रविवार, 28 अप्रैल 2019

कहानी महिलाओं के सम्मान और कांग्रेस के कुख्यात विख्यात नेतागण की

जितेश कुमार 
कांग्रेस पार्टी महिलाओं को कितना सम्मान देती है इसका प्रमाण कुछ दिन पहले मथुरा की सभा में पूर्व कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी के साथ की गई उत्कृष्ट व्यावहारिकता से झलकता है दरअसल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अभद्र व्यवहार और उनके खिलाफ पार्टी की ओर से उचित कार्रवाई नहीं किए जाने से नाराज प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस से रिश्ता तोड़ दिया था यह कोई पहली घटना कांग्रेस पार्टी की नहीं है ऐसी घटनायें और अभद्र टिप्पणियों की तो एक लम्बी लिस्ट तैयार है कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा तक कांग्रेसी
कार्यकर्त्ताअों की अभद्रता की शिकार झेल चुकी है इतना ही नहीं कांग्रस दफ्तर में काम कर रही एक लड़की ने अपने साथ छेड़छाड़  के आरोप लगाये और राहुल गाँधी को पत्र लिखीं, इसके बावजूद राहुल गाँधी चुपी साधे थे इसके बाद लड़की ने पुलिस से गुहार लगाई और बाद में दोषी को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता के कई उदहारण प्रकाश में आये है इसके साथ महिलाओं के साथ बलात्कार की भी कई घटना के आरोप में कोंग्रेस के नेताओं पर उंगली उठाये गए है ऐसे में एक बड़ा सवाल है कांग्रेस सरकार में महिलाओं की सुरक्षा कौन करेगा? महिलाओं को अवसर कौन देगा  मध्यप्रदश के मुख्यमंत्री महिलाओं को सजावटी सामान कहते है तो पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह अपने ही सांसद मीनाक्षी नटराजन को टंच माल कहते है     
राहुल गाँधी ने  10 अक्तूबर 2017 को गुजरात के वड़ोदरा में आरएसएस को घेरने के प्रयास में मंच से अमर्यादित बयान दिया था राहुल गाँधी ने संघ पर आरोप लगते हुए कहा कि क्या संघ की शाखाओं में महिलाएं छोटे कपड़े (शांर्ट्स) पहने दिखती है इस बयान पर देश भर की कई महिलाओं ने आपत्ति जताई थी दूसरी घटना  मुंबई 15 अप्रैल 2018 की है कठुआ और उन्नाव बलात्कार के विरोध में कैंडल मार्च निकला गया था इसमें राहुल गाँधी भी मौजूद थे इस मार्च में कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं ने आज तक के रिपोटर मौसमी सिंह के साथ बदसलूकी की| मौसमी सिंह ने रो-रोकर अपने साथ हुये बदसलूकी की जानकारी दी राहुल गाँधी से लिखित शिकायत की| इसके बावजूद राहुल गाँधी चुप थे प्रियंका चतुर्वदी के मामले में भी राहुल गाँधी चुप रहे यह घटनाएँ राहुल गाँधी की ओछी सोच को प्रकट करता है 
दिग्विजय सिंह घटना 27 जुलाई 2013  को इंदौर की एक सभा में अपने ही दल के सांसद मीनाक्षी नटराजन को टंच माल कह कर संबोधित करते है दिग्वियज की दूसरी शादी अमृता राय से हुई है, इसे लेकर भी कई सवाल राजनीति-पत्रकारिता के गलियारों में विचरण करते रहते है कई पत्रकारों ने पुर्व के अखबारों में यहाँ तक लिखा है कि अमृता राय की पहली पति का नाम आनंद राय था शादी के बावजूद दिग्गी का अमृता राय से मिलना जुलना था बात जब मीडिया तक पहुंची तो अमृता राय ने अपने पहले पति से तलाक लेकर दिग्विजय से शादी की| 
कमलनाथ मुख्यमंत्री मप्र ने हाल में विधानसभा चुनाव में महिलाओं को सजावटी सामान कहा था विरोध के बावजूद वो अपने कथनी पर अड़े रहे   
शशि थरूर अपने एक ट्विट के जरिये छिल्लर के मिस वर्ल्ड बनने पर उन्हें चिल्लर कह कर मजाक उड़ाया था थरूर ने 19 नवंबर, 2017 को ट्विट कर लिखा, ‘हमारी मुद्रा का विमुद्रीकरण करना कितनी बड़ी भूल थी! बीजेपी को इस बात का अहसास होना चाहिए कि भारतीय मुद्रा का विश्व भर में वर्चस्व है, देखिए हमारी चिल्लर भी मिस वर्ल्ड बन गई है आपको बात दे की शशि थरूर पर अपने ही पत्नी सुनंदा पुष्कर को मारने का आरोप भी न्यायलय में चल रहा है 
अभिजित मुखर्जी कांग्रेस पार्टी के युवा नेता भी है और कांग्रेस के सांसद और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी  के बेटे भी 28 दिसम्बर 2012 को दिल्ली निर्भया कांड के बाद महिला प्रदर्शनकारियों का मजाक उड़ाते हुए कहा था ये महिलाएं अब प्रदर्शन कर रही है और रात को मेकअप पोतकर पब जाएँगी हालाकिं इस पर उनकी बहन शर्मिष्ठा मुखर्जी ने ही आपत्ति जताई थी इसके बाद इन्होने माफ़ी मांगी 
दामोदर राउत पूर्व मंत्री रह चुके कांग्रेस पार्टी के दामोदर राउत ने अपने ही दल के प्रवक्ता सुलोचना दास पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए कहा था कि मुझे पता है किसे खुश करके आप कांग्रेस की प्रवक्ता बनी हैं 
संजय निरुपम मुंबई से कांग्रेस के जानेमाने नेता है इन्होने केन्द्रीय मंत्री स्मृति रानी को पैसे के लिए ठुमके लगाने वाली कहा था
रेणुका चौधरी बुलंदशहर में एक एक टीवी बहस के दौरान रेप जैसे जघन्य अपराध पर कहा था कि 'रेप इज कॉमन' आपको पता हो की देश के पीएम नरेन्द्र मोदी भी लोकसभा में जब भाषण दे रहे थे तो भाषण को बाधित करने के लिए जोर-जोर से ठहाका लगाकर हंस रही थी कई बार लोकसभा स्पीकर के कहने पर भी नहीं मानी तो प्रधानमंत्री ने इनको ताड़का कह दिया था जिसके बाद टीवी शो में खूब विवाद हुआ
राजाराम पाल कांग्रेस पार्टी के यूपी के प्रदेश उपाध्यक्ष है ने 4 नवंबर 2016 को मीडिया से मुखातिब होते कहा "पार्टी में दलित महिलाओं से कोई भेदभाव नहीं किया जाता है महिलाओं को हमारे घर के अन्दर ही नहीं, बेडरूम तक आने की इजाजत है यहाँ ऐसी कोई महिला नहीं है, जो हमारे बेडरूम तक न आई हो"   
सुभाष चौधरी हरियाणा कांग्रेस के उपाध्यक्ष है महानुभाव पर अक्टूबर2017 में दिल्ली के तुगलक रोड पुलिस स्टेशन पर रेप का मामला दर्ज है इस मामले पर भी राहुल गाँधी ने चुप्पी साध ली तब राहुल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे
वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के जघन्य गुड़िया रेप कांड पर बयान देते हुए कहा कि ऐसा कोई देश प्रदेश नहीं जहाँ अपराध नहीं होता है 
अहमद पटेल गुजरात कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे अहमद पटेल पर 2005 में शिकायत दर्ज है सेना की अफसर की पत्नी सुनीता सिंह ने पटेल पर बलात्कार के मामले दर्ज कराये है पीड़िता का कहना था कि वह पति की पिटाई से परेशान होकर घर से भाग गई और दिल्ली महिला आयोग में न्याय की गुहार लगाने आई थी राष्ट्रीय महिला आयोग ने उसे नारी निकेतन भेज दिया जहाँ आयोग की सदस्य यास्मीन अवरार उसे अपने साथ घर ले गई इसी के घर में कांगेस नेता अहमद पटेल ने उनके साथ बलात्कार किया 
शादीलाल बन्ना हरियाणा से कांग्रेस पार्टी से राज्यसभा सांसद  27 सितंबर, 2016 दिल्ली में इनके  खिलाफ रेप का यह मामला दर्ज किया गया पीड़ित महिला पेशे से वकील है
एम विंसेंट केरल से कांग्रेस पार्टी के टिकट से जीते विधायक है इन पर 51 वर्षीय महिला के रेप और आत्महत्या के लिए उसकाने का आरोप है इस आरोप में केरल पुलिस ने इनको गिरफ्तार भी किया है
हेमंत कटारे मप्र से कांग्रेस के विधायक के खिलाफ 2 फरवरी 2018 को अपहरण और दुष्कर्म के दो अलग-अलग मामले दर्ज है कटारे के खिलाफ एक महिला और उसकी बेटी प्रयांशु सिंह द्वारा दो पुलिस थानों में केस दर्ज है
ब्रजेश पांडे बिहार कांगेस के प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रजेश पांडे पर एक नाबालिग ने यौन शोषण का आरोप लगाया, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था
फारुख चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती यूथ कांग्रेस अजमेर से फारुख चिश्ती अध्यक्ष, नफीस चिश्ती उपाध्यक्ष और अनवर चिश्ती संयुक्त सचिव थे 26 साल बाद आरोप दर्ज हुआ आरोप है कि इन तीनों दरिन्दे ने मिलकर स्कूल जाते सैकड़ों हिन्दू बच्चियों का यौनशोषण किया है मामला उजागर होने के बाद 8 बच्चियों ने आत्महत्या कर ली
अभिषेक मनु सिंघवी 2012 में सेक्स सीडी कांड पहली बार सामने आया था सिंघवी एक महिला वकील से शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाई दे रहे थे साथ ही संघवी महिला को वकील को कह रहे थे कि वे उसे जज बना देंगे 
बाबूलाल नागर 2013 राजस्थान से कांग्रेस के पूर्व मंत्री रहे बाबूलाल पर 35 वर्षीय महिला ने यौन शोषण का आरोप लगया महिला ने कहा कि बाबूलाल नागर सरकारी नौकरी देने नाम पर साझा देकर संबंध बनाये थे 
गोपाल कांडा हरियाणा से कांग्रेस पार्टी के मंत्री रहे कांडा पर 2012 में गीतिका गोपाल शर्मा जो कांडा के MLDR एयरलाइन्स में कार्यरत थी ने बलात्कार के आरोप लगाने के बाद 5 अगस्त 2012 को आत्महत्या कर ली 
नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस नेता जिनका राजभवन में ही तीन महिलाओं के साथ सेक्स का वीडियो एक तेलगू चौनल ने ब्रॉडकास्ट कर दिया इससे बाद उन्हें राज्यपाल का पद छोड़ना पड़ा नारायण दत्त तिवारी के खिलाफ एक शख्स ने पिता होने का दावा किया था, जो बाद में DNA टेस्ट में न्यायलय ने सही माना और उन्हें उसे पुत्र मानना पड़ा था 
मदरेणा जी कांग्रेस नेता जिन पर भंवरी देवी के अपहरण, बलात्कार और हत्या करने का आरोप लगा 
ऐसे अनेकों प्रकरण जानकारी में आये है, पुष्टि और प्रकाशन आगे .. 








  

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

रविश कुमार को भविष्य मालूम है

'भारत के टुकडे' और 'अफजल को घर से घर पैदा' करने वाले कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य और 7 कश्मीरी छात्र ही है. घटना के तीन वर्ष बाद दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी, 2019 को पटियाला कोर्ट में 1200 पेज के चार्जसीट दर्ज की. चार्जसीट में कुल 46 लोगों  आरोपी है. इसमें 10 लोगों को सीधे तौर पर आरोपी है, कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य और 7 कश्मीरी छात्र
शामिल है. करीब 90 लोगों की गवाही दर्ज की गई है. गवाही चश्मदीद छात्रों और सिक्योरिटी गार्ड में तैनात लोगों की है. इसके अलावे सीडीआर (कॉल रिकॉर्ड) कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के निकली गई है और नारेबाज़ी की 13 वीडियो क्लिप्स भी शामिल की है, इसकी जाँच CFSC ने सही माना है. जैसा की पहले कुछ नेताओं, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने वीडियो फुटेज को फेंक और एडिटेड बताया था. इसके विपरीत पुलिस के हाथ लगी 13 वीडियो क्लिप्स जाँच में सही पाए गये है. इसमें देशविरोधी नारे लगाते आरोपियों की आवाज़ और चेहरा पहचाना जा सकता है. इसके अलावे सीडीआर (कॉल रिकॉर्ड) कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के निकली गई है| चार्जशीट में यह भी लिखा है कि घटना स्थल पर कन्हैया कुमार की मौजूदगी थी| उसके मोबाईल का लोकेशन इस वक्त जेएनयू में ही पाया गया था, इसकी भी पुष्टि चार्जशीट में की गई है|  
अब सवाल उठता है कि कन्हैया बेगुसरय से चुनाव क्यों लड़ रहे है? कारण साफ है सजा होने से बच सके या सजा की अवधी कम हो जाये| जमानत की सुविधा उपलब्ध हो, जैसे आज गाँधी परिवार के लिए है|
कांग्रेस की प्रताड़ना की शिकार  
जेएनयू के देश विरोधी नारे, भारत के टुकडे करने की घटना के ठीक बाद से अब तक कुछ अनुभवी पत्रकार इसमें रविश कुमार भी शामिल है कन्हैया को निर्दोष ऐसे साबित करने में लगे है जैसे न्यायपालिका से इनकी साठ-गाठ हो| क्या मिथ्या प्रचार करना ही रविश कुमार ने अपना धर्म मान लिया है? रविश जिस प्रकार भोपाल से बीजेपी की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बारे में बेबाकी से  बोल रहे है वैसे ही कन्हैया के खिलाफ क्यों नहीं? जब की कन्हैया कुमार को किसी प्रकार की वर्तमान सरकार में शारीरिक या मानशिक प्रताड़ना नहीं भुगतनी पड़ी है| इसके विपरीत साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जेल असहनीय और अकल्पनीय प्रताड़ना के गुजरना पड़ा था| बिना चार्जशीट के 9 वर्षों तक जेल में प्रताड़ित किया| उसकी रीढ़ के हड्डी तक टूटी हुई है, हजारों शारीर पर घाव के निशानी है| दो कदम ठीक से चलाना मुश्किल है इसके बड़ा प्रताड़ना का प्रमाण क्या हो सकता है भला| और प्राईम टाइम में झूठा रिपोर्ट दिखाते है जिसे कांग्रेस के शासन में मनावाधिकार ने प्रकाशित किया था| आज साध्वी प्रज्ञा  भोपाल में पुरे देश की बीच है, क्यों नहीं बोलते मानवाधिकार की रिपोर्ट गलत है? क्योंकि वो हिन्दू धर्म की साध्वी है| अगर ऐसा है तो दोगली पत्रकारिता विदेशी और आतंकी से फंडिग लेने वाले पत्रकर की भाषा ऐसे ही होती है| कन्हैया निर्दोष है और साध्वी प्रज्ञा हिन्दूआतंकी यह न्यायालय से पहले ही तय कर लिया जैसे रविश कुमार को भविष्य मालूम हो| 

जनता की अदालत 




गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

सिन्धी घाटी और वामपंथी इतिहासकार

जितेश कुमार

http://www.iasplanner.com/civilservices/images/indus-valley-expansion.png
ज्ञात साक्ष्य से भारतीय इतिहास का प्रारंभ सिंधु घाटी की सभ्यता से होता है इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है बताया जाता है कि वर्तमान सिंधु नदी के तटों पर 3500 ई.पू. में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी. मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल, सभ्यता के नगर थे. पहले इस सभ्यता का विस्तार सिद्धू, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता है किंतु अब इसका विस्तार समूचा भारत तमिलनाडु से वैशाली (बिहार) तक पूरा पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है अब इसका समय 7000 ईसा पूर्व से प्राचीन पाया गया है| इसी प्राचीन सभ्यता की सिलो, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है| उसे सिंधु घाटी की लिपि कहा जाता है| इतिहासकारों का दावा है कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है और पढ़ी नहीं जा सकती सिंधु घाटी की लिपि के समकक्ष तथाकथित प्रति प्राचीन सभी लिपियाँ जैसे इजिप्ट, चीनी, फ़ोनीशियाई, मेसोपोमियाई आदि सब पढ़ ली गयी है.

तिहासकार अर्नाल्ड जे.टायनयी ने कहा था - 'विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़छाड़ की गई है तो वह भारत की इतिहास ही है|' आजकल कंप्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर माकोंव विधि से प्राचीन भाषा को पढ़ना सरल हो गया है सिंधु घाटी की लिपि जानबूझकर नहीं पढ़ा गया और ना ही इसको पढ़ने की सार्थक प्रयास किए गए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, इस पर पहले अंग्रेजों और फिर कम्युनिस्टों का कबजा रहा है सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलाई.आखिर ऐसा क्या था सिंधु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे कि सिंधु घाटी के लिपि को पढ़ा जाए?
 1. उनको डर था कि सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने के बाद उस की प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जाएगी. इजिप्ट, चीन, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियन मेसोपोटामिया से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा कि वह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है. इससे भारत का महत्व बढ़ेगा तो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा2. अंग्रेज और कम्युनिस्टों इतिहासकारों द्वारा प्रचारित आर्य बाहर से आए हुए आक्रमणकारी जाती है और इन्होंने यहां के मूल निवासियों अर्थात सिंधु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उसकी महान सभ्यता नष्ट  कर दी. वे लोग ही जंगलों में छुपकर दक्षिण भारतीय द्रवित बन गए शूद्र व आदिवासी बन गये, आदि आदि गलत साबित हो जाएगा.कुछ फर्जी इतिहासकार सिंधु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे तो कुछ एक इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ तो मुंडा आदिवासी की भाषा और कुछ इनको ईस्टर दीप के आदिवासी की भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे यह सारे प्रयास असफल साबित हुए.सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने में निम्नलिखित समस्याएं बताई जाती है सभी लिपियों में अक्षर कम होते है. जैसे अंग्रेजो में 26 देवनागरी में 52 आदि मगध घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर  चिन्ह है. सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने में या कठिनाई आती है कि इसका काल 7000 ई.पूर्व.से 1500 ई.पूर्व. तक का है इतनी लंबी अवधि में अनेकों बड़े परिवर्तन हुए इतनी लंबी अवधि जिसमें लिपि में भी अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिस्ट वेरिएशन भी बहुत पाया जाता है. लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिंधु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्ष्य का अवलोकन किया.
 भारत की प्राचीनतम लिपिओं में से एक लिपि है जिसे ब्रह्म लिपि कहा जाता है इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओं की लिपि बनी है लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिम भारत में उपयोग की जाती थी संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रंथ ब्रह्म लिपि से प्राप्त होते हैं सम्राट अशोक ने अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए ब्रह्म लिपि को अपनाया. सम्राट अशोक के स्तंभ शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और संपूर्ण भारत में लगाए गए सिंधु घाटी के लिए भी और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं हैं साथी ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी प्रारंरिक संबंध है इस आधार पर सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने  का सार्थक प्रयास सिद्धांत काक  और इरवाथम महादेवन ने किया.
 सिंधु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षरों के बारे में यह माना जाता है कि इसमें कुछ वर्णमाला (स्वर,व्यंजन, मात्रा संख्या), कुछ योगिक अक्षर और शेष चित्र लिपि है अर्थात या भाषा अक्षर और चित्र लिपि का संकलन समूह है विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिंधु घाटी की भाषा. जिस प्रकार सिंधु घाटी के लिए भी पशु के मुख्य की ओर से अथवा दाएं से बाएं लिखी जाती है उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि की दाएं से बाएं लिखी जाती है सिंधु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त है इसमें वैसे ही 400 अक्षर चीन है लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80% बार है और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर अब हम उन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उसकी ध्वनि का पता लगा सकते हैं.
 ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिंधु घाटी की लिपि  पड़ने पर सभी संस्कृत के शब्द आते हैं जैसे श्री अगस्त या मृत, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु मूषिका, पग, पञ्च, मशक, पितृ,  अग्नि, इंद्र, मित्र आदिनिष्कर्ष या है कि - सिंधु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि के पूर्वज लिपि है सिंधु घाटी के लिपि को ब्राह्मणी के आधार पर पढ़ा जा सकता है उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिंधु घाटी के लिपि में लिखा गया था सिंधु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन 7000 ईसा पूर्व से भी अधिक पुरानी, हिंदू विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है हिंदू का मूल निवास सप्त देश यानी (सिंधु सरस्वती क्षेत्र) था जिसके विस्तार में संपूर्ण भारत देश था वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं भारत से नहीं आए थे और ना ही यह आक्रमणकारी थे आर्य और द्रविड़ जैसी कोई भी पृथक जाति नहीं थी जिसमें परस्पर पर युद्ध हुआ हो.        
सन्दर्भ: पुस्तक सिन्धु घाटी की सभ्यता



साध्वी नहीं, कटघरे में कांग्रेस और मानवाधिकार की रिपोर्ट

जितेश कुमार
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर लगे आरोप का खंडन भी होगा| पहले मानवाधिकार की रिपोर्ट कितना सच है और कितना झूठ? कुछ पत्रकारों ने मानवाधिकार की रिपोर्ट के सहारे यह सवाल उठाये है कि साध्वी प्रज्ञा के साथ कोई मारपीट नहीं की गई| ऐसे प्रश्न पूछने वाले
पत्रकारों को ईश्वर ने आँख दिया है तो भोपाल आकर आखों देखा साक्षात्कार करों| क्यों की पेपर पर चोट के निशान नहीं, शारीर पर होते है| फिर कांग्रेस की सरकार और देश की न्यायपालिका के पूछो किस आरोप और कौन से साबुत के आधार पर साध्वी प्रज्ञा को 9 वर्ष तक जेल ही नहीं बल्कि अमानवीयता के सभी हद टूट जाये ऐसा कुकृत किया गया| क्यों? मीडिया को पता है फिर भी मौन है| यह स्थति ऐसी है, जैसे माँ दुश्मनों के बीच घिरी हो और बेटा दुश्मन की ताकत के घबराकर दुबक गया हो| 
सनातन (हिन्दू धर्म) का 5000 वर्ष के ज्ञात इतिहास में पहली बार साल 2008  में कांगेस की सरकार में हुए मालेगांव विस्फोट के पीछे हिंदू आतंकवाद है, शब्द बोलने का दुस्साहस किया| इससे पहले देश-दुनिया में हुए आतंकी हमला में जब एक विशेष धर्म संप्रदाय के लोग पकड़े जाते रहे थे और अभी भी पकड़े जाते  है| भारत में ही कई मुस्लिम धर्म के आरोपियों को हमले करने के जुर्म में फंसी तक की सजा मिली है कसाब, अफजल और याकूब मेमन जैसे मुस्लिम आतंकी| किन्तु सरकार मीडिया या किसी जाँच एजेंसी ने इसे मुस्लिम आतंकवाद का नाम दिया| उलटे आतंकी को भटके हुए और इसप्रकार के घटना को हमारे बीच ऐसा परोसा की जैसे दोषी जनता ही है| 
गौर करने की बात यह है कि जिस मालेगांव विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को दोषी ठहराया जा रहा है, वह पहली घटना नहीं है| इससे पहले भी 2006 में माले गांव की मस्जिद के बाहर विस्फोट हुआ था| जिसमें कई लोग मारे गए थे| इस विस्फोट की जांच भी महाराष्ट्र पुलिस ने ही की थी| लेकिन उनकी जांच पर जब सवालिया निशान लगाए गए तो सीबीआई को सौंप दी गई| यह वही स्पेशल टास्क फोर्स है, जिसने 1993 के मुंबई बम धमाकों की जांच की थी और इसी जांच के आधार पर इसके लिए लगभग 117 आरोपियों की मुंबई की विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी| तमाम छानबीन के बाबजूद ना तो साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ कोई साबुत मिले; ना ही हिन्दू आतंकवाद के खिलाफ| लेकिन सीबीआई कहना था कि जांच से यह जरूर पता चला है कि इस विस्फोट के पीछे भी उन्हीं लोगों का हाथ है जिन्होंने हैदराबाद की मक्का मस्जिद समेत देश के विभिन्न शहरों में विस्फोट को अंजाम दिया है| एक बात और जिस समय मालेगांव में विस्फोट हुआ उसी समय गुजरात के मोडासा में भी विस्फोट हुआ था| खुफिया एजेंसी का तब कहना था कि इन दोनों विस्फोट के पीछे एक ही आतंकवादी संगठन का हाथ है| ऐसा इसलिए कि दोनों हमले एक दिन के अंतर पर हुए थे| दोनों धमाके रात में लगभग 9:30 के आप-पास हुए थे| और दोनों धमाके में विस्फोटक मोटरसाईकिल में छुपाया गया था| लेकिन एनआईए की टीम ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों से पूछताछ के बाद साफ कर दिया कि मोडासा विस्फोट में प्रज्ञा ठाकुर और अभिनव भारत संगठन का कोई हाथ नहीं है| एनआईए के रिपोर्ट के अनुसार कुछ तथ्य जरुर सामने आये जो इस जाँच की दिशा मोड़ दी| रिपोर्ट में एनआईए ने कहा है कि उनके पास किसी को आरोपी बनाने लायक सबूत नहीं हैं। ब्लास्ट के लिए जिस हीरो होंडा बाइक का उपयोग किया गया था, उसके चेसिस नंबर के सिर्फ दो ही अंक मिले। अधिकारियों ने हीरो होंडा के गुड़गांव वाले प्लांट में संपर्क किया तो पता चला कि 71 बाइक्स में ये दो अंक मिलते हैं। अधिकारियों ने 70 बाइक मालिकों से पूछताछ की, लेकिन 71वां नहीं मिला और ना नहीं कभी एनआईए ने उस बाईक मालिक के नाम साझा किये। एनआईए ने 117 गवाहों की जांच की, लेकिन कोई सुराग हिन्दू आतंकवाद का नहीं मिला। पुलिस के मुताबिक मोडासा ब्लास्ट में यूज हुई बाइक पर '786' नंबर का स्टिकर लगा था। अब मामला साफ था कि हैदराबाद की मक्का मस्जिद समेत देश के विभिन्न शहरों में विस्फोट करने वाले हिन्दू नहीं इस्लामिक आतंकी है| कांग्रेस की सरकार के इशारे पर गुजरात में हुए बम धमाके में इस्तेमाल बाईक के मालिक का नाम तो एएनआई ने छुपा ली| किन्तु देश की नज़रों उस बाईक पर लगा 786  नंबर का स्टिकर छुपा नहीं पायी और वह वायरल हो गया| फिर भी किसी प्रकार से कांग्रेस की सरकार जिसमें दिग्विजय सिंह की भूमिका रही है ने हिन्दू को आतंकी घोषित करने के लिए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को शारीरिक और मानशिक रूप से प्रताड़ित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा| हाथ पैर और रीढ़ की हड्डी तक पिटते-पिटते तोड़ गए और देश मीडिया मुंह बंद किये इस घोर अपराध की दोषी बनी रही| द्रोपदी को तो नुयुद्ध सभा में केवल बाल पकडे के घसीटा गया था| लेकिन साध्वी को उससे भी अधिक प्रताड़ित किया गया| इस प्रकार के कुकृत का ना तो इतिहास में कोई पन्ना दर्ज है ना ही वर्तमान में| किसी को आतंकी जबरन बनाने के लिए मानवता की सारी सीमा लाँघ दी गई| इतना ही नहीं मानवाधिकार की टीम भी इस षड्यंत्र में सामिल थी और उसने अपने रिपोर्ट न्यायालय को सौपी जो मीडिया में भी प्रकाशित की गई और आज-कल वायरल हो रही है| जिसमे यह साफ तौर पर लिखा गया था| साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के साथ कोई मार-पिट नहीं की गई है| तब साध्वी प्रज्ञा जनता के के नज़रों से ओछल जेल में थी, किन्तु अब नहीं; उनके साथ की गई प्रताड़ना और उनकी स्थिति आज सब के बीच है| आपको यह मालूम हो कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के दो-दो बार ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट किये गए पर साध्वी सभी वैज्ञानिक जांचों में बेदाग निकल गई थी| और एएनआई ने उन्हें क्लीन चिट सौफ दी है| 
साध्वी प्रज्ञा ने ‘आप की आदालत’ रजत शर्मा की टीवी शो में यह खुलासा किया कि उनसे एक दिन जेल में मिलाने स्वामी अग्निवेश आये थे| और उन्हें जुर्म अपने माथे पर लेने की बात कही और दिलासा दिलाया कि जेल में कोई आपको परेशानी नहीं होगी| हमारी लड़ाई आरएसएस से है| एक बार ऐसा पिटाई अग्निवेश की जाये तो मीडिया की स्थिति क्या होगी? सोच कर ही तरस आती है| मीडिया हमेशा से पैसा और बुकाऊ रही है इसका प्रमाण भी है, कुछ दिन पहले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर एक टीवी डिबेट में थी और उनसे सवाल किया गया मानवाधिकार की रिपोर्ट के अनुसार आपके साथ कोई मारपीट नहीं की गई| सवाल सुनते ही प्रज्ञा ठाकुर ने वही किया जो कोई भी प्रताड़ित व्यक्ति करता| डिबेट छोड़ कर उठा गई| मैं उस टीवी एंकर को बुलाता हूँ स्वयं भोपाल आये साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की शारीरिक स्थति देखे| क्युकि पेपर पर चोट नहीं दिखते है, घाव और प्रताड़ना की गवाही तो स्वयं उनका शारीर चीख चीख दे रहा है| 

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

अगर तुम बदलना चाहते हो, तो मैं नया कुरान लिख दूँ

जितेश कुमार 

आतंकी तो अफजल गुरु और याकूब मेमन था. जिसे मृत्यु अवश्य मिली. किन्तु जेल में भी फाइव स्टार होटल जैसी व्यवस्था का सुख प्राप्त हुआ. करोड़ों की सरकारी खजाने लुटाये गए. राज कांग्रेस का था और आतंकवादियों की मेहमान नवाजी करने की इनकी परंपरा है.
आज के आतंकी+ रक्त समूह के कोंग्रेसी उसी परम्परा से है जो किसी आतंकी के सामने सर झुकाती है, साष्टांग उसके चरणों में लेट जाती है. देश के आतंकियों की मेहमान नवाजी का क्या उद्देश्य हो सकता है?
केवल और केवल मुस्लिम तुष्टिकरण. अब तो बहुत हद तक मुस्लिम समुदाय भी समझने लगे हैं कि कांग्रेस ने केवल राजनीतिक लाभ के लिए उनका उपयोग किया है. कदाचित आतंकियों को विशेष सुविधा देकर उनको देशद्रोही साबित भी की है. हे अशफाक उल्ला खान के वंशजों, हे मौलाना आजाद के वंशजों, हे कलाम के वंशजों, अपने राष्ट्रभक्ति का प्रमाण दो. और अपनी धार्मिक पुस्तक कुरान को निष्कलंक करो. हे कुरान प्रेमियों, फर्जी और मुल्लाह-मौलवियों के मुख से उत्पन्न आतंकित रक्तजनित विनाशक विवेकहीन और अत्याचारी अपराधिक असमानता वाली कुरान का दहन करो. वास्तविक कुरान की आयतें पढ़ो देशभक्त बनो और देश से प्रेम करो तुम सीमा पर अब्दुल हमीद बनो. देश के लिए कलाम बनो. विदेशियों से लोहा लेने के लिए अशफाक उल्ला खान बनो. भारत की संस्कृति को पढ़ो, इस देश की इतिहास को पढ़ो, इस देश की विराट परम्परा को आत्मसात करो. इस देश के स्वाभिमान को समझो. यही तुम्हारा वास्तविक कुरान है, जरा इस कुरान को समझो. 
 यह आसमानी किताब नहीं राष्ट्रभक्ति की ज्वाला से उत्पन्न कुरान है, यहां अल्लाह हू अकबर नहीं, कोई नमाज नहीं, महिलाओं पर अत्याचार नहीं, बेजुबान जानवरों को मारना कोई पर्व त्यौहार नहीं, ना हड़पने की ख्वाहिश न बांटने की इच्छा. यह कुरान मारने-मरने की भक्ति नहीं देता है. यह कुरान भाईचारा, प्रेम और देशभक्ति की शपथ देता है

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

अमर प्रेम है उपवन का

पुष्पों की गोद में कलियाँ खिलती
राजकुमारी सी इतराती है 
उसी उपवन का  भँवर 
उन कलियाँ में है यौवन लाता 

पहली सुबह जब भँवर ने 
कलियों की पंखुड़ी छुई
चढ़ा  इश्क अब कलियों में 
खिल गई थी; पुष्प भाँति 

अब; पराग निकलता कलियों से  
वह सुगंध बिखेरती उपवन में 
ये अमर प्रेम है उपवन का 
और कहानी पुष्प-भँवर की 

रस की थी जरुरत भँवर को 
पुष्पों की लाज है पंखुड़ी 
भँवर ने भी मान रखी पुष्पों  की
उस नन्ही सी पुष्प-कली की 
एक खरोच न पंखुड़ी पर 
और रस  ले जाता मधुशाला 
ये अमर प्रेम का है उपवन का
ये अमर प्रेम का है उपवन का ...

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

प्रेस और आचार सहिंता


वर्ष
कानून/अधिनियम
1799
भारत में पहला मीडिया कानून आया। गवर्नर जनरल ने समाचार पत्र के प्रकाशक, मुद्रक और संपादक का ना छापना अनिवार्य कर दिया। सामग्री छापने से पहले सेंसरशिप का प्रावधान लाया। अगले जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इस आदेश को रद्द कर दिया।
1825
मेटकाफ कानूनआया। प्रकाशन स्थल की घोषणा अनिवार्य किया।
1857
लार्ड कैनिंग ने किसी भी मुद्रित सामग्री के लाइसेंसिंग को अनिवार्य किया।
1860
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)
1867
प्रेस व पुस्तक पंजीकरण कानून
1870
राजद्रोह (धारा 124)
1885
भारतीय टेलीग्राफ कानून
1894
भारतीय डाक कानून
1898
दो समुदायों में विद्वेष भड़काने (धारा 153) संबंधी कानून
1923
सरकारी गोपनीयता कानून
1927
राष्ट्रीय एकता को चुनौती देना (धारा 153बी) और धार्मिक भावनाओं को चोट (धारा 295)
1931
भारतीय प्रेस (आपातकालीन) अधिकार कानून
1951
प्रेस (आपत्तिजनक सामग्री) कानून बना। 56 में रद्द हो गया।
1952
सिनेमैटोग्राफी अधिनियम
1954
पुस्तकें व अखबार वितरण (सार्वजनिक पुस्तकालय) कानून
1954
दवा व चमत्कारिक इलाज अधिनियम
1955
श्रमजीवी पत्रकार व अन्य कर्मचारी (सेवा शर्तें) अधिनियम
1956
समाचारपत्र (मूल्य व पेज) कानून
1957
कॉपीराइट एक्ट
1965
प्रेस परिषद अधिनियम
1969
मोनोपोली एंड रिस्ट्रीकटीव ट्रेड प्रैक्टिसेज एक्ट
1977
संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन से रोक) अधिनियम
1978
दूसरा प्रेस परिषद अधिनियम
1981
सिनेकर्मी व थियेटरकर्मी (सेवा नियमन) अधिनियम
1983
सिनेमा प्रमाणन नियम (सेंसरबोर्ड प्रमाणपत्र वाला)
1986
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
1986
महिलाओं का अमर्यादित प्रस्तुति (प्रतिबंधात्मक) कानून
1990
प्रसार भारती अधिनियम
1995
केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (नियमन) कानून
1997
ट्राई एक्ट
2000
आईटी एक्ट
2005
सूचना अधिकार कानून
2008
सूचना प्रोद्यौगिकी अधिनियम (संशोधन) (आईटी एक्ट)


                                     







भारतीय संविधान में मीडिया

वर्तमान समय में मीडिया की अहमियत किसी से छिपी हुई नहीं है। ऐसा कहना अनुचित न होगा की आज हम मीडिया युग में जी रहे है।  जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक रंग में मीडिया ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति या बोलने की आजादी काफी मायने रखती है क्योंकिं यदि आज़ादी बने रहे तो व्यक्तियों के बाकी के अधिकार भी बने रहते है।  यदि देखा जाये तो अभिनय,मुद्रित शब्द,बोले गए शब्द और व्यंग्य चित्र आदि के द्वारा मिली अभिव्यक्ति के आज़ादी बाकी के सभी आज़ादियों का मूल है। इसीलिए व्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति का मूल आधार माना गया है। संविधान में मूल रूप से कुल 7 मौलिक अधिकार वर्णित किये थे जिन्हें भाग ३ के अनुच्छेद 12  से 35 तक में विस्तार से बताया गया है।
सन 1976 में 44 वें संविधान संसोधन में सम्पति के अधिकार को मूल अधिकारों में से हटा दिया गया इस प्रकार अब कुल भारतीय नागरिक को कुल ६ अधिकार प्राप्त है :-
1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 -18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार(अनुच्छेद 29 -30)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32-34)
हालाकिं संविधान में  प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता का कहीं कोई सीधा उल्लेख नहीं किया गया है।
लेकिन अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मूल अंधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है।
प्रेस की आज़ादी
सर्वोच्च न्यायालय समय-समय पर संविधान के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए प्रेस की आज़ादी की व्याख्या की है। चूकीं मीडिया ,प्रेस का ही और विस्तारित स्वरुप है इसलिए हम मीडिया की आज़ादी को हम प्रेस की आज़दी के समरूप मान सकते है। 
1.  सार्वजनिक मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से बहस ,चर्चा,परिचर्चा।
2. किस भी अमेचर का प्रकाशन और मुद्रण।
3. किसी भी विचार या वैचारिक मत का मुद्रण और प्रकाशन।
4. किस भी श्रोत से जनहित की सूचनाएं  एवम तथ्य एकत्रित करना।
5. सरकारी विभागों,सरकारी उपक्रमों सरकारीप्राधिकर्णों और लोकसेवको कार्यों एवम कार्यशैली की समीक्षा करना,उनकी आलोचना करना।
6. प्रकाशन या प्रकाशन सामग्री का अधिकार अर्थात कौन सी खबर प्रकशित या प्रसारित करनी है।
7. मीडिया माध्यम का मूल्य/शुल्क निर्धारित करना ,माध्यम केप्रचार के लिए नीतितेकरण और अपनी योजनानुसार ,सरकारी दबाव से मुक्त रहकर  संबंधी गतिविधि चलाना।
8. यदि किसी कर के प्रसार पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो टॉस कर से मुक्ति।
9. प्रेस की स्वतन्त्रता में पुस्तिकाएं,पत्रक और सूचना के अन्य  भी सम्मिलित है।
 मीडिया की स्वतंत्रता हमेशा  विवाद का  रहा है क्योकिं मीडिया पर न तो पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाना उचित है और न ही इसे हर कानून से  सकता है। इस तरह  फैसले पर पहुचने के लिए न्यायपालिका ,कानून की युक्तियुक्त जाँच करता है। क्योकि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में कहा गया है की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर  केवल युक्तियुक्त प्रतिबन्ध ही लगाए जा सकते है। सर्वोच्च न्यायलय ने निम्नलिखित  मामलों में मीडिया पर युक्तियुक्त प्रतिबंध  लगाने को तर्कसंगत ठहराया है।

1. राष्ट्र की प्रभुता और अखंडता
2. राज्य की सुरक्षा
3. विदेशी राज्यों के साथ संबंध
4. सार्वजनिक व्यवस्था
5. शिष्टाचार/सदाचार
6. न्यायालय की अवमानना।
7. मानहानि।
8. अपराध को उकसाना
                                                  
मीडिया और मीडिया विधि का इतिहास

जैसा की हम सभी को ज्ञात है की भारत में मीडिया का उद्धभव हिक्की के द्वारा 1780 में पहला भारतीय पत्र हिक्की गजट के नाम से निकला था।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ के साथ ही भारत में चेतना की लहर जाग चुकी थी ,और अब तक पत्रकारिता भी अपनी पकड़ जनमानस में बनाने लगी थी।लेकिन जब पत्रकारिता अपना  पैर पसारना प्रारंभ ही किया था की ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय प्रेस पर अंकुश लगाना प्रारम्भ कर दिया था। जिनमें प्रेस पर सेंसर ,अनुज्ञप्ति नियम,पंजीकरण नियम,देशी भाषा समाचार अधिनियम और समाचार पत्र  अधिनियम जैसे प्रमुख कानून लगाए गए थे।
 ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा भारतीय पत्रकारिता पर लगाए गए कुछ प्रमुख कानून इस प्रकार है। 

प्रेस नियंत्रण अधिनियाम

भारतीय पत्रकारिता पर सबसे पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के सासन कल मे सन 1799 मे प्रैस नियंत्रण अधिनियम लागू किया इस अधिनियम के द्वारा समाचार- पत्र के संपादक ,मुद्रक और स्वामी का नाम स्पष्ट रूप से अखबार मे प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया इसके अलावा इस अधिनियम द्वारा यह भी अनिवार्य का र्डिया गया की प्रकशन से पूर्व प्रकाशित किए जाने वाले असमाचर को प्रकाशक ,सरकारी सचिव को देंगे और सचिव द्वारा अनुमोदन के बाद ही किसी समाचार को प्रकाशित किया जा सकेगा |
   इस प्रकार इस अधिनियम के द्वारा प्रैस की आजादी की पूरी तरह से गला घोंट दिया गया |सान 1807 मे पुस्तकों ,पत्रिकाओ और यहा तक की पम्प्फ़्लेतों को भी इस अधिनियम का दंड मिलता था लार्ड हेस्टिंग्स ने सेससोरशिप अधिनियम को समाप्त कर ,संपादकों के मार्गदर्शन के लिए ऐसे नियम बनाए जिससे पत्र-पतरकरिता मे ऐसे समाचार न छाप पाये जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हो |
1823 के अनुज्ञप्ति नियम
अ॰ प्रत्येक प्रकाशक व मुद्रक को सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना होगा बिना लाइसेंस के प्रकशन पर 400 रुपए जुर्माना या कारावास का दंड दिया जा सकता था
ब॰ सरकार किसी भी समाचार-पत्र का लाइसेंसे रध कर सकती थी |इसके बाद आये गवर्नर जनरल ,विलियम बैंटिक ने यधपि लाइसेंसे अधिनियम 1823 को समाप्त नहीं किया |
1857 का अनुज्ञप्ति अधिनियम
   1875 के गदर के कारण सरकार ने एक बार फिर भारतीय प्रैस को प्रतिबंदित कर दिया चूंकि यह एक संकटकालीन व्यवस्था थी अत: एक वर्ष बाद यह वयवस्ता समाप्त हो गयी और मेटकफ़ द्वारा बनाए गए नियम पूना:लागू हो गए |
1867 क पंजीकरण अधिनियम
    मेटकफ़ के नियमो को 1857 मे पंजीकरण अधिनियम  के रूप मे परिवर्तित कार दिया गयायह अधिनियम प्रैस की स्वतंतत्रा को सीमित नहीं करता था |इसके अनुसार ,प्रकासक को प्रकासन के एक माह के भीतर पुस्तक की एक प्रति बिना मूल्य के सरकार को देनी होती थी |
देशी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम    ,1878 (वर्णाकुलर प्रेस एक्ट )
  1987 क ईआईएस अधिनियम मे सरकार ने भारतीय समाचार-पात्रो पर अधिक कडा अंकुश लगाने का प्रयत्न किया इस अधिनियम के मजिस्ट्राटों को यह अधिकार भी दिया गया की वे किसी भी भारतीय भाषा के समाचार-पत्र के प्रकासक से यह आश्वासान ले की कोई भी ऐसे सामाग्री परकाशित नहीं करेगा जिसेसे शांति भंग होने की आशंका ही |
1881 मे लार्ड रिपन ने वर्णाकुलर प्रेस एक्ट को समाप्त कार दिया परंतु बाद मे लार्ड करजन ने भारतीय दंड सहिंता मे  नए प्रावधान करके भारतीय प्रैस की स्वतंत्रा को पूना: प्रतिबंदित करने की जो शुरुवात की वह आगे स्वंतत्राता प्राप्ति तक चलती रही |
समाचार-पत्र अधिनियम 1908
लार्ड कर्ज़न की दमनकारी नीतियो से भारतीय ने व्यापक असंतोष पैदा हुआ तथा उससे उत्तेजित होकरा क्रांतिकरियों ने कुछ हिंसात्मक करवाइया भी की |समकालीन समाचार-पात्रो ने इसके लिए सरकार की तीव्र आलोचना की विद्रोह को दबाने के लिए सरकार ने 1908 मे एक अधिनियम पारित किया जिसमे मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया था की वे ऐसे समाचार-पत्र अथवा उसकी संपाती को जब्त कार ले जो आपतिजनिक सामाग्री छापता हो |
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम 1910 
  इस अधिनियम द्वारा भारतीय प्रैस और अंकुश लगाया गया सरकार को जमानत जप्त करने और पंजीकारण राद्ध करने का अधिकार दिया गया अधिनियम के लागू होने के बाद 5 वर्षो मे सरकार द्वारा लगभग 5 लाख की जमानते जब्त की गयी |
  सन 1921 मे तत्कालीन वायसराय की काउंसिल के विधि सदस्य तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता मे एक समाचार पत्र समिति की नियुक्ति की गयी बाद मे समिति की सिफ़ारिश पर 1908 और 1910 के नियम रद्ध कर दिये गए |
  20वी शताब्दी के चौथे दशक मे स्वंत्रतता आंदोलन के तीव्रतर होने के कारण समाचार-पत्रो पर अधिक नियंत्रण करने के उद्देश्यय से सन 1930 मे सरकार ने एक नया समाचार-पत्र अध्यादेश जारी किया जिससे अनुसार 1920 के अधिनियम की व्यवस्थाए पून: लागू कर दी गयी |
   सन 1932 मे सरकार ने दो और अधिनियम पारित किए इनमे एक था ,क्रिमिनल ला अमेंडमेंट एक्ट ,जो 1931 के अधिनियम का ही विस्तार था इसके द्वारा 1931 के अधिनियम की धारा (4) को और अधिक व्यापक बना दिया गया और इनमे सभी गतिविधिया शामिल कर दी गयी जिनसे सरकार की प्रभुसत्ता को हानी पहुंचायी जा सकती थी |
   सरकार द्वारा दीन प्रतिदिन कड़े जा रहे अंकुशों से छुटकारा पाने के लिए प्रेस को संहठित करने के प्रयास 1939 मे किए गये जब द इंडियन एंड इस्टेर्न न्यूज़ पेपर सोसाइटी’ की स्थापना हुयी |सोसाइटी के उद्देशयो मे भारत  ,बर्मा और श्रीलंका की प्रेस के लिए एक केन्द्रीय संस्था के रूप मे कम करना ,सदसयो के उन व्यवसिक हितो की सुरक्षित रखते हुए उन्हे विकसित करना जो सरकार ,विधायिका या न्यायालय द्वारा दुष्प्रभावित हुये हो ,व्यावहारिक रुचि के किसी विषय पर सूचना एकत्र करना और इसे सदस्य देशो तक पाहुचना ,समान्य हितो को प्रभावित करने वाले विषयो पर पारसपरिक सहयोग विकसित करना ,शामिल था
   1939 मे भारतीय सुरक्षा कानून नियम को प्रेस प र्भी लागू कर दिया गया इस व्यवस्था के अंतर्गत भारतीय प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंधों पर विचार-विमर्श करने के लिए  दी हिन्दू के संपादक श्रीनिवासन की अध्यक्षता मे 1940 मे दिल्ली मे एक सम्मेलन बुलाया गया उसके बाद एक दूसरी बैठक मे परिणामस्वरूप  आल इंडिया न्यूज़पेपरसंघ की स्थापना हुयी |
   दूसरी और प्रेस को पंगु बनाने की सरकारी प्रक्रिया चलती रही अगस्त ,1942 मे सरकार ने कुछ और प्रतिबंध लगाए जिनका संबंध नागरिक उपद्रवों से संभदीत समाचारो क सीमित करना,संवदाताओ का पंजीकरण करना ,तोड़- फोड़ से संबंदीत समाचारो को प्रकाशन को प्रतिबंदित करना था |स्वाभाविक रूप से समाचार-पात्रो ने इसका विरोध किया और नेशनल हेराल्ड’ ,इंडियन एक्सप्रेस  और हरिजन ने तो अपना प्रकासन ही बंद कर दिया |
 स्पष्ट है की दमनकारी नीतियो व कड़े अंकुश के बावजूद भारतीय प्रेस भारतवासियों को जाग्रत करने ,विभिन्न क्रांतिकारी विचारो से उन्हे अवगत करने तथा स्वाधीनता संग्राम मे उल्लेखिय योगदान देने मे सफल रहा |
 प्रेस की आजादी के लिए संघर्ष
     19वी सदी की शुरुवात मे जब भारत मे चेतना की  लहरे लेने लगी थी तो मनवाधिकारों और मीडिया की आजादी के सवाल को गंभीरता के साथ महसूस किया जाने लगा था जैसे जैसे ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर दबाव डालने की कोशीश की तो इन कोशिशो का विरोध भी अंगडाई लेने लगा सन 1824 ई॰ मे प्रेस पर अंकुश लगाने वाले एक कानून के खिलाफ राजा राममोहन राय ने सूप्रीम कोर्ट को एक ज्ञापन भेजा ,जिसमे उन्होने लिख की –‘’हर अच्छे साशक को इस बात की फिक्र होनी चाहिए की वह लोगो को ऐसे साधन उपलब्ध करवाए जिसके जरिये उन समस्याओ और मामलो की सूचना ,सशन को जल्द से जल्द मिल सके |
   पत्रकारिता के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा सजा पाने वाले पहले भारतीय थे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी  |वे राष्ट्रिय आंदोलन को जन्म देने वाले नेताओ मे से एक थे श्री बनर्जी को एक मुकदमे के फैसले के खिलाफ लिखने के लिए दो महीने क कैद की सजा दी  गयी 1881 मे मराठी भाषा मे केसरी और अंग्रेजी मे मराठा नाम से दो अखबारो का प्रकाशन शुरू किया तिलक ने राष्ट्रिय की भावना का प्रचार प्रसार करने का एक और अधभूत तरीका खोजा |
     गांधी जी ने यंग इंडिया मे कुछ लेख लिखे थे इन लेखो को लिखने पर ब्रिटिश सरकार ने सन 1992 मे गांधी जी पर धारा 124 () के तहत राजद्रोह के आरोप मे मुकदमा चलाया और उन्हे भी बाल गंगाधर तिलक की भांति ही छह साल की कैद की सजा सुना दी गयी इस प्रकार हुमे देखते है की स्वतंत्रता पूर्व की भारतीय पत्रकारिता ने अपनी शक्ति का प्रयोग ,जनता क शिक्षित करने ,उसमे राजनैतिक व राष्ट्रिय चेतना जगाने और आम जनता को प्रेरित व प्रोतशाहित करने मे ककिया |
                        
संसद के विशेषाधिकार और मीडिया
चूकि विधायिका और मीडिया दोनों का ही सरोकार लोकहित से जुड़े है ,इसीलिए विधायिका और मीडिया का बहुत गहरा अंतरसंबंध है ।
जब  रिपोर्टर विधायिका का रिपोर्टिंग करता है ,तो उसको संसद के विशेषाधिकार को ध्यान में रखकर रिपोर्टिंग करना चाहिए। अभिप्राय संसद और विधान सभाओं दोनों से है।
हालांकि पहले कई देशों में संसदीय कार्यवाही के दौरान रिपोर्टिंग वर्जित था  विधायिका  महत्व को  समझ लिया है,इसलिए आज अधिकतर लोकतांत्रिक राष्ट्रों में संसदीयकार्यवाही के प्रकाशन और प्रसारण संबंधी कोई प्रतिबन्ध नहीं है | भारत में भी सत्र के दौरान संसद में चलने वाली कार्यवाही का सीधा प्रसारण ,प्रसार भारती के दिल्ली दूरदर्शन द्वारा किया जाता है
विशेषाधिकार :- विशेषाधिकार का सीधा सा अर्थ है ,किसी व्यक्ति वर्ग या समुदाय को सामान्य से अलग कुछ असामान्य अधिकार प्राप्त होना |ऐसे अधिकार विशेषाधिकार के अंतर्गत आता है क्योकिं ये अधिकार आम लोगों को प्राप्त नहीं होते है |ये अधिकार कुछ विशेष लोगों को विशेष होने के कारण जो अधिकार मिलते है विशेषाधिकार है |
संसदीय  विशेषाधिकार :- आम लोग संसदीय विशेषाधिकार का अर्थ ,संसद के विशेषाधिकारों से लेते है लेकिन तकनिकी रूप से ऐसा नहीं है ।जैसा की हम जानते है की संसद में लोक सभा,राज्य सभा के साथ-साथ महामहिम राष्ट्रपति भी समाहित होते है ।भारतीय संविधान में जिन विशेषाधिकारों को वर्णित किया गया है वे विशेषाधिकार केवल दोनों सदनों ,उनकी समितियां को और उनके सदस्यों को ही प्राप्त है ।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 105 संसद और 194 विधान्मंदलों के विशेषाधिकारों का वर्णन किया गया है।एवं 105() में सांसद की शक्तियों 194(3) में विधायकों के शक्तियों (विशेषाधिकार) को बताया गया है ।
भारतीय संविधान में यह कहा गया है  की जब तक संसद या विधानमंडल ऐसा कोई कानून नहीं बनाती तब तक सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकार के मामले में स्थिति वही रहेगी जो हाउस ऑफ़ कामंसकी थी |अभी तक कानून बनाकर विशेषाधिकार को प्रभावित नहीं किया गया |जैसा की हम जानते है की ब्रिटेन में कोई लिखित संविधान नहीं है इसलिए २६ जनवरी 1950 को वहां विशेषाधिकार की क्या स्थिति थी ,इसे सहिंता बद्ध या लीपिबद्ध नहीं किया गया है ।
भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश और बाद में भारत के उपराष्ट्रपति (सभापति) बने न्यायमूर्ति एम.हिदायतुल्ला ने संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में निम्नलिखित निष्कर्ष दिए:-
   संसद को अपने विशेषाधिकारों का निर्णय करने का पूर्ण अधिकार है |
विशेषाधिकारों का विस्तार क्या हो और इनका प्रयोग सदन के भीतर कब किया जाये                                              इस बारे में भी अंतिम निर्णय संसद का ही होगा |
       अपनी अवमानना के लिए दोषी व्यक्ति को सजा देने का अधिकार भी संसद को ही है |संसद ही यह फैसला कर सकती है की अवमानना क्या है |
     संसद को जुर्माना लगाने का अधिकार है |
       संसद,सत्र के दौरान किसी व्यक्ति को नजरबन्द तो कर सकती  है लेकिन सत्रावसान के तुरंत बाद नजरबंद व्यक्ति को छोड़ना होगा |
       संसद या विधानमंडल न्यायलयों द्वारा भेजे गए सम्मनों को स्वीकार करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर सुनवाई के दौरान अपने प्रतिनिधि भेजेंगे|
      सदन के माननीय सदस्यों को सत्र के दौरान किसी दीवानी मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता लेकिन अन्य प्रकार के मामलों में उन्हें सत्र के दौरान भी गिरफ्तार किया जा सकता है |
संविधान प्रदत्त संसदीय विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
संविधान के अनुच्छेद 105 के अंतर्गत संसद सदस्य को और अनुच्छेद 194 के अंतर्गत राज्यों की विधान सभा के सदस्यों को एक समान संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त हैं।
अनुच्छेद 105(1) एवं 194(1) के अनुसारप्रत्येक सदस्य को संसद में वाक् स्वातंत्र्य प्राप्त होगा किंतु यह स्वतंत्रता इस संविधान के प्रावधानों तथा संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और आदेशों के अधीन होगी।
सदन में किसी सदस्य के द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और सदन के प्राधिकार के अधीन प्रकाशित किसी प्रतिवेदनपत्रमतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में भी कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
अनुच्छेद 105(3) एवं 194(3) के अनुसारअन्य मामलों में सभी विशेषाधिकार औेर उन्मुक्तियां वही होंगी जो संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम1978 के पूर्व थींकिंतु पूर्व में इस विषय पर कोई लिपिबद्ध संहिता नहीं है। अतः शेष विशेषाधिकार परंपरानुसार नियत होते हैं।
सिविल प्रक्रिया संहिता1908 की धारा 135 (1.2.1977 से लागू) के अनुसारसदन के चालू रहने के दौरान या किसी अधिवेशन या बैठक या सम्मेलन के 40 दिन पूर्व या पश्चात किसी सदस्य को किसी सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तार या निरुद्ध नहीं किया जा सकता है।

सरकारी कर्मचारी-अधिकारी और मीडिया

भारतीय संविधान में प्रत्येक भारतीय नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी का मूल अधिकार दिया गया है| मीडिया और प्रेस के सन्दर्भ  में सरकारी सेवारत व्यक्तियों को कई नियमों का  पालन करना होता है |सरकारी  सेवारत व्यक्ति और  मीडिया के सन्दर्भ  में अलग से कोई अधीनियम तो नहीं है लेकिन सरकार द्वारा समय-समय पर जरी किये आदेशों और विभिन्न कानूनों में इस सन्दर्भ में दिए गये प्रावधानों की रोशनी में ही सरकारी कर्मचारियों व अधिकारीयों को मीडिया से संबंधित कार्य करने पड़ते है |
भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय सिविल सेवक नियम बनाये गए है ,जिसमें बता  गया है  की किसी सिविल सेवक को किस  प्रकार का व्यवहार या  आचरण करना चाहिए |
1.     सरकार के बिना पूर्वानुमति के कोई सरकारी सेवक,पुर्णतः या अंशतः न तो किसी समाचार-पत्र आवधिक प्रकाशन का स्वामी हो सकता है और न  ही  वह उसका प्रबंधक हो सकता है |वह ऐसे प्रकाशनों का संपादन भी बीना नहीं कर सकता है |
2.     अपनी सरकारी जिम्मेदारियों के अलावा कोई भी सरकारी सेवक,सरकार  या प्राधिकृत अधिकारी के पूर्वानुमति के बिना निम्नलिखित कृत्य नहीं ककर सकता :
()स्वयं या किसी प्रकाशक  के द्वारा पुस्तक का प्रकाशन
()                       किसी पुस्तक के लिए कोई लेख आदि लिखना अथवा लेखों को संकलित/सम्पादित करना ;
()  रेडियो प्रसारण में भाग लेना ;
() अपने  स्वयं के नाम,किसी दूसरे के नाम या किसी अन्य  नाम से या फिर किसी और व्यक्ती के  नाम से किसी समाचार पत्र या आवधिक प्रकाशन के लिए लेख,पत्र आदि लिखना |
3.     मीडिया संबंधी निम्नलिखित कृतियों के लिए सरकारी  सेवक को सरकार से अनुमति /पूर्वानुमति लेने की आवश्यकता नहीं है :-
()यदि पुस्तक आदि का प्रकाशन,किसी प्रकाशक के द्वारा होता है और पुस्तक की सामग्री,वैज्ञानिक,कलात्मक या साहित्यिक प्रकार की है |
()          यदि रेडियो आदि पर प्रसारण अथवा समाचार-पत्र आदि के  लिए लिखे गए लेख आदि पूर्णतः  साहित्यिक ,वैज्ञानिक या कलात्मक प्रकार के हों|

भारत सरकार के संबंधित निर्णय  :
 1.आल इंडिया रेडियो में भाग लेने और इसके बदले में शुल्क प्राप्त करने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है | (भारत सरकार,गृह मंत्रालय,कार्यालय ज्ञापन संख्या 25/32/56 (),15 जनवरी 1957)
2. मीडिया संबंधी कोई कृत्य को सम्पादित करने के  लिए यदि सरकारी सेवक अपने प्राधिकृत अधिकारी  से अनुरोध करता है और उसे अगले 30 दिन तक कोई जवाब नहीं मिलता है तो अनुमति मानी जाएगी|(भारत सरकार,व्यैक्तिक और प्रशिक्षण विभाग,कार्यालय ज्ञापन संख्या 11013/2/88 (),दिनांक 7 जुलाई,1988 एवं 30 दिसम्बर 1988)
भारत सरकार का संबंधित निर्णय
कोई भी  सरकारी सेवक अपने विदेश यात्रा के दौरान भारतीय या विदेशी  संबंधों पर किसी मौखिक या  लिखित बयान के द्वारा  टिप्पणी नहीं कर सकता उसे संबंधित राजदूत  की लिखित पूर्वानुमति पर किया जा  सकता है |(भारत सरकार,गृह मंत्रालय,कार्यालय ज्ञापन संख्या 25/71/51 दिनांक 17 अक्टूबर,1951)

न्ययालय की अवमानना और मीडिया

जैसा की हमलोगों को ज्ञात है की भारतीय संविधान के अनुसार न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया  है,जो संघ और राज्य की विधियों को देख-रेख करने का काम करती है | इस  पूरी प्रणाली के शीर्ष पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है |
न्यायपालिका और मीडिया के बिच गहरा संबध है | अख़बारों के अधिकांशतः जगह और  टेलीविजन समाचार चैनलों के अधिकांश समय पर अपराध से संबंधित समचार ही कब्ज़ा जमाये रखता है | किसी अपराध का अंतिम निर्णय न्यायालय में ही होता है ,इसीलिए पत्रकारों को अक्सर न्यायालयों से रिपोर्टिंग करनी पड़ती है | न्यायालय रिपोर्टिंग करते समय  बड़ा ही सावधानी  बरतना पड़ता है कारण की थोडा सा भी  अचूक होते ही न्यायालय अवमानना की तलवार मीडिया कर्मी पर लटक जाता है |
 न्यायालय अवमानना
अदालत की अवमानना के मामले में इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपका इरादा अवमानना करने का था या नहीं. जब कोई मामला अदालत में चल रहा हो तो रिपोर्टिंग पर कई तरह की पाबंदियाँ लगी हो सकती हैंजिनमें से कुछ अपने-आप लागू होती हैं और कुछ अदालत के निर्देश पर लगाई जाती हैं.
न्यायालय अवमानना अधिनियम1971 के अंतर्गत  है| अधिनियम की धारा 2 () (बी) और (सी) में बताया गया है,
ए दीवानी या फ़ौजदारी दोनों तरह से कोर्ट की अवमानना हो सकती है.
       बी यदि किसी न्यायालय के निर्णय/डिक्री/आदेश/निर्देश/ याचिका अथवा न्यायालय की किसी प्रक्रिया का जानबूझकर उल्लंघन किया जाए या न्यायालय द्वारा दिए गए किसी वचन को जानबूझकर कर भंग किया जाएतो यह न्यायालय की दीवानी अवमानना होगी.
       सी  किसी प्रकाशनचाहे वह मौखिक/लिखित/सांकेतिक या किसी अभिवेदन या अन्य किसी कृत्य द्वारा,बदनाम या बदनाम करने की कोशिश या अभिकरण/न्यायालय को नीचा दिखाने की कोशिश की जाए.
       किसी न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपात या हस्तक्षेप
       न्यायिक व्यवस्था में किसी प्रकार के हस्तक्षेप या उसे बाधित करना/ बाधित करने की कोशिश करना न्यायालय की अवमानना हो सकती है.

समाचार पत्र- पत्रिकाओं का पंजीकरण

भारत में छपने तथा प्रकाशि‍त होने वाले समाचारपत्र एवं आवधि‍क प्रेस एवं पुस्‍तक पंजीकरण अधि‍नि‍यम1867 तथा समाचारपत्रों के पंजीकरण(केन्‍द्रीय) नि‍यम1956 द्वारा नि‍यंत्रि‍त होते हैं ।
अधि‍नि‍यम के अनुसारकि‍सी भी समाचार पत्र अथवा आवधि‍क का शीर्षक उसी भाषा या उसी राज्‍य में पहले से प्रकाशि‍त हो रहे कि‍सी अन्‍य समाचारपत्र या आवधि‍क के समान या मि‍लताजुलता न होजब तक कि‍ उस शीर्षक का स्‍वामि‍त्‍व उसी व्‍यक्‍ति‍ के पास न हो ।
इस शर्त के अनुपालन को सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए ,भारत सरकार ने समाचारपत्रों का पंजीयक नि‍युक्‍त कि‍या है जि‍न्‍हें प्रेस पंजीयक भी कहा जाता हैजो भारत में प्रकाशि‍त होने वाले समाचारपत्रों एवं आवधि‍कों की पंजि‍का का रख रखाव करते हैं ।
भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय का मुख्‍यालय नई दि‍ल्‍ली में है तथा देश के सभी क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लि‍ए कोलकाता,मुंबई तथा चेन्‍नई में तीन क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं ।
समाचार पत्र के प्रथम अंक के प्रकाशन के बादआर.एन.आई. से समाचारपत्र को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करने का अनुरोध अवश्‍य कि‍या जाना चाहि‍ए । समाचार पत्रों/पत्रि‍काओं के पंजीकरण के लि‍ए जांच सूची/दि‍शा नि‍र्देश नि‍म्‍नलि‍खि‍त हैं :
1. आवश्‍यक दस्‍तावेज
() आर.एन.आई. द्वारा जारी शीर्षक सत्‍यापन पत्र की फोटोकापी ।
() डी.एम./.डी एम/डी सी पी/सी एम एम/एस डी एम द्वारा प्रपत्र। में नि‍र्दिष्‍ट(देखें नि‍यम3) प्रमाणीकृत घोषणा की सत्‍यापि‍त प्रति‍ ।
() प्रथम अंक में खंड1 और अंक­1 का उल्‍लेख करें !
() नि‍र्धारि‍त प्रपत्र में ‘ कोई वि‍देशी बंधन नहीं ‘ के लि‍ए प्रकाशक का शपथ पत्र(देखें परि‍शि‍ष्‍टIV) 
2. यदि‍ मुद्रक और प्रकाशक भि‍न्‍न हों तो अलग घोषणा दाखि‍ल करनी होगी ।
3. प्रथम अंक में स्‍पष्‍ट रूप से खंड। और अंक1दि‍नांकरेखा,पृष्‍ठसंख्‍या और प्रकाशन के शीर्षक का उल्‍लेख होना चाहि‍ए ।
4. घोषणा के प्रमाणीकरण की ति‍थि‍ से छह सप्‍ताह की अवधि‍ के भीतर (दैनिक‍/साप्‍ताहि‍क के लि‍ए) और तीन महीने के भीतर(अन्‍य अवधि‍यों वाले प्रकाशनों के लि‍ए) प्रकाशन प्रकाशि‍त हो जाना चाहि‍ए ।
5. इंम्‍प्रिं‍ट लाइन में() प्रकाशक का नाम() मुद्रक का नाम,() स्‍वामी का नाम,() मुद्रणालय का नाम व पूरा पता,(.) प्रकाशन का स्‍थान व पता,और () सम्‍पादक का नाम शामि‍ल होना चाहि‍ए ।
2.11.2 यदि‍ उचि‍त जांच पड़ताल के पश्‍चात आवेदन संतोषजनक पाया जाता है तो प्रेस पंजीयक अपने यहां रखे गए रजि‍स्‍टर में समाचार पत्र के वि‍वरण दर्ज करेगा और प्रकाशक को पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी करेगा ।



पुस्तकों का पंजीकरण
परिभाषा :-
सन 1950 में यूनेस्कों ने एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें पुस्तक को परिभाषित किया गया था ऐसी साहित्यिक प्रकाशन ,जिसमें कवर को छोड़कर 49 या इससे अधिक पृष्ठों और वह पत्रिका न हो पुस्तक कहलायेगा|
इतिहास :
भारतीय भाषाओ में पुस्तकों का छपना,सन 1800 में प्रारंभ हुआ था | अगस्त 1800 में मंगल समाचार तथा मतियेर द्वारा लिखित एक बंगला पुस्तक का प्रकाशन हुआ |हिंदी की पहली पुस्तक 1802 में,फोर्ट विलियम कालेज ,कलकता द्वारा हरकारु प्रेस कलकता में मुद्रित हुई|
नोट:आजकल भारत में पुस्तकों के  पंजीकरण में प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम लागु होते है |


                           प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम ,1867

  जैसा कि हम सब जानते है की भारत में आज अधिकांश कानून ब्रिटिश के समय के कानून के आधार पर ही चलते है ,कुछ संशोधन के साथ |उसी तरह प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 में ही ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा लाया गया था |
  अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक के कार्यालय में आवेदन पत्र की जाँच की जाती है और यदि वह नियमानुसार होता है तथा आवेदन में प्रस्तावित कोई शीर्षक ,उपलब्ध होता है (अर्थात वह शीर्षक किसी अन्य के नाम से पंजीकृत नहीं होता है ) तो आवेदक के शीर्षक को उसके नाम से पंजीकृत करके वह शीर्षक को आवंटित कर दिया जाता है |
  अधिनियम के अनुसार पत्र का प्रकाशन करने से पूर्व प्रकाशक को एक घोषणा-पत्र निर्धारित प्रारूप में सक्षम मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत करना होता है | इस घोसणा पत्र में पत्र के संपादक ,प्रकाशक और मुद्रक का नाम तथा पत्र के मुद्रण व प्रकाशन के स्थानों (पतों) की जानकारी देना भी अनिवार्य होता है|
  भारत में छपने तथा प्रकाशि‍त होने वाले समाचारपत्र एवं आवधि‍क प्रेस एवं पुस्‍तक पंजीकरण अधि‍नि‍यम1867 तथा समाचारपत्रों के पंजीकरण(केन्‍द्रीय) नि‍यम1956 द्वारा नि‍यंत्रि‍त होते हैं ।
  अधि‍नि‍यम के अनुसारकि‍सी भी समाचार पत्र अथवा आवधि‍क का शीर्षक उसी भाषा या उसी राज्‍य में पहले से प्रकाशि‍त हो रहे कि‍सी अन्‍य समाचारपत्र या आवधि‍क के समान या मि‍लताजुलता न होजब तक कि‍ उस शीर्षक का स्‍वामि‍त्‍व उसी व्‍यक्‍ति‍ के पास न हो ।
  इस शर्त के अनुपालन को सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए ,भारत सरकार ने समाचारपत्रों का पंजीयक नि‍युक्‍त कि‍या है जि‍न्‍हें प्रेस पंजीयक भी कहा जाता हैजो भारत में प्रकाशि‍त होने वाले समाचारपत्रों एवं आवधि‍कों की पंजि‍का का रख-रखाव करते हैं ।
  भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय का मुख्‍यालय नई दि‍ल्‍ली में है तथा देश के सभी क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लि‍ए कोलकाता,मुंबई तथा चेन्‍नई में तीन क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं । प्रेस एवं पुस्‍तक    पंजीकरण अधि‍नि‍यम के अनुसार, मुद्रक एवं प्रकाशक को जि‍ला/महाप्रांत/उपप्रखण्‍ड दण्‍डाधि‍कारी के समक्ष घोषणा करनी होती है जि‍सके स्‍थानीय अधि‍कारक्षेत्र के अधीन समाचारपत्र मुद्रि‍त अथवा प्रकाशि‍त कि‍या जाएगाकि‍ वह उक्‍त समाचारपत्र का मुद्रक/प्रकाशक है ।
घोषणा पत्र में समाचारपत्र संबंधी सभी वि‍वरण शामि‍ल होने चाहि‍ए जैसे कि‍ कि‍स भाषा में प्रकाशि‍त होगा ,प्रकाशन का स्‍थान इत्‍यादि‍ । समाचारपत्र के प्रकाशन से पहले दण्‍डाधि‍कारी द्वारा घोषणा पत्र को अधि‍प्रमाणि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए ।
अधि‍प्रमाणन से पहले दण्‍डाधि‍कारी समाचारपत्रों के पंजीयक से छानबीन करने के बाद यह पुष्‍टि‍ करता है कि‍ प्रेस एवं पुस्‍तक पंजीकरण अधि‍नि‍यम की धारा 6 में उल्‍लि‍खि‍त शर्तों का पालन हो रहा है ।

मानहानि: प्रकार और क़ानूनी प्रावधान

मानहानि की परिभाषा ( 1963) :
किसी व्यक्तिव्यापारउत्पादसमूहसरकारधर्म या राष्ट्र के प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने वाला असत्य कथन मानहानि (Defamation) कहलाता है। अधिकांश न्यायप्रणालियों में मानहानि के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही के प्रावधान हैं ताकि लोग विभिन्न प्रकार की मानहानियाँ तथा आधारहीन आलोचना अच्ची तरह सोच विचार कर ही करें।
मानहानि असल में वो प्रभाव है जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की आधारहीन आलोचना करने उसके बारे में गलत धारणा बिना किसी पुख्ता आधार के समाज में पेश करना से व्यक्ति की छवि पर पड़ता है और इसके लिए जिस व्यक्ति के बारे में भ्रामक बातें कही जा रही है वो व्यक्ति न्यायालय में अपने खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के खिलाड़ उसकी छवि को जो नुकसान पहुंचा है उसकी भरपाई के लिए मुकदमा कर सकता है |
परिचय :
मानहानि दो रूपों में हो सकती है- लिखित रूप में या मौखिक रूप में। यदि किसी के विरुद्ध प्रकाशितरूप में या लिखितरूप में झूठा आरोप लगाया जाता है या उसका अपमान किया जाता है तो यह "अपलेख" कहलाता है। जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपमानजनक कथन या भाषण किया जाता है। जिसे सुनकर लोगों के मन में व्यक्ति विशेष के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न हो तो वह "अपवचन" कहलाता है।
मानहानि करने वाले व्यक्ति पर दीवानी और फौजदारी मुकदमें चलाए जा सकते हैं। जिसमें दो वर्ष की साधारण कैद अथवा जुर्माना या दोनों सजाएँ हो सकती हैं।
सार्वजनिक हित के अतिरिक्त न्यायालय की कार्यवाही की मूल सत्य-प्रतिलिपि मानहानि नही मानी जाती। न्यायाधीशों के निर्णय व गुण-दोष दोनों पर अथवा किसी गवाह या गुमास्ते आदि के मामले में सदभावनापूर्वक विचार प्रकट करना मानहानि नही कहलाती है। लेकिन इसके साथ ही यह आवश्यक है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ या राय न्यायालय का निर्णय होने के बाद ही दिये जाने चाहिएँ।
सार्वजनिक हित में संस्था या व्यक्ति पर टिप्पणी भी की जा सकती है या किसी भी बात का प्रकाशन किया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखा जाये कि अवसर पड़ने पर बात की पुष्टि की जा सके। कानून का यह वर्तमानरूप ही पत्रकारों के लिए आतंक का विषय है।
अधिकांश मामलों में बचाव इस प्रकार हो सकता है
1- कथन की सत्यता का प्रमाण।
2- विशेषाधिकार तथा
3- निष्पक्ष टिप्पणी तथा आलोचना।
  यदि किये गये कथनों का प्रमाण हो हो तो अच्छा बचाव होता है। विशेषाधिकार सदैव अनुबन्धित और सीमित होता है। समाचारपत्रों का यह विशेषाधिकार विधायकों आर न्यायालयों को भी प्राप्त होता है। अतः कहने का तात्पर्य यह है कि आलोचना का विषय सार्वजनिक हित का होना चाहिएऔर स्पष्टरूप से कहे गये तथ्यों का बुद्धिवादी मूल्यांकन होने के साथ-साथ यह पूर्वाग्रह से भी परे होना चाहिए।
मानहानि की दशा में सजा के प्रावधान :
  इसके लिए भारतीय कानून के अनुसार दो धाराएँ है जो इसे समझाती है और वो है IPC यानि इंडियन पेनेल कोड (Indian Penal Code) के अनुसार धारा 499 और धारा 500 के अनुसार मानहानि के अपराध में दोषी पाये जाने पर दोषी को दो साल तक की सजा हो सकती है
उदाहरण:
हालाँकि भारतीय परिवेश में सामान्य तौर पर यह एक कम ही सामने आने वाला मुद्दा है क्योंकि इस तरह की शिकायतों को स्थानीय लोग अपने स्तर पर सुधार लेते है और अगर ऐसा होता भी है कि कोई व्यक्ति मानहानि का दावा करता है तो विशेष परिस्थिति को छोड़कर सामान्यत यह साबित करने में बहुत वक़्त जाया होता है कि टिप्पणी करने वाला सही है या उसके पीछे कोई आधार भी है लेकिन आप अगर भारतीय राजनीती की बात करे तो कई तरह के ऐसे मामले है जो चर्चित रहे है |  उसमे से एक है – मशहूर राजनीतिज्ञ सुभ्रमन्यम स्वामी के खिलाफ तमिलनाडु की सरकार ने मानहानि के पांच मामले कोर्ट में दायर किये थे जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रोक लगा दी थी और उन पर आरोप ये था कि उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल साइट्स पर अपमानजनक टिप्पणियाँ की थी |

 अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालयभोपाल

विषय: प्रेस और आचार संहिता
                                          कक्षास्नातक पत्रकारिता (चतुर्थ सेमेस्टर)
छात्रजितेश कुमार
प्रेस कानून
















कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...