सोमवार, 21 मई 2018

महानायक विनायक दामोदर सावरकर! - जितेश सिंह

विनायक दामोदर सावरकर एक महानायक थे| वे भारतीय
स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे
| उन्हें प्राय: वीर सावरकर से संबोधित किया जाता है| सावरकर क्रन्तिकारी के साथ एक प्रखर वक्ता और राष्ट्रवादी लेखक भी थे| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर की भूमिका भले ही राजनीति पूर्वाग्रह के कारण छुपाई जाती रही हो| लेकिन आज की पीढ़ी ने इतिहास में गुमनाम उन सभी पृष्ठों को खोजना शुरू कर दिया है| और इसी गुमनाम पृष्ठों में दशकों तक दबे रहे, आजादी के महानायक, प्रखर विचारक, दूरदर्शी प्रतिभा के धनी विनायक दामोदर सावरकर!

वीर सावरकर का जन्म 28  मई  1883 ई. को हुआ| उनका जन्म महाराष्ट्र प्रान्त में पुणे के समीप बसा एक छोटे-से गाँव भागुर में हुआ| उनके पिता दामोदर पन्त आस-पास के गाँव में लोकप्रिय थे|

जितेश सिंह
अ.बि.वा.हि.वि.वि., भोपाल 

लोग उन्हें सम्मान की नजर से देखते थे| सावरकर जी की माँ राधाबाई सुसंस्कृत और धार्मिक वृति की थी| बाल्यावस्था से ही सावरकर और उनके दोनों भाई राधा माँ से गीता, रामायण के पाठ सुना करते थे| राधाबाई अपने तीनों पुत्रों को वीर शिवाजी की कहानियां सुनाती थी| सावरकर जब अपने दोस्तों को माँ द्वारा बताई कहानी को सुनते तो पूर्णत: कहानी के पात्र बन जाते और उनके जैसा ही व्यवहार करते| मगर ये प्रकिया ज्यादा दिन नहीं चल पायी| गाँव में आयी महामारी की बीमारी में राधाबाई चल बसी| उस वक्त सावरकर की आयु मात्र आठ से नव वर्ष थी| उनके पिता दामोदर पन्त और सावरकर के बड़े भाई गणेश राव ने उनका और उनके छोटे भाई नारायण दामोदर का लालन-पालन किया| वे चाहते थे कि सावरकर पढ़े और आगे चलकर बैरिस्टर बने| पढाई-लिखाई में सावरकर चतुर थे| हमेशा वर्ग में प्रथम आते थे| मगर इसके साथ ही उनके मन में स्वाधीनता और आजादी के संघर्ष भी पनपते गये| उस दिनों '1857 की स्वतंत्रता संग्राम' के किस्से गाँवों में खूब प्रचलित थी| सावरकर भी 1857 की क्रांति के किस्से सुन कर आग बबूला हो उठाते| सावरकर में बाल्यकाल से ही क्रांतिकरी गुण कूटकूट कर भरे पड़े थे| सावरकर माध्यमिक शिक्षा के दौरान ही अंग्रजों के विरुद्ध कविता, भाषण देने लगे थे| उनके ओजस्वी भाषण से लोगों में बिजली सी चेतना उत्पन्न होती थी| सावरकर आठवीं वर्ग में ही 'मित्र मेला' नामक एक गुप्त क्रन्तिकारी संगठन भी बनाई थी| सावरकर हमेशा नये छात्रों से परिचय करते और उन्हें अपनी मित्र मंडली में जोड़ते| 1899 में भागुर गाँव में दूसरी बार महामारी फैली| जिसमें सावरकर के पिता के साथ गाँव के सैकड़ों लोग मारे गए| हर घर से चीख-पुकार की आवाजे आती थी| उनके अंतिम संस्कार के लिए भी लोग नहीं जाते थे| उन्हें डर था कि उन्हें भी महामारी ना फ़ैल जाए| ऐसे में सावरकर अपने मित्र मंडली के साथ इनके दुःख में शामिल होते और उनके परिवारजन के साथ श्मसान तक जाते थे| यह प्रसंग इस बात की पुष्टि करता है कि सावरकर क्रन्तिकारी के साथ सामाजिक क्रांतिकारी भी थे| पिता की मृत्यु के बाद घर की स्थिति दैयनीय थी| जो कुछ थोड़ा बहुत था, उसे चोरों ने चुरा लिया| गणेश राव ने घर की जिम्मेदारी अपने सर पर ली| वो सावरकर की पढाई जरी रखे| सन् 1902 में शिवाजी हाईस्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिए सावरकर पुणे गए| वहां फग्र्युसन कॉलेज से स्नातक कला की पढाई पूरी की| शिवाजी हाईस्कूल में सावरकर पर कई बार प्रतिबन्ध लगे| क्युकि वे ब्रिटिश शासन के लिखाफ कविता और भाषण देते थे| ब्रिटिश शासन के प्रति सावरकर के विरोधाभास को सुनकर पुणे के गलियों में विरोध की लहर दौड़ जाती थी| लोग सावरकर से जुड़ने लगे| उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ रही थी, कि जब महारानी विक्टोरियां के जन्मदिवस समारोह का उन्होंने विरोध किया तो सैकड़ों विद्यार्थियों ने सावरकर के स्वर को हवा दी| जिसके कारण मुख्य आरोपी सावरकर को मानकर 1 माह के लिए स्कूल से निकाल दिया गया और साथ ही 10 रुपये के जुर्माने भी लगाये गए| तब सैकड़ों लोगों ने पत्र लिख कर जुर्माने की पैसा देने की आग्रह की| मगर बाल गंगाधर तिलक ने एक पत्र वहां के प्रिंसिपल को लिखी| जिसमें सावरकर पर लगे जुर्माने हटाने की अनुशंसा की गई थी| तब जाकर सावरकर पर लगे प्रतिबन्ध हटाये गए| जब वे फग्र्युसन कॉलेज पहुंचे तो, ज्यादातर छात्र विनायक दामोदर से परिचित थे| जल्द ही फग्र्युसन कॉलेज में भी क्रांति की लहर दौड़ पड़ी| कॉलेज में दिन -प्रतिदिन सावरकर के समुहिक भाषण और व्याख्यान होने लगे| सावरकर ने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सन् 1904 में 'आभिनव भारत' नामक क्रन्तिकारी संगठन की उद्दघोषणा की| जिससे हजारों की संख्या में लोग जुड़े| सन् 1905 में बंग-भंग के समय पूरे महाराष्ट्र में आभिनव भारत के कार्यकर्त्ताओं ने जनता को बंग-भंग के विरोध खड़ा किया| भारत में पहली बार ऐसा था जब कोई विदेशी कपड़ों का जलाकर विरोध प्रदर्शन किया हो| इसके बाद महाराष्ट्र में हर छोटे-बड़े चौराहे पर विदेशी कपड़ों की होली खेली गई| इसे भारतीय स्वाभिमान की पहली लड़ाई कहा जा सकता है, जब कोई क्रन्तिकारी अंत:कारण से स्वदेशी और भारतीयता की बात कर, विदेशी कपड़ों की होली खेली हो| आगे चल कर महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओं ने भी सावरकर की राह आपनायी|
सन् 1906 में बैरिस्टरी की पढाई के लिए लन्दन चले गए| उन्होंने देखा-वहां भारतीयों के साथ निम्न दर्जा का बर्ताव किया जाता था| उन्हें होटल के कोने में या बाहर बैठाया जाता था| यही नहीं पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी क्लासरूम में पीछे बैठाया जाता था| भारतीयों को टेबल-कुर्सी पे बैठने नहीं दिया जाता था| ऐसे में सावरकर ने भारतीयों मूल के लोगों से संपर्क की और 'स्वतंत्र भारतीय समाज की स्थापना' की| जिसके प्रमुख सदस्य मदन लाल ढींगरा, वापट, लाला हरदयाल, मैडम कामा, अय्यर, चतुर्भुज, चितरंजन दास थे| सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी थे, जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई को वैश्विक रूप दिया| लन्दन में सावरकर ने आयरलैंड, रूस, फ़्रांस, जापान, इटली, जर्मनी, के युवाओं से संपर्क किया| जो अपने स्तर से ब्रिटिश शासन का विरोध कर रहे थे| वैसे लोगों को एकत्रित किया, जिन्हें अंग्रेजों ने गुलाम बनाया था| जो अपने मातृभू की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे|
सावरकर ने 'सन् 1857 की क्रांति' का विस्तृत अध्ययन किया और एक खोजपूर्ण पुस्तक "दी फर्स्ट वार ऑफ़ इंडिपेंडेंस: 1857 लिखी| ब्रिटिश शासन की पोल खोलने और उन तमाम चाटुकारों जिन्होंने ने 1857 की क्रांति को महज छोटा सा सैनिक विरोध बताया था| इसके विपरीत सावरकर की पुस्तक में क्रांति की सटीक व्याख्या किया गया था| सावरकर ने अपने लेखनी से दम पर ये सिद्ध कर दिया| यह केवल सैनिक विरोध नहीं, बल्कि जन-आंदोलन था| इस पुस्तक से भयभीत होकर ब्रिटिश शासन ने इसके प्रकाशन पर, पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में बैन लगा दिया| सावरकर ने 'गुरु गोविन्द सिंह' और 'सिखों का इतिहास' लिखा| मेजनी के जीवनी पर लिखी पुस्तक का मराठी भाषा में अनुवाद किया| मगर इसकी प्रस्तावना से भयभीत होकर शासन ने इस पर भी बैन लगा दी| सावरकर एक क्रन्तिकारी लेखक थे, इसका प्रमाण सावरकर के प्रत्येक पुस्तक को भारत में प्रकाशित नहीं होने देना था| उसके प्रकाशन से पहले ही उस बैन लगा देना| ब्रिटिश अधिकारी के अनुसार सावरकर के पुस्तक में रासायनिक हथियार बनाने के तकनीकी का भी उल्लेख किया गया है| इस प्रकार के आरोप लगाकर उनके पुस्तको पर बैन लगा दिया गया| मदन लाल ढींगरा जो सावरकर मित्र होने के साथ लन्दन में स्वतंत्र भारतीय सोसायटी के सदस्य थे| सावरकर की जासूसी और सावरकर के पुस्तकों को बैन की मांग करने वाले ब्रिटिश आधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की हत्या कर दी| इधर अभिनव भारत के कार्यकर्त्ताओं ने पुणे के कलेक्टर जैक्सन के हत्या कर दी| दोनों हत्याकांड के षड्यंत्र में ब्रिटेन और भारत दोनों जगह सावरकर के खिलाफ गिरफ़्तारी के वारेंट निकल गए| सावरकर को लन्दन से भारत बंदी बनाकर लाया गया| सावरकर समुद्र मार्ग से भागने के भी प्रयास किये| वे जहाज से समुद्र में कूद कर फ़्रांस बंदरगाह पहुँच गए, परन्तु उनका पीछा करते हुए, ब्रिटिश सुरक्षाकर्मी ने उन्हें पुनः पकड़ लिया| लेकिन इस घटना ने सावरकर को रातो-रात विश्वविख्यात वीर सावरकर बना दिया|
सावरकर को भारत लाया गया| उन्हें कालापानी की सजा हुई| वीर सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी थे, जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा दी गई| सावरकर को अंडमान स्थित सेल्युलर जेल भेजा गया| जहाँ क्रन्तिकारियों से जानवरों की तरह काम लिए जाते थे| छोटी-छोटी गलती पर बेत से पिटाई की जाती थी| कई क्रांतिकारियों ने आत्महत्या करना बेहतर समझा| लेकिन सावरकर ने उन सभी यातनायों के बावजूद वहां के क्रांतिकारियों को एकत्रित किया| कई बार उन्हें इसके लिए शारीरिक कष्ट झेलना पड़ा, परन्तु सावरकर धैर्य नहीं खोये| जेल के दीवारों पर उन्होंने छह हजार से ज्यादा कविता की पंक्तियाँ अपने नाखूनों से लिखी और उसे कंठस्थ किया| उन्हें ग्यारह वर्षों के बाद सेल्युलर जेल से रत्नागिरी में गृहबंदी बनाकर 1937 तक रखा गया| इसी बीच सावरकर सामाजिक क्रांति में कूद पड़े| छुआछूत, रोटिबंदी और बेटिबंदी के विरुद्ध क्रांति की| सामूहिक भोज का आयोजन किये जिसमें सर्वसमाज को शामिल किया| पतित पावन मंदिर का निर्माण करवाया| जिसमें सभी वर्ग के लोग एक साथ पूजा में शामिल हो सकते थे| सावरकर रत्नागिरी में गृहबंदी के दौरान सैकड़ो सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगवार भी कई बार सावरकर से मिलने रत्नागिरी पहुंचे| महात्मा गाँधी भी रत्नागिरी सावरकर से मिलने पहुंचे| 1937 में सावरकर जब पाबन्दी से मुक्त हुए तो, स्थिति को देखते हुए| वे हिन्दू महासभा से जुड़े और छह वर्षों तक लगातार उसके अध्यक्ष बने रहे| जब भारत के बटवारे का प्रस्ताव मुस्लिम लीग ने लाया तो सावरकर ने इसकी कड़ी आलोचना की| फिर भी बटवारे की नींव पहले ही तैयार हो चुकी थी| अब तो किसके हिस्से में कितना आता है महज बचा था| फिर भी सावरकर ने मुस्लिम लिंग के शाजिस का विरोध करते हुए| एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित किये| जिसमें पंजाब और बंगाल को पाकिस्तान में मिलाने के लिए वहां बड़े पैमाने पर मुस्लिमों को बसाया जा रहा है| सीमावर्ती क्षेत्रों में जबरन धर्मान्तरण का कार्य किया जा रहा है| सावरकर के इस रिपोर्ट के बाद मुस्लिम लीग का जबरदस्त विरोध पूरे भारत में शुरू हो गया| फलत: भारत तो खंडित हुआ लेकिन बंगाल और पंजाब के बड़े हिस्सों को सावरकर के कारण भारत से अलग नहीं कर पाये|
15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो सावरकर ने धर्म ध्वज भगवा और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को एक साथ फहराया| सावरकर ने कहा " आजादी की ख़ुशी है तो राष्ट्र के खंडित होने का दुःख भी है|"
        

" काल स्वयं मुझ से डरा है,
मैं काल से नहीं,
कालेपानी का कालकूट पीकर
काल से कराल स्तभों को झकझोर कर,
मैं बार-बार लौट आया हूँ,
और फिर भी जीवित हूँ|
हारी मृत्यु है, मैं नहीं....

- वीर सावरकर

सोमवार, 7 मई 2018

जैसे-तैसे नहीं चल पायेगा हिंदी विश्वविद्यालय ? -जितेश सिंह

कल 7 मई को अ.बि.वा.हि.वि.वि., भोपाल के छात्रों ने वि.वि. के कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज जी से मिले|जनवरी में हुई परीक्षा के अंक प्रपत्र को अतिशीघ्र वेबसाइट पर अपलोड करने तथा जिन विद्यार्थीयों की 
परीक्षा में एटीकेटी लगी है, उनकेे परिक्षा को जल्द से जल्द करवायी जाए| छात्रों ने कुलपति जी से यह भी कहा कि अगले सेमेस्टर की होने वाली परीक्षा की तिथि भी शीध्र घोषित हो| परीक्षा संबंधित जानकारी, प्रश्नों के नमूने को वि.वि. के वेबसाइट पर अपलोड किया जाए| वि.वि. के पुस्तकालय में पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्तकों की कमी का निदान किया जाए| जिन विभागों में शिक्षकों की कमी है, अतिथि विद्वानों की सहायता से पाठ्यक्रम की तैयारी करायी जाए| हालाकि पीछले सेमेस्टर से वि.वि. के पत्रकारिता विभाग में अतिथि विद्वानों की सहायता लिया जा रहा है| परिमाणत: अधिकतर छात्रों ने सेमेस्टर परीक्षा में उत्तीर्ण हुये| प्रशासनिक सूचनातंत्र  में सुधार भी एक बड़ा मुद्दा है| छात्रों ने इसप्रकार के अनेको शिथिलता को लेकर वि.वि. के कुलपति से मिलकर उन्हें एक पत्र सौपी| अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, भोपाल की बात की जाए तो यह विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के सपनों का विश्वविद्यालय  कहा जाता है| म. प्र. शासन के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक इसे माना जाता है| लेकिन अब तक की व्यवस्था में कुछ ड्रीम नहीं दिखता है| वि.वि. ने अपने विद्यार्थीयों को हताशा और निराशा के अलावे आज तक कुछ नहीं दी है| ऐसे में सतत् अध्ययन और आगे की पढ़ाई हेतु कई प्रकार की संकट उपज रही है| अब तक पीछले परीक्षा में उत्तीर्ण हुये, छात्रों को अंक प्रपत्र नहीं दिये गये और नहीं उन विद्यार्थीयों की एटीकेटी की परीक्षा करवायी गई, जिनका परीक्षा में एटीकेटी लगा था| इस बार थोड़ी विलंब भी मान ले पर कैसे?  वि.वि. ने अब तक उन विद्यार्थीयों को भी अंक प्रपत्र नहीं दिया है| जो प्रथम से चौथी या पंचवी या अंतिम सेमेस्टर का परीक्षा देने वाले है, आज तक उन्हें किसी भी सेमेस्टर का अंक प्रपत्र नहीं दिया गया| यह एक बड़़ी प्रशासनिक चुक है!
जून 2017 में जिन छात्रों का नामांकन हुआ अब तक उन्हें परिचय पत्र तक नहीं दिये गये है| एक चलान रसीद के फोटो कॉपी के अलावे छात्रों के पाास कोई कागज का टुकड़ा तक नहीं जिससे उनकी पहचान विवि के छात्रों में किया जा सके| ऐसे में उन्हें बस पास, बैंक संबंधित कार्य और अनेको क्रियाकलाप में परेशानी का सामना करना पड़ता है| वि.वि. ने सौकडो़ विभाग और पाठ्यक्रम तो खोल रखी है| लेकिन छात्रों कमी साफ देखी जा सकती है| किसी में चार तो किसी में पांच छात्र अध्ययनशील है, परन्तु विषय छात्रों की कमी नहीं, व्यवस्था की है| अगर छात्रों की संख्या कम है तो पढ़ाई और परीक्षा, अादि कागजी काम-काज ससमय हो ताकि व्यवस्था और स्पष्टता से नये विद्यार्थीयों को आकर्षित किया जा सके| मगर ऐसा कुछ दिख नहीं रहा| मानों शासन ने रोजगार के दृष्टि इसे चालू किया हो| जहां पढ़े-लिखे लोग कुछ फाइल बना कर और कुछ हस्ताक्षर कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सके| डिजिटलकरण के नाम पर ठेंगा के अलावे कुछ भी नहीं! विश्वविद्यालय संबंधित गतिविधियों को अपडेट भी किये महिनों बीत गए होंगे| पुस्तकालय में पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्तके अप्रयाप्त है| अादि अनेको समस्याएं के कारण वि.वि. की स्थिति दैयनीय बनी हुई है| यही कारण था कि कल 7 मई को विवि के आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं और कुछ सक्रिय छात्रों ने कुलपति जी को लिखित पत्र सौंपी| यह पहली बार नहीं जब आ.भा.वि.प. के छात्रों ने कुलपति से मिले हो| पीछली बार भी जब विश्वविद्यालय ने अभियांत्रिकी (इंंजीनियरिंग) विभाग को एकाएक बंद करने के निर्देश दिये तो आ.भा.वि.पा. के कार्यकर्ताओं ने उन छात्रों के साथ अन्याय नहीं होने दिया| विवि के प्रशासनिक ईकाई पर जोर देकर उन छात्रों के नामांकन को दुसरे विश्वविद्यालय में करवाने का प्रयत्न किया था| 
यही नहीं जब पर्यटन विभाग ने अवैध रूप से पुराणी विधानसभा स्थित विवि के कैंपस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश  तो विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय  छात्रों के साथ मिलकर पर्यटन विभाग  के  विरुद्ध प्रदर्शन की| जिसका परिमाण यह हुआ कि पर्यटन विभाग को झुकना पड़ा तथा उनके अधिकारियों को यह आश्वासन देना पड़ा कि जब तक विश्वविद्यालय को कोई दूसरा स्थान सुनिश्चित ना कर दिया जाए, तब तक वि.वि. के कैंपस में कोई कार्य नहीं होगें| विवि के सक्रिय छात्रों और आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं ने हमेशा से विवि के प्रति अपनी निष्ठा को प्रकट की है|कल 7 मई  को छात्रहित और विवि के व्यवस्था में शिथिलता को लेकर विवि के कुलपति से मिलना| उन्हें विभिन्न असुविधाओं को लेकर लिखित पत्र सौंपना सराहनीय है| विवि की प्रशासनिक विभाग भी अवगत समस्याओं के जल्द निपटने का प्रयास करे| ताकि अगामी वर्ष नामांकन की संख्या में उछाल आए|
              

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...