मंगलवार, 28 अगस्त 2018
शुक्रवार, 17 अगस्त 2018
मेरे युगपुरूष अनंत में विलीन हो गये! - जितेश सिंह
चिठ्ठी ना कोइ सन्देश, जाने वो कोन सा
देश, कहा तुम चले गये....
15 अगस्त से
ही अटल जी की स्वास्थ्य बिगड़ने की खबर आ रही थी| उस दिन देर
रात तक न्यूज देखता रहा, मोबाईल से
अपडेट लेता रहा| कल 16 अगस्त को
सुबह से न्यूज देख रहा था| पल-पल की खबर पर नजर बनायें हुये था| सुबह से मेरे आंखों को भरोसा था, सब्र की घड़ी में हर पल अटल जी की कविताएं गुंजती रही, उनके भाषण गुंजते रहे| साथ-साथ एक विश्वास भी बना रहा, इतना
विकसित मेडिकल साइंस हो गया है, उन्हें बचा लेगा| भले ही बेड पर ICU में जीवित थे, यही बहुत बड़ी बात थी| 15 अगस्त शाम को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी| उनके बाद 16 अगस्त सुबह से ही प्रधानमंत्री के अलावे कई अन्य दल के नेताओं का आना-जाना लगा रहा| शाम करीब 5:05 मिनट पर डॉक्टर ने उन्हे मृत घोषित कर दिया| देश पर मानो दुःख का पहाड टूट पड़ा हो| पुरा राष्ट्र स्तब्ध है, गहरे सदमें में है, क्यकि अटल जी गहरे नींद में चले ग़ये, जहां से लौट कर कोई नहीं आया| उनसे मेरा कभी किसी उद्धबोधन या कही साक्षात दर्शन नहीं हुआ| टीवी, न्यूज इटरनेट से कही अधिक बड़े-बुजुर्ग, शिक्षक, समाज से सबसे उस राष्ट्रपुरूष की कहानी सुनते आया हूं| उनकी कविताएं सुनी है|
हौसले
और सिद्धांत हिमालय जैसे अडिग थे| जिस लोकतंत्र
की निष्पक्षरूप उन्होने सेवा की| राष्ट्र सेवा
को ईश्वरीय सेवा मानकर उसमें पुरी जिन्दगी झोक डाली हो| वैसे मनुष्य के निर्धन पर राष्ट्र ही नहीं, प्राकृति भी भाव-विभोर हो जाती है| मौसम ऐसी संदेश को प्रचारित कर रही जैसे कोई बड़ा
दुःख का पहाड़ टुट पड़ा है| अनजान और अबोध बालक भी अनुभव कर रहा, आज उसकी खुशी और खिलखिलाहट क्यू उसका साथ छोड़ रही
है?
सुबह से न्यूज देख रहा था| पल-पल की खबर पर नजर बनायें हुये था| सुबह से मेरे आंखों को भरोसा था, सब्र की घड़ी में हर पल अटल जी की कविताएं गुंजती रही, उनके भाषण गुंजते रहे| साथ-साथ एक विश्वास भी बना रहा, इतना
विकसित मेडिकल साइंस हो गया है, उन्हें बचा लेगा| भले ही बेड पर ICU में जीवित थे, यही बहुत बड़ी बात थी| 15 अगस्त शाम को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी| उनके बाद 16 अगस्त सुबह से ही प्रधानमंत्री के अलावे कई अन्य दल के नेताओं का आना-जाना लगा रहा| शाम करीब 5:05 मिनट पर डॉक्टर ने उन्हे मृत घोषित कर दिया| देश पर मानो दुःख का पहाड टूट पड़ा हो| पुरा राष्ट्र स्तब्ध है, गहरे सदमें में है, क्यकि अटल जी गहरे नींद में चले ग़ये, जहां से लौट कर कोई नहीं आया| उनसे मेरा कभी किसी उद्धबोधन या कही साक्षात दर्शन नहीं हुआ| टीवी, न्यूज इटरनेट से कही अधिक बड़े-बुजुर्ग, शिक्षक, समाज से सबसे उस राष्ट्रपुरूष की कहानी सुनते आया हूं| उनकी कविताएं सुनी है|
भारतीय राजनीति में क्षितिज़ के समान विशाल और उदार चरित्र वाले
अटल जी एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे| उन्होंने जीवन
में जिस पथ को चुना, एक काली कोठरी थी, फिर भी बेदाग निकल गये। अटल जी
सिद्धांतों और कर्तव्य की अग्निपरीक्षा को तो पार गये, मगर ज़िन्दगी और नियती से
बीच शांत रह गये| आज हम सब को महानायक, हमारा यूगपुरुष छोड़ कर अनंत में विलीन हो
गया|
यह केवल राजनीति के लिए झटका नहीं, पत्रकारिता, साहित्यकार, कवि, राष्ट्रभक्त, जन-नायक, मार्गदर्शक, सामाजिक कार्यकर्ता, स्वमंसेवक हर रूप में महानता के शीर्ष पर रहे, एक
विराट व्यक्तित्व का निधन है| उनकी रिक्त
स्थान की भरपाई करना कई दशकों तक संभंव नहीं है| इस मृत्यु लोक
में लोखों जन्मे, लोखों की मृत्यु से आलिंगन हुआ और होता रहेगा, मगर अटल जी जैसा
व्यक्तित्व कई दशकों में जन्मते है|
जिस पथ पर उन्होंने चला, उनके विचार और
सिद्धांतों की आवश्यकता है, खासकर आज की राजनीति में| वह परम्परा जिसकी शुरूआत उन्होंने की थी आज उसको
गति देने की आवश्यकता है|
अटल जी की भाषा, शब्दावली ही
उनका हथियार और तलवार था,
किन्तु उन्होंने इससे किसी का गला नहीं कटा और ना ही कभी अपना हाथ कटा| अटल जी का मन कोमल जरूर था मगर उनकेआजादी के बाद 16 अगस्त, 2018 की रात सबसे काली रातों में से एक है, जिसने आंधी में दीपक जलाने वाले को अपने अंधकार में समा लिया| अटल यूग का समाप्त हो गये, विचार अमर रहेंगे| जय अटल! जय भारत! जय हिन्दी!
किन्तु उन्होंने इससे किसी का गला नहीं कटा और ना ही कभी अपना हाथ कटा| अटल जी का मन कोमल जरूर था मगर उनकेआजादी के बाद 16 अगस्त, 2018 की रात सबसे काली रातों में से एक है, जिसने आंधी में दीपक जलाने वाले को अपने अंधकार में समा लिया| अटल यूग का समाप्त हो गये, विचार अमर रहेंगे| जय अटल! जय भारत! जय हिन्दी!
बुधवार, 15 अगस्त 2018
खुशिलाल के छात्र दुखिलाल और मीडिया जन-आशीर्वाद के लोलुप में व्यस्त| जितेश सिंह
आज चौथा दिन भी बीत
गया| मामा तो आये नहीं और नहीं आया उनका कोई आश्वासन| खुशीलाल आयुर्वेद संस्थान,
भोपाल के छात्र-छात्रा पिछले चार दिनों से अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे है| 10
अगस्त को मैं अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी वि.वि., भोपाल आने-जाने समय धरना पर बैठे
छात्र-छात्रों को देखा और अनदेखा करके चलते बना| मुझे लगा अक्सर छोटी-छोटी बातों
पर घर की तरह रूठने वाली बीमारी अभी तक पीछा नहीं छोड़ी होगी| वास्तविता को समझे
बिना बात-बात पर आन्दोलन करना, धरना पर बैठना आदत बन गयी है| पढ़ने-लिखने के बजाये
धरनाबाजी कहाँ तक उचित है? इसे भी आम धरना की तरह सोच कर धिसक गए, क्यूकी मुझे
विश्वास था, कल ये सरे लोग फुर्र हो जायेंगे| मैंने अगले दिन भी विवि गया देखा फिर
से धरना, थोडा स्वार्थ में घिरा हुआ
था, इसलिए सोचा कहा इस पचारे में घिसता रहूँगा
आखिर 1400 किलीमीटर दूर बिहार के मुजफ्फरपुर से आया हूँ| बदनामी भी बिहारी वाली
पीछा नहीं छोड़ती है| लेकिन विवि से लौटते समय मुझसे रहा नहीं गया, मैं बस से तुरंत
खुशीलाल बस स्टॉप पर उतर गया| कैम्पस में गया, वहाँ के छात्रों से बात की समस्या की
लिखित पर्ची मांग लिया| जाते- जाते मैंने कहा "क्या कोई मीडिया वाला इस धरना
के बारे में जानकारी नहीं लिया है?" एक छात्र ने निराश होकर कहा "एक दो
छोटे स्तर के मीडिया चैनल और प्रिंट मीडिया से नवसीखिए पत्रकार ने दौरा किया है|
कोई पेपर या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खास मामला नहीं बन पाया है|" मैं
समझ गया शिवराज के जन-आशीर्वाद में मीडिया भोज का लुप्त उठा रहा| रोज फ्रंट पेज पर
शिवराज और कमलनाथ के आलावे मीडिया को कोई दिखता कहाँ? छात्र चार दिन से परेशान है,
धारना पर बैठे है| क्या कोई मीडियाकर्मी है, जो अपने आप को जन-आवाज मनाता है| मैंने
खुशीलाल के छात्रों से बात की है, सर बच्चे सच में परेशान हैं| इसकी परेशानी का
कारण शुल्क में वृद्धि, आयुर्वेद के डॉक्टरों की बहाली में अनियमितता, इंटर्नशिप
कर रहे छात्रों की मानदेय में आपेक्षाकृत कमी है| इसके साथ ही कई ऐसी समस्या जिससे
कारण इसमें हतासा है, निरासा है, विरोध से स्वर है, दुःख की झलक है, भविष्य की दरकार
है| इनके आवाज राजनीति नहीं, तो क्या आप प्रकाशित करेंगे? इसके कुछ पैसे नहीं
मिलेंगे, हो सके तो उलटे कोई सरकार के तरफ से फोन काँल आ जाए| देश को पत्रकार की
जितेश सिंह
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मंगलवार, 14 अगस्त 2018
स्वमं पूर्वाग्रह का शिकार हूँ! जितेश सिंह
जगजाहिर! हमारा अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी
विश्वविद्यालय, भोपाल| पिछले तीन महीनें में 35 बार प्रिंट मीडिया ने यहाँ की
शिक्षा प्रणाली को कटधरे में खड़ा किया है| मुझे भी पहले लगता था कि मीडिया को बिना
आतंरिक स्थिति जाने, कुछ भी पक्ष-विपक्ष तय करना जल्दीबाजी होगी| धीरे-धीरे मैं
मीडिया के विचारों से सहमत होने लगा और क्यू ना हूँ? आज 1 वर्ष 17 दिन के बाद मैं
पूर्णतया मीडिया का पक्षधर हूँ और यह इसलिए नहीं की मैं पत्रकारिता का छात्र हूँ
बल्कि इसलिए मैं हिंदी वि.वि. का छात्र हूँ|
मेरे लिए हिंदी में अध्ययन करना गौरव
की बात है| ज्यादा ज्ञानी तो नहीं जो पढ़ा, लिखा, सुना हूँ वही बता रहा; हिंदी में
ज्ञान का प्रेम गुड़ छुपा है, अदभुत भाषा है| लोग गुस्से में भी बोलते है "
मैं आपकी बात से असहमत हूँ|" एक द्वंद्व में भी शिष्टाचार की कड़ी जोड़ती है,
हिंदी| हिंदी केवल भाषा नहीं व्यवहार, शिष्टा, सदाबहार और प्रेमी है| अगर विश्व
में सभी हिंदी भाषी होते तो कभी झगड़ते ही है| ऐसी सहिष्णुता हमारी हिंदी है| जिसने
पूर्व में कई भाषाओँ को अपने में मिला लिया और उफ़ तक नहीं की| विचारणीय है, ऐसी
सहिष्णु हिंदी में आराजकता कहाँ से आई? हिंदी में कोई आराजकता नहीं आई है, बस
राजनीति के चपेट में आ गयी| भले ही एक कुशल और अद्वितीय माने-जाने वाले लोकप्रिय
प्रधानमंत्री अटल जी भाजपा और संघी थे| हमारा वि.वि. कोई राजनैतिक अटल नहीं शिक्षा
रूपी अटल है, जब-जब कोई राजनीति की बाते करेगा तब-तब हिंदी आराजक बन जाएगी| शिक्षा
का गोलमाल होना, हंगामा बढेगा और मीडिया आलोचना करेगी| वि.वि. विद्वानों की
नीतियों से चालना बेहतर होगा, ना की भाजपा की नितियों से| कारण दो ही नजर आते है; पहला
शासन के आगे लाचार और बेबसी, दूसरा व्यक्तिगत स्वार्थ दोनों से लड़ना होगा हमें| किसी
की योग्यता प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष नहीं हो सकती, ना किसी में संगठन की आयु की
भूमिका होनी चाहिए| एक पक्ष और भी ना ही किसी सांसद और मंत्री के सेवाकारों को रखा जाना
चाहिए, हमें हिंदी के लिए शिक्षाकारों की की जरुरत है| ऐसे नहीं किसी को विभाग की
बागडोर दीजिए, जो आपका भी स्तर गिरा दे| ऐसा हो रहा है, किसी भी छात्र को आज
संतुष्टि नहीं और कैसे हो कोई पढ़ाने वाला भी तो हो? आज अपनी विभाग की बात करता
हूँ, पत्रकारिता विभाग| किसकी क्या भूमिका पता नहीं? परीक्षा विभाग हो या शुल्क विभाग
किसी से कोई तालमेल ही नहीं| जवाब बहुचर्चित हैं " मेरा काम यह नहीं" सही
में आपका काम यह नहीं, आपकी परिभाषा ही दूसरी है| जब कुछ बता नहीं सकते, पढ़ा नहीं
सकते, सिलेबस भी नहीं दे सकते, क्लासे नहीं लगती तो फिर क्यू 75 प्रतिशत उपस्थिति की
बात कर रहे और रजिस्टर है जिसमें उपस्थिति दर्शाएंगे? मैं भोपाल में हूँ द्वितीय
सेमेस्टर के परीक्षा के कुछ दिन बाद होस्टल बंद हुए| उसके बाद एक नये रूम में
जैसे-तैसे रहता हूँ, विरोध नहीं करता हूँ| कौन सी नियम का आलाप जपते है, वि.वि. स्व
घोषित प्रभारी? जो छात्र के आते ही बोलता है "क्यू आये हो?" मुझे लगता
है, जाती-कोम के लोगों की अलग निति और रीती की बात मुद्दा बन ही गई है, विभाग भी गंगा
स्नान का लाभ उठाये| पहला निति कोई छात्र किसी परिस्थिति में दुसरे क्लाससाथी की
मदद नहीं करेगा, दूसरा निति आते ही बताना पडेगा क्यू आये हो? विभाग में नहीं पुस्तकालय
में बैठना है| ऐसी स्थितियों से हमें मुक्ति मिलेगी या मुक्त हो जाऊंगा समय का
निर्णय है| मैं व्यक्तिगत आलोचना नहीं करता "स्वमं पूर्वाग्रह का शिकार हूँ|"
जितेश सिंह
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बुधवार, 1 अगस्त 2018
प्रधानमंत्री से ज्यादा भाजपा के ब्रांडएम्बेसडर मोदी - जितेश सिंह
कुछ महीने बाद चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है| ऐसे में जानकारों, विश्लेषकों, टिका-टिप्पणीकारों की माने तो प्रधानमंत्री का अबकी बार लाल किले से भाषण पहले से हट कर होगा| इस बार 15 अगस्त को लाल किले से क्या बोलेंगे मोदी? पांच साल के कार्यकाल का यह लाल किले से आखिरी संबोधन होगा| तो वही पहले से ही भाजपा चारों राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम) में चुनावी बिगुल बजा चुकी है| इन राज्यों में भाजपा के कार्यकर्त्ता की अपेक्षा भी मोदी के भाषण से जुड़ी होगी तो वही जनाता-जनार्धन की भी निगाहें फड़क रही है| मोदी का तोफा क्या होगा लाल किले से?
कुछ राजनीती विश्लेषकों की माने तो यह
भाषण 2019 आम चुनाव की पृष्ठ भूमि तय करेगी| इसलिए सबकी नजर आने वाले 15 अगस्त
को लाल किले पर होगी कि मोदी क्या बोलेंगे? क्या वे कोई बड़ी घोषणा करेंगे? या अपनी
सरकार के कामकाज का ब्योरा ही पेश करेंगे| उनके करीबी कहते है
कश्मीर को लेकर कोई बड़ी घोषण भी लाल किले
से मोदी कर सकते है? शिक्षा के अलग-अलग स्तरों (प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षण
संस्थान) में छात्रों के हित में कोई बड़ा फैसला लेकर युवा मन को टटोलने का प्रयास भी
कर सकते है|
या प्रोफेसरों और नौकरशाहों की रिटायरमेंट की अवधी बढ़ाई जा सकती है?
हो सकता बेरोजगारों के लिए लुभावक भाषण ही बोल दे| मोदी के भाषण का मुख्य मुद्दा
जो हो, इतना साफ है कि अबकी बार मोदी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री से ज्यादा भाजपा के
ब्रांडएम्बेसडर के नाते लाल किले से गरजेंगे|
जितेश सिंहअ.बि.वा.हि.वि.वि., भोपाल |
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