार्टी के विचार ,सिंद्धांत और रीति-नीति को चुना और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया। किंतु आज उन्हीं के पार्टी के दूसरी पीढ़ी में यह वैचारिक गुण नहीं दिखता है। लगता है यह अपने ही सिद्धांतों से विमुख हो गए हैं। किसी तरह सत्ता की प्राप्ति ही भाजपा की अंतिम मंजिल मालूम पड़ती है। हाल में ही देखा जाए तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रत्येक मुद्दे पर भाजपा को घेरने का प्रयास किया और विरोध किया है चाहे वह तीन तलाक का मामला हो, धारा 370 का मामला हो या राम मंदिर का मामला। जेडीयू बीजेपी के साथ नहीं दिखता है। फिर किस आधार पर शाह एनडीए के लिए नितीश कुमार की प्रशंसा करते हैं। इधर हाल फिलहाल में सरकार के क्रियाकलापों पर नजर डाला जाए। माननीय नितेश बाबू ने केवल धार्मिक तुष्टीकरण का ही कार्य किया है। इनके कार्यकाल में हजारों एकड़ सरकारी जमीन को अवैध रूप से मस्जिद मदरसा और कब्रिस्तान बनाने के लिए छोड़ दिया गया। उल्टे मस्जिद, मदरसा और कब्रिस्तान के चारदीवारी के लिए सरकारी पैसे खूब का खर्च हुए है। इनके अधिकारियों के द्वारा हिंदू संगठनों के विरुद्ध मुहिम चलाया जा रहा है, और अल्पसंख्यक समुदाय खास करके मुस्लिम समुदाय को अपराध करने की खुली छूट है। जगह-जगह पर इनके नेता और प्रशासन के नापाक गठबंधन के कारण मुस्लिमों द्वारा उत्पाद की घटना बढ़ी है। चर्चित सामूहिक बलात्कार कांड, सुपौल के प्रतापगंज के हुसैनाबाद की है। विजयादशमी के रात मेला देख कर लौटते हुए दो महिला और एक छोटी बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार होता है। उसके बाद उसमें से एक महिला को गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। यह कोई सामान्य घटना नहीं थी इसके बावजूद शासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया नहीं किसी भ्रष्ट अधिकारियों को निलंबित और दंडित किया गया। क्योंकि अधिकतर आरोपी मुस्लिम समुदाय से थे, सुपौल में हारून रशीद उपसभापति और यहां के डीएम, एसडीओ उसी समुदाय से आते हैं। सुपौल में मोहर्रम में जगह-जगह तलवारबाजी हुई। मैं स्वयं सहरसा से आने समय ऑटो से उतरकर 5 किलोमीटर पैदल चलकर सुपौल पहुंचा क्योंकि मुस्लिम समुदाय गाड़ियों को घेर कर तलवारबाजी कर रहा था। इसके बावजूद कोई प्रतिक्रिया प्रशासन के द्वारा नहीं किया गया। बात जब दुर्गा पूजा की होती है प्रशासन आरती के समय और साउंड बॉक्स की संख्या गिनने लगता है। दुर्गा पूजा समिति, बरेल के सदस्यों पर धारा 107, 116 (ग) लगाया जाता है। किन्तु रात्रि में मुख्य मार्ग पर मोहर्रम में मुस्लिमों के द्वारा तलवारबाजी करने पर प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं है। इस प्रकार के पक्षपाती निर्णय के पीछे क्या शासन का हाथ नहीं है? बिल्कुल है नीतीश कुमार के द्वारा हिंदुओं को प्रताड़ित व मुस्लिमों को खुलीछुट दिया जा रहा है मुस्लिम बलात्कारियों को बचाया जा रहा है और शांति पूर्वक धार्मिक आयोजन करने वाले लोगों पर प्रशासन कार्यवाही कर रहा हैं। और यह सब तब हो रहा है जब नीतीश कुमार के साथ भाजपा शासन में है। इसके बावजूद भी अगर एनडीए के नेता श्री नितीश बाबू है तो भाजपा किस मुंह से समाज के बीच वोट मांगने जाएगी? दुर्गा पूजा में हिन्दू समाज को झूठे और बेबुनियाद आरोप में कार्यवाही हो रही है इस आधार पर, या सुपौल में मुस्लिम समुदाय के बलात्कारियों को बचाया जा रहा है इस आधार पर। नीतीश कुमार के द्वारा चलाया जा रहा कथित तौर पर मुस्लिम तुष्टीकरण से बिहार पुनः अराजकता के चपेट में है। शाह को अपने बयान पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। नीतीश सरकार और प्रशासन का कार्य मुस्लिम तुष्टीकरण और टोपा-टोपी के खेल में उलझा है। इसका बिहार के विकास से कोई मतलब नहीं है। ऐसे में अगर एनडीए से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार बनते है तो भाजपा के कार्यकर्ता विद्रोह कर देंगे। क्यों कि वो शाह के बंधुआ मजदूर नहीं, पार्टी के वैचारिक समर्थक है। अधिकतर हिन्दू है।