विनायक दामोदर सावरकर एक महानायक थे| वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे| उन्हें प्राय: वीर सावरकर से संबोधित किया जाता है| सावरकर क्रन्तिकारी के साथ एक प्रखर वक्ता और राष्ट्रवादी लेखक भी थे| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर की भूमिका भले ही राजनीति पूर्वाग्रह के कारण छुपाई जाती रही हो| लेकिन आज की पीढ़ी ने इतिहास में गुमनाम उन सभी पृष्ठों को खोजना शुरू कर दिया है| और इसी गुमनाम पृष्ठों में दशकों तक दबे रहे, आजादी के महानायक, प्रखर विचारक, दूरदर्शी प्रतिभा के धनी विनायक दामोदर सावरकर!
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 ई. को हुआ| उनका जन्म
महाराष्ट्र प्रान्त में पुणे के समीप बसा एक छोटे-से गाँव भागुर में हुआ| उनके पिता दामोदर पन्त आस-पास के गाँव में
लोकप्रिय थे|
लोग उन्हें सम्मान की नजर से देखते थे| सावरकर जी की माँ राधाबाई सुसंस्कृत और धार्मिक
वृति की थी| बाल्यावस्था से ही सावरकर और उनके दोनों भाई राधा
माँ से गीता, रामायण के पाठ सुना करते थे| राधाबाई अपने तीनों पुत्रों को वीर शिवाजी की
कहानियां सुनाती थी| सावरकर जब अपने दोस्तों को माँ द्वारा बताई कहानी
को सुनते तो पूर्णत: कहानी के पात्र बन जाते और उनके जैसा ही व्यवहार करते| मगर ये प्रकिया ज्यादा दिन नहीं चल पायी| गाँव में आयी महामारी की बीमारी में राधाबाई चल
बसी| उस वक्त सावरकर की आयु मात्र आठ से नव वर्ष थी| उनके पिता दामोदर पन्त और सावरकर के बड़े भाई गणेश
राव ने उनका और उनके छोटे भाई नारायण दामोदर का लालन-पालन किया| वे चाहते थे कि सावरकर पढ़े और आगे चलकर बैरिस्टर
बने| पढाई-लिखाई में सावरकर चतुर थे| हमेशा वर्ग में प्रथम आते थे| मगर इसके साथ ही उनके मन में स्वाधीनता और आजादी
के संघर्ष भी पनपते गये| उस दिनों '1857 की
स्वतंत्रता संग्राम' के किस्से गाँवों में खूब प्रचलित थी| सावरकर भी 1857 की क्रांति के
किस्से सुन कर आग बबूला हो उठाते| सावरकर में
बाल्यकाल से ही क्रांतिकरी गुण कूटकूट कर भरे पड़े थे| सावरकर माध्यमिक शिक्षा के दौरान ही अंग्रजों के
विरुद्ध कविता, भाषण देने लगे थे| उनके
ओजस्वी भाषण से लोगों में बिजली सी चेतना उत्पन्न होती थी| सावरकर आठवीं वर्ग में ही 'मित्र मेला' नामक एक गुप्त
क्रन्तिकारी संगठन भी बनाई थी| सावरकर हमेशा नये
छात्रों से परिचय करते और उन्हें अपनी मित्र मंडली में जोड़ते| 1899 में भागुर गाँव में
दूसरी बार महामारी फैली| जिसमें सावरकर के
पिता के साथ गाँव के सैकड़ों लोग मारे गए| हर घर से चीख-पुकार
की आवाजे आती थी| उनके अंतिम संस्कार के लिए भी लोग नहीं जाते थे| उन्हें डर था कि उन्हें भी महामारी ना फ़ैल जाए| ऐसे में सावरकर अपने मित्र मंडली के साथ इनके
दुःख में शामिल होते और उनके परिवारजन के साथ श्मसान तक जाते थे| यह प्रसंग इस बात की पुष्टि करता है कि सावरकर
क्रन्तिकारी के साथ सामाजिक क्रांतिकारी भी थे| पिता की मृत्यु के
बाद घर की स्थिति दैयनीय थी| जो कुछ थोड़ा बहुत था, उसे चोरों ने चुरा लिया| गणेश राव ने घर की जिम्मेदारी अपने सर पर ली| वो सावरकर की पढाई जरी रखे| सन् 1902 में शिवाजी
हाईस्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिए सावरकर पुणे गए| वहां फग्र्युसन कॉलेज से स्नातक कला की पढाई पूरी
की| शिवाजी हाईस्कूल में सावरकर पर कई बार प्रतिबन्ध
लगे| क्युकि वे ब्रिटिश शासन के लिखाफ कविता और भाषण
देते थे| ब्रिटिश शासन के प्रति सावरकर के विरोधाभास को
सुनकर पुणे के गलियों में विरोध की लहर दौड़ जाती थी| लोग
सावरकर से जुड़ने लगे| उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ रही थी, कि जब महारानी विक्टोरियां के जन्मदिवस समारोह का
उन्होंने विरोध किया तो सैकड़ों विद्यार्थियों ने सावरकर के स्वर को हवा दी| जिसके कारण मुख्य आरोपी सावरकर को मानकर 1 माह के
लिए स्कूल से निकाल दिया गया और साथ ही 10 रुपये के जुर्माने भी लगाये गए| तब सैकड़ों लोगों ने पत्र लिख कर जुर्माने की पैसा
देने की आग्रह की| मगर बाल गंगाधर तिलक ने
एक पत्र वहां के प्रिंसिपल को लिखी| जिसमें सावरकर पर
लगे जुर्माने हटाने की अनुशंसा की गई थी| तब जाकर सावरकर पर
लगे प्रतिबन्ध हटाये गए| जब वे फग्र्युसन कॉलेज पहुंचे तो, ज्यादातर छात्र विनायक दामोदर से परिचित थे| जल्द ही फग्र्युसन कॉलेज में भी क्रांति की लहर
दौड़ पड़ी| कॉलेज में दिन -प्रतिदिन सावरकर के समुहिक भाषण
और व्याख्यान होने लगे| सावरकर ने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सन्
1904 में 'आभिनव भारत' नामक क्रन्तिकारी
संगठन की उद्दघोषणा की| जिससे हजारों की संख्या में लोग जुड़े| सन् 1905 में बंग-भंग के समय पूरे महाराष्ट्र में
आभिनव भारत के कार्यकर्त्ताओं ने जनता को बंग-भंग के विरोध खड़ा किया| भारत में पहली बार ऐसा था जब कोई विदेशी कपड़ों का
जलाकर विरोध प्रदर्शन किया हो| इसके बाद महाराष्ट्र
में हर छोटे-बड़े चौराहे पर विदेशी कपड़ों की होली खेली गई| इसे भारतीय स्वाभिमान की पहली लड़ाई कहा जा सकता
है, जब कोई क्रन्तिकारी अंत:कारण से स्वदेशी और
भारतीयता की बात कर, विदेशी कपड़ों की होली खेली हो| आगे चल कर महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओं ने भी सावरकर की राह
आपनायी|
जितेश सिंह
|
सन् 1906 में बैरिस्टरी की पढाई के लिए लन्दन चले गए| उन्होंने देखा-वहां भारतीयों के साथ निम्न दर्जा
का बर्ताव किया जाता था| उन्हें होटल के कोने में या बाहर बैठाया जाता था| यही नहीं पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी क्लासरूम
में पीछे बैठाया जाता था| भारतीयों को टेबल-कुर्सी पे बैठने नहीं दिया
जाता था| ऐसे में सावरकर ने भारतीयों मूल के लोगों से
संपर्क की और 'स्वतंत्र भारतीय समाज की स्थापना' की| जिसके प्रमुख सदस्य
मदन लाल ढींगरा, वापट, लाला हरदयाल, मैडम कामा, अय्यर, चतुर्भुज,
चितरंजन दास थे| सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी थे, जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई को वैश्विक
रूप दिया| लन्दन में सावरकर ने आयरलैंड, रूस, फ़्रांस, जापान, इटली, जर्मनी, के युवाओं से संपर्क
किया| जो अपने स्तर से ब्रिटिश शासन का विरोध कर रहे थे| वैसे लोगों को एकत्रित किया, जिन्हें अंग्रेजों ने गुलाम बनाया था| जो अपने मातृभू की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे|
सावरकर ने 'सन् 1857 की क्रांति' का विस्तृत अध्ययन किया और एक खोजपूर्ण पुस्तक
"दी फर्स्ट वार ऑफ़ इंडिपेंडेंस: 1857 लिखी| ब्रिटिश
शासन की पोल खोलने और उन तमाम चाटुकारों जिन्होंने ने 1857 की क्रांति को महज छोटा
सा सैनिक विरोध बताया था| इसके विपरीत सावरकर की पुस्तक में क्रांति की सटीक
व्याख्या किया गया था| सावरकर ने अपने लेखनी से दम पर ये सिद्ध कर दिया| यह केवल सैनिक विरोध नहीं, बल्कि जन-आंदोलन था| इस पुस्तक से भयभीत होकर ब्रिटिश शासन ने इसके
प्रकाशन पर, पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में बैन लगा दिया| सावरकर ने 'गुरु गोविन्द सिंह' और 'सिखों का इतिहास' लिखा| मेजनी के जीवनी पर
लिखी पुस्तक का मराठी भाषा में अनुवाद किया| मगर इसकी प्रस्तावना
से भयभीत होकर शासन ने इस पर भी बैन लगा दी| सावरकर एक क्रन्तिकारी
लेखक थे, इसका प्रमाण सावरकर के प्रत्येक पुस्तक को भारत
में प्रकाशित नहीं होने देना था| उसके प्रकाशन से पहले ही उस बैन लगा देना| ब्रिटिश अधिकारी के अनुसार सावरकर के पुस्तक में
रासायनिक हथियार बनाने के तकनीकी का भी उल्लेख किया गया है| इस प्रकार के आरोप लगाकर उनके पुस्तको पर बैन
लगा दिया गया| मदन लाल ढींगरा जो सावरकर मित्र होने के साथ
लन्दन में स्वतंत्र भारतीय सोसायटी के सदस्य थे| सावरकर की जासूसी और सावरकर के
पुस्तकों को बैन की मांग करने वाले ब्रिटिश आधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की
हत्या कर दी| इधर अभिनव भारत के कार्यकर्त्ताओं ने पुणे के
कलेक्टर जैक्सन के हत्या कर दी| दोनों हत्याकांड के
षड्यंत्र में ब्रिटेन और भारत दोनों जगह सावरकर के खिलाफ गिरफ़्तारी के वारेंट निकल
गए| सावरकर को लन्दन से भारत बंदी बनाकर लाया गया| सावरकर समुद्र मार्ग से भागने के भी प्रयास किये| वे जहाज से समुद्र में कूद कर फ़्रांस बंदरगाह
पहुँच गए, परन्तु उनका पीछा करते हुए, ब्रिटिश सुरक्षाकर्मी ने उन्हें पुनः पकड़ लिया| लेकिन इस घटना ने सावरकर को रातो-रात
विश्वविख्यात वीर सावरकर बना दिया|
सावरकर को भारत लाया गया| उन्हें कालापानी की
सजा हुई| वीर सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी थे, जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा दी गई| सावरकर को अंडमान स्थित सेल्युलर जेल भेजा गया| जहाँ क्रन्तिकारियों से जानवरों की तरह काम लिए
जाते थे| छोटी-छोटी गलती पर बेत से पिटाई की जाती थी| कई क्रांतिकारियों ने आत्महत्या करना बेहतर समझा| लेकिन सावरकर ने उन सभी यातनायों के बावजूद वहां
के क्रांतिकारियों को एकत्रित किया| कई बार उन्हें इसके
लिए शारीरिक कष्ट झेलना पड़ा, परन्तु सावरकर धैर्य
नहीं खोये| जेल के दीवारों पर उन्होंने छह हजार से ज्यादा
कविता की पंक्तियाँ अपने नाखूनों से लिखी और उसे कंठस्थ किया| उन्हें ग्यारह वर्षों के बाद सेल्युलर जेल से
रत्नागिरी में गृहबंदी बनाकर 1937 तक रखा गया| इसी बीच सावरकर
सामाजिक क्रांति में कूद पड़े| छुआछूत, रोटिबंदी और बेटिबंदी के विरुद्ध क्रांति की| सामूहिक भोज का आयोजन किये जिसमें सर्वसमाज को शामिल
किया| पतित पावन मंदिर का निर्माण करवाया| जिसमें सभी वर्ग के लोग एक साथ पूजा में शामिल हो
सकते थे| सावरकर रत्नागिरी में गृहबंदी के दौरान सैकड़ो
सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया| राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगवार भी कई बार सावरकर से मिलने रत्नागिरी
पहुंचे| महात्मा गाँधी भी रत्नागिरी सावरकर से मिलने
पहुंचे| 1937 में सावरकर जब पाबन्दी से मुक्त हुए तो, स्थिति को देखते हुए| वे हिन्दू महासभा से जुड़े और छह वर्षों तक लगातार
उसके अध्यक्ष बने रहे| जब भारत के बटवारे का प्रस्ताव मुस्लिम लीग ने
लाया तो सावरकर ने इसकी कड़ी आलोचना की| फिर भी बटवारे की
नींव पहले ही तैयार हो चुकी थी| अब तो किसके हिस्से
में कितना आता है महज बचा था| फिर भी सावरकर ने
मुस्लिम लिंग के शाजिस का विरोध करते हुए| एक खोजी रिपोर्ट
प्रकाशित किये| जिसमें पंजाब और बंगाल को पाकिस्तान में मिलाने
के लिए वहां बड़े पैमाने पर मुस्लिमों को बसाया जा रहा है| सीमावर्ती क्षेत्रों में जबरन धर्मान्तरण का
कार्य किया जा रहा है| सावरकर के इस रिपोर्ट के बाद मुस्लिम लीग का जबरदस्त विरोध पूरे
भारत में शुरू हो गया| फलत: भारत तो खंडित हुआ लेकिन बंगाल और पंजाब के
बड़े हिस्सों को सावरकर के कारण भारत से अलग नहीं कर पाये|
15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो सावरकर ने धर्म ध्वज भगवा और
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को एक साथ फहराया| सावरकर ने कहा
" आजादी की ख़ुशी है तो राष्ट्र के खंडित होने का दुःख भी है|"
" काल स्वयं मुझ से डरा है,
मैं काल से नहीं,
कालेपानी का कालकूट पीकर
काल से कराल स्तभों को झकझोर कर,
मैं बार-बार लौट आया हूँ,
और फिर भी जीवित हूँ|
हारी मृत्यु है, मैं
नहीं....
- वीर सावरकर