शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

ये भाजपा के कार्यकर्ता है, शाह के बंधुआ मजदूर नहीं जितेश कुमार

अमित शाह के बयान से बिहार भाजपा के कार्यकर्ता नाखुश है। नाराजगी, गुस्सा और कानाफूसी तो होना ही था। आज कार्यकर्ता अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। जिन वैचारिक अधिष्ठान पर वो भाजपा के कार्यकर्ता बने और तन मन धन से भाजपा
को सींचने में लगे हैं। जब उसी विचार पर कुठाराघात किया जा रहा है। सत्ता और कुर्सी के मोह जाल में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के द्वारा अपने ही पार्टी की रीती-नीति और विचार को ताक पर रखा जाता हो, यह भला किसे स्वीकार है? भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह ने एनडीए के नेता के रूप में नितीश कुमार का पक्ष लिया तो भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता इस फैसले से नाखुश दिखे। कारण शाह का बयान बीजेपी के संविधान में फिट नहीं बैठता है। भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी को लोगों ने अभी तक भूलाया नहीं है। अटल जी कहते थे जोड़-तोड़ कर सरकार बनती हो तो ऐसे सरकार को हम चिमटे से नहीं छूएंगे। अटल जी के सामने जब सत्ता और पार्टी के आदर्श विचार में किसी एक को चुनने की बाड़ी आयी तो उन्होंने ने पार्टी के विचार ,सिंद्धांत और रीति-नीति को चुना और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया। किंतु आज उन्हीं के पार्टी के दूसरी पीढ़ी में यह वैचारिक गुण नहीं दिखता है। लगता है यह अपने ही सिद्धांतों से विमुख हो गए हैं। किसी तरह सत्ता की प्राप्ति ही भाजपा की अंतिम मंजिल मालूम पड़ती है। हाल में ही देखा जाए तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रत्येक मुद्दे पर भाजपा को घेरने का प्रयास किया और विरोध किया है चाहे वह तीन तलाक का मामला हो, धारा 370 का मामला हो या राम मंदिर का मामला। जेडीयू बीजेपी के साथ नहीं दिखता है। फिर किस आधार पर शाह एनडीए के लिए नितीश कुमार की प्रशंसा करते हैं। इधर हाल फिलहाल में सरकार के क्रियाकलापों पर नजर डाला जाए। माननीय नितेश बाबू ने केवल धार्मिक तुष्टीकरण का ही कार्य किया है। इनके कार्यकाल में हजारों एकड़ सरकारी जमीन को अवैध रूप से मस्जिद मदरसा और कब्रिस्तान बनाने के लिए छोड़ दिया गया। उल्टे मस्जिद, मदरसा और कब्रिस्तान के चारदीवारी के लिए सरकारी पैसे खूब का खर्च हुए है। इनके अधिकारियों के द्वारा हिंदू संगठनों के विरुद्ध मुहिम चलाया जा रहा है, और अल्पसंख्यक समुदाय खास करके मुस्लिम समुदाय को अपराध करने की खुली छूट है। जगह-जगह पर इनके नेता और प्रशासन के नापाक गठबंधन के कारण मुस्लिमों द्वारा उत्पाद की घटना बढ़ी है। चर्चित सामूहिक बलात्कार कांड, सुपौल के प्रतापगंज के हुसैनाबाद की है। विजयादशमी के रात मेला देख कर लौटते हुए दो महिला और एक छोटी बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार होता है। उसके बाद उसमें से एक महिला को गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। यह कोई सामान्य घटना नहीं थी इसके बावजूद शासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया नहीं किसी भ्रष्ट अधिकारियों को निलंबित और दंडित किया गया। क्योंकि अधिकतर आरोपी मुस्लिम समुदाय से थे, सुपौल में हारून रशीद उपसभापति और यहां के डीएम, एसडीओ उसी समुदाय से आते हैं। सुपौल में मोहर्रम में जगह-जगह तलवारबाजी हुई। मैं स्वयं सहरसा से आने समय ऑटो से उतरकर 5 किलोमीटर पैदल चलकर सुपौल पहुंचा क्योंकि मुस्लिम समुदाय गाड़ियों को घेर कर तलवारबाजी कर रहा था। इसके बावजूद कोई प्रतिक्रिया प्रशासन के द्वारा नहीं किया गया। बात जब दुर्गा पूजा की होती है प्रशासन आरती के समय और साउंड बॉक्स की संख्या गिनने लगता है। दुर्गा पूजा समिति, बरेल के सदस्यों पर धारा 107, 116 (ग) लगाया जाता है। किन्तु रात्रि में मुख्य मार्ग पर मोहर्रम में मुस्लिमों के द्वारा तलवारबाजी करने पर प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं है। इस प्रकार के पक्षपाती निर्णय के पीछे क्या शासन का हाथ नहीं है? बिल्कुल है नीतीश कुमार के द्वारा हिंदुओं को प्रताड़ित व मुस्लिमों को खुलीछुट दिया जा रहा है मुस्लिम बलात्कारियों को बचाया जा रहा है और शांति पूर्वक धार्मिक आयोजन करने वाले लोगों पर प्रशासन कार्यवाही कर रहा हैं। और यह सब तब हो रहा है जब नीतीश कुमार के साथ भाजपा शासन में है। इसके बावजूद भी अगर एनडीए के नेता श्री नितीश बाबू है तो भाजपा किस मुंह से समाज के बीच वोट मांगने जाएगी? दुर्गा पूजा में हिन्दू समाज को झूठे और बेबुनियाद आरोप में कार्यवाही हो रही है इस आधार पर, या सुपौल में मुस्लिम समुदाय के बलात्कारियों को बचाया जा रहा है इस आधार पर। नीतीश कुमार के द्वारा  चलाया जा रहा कथित तौर पर मुस्लिम तुष्टीकरण से बिहार पुनः अराजकता के चपेट में है। शाह को अपने बयान पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। नीतीश सरकार और प्रशासन का कार्य मुस्लिम तुष्टीकरण और टोपा-टोपी के खेल में उलझा है। इसका बिहार के विकास से कोई मतलब नहीं है। ऐसे में अगर एनडीए से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार बनते है तो भाजपा के कार्यकर्ता विद्रोह कर देंगे। क्यों कि वो शाह के बंधुआ मजदूर नहीं, पार्टी के वैचारिक समर्थक है। अधिकतर हिन्दू है।

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

गांधी मैदान में आरएसएस ने शरद पूर्णिमा उत्सव मनाया

जितेश कुमार 


संघ का कोई अपना उत्सव नहीं, हिंदू समाज का जो उत्सव है वही संघ का उत्सव है। संघ के स्वयंसेवक समाज के सज्जन व्यक्तियों के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक उत्सव मनाते रहते हैं।  इसी निमित्त कल शरद पूर्णिमा के अवसर पर सुपौल के गांधी मैदान
  रात्रि 7:00 से 8:00 बजे तक आरएसएस के स्वयंसेवकों ने शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से आरएसएस के जिला सहसंचालक श्रीमान संतोष अग्रवाल और अन्य स्वयंसेवक उपस्थित रहे। 1 घंटे की शाखा में कबड्डी, गणेश छू, महापुरुषों की माला, रामायण और महाभारत के पात्र, राज्य-राजधानी, सांस्कृतिक स्थल के नाम आदि प्रकार के खेल हुए। तत्पश्चात नगर विस्तारक जितेश कुमार ने शरद पूर्णिमा के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व के कुछ बिंदु सबों के बीच रखा। संघ का उद्देश्य भारत के सर्वांगीण विकास करके विश्व गुरु बनाना है। अतः सभी स्वयंसेवकों को अपने मूल्यवान समय का कुछ हिस्सा संघ कार्य के लिए लगाना चाहिए। इस आग्रह के साथ बैद्धिक समाप्त की। उसके बाद शाखा  विकिर और प्रसाद के रूप में खीर भोज के बाद सभी स्वयंसेवक अपने घर लौट गये। कार्यक्रम में जिला सहकार्यवाह रंजन, जिला व्यवस्था प्रमुख  विकास,जिला महाविद्यालयिन प्रमुख संजीव सोनू, नगर कार्यवाह श्रवण, नगर सहकार्यवाह सुमित, नगर शारीरिक प्रमुख मणिकांत श्रवण,अन्य स्वयंसेवक उपस्थित थे।

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

सुपौल में बत्ती गुल की समस्या से परेशान आम जनता, मौन राजनेता

जितेश कुमार

सुपौल में घंटों बिजली गायब रहने से नगरवासी परेशान है। बीते कुछ महीनों से सुपौल शहरी क्षेत्र में अचानक कई घंटों तक बिजली गुल रहती है। सुबह जब बिजली की लोगों को अधिक आवश्यकता पड़ती है, भोजन बनाने, पानी भरने, कपड़ा साफ करने में ऐसे समय में बिजली आचानक गुल हो जाती है। और पूरे दिन दर्शन नहीं देती है। शाम में जब बच्चे को पढ़ना होता है, घंटों तक बिजली नहीं आती है। शहरी क्षेत्र की हम बात करें
तो गर्मी से राहत के लिए हो या प्रकाश के लिए लोगों के पास एक ही व्यवस्था होती है बिजली।  इनवर्टर भी होता है लेकिन बड़े लोगों के घर में शहरी झुग्गी झोपड़ी से लिए तो बिजली ही सब कुछ है। इसको  छोड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अब तो बिजली विभाग के इस रवैये से इन्वर्टर भी ठप हो गई है। ऐसे में विभाग के प्रति लोगों में आक्रोश है, व्यवस्था को लेकर लोगों में निराशा है, असंतोष है। साथ ही कभी- कभी बिना पूर्व सूचना के पूरा पूरा दिन बिजली गायब रहता है ऐसे में भोजन, पानी, नहाना, स्कूल, दफ्तर सभी कामों में देरी होने स्वाभाविक ही है। बच्चे समय से तैयार होकर स्कूल नहीं पहुंचते तो कर्मचारी दफ्तर नहीं पहुंचते है। लोगों का कहना है कि बिजली ही काटनी है तो उसकी पूर्व सूचना उनको होनी चाहिए। साथ ही सुबह-सुबह बिजली नहीं गुल होनी चाहिए। किसी हेतु बिजली भी काटना है तो दस बजे के बाद कटनी चाहिए। ताकि उनका प्रमुख और दैनिक कार्य अवरोध नहीं हो। विभाग के बड़े-बड़े अधिकारियों की मनमानी के कारण लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।  यहां के स्थानीय विधायक व सांसद महोदय भी इस गंभीर विषय पर अब तक तो मौन ही है। और होंगे भी उनको तो किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती है, जरनैटर होता है बिजली जाते ही जरनेटर स्टार्ट हो जाता है। ए.सी. में रहते हैं। ऐसे में गरीबों के मसीहा बनने वाले नेताओं को भी सोचना चाहिए कि पिछले कई महीनों से सुपौल में बिजली की समस्या से लोग जूझ रहे हैं। जनता के प्रतिनिधि होने के कारण उनको भी इस विषय पर आवाज उठाने का अधिकार है किंतु अब तक उनके तरफ से ऐसा कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं आया है क्योंकि शायद अभी चुनाव का टाइम नहीं आया है।

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

अश्वमेघ यज्ञ ने योद्धाओं के अहंकार को नष्ट किया

जितेश कुमार

रावण जैसे वैश्विक आतंकी के वध के पश्चात, राम की सेना सर्वशक्तिमान हो गई थी। इसके साथ ही लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सुग्रीव जैसे योद्धा अपने आप को सर्वशक्तिमान मान बैठे थे। इन्हें अपनी शक्ति पर अहंकार होते देख, राम ने अश्वमेध यज्ञ किया। एक दिव्य अश्व स्वतंत्र पूरे विश्व में भ्रमण के लिए छोड़ दिया 

गया। इसके वापस लौटते ही अश्वमेध यज्ञ पूर्ण होती है। किन्तु वाल्मीकि आश्रम के समीप दो बालकों ने यज्ञ के घोड़ा को पकड़ लिया। वो बालक कोई और नहीं माता जानकी और राम के पुत्र लव और कुश थे। लव-कुश ने अयोध्या की चतुरंगी सेना सहित सेनापति, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, भरत, सुग्रीव और हनुमान जैसे योद्धाओं को पराजित किया। लव-कुश के बाण के आगे सभी योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए। लव-कुश के बाण से आहत होकर सेना सहित सारे योद्धा मूर्छित पड़े थे। उसके बाद स्वयं भगवान राम युद्ध करने पहुंचे। उन्होंने देखा चतुरंगी सेना सहित सभी योद्धा जमीन पर मूर्छित पड़े हैं। वो मुस्काए और कहे "हे मुनि कुमार लव-कुश! आप किस प्रयोजन से यज्ञ का अश्व पकड़े है।" लव-कुश बड़े-बड़े योद्धाओं को पराजित करके। अब स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने लगे थे। उसे लगा अब मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता है। इसी अहंकार में दोनों भाई अपने ही पिता से बोले "हे अयोध्यापति राम हम दोनों भाइयों ने घोड़े के मस्तक पर लगे  स्वर्णपट पर लिखी चुनौती को स्वीकार किया है। हे राजन आपको यदि अश्व चाहिए तो हम से युद्ध करें, हमें पराजित करें फिर अश्व ले जाये" राम, लव-कुश के अहंकार भरे चुनौती को कैसे स्वीकार करते? पिता-पुत्र में युद्ध कैसे संभव था? भगवान राम ने देखा अयोध्या की सेना सहित महाबली योद्धाओं का अहंकार भी टूटना जरूरी था, वैसे ही लव-कुश का भी अहंकार टूटना जरूरी है। फिर उन्होंने युद्ध भूमि से एक तिनका उठाकर लव-कुश की ओर फेंका। उस तिनके को रोकने में लव-कुश के सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए। वो तिनका जाकर लव-कुश को लगा और दोनों भाई मूर्छित हो गये। इस प्रकार भगवान राम ने अपने ही सेना, सभी भाई, मित्र और पुत्र के अहंकार को पराजित किया। इसके साथ ही मानव रूप में प्रकट स्वयं नारायण ने भी अपने मनुष्यता के कारण उत्पन्न अहंकार का नाश किया।

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...