शनिवार, 18 मई 2019

जल बचाव जरूर पर फेसबुक नहीं

जितेश कुमार

बाहर निकलना मुश्किल है
लू चल रही है
लोग बेहाल है गर्मी से
शहरों में पानी की कमी है
और तुम आधे घंटे से नहा रही हैं

एक पक्षी छत पर गिरा है प्यासा
पाथिक प्यासा भटक रहा हैं
एक बूंद पानी आसमान से गिरे
इस आस में धरती जी रही..
और तुम आधे घंटे से नहा....

झरना खोले पानी बहा रही है
धरती की प्यास समझ नहीं पा रही
अनमोल जल व्यर्थ बहा रही
 फेसबुक पर जल बचाओ
अभियान चला रही हैं
 खुद आधे घंटे से नहा नहीं..

 लगता है चुनाव लड़ने जा रहे हैं
 वादे के विपरीत हैं इरादे
 तभी तो सेव वाटर चिल्ला रही
 और आधे घंटे से नहा रही..

सोमवार, 13 मई 2019

राजनीति समझाता हूं 
साजिश भी जनता हूं 
शांत हूं कोई कमजोर है 
संस्कार ही कुछ ऐसा है 
अभी मैं छुट्टी पर हूं... 

जल्द कुछ नया करूँगा 
सबसे अलग चलूँगा 
मंत्र है, वही 
अखंड भारत 
एक वही साधना में व्यस्थ 
और अभी मैं छुट्टी पर हूं 

महान ध्येय के लिए 
त्याग बड़ा करूँगा 
मरता छोटी बात है 
मैं पूरा जीवन लगा दूंगा 
आज आत्म निरक्षण के लिए 
अभी मैं छुट्टी पर हूं 

ज्ञान को स्वतंत्र 
मन को बांधना है 
मार्ग दुर्गम है 
कटरिले है
नग्न पैर चलाने के लिए 
हौंसला जुटाऊंगा 
अभी मैं छुट्टी पर है

यह कोई आम छुट्टी नहीं 
जहां मनोरंजन हो 
जल्द बंधन का मोह त्याग 
मैं आता हूं, एक दर्शन सिखने..
अभी मैं छुट्टी पर हूं

तब और अब के परिवर्तन


गाँव के लिए इमेज परिणामशाम को पकड़ी के पेड़ के नीचे कुश्ती होती थी| गाँव के सभी बच्चे आपस में कुश्ती लड़ते थे| कुछ बड़े लोग हमें आपस में लड़वाने के लिए प्रेरित करते थे| उस समय नोकझोक के क्रम में हाथ-पाँव का छिल जाना और रक्त निकलना तो आम बात थी| ये सब वीरता और बहादुरी के प्रतिक थे| चोट नहीं लगना, खून नहीं बहना डरपोक और बुजदिली समझा जाता था| मारपीट के क्रम में पैर में चोट आना हाथ की केहुनी से रक्त निकलना मानों ऐसा था जैसे सीमा पर वीर सैनिकों का जख्मी होना| बड़ा गर्व होता था ऐसे गाँव की कोख से पैदा हुआ हूँ मैं| जहाँ रक्त को बहाना बचपन के खेल से सीखे थे और खेल-खेल में जख्मी होने का एहसास सीमा पर तैनात शौर्यवान जवानों की याद दिलाती थी| बचपन से ही एक योद्धा, एक सैनिक बनाने की ललक सभी दोस्तों में थी| आज कुछ लोग देश के सीमा पर तैनात है और कुछ प्रयत्नशील है| मेरे जैसे निकम्मे बीती बातों को लिखने में लगे है| लगभग 12 वर्ष बीत गये होंगे गाँव में कुश्ती बंद हुये ऐसा नहीं है कि गावं में बच्चे नहीं है| है, लेकिन स्मार्टफ़ोन पर ही सभी खेल मौजूद है तो क्रिकेट, गाना, वीडियो, पबजी में व्यस्त रहते है| झूठी बहादुरी और शान में जिये जा रहे है, कोई डाट कर बहार खेल के मौदान में भेजने वाला नहीं है| घरवालें तर्क देते है कि अच्छा ही तो है, बगल के पिंटूवाँ के संघत से तो अच्छा है घर में मोबाईल ही देखे| कितना बेलगाम है दिन भर पैतरा काटते रहता है दंतनिकला के घर से लेकर चवर पार कुईसा के घर तक धूमते रहता है| पढ़ता है कि नहीं, रोज देखते है सरकारी स्कूल ही जाता है|

मंगलवार, 7 मई 2019

बात पिछले साल नवम्बर (2018) की है| यूनिवर्सिटी में परीक्षा होनी  थी, इसलिए छठ पूजा और दीपावली में अपने गाँव नहीं गया था|  ये मेरा पहला अनुभव था कि मैं अपने गाँव में छठ और दीपावली पर नहीं था| मन में बेचैनी थी, कई बार ऐसा लगा जैसे परीक्षा छोड़ दूँ|  हालकि इतना समय था मेरे पास छठ के तीन दिन बाद परीक्षा होने वाली थी| आने का मन भी होता तो  ट्रेन के रिजर्वेशन मिलना कठिन था| बगैर रिजर्वेशन छठ के समय बिहार पहुंचा चाँद पर जाने जैसे कठिन है| हमलोग ठहरे मजदूर और निहायती बेवकूप लोग जानवरों की तरह ट्रेन में बंधकर घर भेजे जाते है| पापी पेट का सवाल है वरना इज्जत हमें देता यहाँ देता कौन है? संदिग्ध, चोर-उचक्के, लोफर, मवाली,बावली,गुंडा और गरीबी सभी का अर्थ दिल्ली हो चाहे भोपाल या अन्य बिहारी ही है| रात को जब कमरे में कोई नहीं रहता है तो पुरे दिन अपने साथ घटने वाली घटनाएँ ऐसी तीक्ष्ण होती है कि आँखों में आंसू भर आते है| और मन कई प्रश्न आते थे- यहाँ बाकि राज्यों के लोग पढ़ रहे है और काम-काज कर करते है; उनसे कोई कुछ नहीं बोलता है| हम ही बिहारी होने कारण पूर्वाग्रह के शिकार है| मिटटी के गोद में पले बढे है वो बाबु साहब के बच्चे है, सीधे स्वर्ग के उतरे है| सभी के सभी अभिमन्यू के भाँति जन्म से ही चक्रव्यूह भेदन की कला जानते है, ऐसी कल्पना उनके मन में रहती है| परिवेश, परवरिश और परिवार का गुण ही  है कि इतना विकसित है, चार कदम ठीक से बात नहीं कर पाते है|  जैसे पूर्वकाल में अंग्रेजों और मुगलों के दोगली निति ने वर्ण व्यवस्था में अस्पृश्यता जैसा धिनौना जहर घोल कर हिन्दू समाज को भयंकर हानि पहुंचाया है| आज कुछ ऐसा ही महसूस होता है मुझे और कही नहीं इसी भारत में| बाकि राज्यों के लोग खुद से अपने आप को सर्जिफिकेट बाँट कर साबित क्या करना चाहते है? मालूम नहीं!  बिहार ने दुनिया को जीरो से हीरो तक का मार्ग प्रस्थ किया है| ज्ञान की जननी के रूप इसका प्राचीन इतिहास रहा है|                

शनिवार, 4 मई 2019

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँइस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे हैतो मुझे भी संविधान के धारा 19 का प्रयोग करना चाहिए ऐसा मुझे कल सपने में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने कहाउन्होंने कहाशांत मत बैठो आने वाली पीढ़ी गलियां देगीआवाज उठाने वाले इतिहास में अमर हो जाते है और शांत होकर देखने वाले की मृत्यु होती हैइनके 13वीं के बाद स्वयं के घर के लोग ही भूल जाते है|” उन्होंने ने ये भी कहा कि देश और समाज में उठ रही प्रत्येक समसामयिक मुद्दे पर अपनी राय और अपनी बात रखो| कोई नहीं पढ़े और सुने तो भी पागलों की तरह लिखते बोलते रहोअपने ज्ञान्द्रियों से जो नजर आ रहा है उसे अपनी ह्रदय की सच्चाई से सभी के बीच रखो|
kamalnath
  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार के लगभग तीन माह बीत गये हैअभी कुछ भी उटपटांग भविष्यवाणी करना ठीक नहीं हैइतना तो कहने कि स्थिति है ही कि बीते तीन महीने की कमलनाथ सरकार से भय का वातावरण निर्मित हुआ हैलेकिन यह भय गुंडोंदरिंदोंबदमाशोंभ्रष्टाचारियों में कतई नहीं है| भोपाल और इंदौर जैसे सुरक्षित शहरों में भी आराजकता और गुंडागर्दी बढे हैअपहरण और बलात्कार के भी मामले पहले से ज्यादा हुए हैलोगों का कहना है कि कर्जमाफ़ी और बेरोजगारी भत्ता के नाम पर मध्यप्रदेश की कांग्रेस की सरकार ने आम जनता को अंगूठा दिखाया हैरोजगार और किसानों की कर्जमाफ़ी के साथ महिला उत्पीडन जैसे विषय विधानसभा चुनाव के केंद्र में थेऐसा प्रतीत होता था कमलनाथ युवा जो बेरोजगार हैकिसान जो परेशान है और महिलाएं जो असुरक्षित है इनकी सबसे पहले कष्ट हर लेंगे| कर्ज माफ़ी का सिर्फ ढोल पीटा गया है, किसान का कर्ज माफ़ी तो दूर ऐसी स्थिति है कि बोये क्या कटे क्यापैगम्बर ने कर्जमाफ़ी के नाम पर ऐसा प्रपंच किया है कि बैंक लोन अब देने को तैयार नहीं और किसान कुछ करने की स्थिति में नहीं हैऐसे में कमलनाथ के गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा में किसान की आत्महत्या ने सरकार की धोखाधड़ी की पोल खोल दी हैकर्ज माफ़ी हुई है और स्थिति पहले से बेहतर है तो आत्महत्याएं क्यों नहीं रुक रही हैअपने आप को किसानप्रेमी सरकार की उपाधि देने वालेसत्ता संभालते ही युरियां खा गये और युरियां मांगने गये किसान को डंडे दिखाये गयेदुकान के पीछे से दुगुना-तिगुना दाम देकर युरियां कुछ किसानों को नसीब हुई हैयह काण्ड मीडिया के माध्यम से लोगों ने देखा है और भुलाया भी नहीं हैदबे-कुचले वर्ग जो कल तक कांग्रेस की हवाहवाई वादे पर मोहीत थेआज वही लोग भड़के हुए हैऐसा इसलिए क्योकि हाल में सीबीआई के छापे में जप्त 281 करोड़ की अवैध सम्पति ने प्रदेश की सरकार को कलंकित किया हैसरकार इस कदम से इतना बौखलाये हुये है कि रोज अखबार में खबर छपती है अधिकारीयों को देखेंगे’, कोई कहता है जूता साफ करवाएंगे’ और तो और सरकार ने पार्टी के सदस्यों से ऐसे अधिकारी का लिस्ट भी तैयार करने को कहा है, चुनाव के बाद इनसे निपटा जायेंगाजनता मौन रूप धारण किये समय के इन्जार में है या कमलनाथ पर भरोसा करके शांत है यह तो वक्त जानता हैफिलहाल तो माहौल तीन महीने की रिपोर्ट से असंतुष्ट और भड़की दिखाती है|
यह तो बात किसानयुवा और मजदूर की हैकर्मचारीअफसरशिक्षक और प्रोफेसर के साथ एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग ने सरकार के रवैये से नाराजगी जाहिर की हैउनका कहना है कि कमलनाथ ने प्रदेश की स्थति (गरीबीकिसानीरोजगारसुरक्षाशिक्षा और अपने संकल्प पत्रसे मुंह मोड़ लिया हैबदले की राजनीति में हाथ धोकर पड़े हुये है प्रदेश में अपने से विपरीत विचार के विरुद्ध सामदामदंड और भेद किसी भी तरीके से उसे समाप्त करना ही अपना लक्ष्य मान लिया है| प्रशासनिक अधिकारीयों के स्थानांतरण के ताबतोड़ निर्णय के साथ तमाम शैक्षणिक संस्थानों के साथ ही माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी में सरकार के द्वारा और मुख्यमंत्री के इशारे पर जो कुछ बीते महीने हुआ है वह बेहद ओछी और नीचता कर प्रमाण हैप्रदेश सरकार को सोचना चाहिए माखनलाल यूनिवर्सिटी पुरे भारत में ही नहीं समूचे एशियाई देशों में अपने योग्यता से लोकप्रियता और पहचान हासिल की हैऐसे संस्थानों में इस प्रकार की राजनीतिक उथल-पुथल अशोभनीय है| प्रदेश और देश की जनता इसे ठीक नहीं मानती है कि कोई दल अपने सत्ता के में मद में शिक्षण संस्थाओं को भंडोल करेपूर्व की सरकार के खामियों की वजह से कुछ अवगुण उत्पन्न हुए है या भ्रष्टाचार के ही मामले प्रकाश में आये है तो वैधानिक जाँच होनी चाहिए ऐसे प्रतिशोध की भावना से जल्दीबाजी में नहींमाखनलाल यूनिवर्सिटी प्रदेश की शान है ऐसे में इसे कलंकित करने जो प्रयास वर्तमान की कमलनाथ सरकार ने की है| इससे बुद्धिजीवियों में ठीक सन्देश नहीं पहुंचा हैबातचीत में एक विद्वान ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में सत्ता में विराजमान पार्टी को भी भारतीय संविधान की निहित प्रक्रियाओं का अनुकरण कारण पड़ता हैउन्होंने उदाहरण देते हुये कहा कि एक न्यायधीश किसी व्यक्ति को हत्या करते हुये भी देखता हैफिर भी उसे सीधा फंसी की सजा नहीं सुना सकता हैजज को संविधान में निहित प्रक्रियाओं और आरोपी पक्ष के वकील और स्वयं आरोपी के बयान को सुनना होगा और संपूर्ण प्रक्रियाओं की सत्यता के बाद ही निर्णय लेने के कर्तव्य न्यायधीश को हैफिर दो दिन की कमलनाथ सरकार ने कौन-सी संवैधानिक नैतिकता का पालन करके 20 विद्वानों की नियुक्ति रद्द की है और माननीय कुलपति के पद को अपमानित किया है| इसका जवाब कमलनाथ को देना होंगा| अंत में उन्होंने कि तत्काल मुख्यमंत्री क्षमा मांगे और विद्वानों की नियुक्ति करे| अपने घोषणा और वादे को पूरा करे; ना की सत्ता के मद में तानाशाही और अराजकता उत्पन्न करे| जो बीते दिनों गैर-जिम्मेदाराना और बदले की भावना से कमलनाथ सरकार ने कार्य किये है इससे आम जनता काफी नाराज है ऐसे में अब तक की रिपोर्ट से लगता है इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान है 


गाँव की ओर चले

संवेदनाओं  की कद्र जहाँ होती है वही गाँव है| आपके साथ हजारों लोग जहाँ खड़े हो वही गाँव है| अंगिनत वृक्षों की कतार जहाँ लगी हो वही गाँव है| धरती पर सुकून की उन्माद जहाँ मिलाती हो वही गाँव है| स्वर्ग ही गाँव है गाँव ही स्वर्ग है| 
संस्कृति और देश की अस्मिता को समेटे भारत को भारत की तरह बढ़ाता 'गाँव' अनथक है| गंगा गाय और गाँव भारत की पहचान है| जरा सोचो दुनिया बदलने वाले तुम्हारे विनाशकारी तकनीक के विस्फोट से हम भागेंगे कहाँ ?  देखा मैंने तेरे विकास को और कई कहानियां भी सुनी है तेरी समृद्धि की| कोई पर्वत है तेरे शहर में तो किसी को फुटपाथ नसीब है| मानव-मानव में इतना अंतर है, रहन-सहन में इतना अंतर है, बोलचाल में अतंर है|  फर्क है तुझे अपने शहर में कुछ लोगों को गुलाम बनाकर रखने का पर तेरा शहर ही गुलाम है विदेशियों की| खान-पान, पहनावा, भाषा और अब संस्कृति विदेशी, तुम कितना भारतीय बचे हो, जरा विचार करों|  यू आर नॉट भारतीय 
गाँव में है भारत जिन्दा, तुम तो भटक गए, अब भी है वक्त अपने कलियाँ को पुष्प बनना सिखाओं सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और चरित्र निर्माण करों| तभी वह भविष्य का इंजीनियर बनेगा| नहीं तो विदेशी मशीनों की तरह, व्यवहार करेगा जिसे प्रेम संबंध की नहीं, चलने के लिए ईधन की जरुरी होगी| पैसा ही भगवान है ऐसा मत बोलो| चलो ले चलो गाँव वही तुम्हारा भगवान है और उसका भी|  इंडिया छोडो गाँव की ओर चले|        

गुरुवार, 2 मई 2019

दो सांस्कृतिक नदियाँ शंखिनी-डंकिनी के हत्यारे थे दिग्गी

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शंखिनी नदी का उद्गम दंतेवाडा के नंदिराज शिखर के बैलाडीला से है इसे छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक प्रदूषित नदी माना जाता है दंतेवाडा में यह नदी डंकिनी नदी में मिल जाती है  डंकिनी-शंखिनी के संगम पर प्रशिद्ध दंतेश्वरी मंदिर स्थित है महान मंत्रदृष्टा ऋषि अगस्त्य ने दक्षिण की अपनी यात्रा के दौरान दो नदियों को पार किया था इन नदियों को मां के रूप में प्रतिष्ठित किया गया यह नदियाँ स्थानीय समाज में वर्षों से मां गंगा जितनी ही पूजनीय थी इन नदियों को शंखिनी और डंकिनी के नाम से जाना जाता था  ललिता सहस्त्रनामम ( देवी की 1000 स्तुतियों) में देवी मां को शंखीनिंबा स्वरूपिणी कहा जाता है ( अर्थात वह जो शंखनी का रूप धारण करती है) और डंकिनीश्वरी (  अर्थात वह जो डंकिनी नदी का ही देवी स्वरूप है) यह दोनों नदियां छत्तीसगढ़ में बहती थी और वहां के स्थानीय समुदायों के लिए ना सिर्फ पानी की आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत थी बल्कि उनकी आजीविका के तमाम संसाधन भी इन्हीं नदियों से जुड़े थे
बात दिग्विजय सिंह के दुसरे कार्यकाल है जब वो अविभाजित मध्यप्रेश (छत्तीसगढ़ सहित) के मुख्यमंत्री थे उस वकत केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों के तहत आने वाले नेशनल मिनिरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएमडीसी) ने इस इलाके में खनन से जुड़ी गतिविधियां शुरू की थी  इन्हें बैलाडीला लौह अयस्क खदान, बछेली, किरनदुल और द्रोणिमलै की खदान के नाम से जाना जाता है इन खदानों से बड़े पैमाने पर निकलने वाले मलबे को नदी के किनारे पर फेंका जाता रहा इस पूरे प्रोजेक्ट को तात्कालिक मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (2001-02) की मंजूरी हासिल थी  बतौर मुख्यमंत्री इस राजनेता ने नदियों को बचाने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया था खदानों से निकले विषैले तत्वों की वजह से इन नदियों का पानी धीरे-धीरे जहरीला होता गया स्थानीय निवासियों ने इसे लेकर काफी विरोध प्रदर्शन किया लेकिन राज्य सरकार में उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई जिसके बाद शांत विद्रोह प्रदर्शन हिंसक विद्रोह में तब्दील हो गए और इनकी तापिश आज भी इस इलाके को झुलसा  रही है 
 मौरीन नंदिनी मिश्रा, डाउन अर्थ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट स्टडी ने 31 दिसंबर 2006 को रिपोर्ट लिखी 
छत्तीसगढ़ में बहने वाली शंखिनी और डंकिनी नदी प्रदूषण की वजह से दम तोड़ रही है स्थिति को सुधारने के लिए कागजों में योजनाएं बनी लेकिन उसमें एक भी अंजाम तक नहीं पहुंची 2010 में केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा खदानों के अंधाधुंध दोहन और उससे निकलने वाली जहरीले तत्व और अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में बहाने की वजह से यह नदियां बुरी तरह प्रभावित हुई है यही नहीं इनके पानी का उपयोग करने की वजह से बैलाडीला के आसपास की 15000 हेक्टेयर से भी ज्यादा कृषि और वन भूमि भी बर्बाद हो गई है
 इलाके के तकरीबन एक सौ गांवों के लोग अपने रोजमर्रा के जीवन में इन्हीं प्रदूषित और जहरीली हो चुकी शंखिनी-डंकिनी नदी के पानी का इस्तेमाल करते हैं 4 साल बाद तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने माना कि शंखिनी डंकिनी नदियों के बहाव क्षेत्र में आने वाले 65 गांव पानी के पूरी तरह प्रदूषित होने की वजह से प्रभावित है यही नहीं सरकार के एसएमडीसी (नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) को आदेश दिया कि वह गांव में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 200 कुएं खोदे आदेशानुसार काम चलाऊ कुएँ खोदे दिए गए लेकिन किसी भी कुएं को मानक के मुताबिक नहीं खोदा गया लिहाजा वर्तमान में इन में एक भी  कुऐ काम के लायक नहीं बचा है जाहिर सी बात है अधिकारियों में पेयजल को लेकर जरा भी चिंता नहीं थी
 तमाम दूसरे आंदोलन की तरह इन बेचारे गांव वालों के लिए एक भी मेघा पाटकर, अरुंधति, अरुणा राय, प्रिया पिल्लई या हर्ष मंदार सामने नहीं आये इसी तरह दूसरे मानवाधिकार समाजवादी कार्यकर्ता और वकील इन गरीबों की मदद के लिए उनकी आवाज नहीं बने नहीं इन को किसी तरह की फंडिंग ही मिल सकी जाहिर तौर पर ऐसा करने से इनकी रोजी-रोटी जो खतरे में पड़ जाती भाड़ में जाये लोगों की जिंदगी भाड़ में जाए मानवाधिकार अपने को तो रोटी सेंकनी है वह भी सेकुलर रोटी
 छत्तीसगढ़ के इस इलाके में नक्सल समस्या को और गंभीर बनाने में मनमाने तरीके से चलाएंगे इस प्रोजेक्ट का बड़ा हाथ है शिक्षाविद बेला भाटिया भी नक्सल प्रभावित इलाके में सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता में से एक हैं बेला प्रदेश और केंद्र की सरकार (दोनों जगहों पर भाजपा का काबिज थी) पर अपने तीखे हमले और आक्षेपों के लिए जानी जाती है बेला का तर्क है कि मानव अधिकारों के हनन और लोगों के शोषण की वजह से छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद जैसी समस्याओं के लिए मुफीद जमीन तैयार हुई बेला के पति ज्यां पाँल द्रेज यूपीए सरकार के वक्त राष्ट्रीय सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं इस समिति को काफी प्रभावशाली माना जाता है लेकिन अपनी पत्नी के इस तर्क के बावजूद उन्होंने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया दिग्गी राज में कैसे दो सांस्कृतिक नदियाँ बर्बाद हो गई  कैसे वहां के लोगों की कृषि भूमि ही नहीं बल्कि रोजी-रोटी के साधन छीन गए कैसे लोगों को नदियों के जहरीले पानी का उपयोग करने से कई संक्रमण रोग हुए और आज भी जन्मजात उनसे पीढ़ियों में फ़ैल रहे है 
सवाल उठता है दोनों नदियाँ डंकिनी-शंखिनी को उस समाय की शासन जिसके मुखियां दिग्विजय सिंह थे क्यों नहीं बचाया कही इसलिए तो नहीं की दोनों नदियाँ का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है और दिग्विजय ऐसा करते तो उन्होंने जो हिन्दू धर्म से तटस्थता की थी भंग हो जाती देश के सेकुलर नेता उनसे नाराज हो जाते सेकुलरों की सभा में उनकी फजीयत होती दिग्गी के खुद को सेकुलर साबित करने की कीमत ने दो एतिहासिक सांस्कृतिक और छत्तीसगढ़ के बैलाडीला से निकालने वाली गंगा रूपी नदियों को जहरीला किया है गरीबों से पानी तक छीन लिया उनको प्रदूषित जल पानी पीकर मरने के लिए छोड़ दिया कृषिभूमि नष्ट की आर्थिक बाजार ध्वस्त किया और ऐसे वहां की गरीबी शैन: शैन: दिग्विजय की शासन में दूर हुई क्या विकास मॉडल था 

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...