शनिवार, 30 मार्च 2019

# हाँ, मैं भी चौकीदार हूं

कार्यकर्त्ता हूं
समाज का पहरेदार हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं
सेना हूं,
सरहद का पहरेदार हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं 
शिक्षक हूं, 
ज्ञान का पहरेदार हूं 
हाँ, मैं चौकीदार हूं 
पिता हूं 
घर का पालनहार हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं 
माँ हूं 
बच्चों की मैं ढाल हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं
बहन हूं 
भाई को रक्षा सूत बाँधा  
मैं एक किरदार हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं
भाई हूं,
बहनों का शौर्य हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं
पुत्र हूं 
भविष्य का किरदार हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं 
पुत्री हूं
माँ-पिता का अभिमान हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं 
साधु हूं 
संस्कृति का मैं रक्षक हूं 
हाँ, मैं भी चौकीदार हूं 
भारतीय हूं 
भारत का मैं धन, बल, तप 
और सेवक हूं 
मैं भी चौकीदार हूं.

रविवार, 24 मार्च 2019

भारत में न्याय से अपमानित कोई शब्द नहीं

प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर होते रहते हैं. शिकायत और दरख्वास्त तो साहब, आम लोगों को परेशान करने के लिए करते है. लोगों के हौसलों को चकनाचूर करने के लिए करते है. प्रशासनिक और अदालती कामकाज इतना पेचीदा है कि न्याय मांगने

वाले लोगों के पास कुछ नहीं बचता है, जमीन और ज़मीर दोनों नीलाम हो जाते हैं.
जब जब समाज की सेवा करने वाले, समाज को दिशा-दशा दिखाने वाले, समाज के प्रति कर्तव्य निष्ठ लोग और प्रशासनिक तंत्र निष्पक्षता को भूलता है. और लोभ-लालच, जातीय- मजहबी और धार्मिक रूप से एक पक्षीय होता है. स्वाभाविक है कि समाज के सज्जन शक्ति के पास सिर्फ उग्रता का मार्ग बचता है. जिस प्रकार न्यायालयों में करोड़ों लोगों की सुनवाई दशकों से चल रही है. तारीख पे तारीख की प्रक्रिया से समाज के सब्र का बांध अब टूटने लगा है. सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर भी प्रशासनिक और अदालती कार्यवाही ने छलावा किया है. श्री राम जन्मभूमि उनमें से एक है. करीब तीन दशक से यह मामला न्यायालय में है. लेकिन इस पर कोई प्राथमिकता सुप्रीम कोर्ट की दिखाई नहीं देती है. लोगों के सब्र का बांध और धैर्य टूट ना जाए और हिंदू समाज सड़कों पर खड़ा होकर अपने बाहुबल के द्वारा भव्य मंदिर निर्माण करें. इससे पहले हे धर्मराज कुर्सी , तुम्हारे ऊपर बैठे तुच्छ मनुष्यों के ह्रदय में न्याय की अलख जगाओ. न्याय क्या है? न्यायाधीशों को समझाओ. 
एक तरफ देश में अल्पसंख्यक-अल्पसंख्यक का रोना रोकर सरकारी जमीनों पर कब्जा कर मस्जिदों और इसके चारदीवारी का निर्माण चल रहा है. वही प्रशासन की मिलीभगत से वहां के समाज को दबाकर सरकारी जमीनों को मुस्लिम समुदायों को तोफे में दिया जा रहे  है. प्रशासनिक अधिकारी मुस्लिम समुदायों के साथ मिलकर पैसे की लालच में आम लोगों को दबाकर धड़ल्ले से सरकारी जमीनों पर मस्जिदों और इसके चारदीवारी का निर्माण करवा रहे हैं और मिठाइयां खा रहे है. सरकार और देश की न्यायालयों से पूछना चाहता हूं कि पिछले 10 वर्षों में कितने सरकारी जमीनों को दरगाह, मस्जिद, कब्रिस्तान के नाम पर मुस्लिमों से बेचा गया है. वोट बैंक की राजनीति ने समाज में पर्याप्त विध्वंस फैलाये है. इसका जिम्मेदार कौन? अगर न्याय प्रक्रिया समाज का साथ नहीं देगी तो एक सामाजिक युद्ध की शुरुआत करनी होगी, तब न्यायालय की बात कोई नहीं मानेगा. इससे पहले हे न्यायधीश उठो जागो और अपने कर्तव्य का पालन करो.
हाल में ही बिहार मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड की घटना उजागर हुई है. जहां सरकारी जमीन को यहां के स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी ने पैसे लेकर मुस्लिम समुदाय को मस्जिद के चारदीवारी के लिए सौप दिया है. वहां के लोगों को डरा, धमकाकर और पुलिसकर्मियों की तैनाती कर मस्जिद के चारदीवारी का निर्माण कराया गया. लोगों का कहना है कि इसके लिए स्थानीय सीओ और एसडीओ को मोटी रकम मिली है. इस घटना में लिप्त थाना प्रभारी, सीईओ और एसडीओ घटनास्थल के घेराव कर,  स्थानीय लोगों को डरा धमका कर मस्जिद के चारदीवारी का निर्माण करवाया. जबकि यह निर्माण पूरी तरह अवैध है. इससे वहां तनाव के माहौल बने है. देखा जाये तो देश में  यह कोई आखरी और पहली घटना नहीं है. इस प्रकार के घटना देश में सैकड़ों नहीं, हजारों लाखों की तादात में है. कभी वोट बैंक के नाम पर तो कभी प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा घूस लेकर सरकारी जमीनों का इस्तेमाल मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तान और इसके चारदीवारी बनवाने के लिए किया गया है और अभी चल रहा है. संभवत: रोका नहीं गया तो आगे भी होते रहेगा. आखिरकार जिम्मेदार कौन? समाज की निष्क्रियता या सरकार की वोट बैंक की नीति या प्रशासन. जिम्मेदार जो भी हो अब वक्त आ गया इस प्रकार के मामलों पर शीघ्रता से करवाई करने की.

बुधवार, 20 मार्च 2019

नोट लेकर वोट देना चतुराई नहीं बड़ी मूर्खता है

जितेश कुमार 
भोपाल,
चुनाव के बाद नेता वादे से मुकर जाते हैं. ऐसे में लोगों को नोट लेकर वोट देने की आदत चतुराई लगती है किन्तु यह एक बड़ी मूर्खता है. भारतीय संविधान में दिए गए वोट के अधिकारों का यह दूरप्रयोग है. सशक्त लोकतंत्र का गला घोट देती है और अयोग्य निरंकुश शासक की पुनर्स्थापना करती है. जो लोग नोट के चक्कर में अपना वोट अयोग्य व्यक्ति को देते हैं. वे स्वयं अपना भविष्य, अपने परिवार और समाज के भविष्य को अंधकार में ढकेल देते है.
हमारी लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली में  एक कलंक "नोट दो, वोट लो" चिपक गया है. चुनाव आयोग के लाख चौकीदारी के बावजूद इस तरह की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में चुनाव एक राजनीतिक धंधा बन गया है जहां अनेक पार्टियों के प्रत्याशी जितना रुपए इन्वेस्ट करते हैं, वो  इसके

मुकाबले कई गुना अधिक चुनाव के जीतने के बाद जनता के लूटकर खाते है. एक प्रकार से व्यावसायिक रूप में भारत की चुनाव परिणत हो गई है. इस चुनावी अभियान में सामाजिक नेता मृत और धंधेबाज फर्जी नेताओं का बोलबाला बढ़ा है.  चुनाव की इस साम, दाम, दंड, भेद प्रक्रिया में. जनता को अपनी पार्टी के लाभकारी योजना और चुनावी घोषणा पत्र समझाने में असमर्थ प्रत्याशी पैसे के बल पर चुनाव जीतने पर जोर देते हैं. वही चुनाव में सफल दल भी किये गये वादे के ठीक विपरीत कार्य करते है. वोट की खरीद-फरोसी का मूल कारण अयोग्य और आर्थिक रूप से सशक्त प्रत्याशी जो नोट देकर वोट खरीदने में सक्षम होते हैं. और उक्त प्रत्याशियों के द्वारा नोट देकर वोट लेने की यह धंधा आंचलिक, ग्रामीण,अशिक्षित और आदिवासी क्षेत्रों में अधिक होती है. आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में भी नोट बांट कर वोट लेने की प्रक्रिया चुनाव के निष्पक्षता के लिए संकट है. नोट से वोट लेने की कवायद में विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी वैसे लोगों का चयन करते हैं. जो घोर जातिवादी और ढोंगी समाज सुधारक होते है. जिनका मुख्य पेशा स्वयं के समाज को भ्रमित कर, स्थानीय  झंडा को पकड़े रहना और स्थिति अनुसार दूसरे समाज या वर्ग से संघर्ष उत्पन्न कर समाज को अविकसित और अशिक्षित बनाये रखना है. ताकि इन लोगों का धंधा अबाध्य रूप से चलता रहे. ऐसे लोग राजनीतिक प्रत्याशियों के चमचे या दलाल कहे जाते हैं. निष्पक्ष और आदर्श चुनाव प्रणाली के लिए ऐसे लोगों को चुनाव आयोग चिन्हित करें. चुनाव के दौरान इनकी गतिविधियों पर नजर रखे. और पुख्ता सबूत मिलते ही इन्हें धर दबोचे. ऐसा सबक सिखाएं भविष्य में ये लोग इस प्रकार की कुकृत्य ना करें.
वही नोट लेकर बिकने वाले लोगों को भी सावधान करना और इनको जागरूक करने का प्रयास करते रहना चाहिए. नुक्कड़ नाट्य के माध्यम से और समाज के शिक्षित बुद्धिजीवियों के सहयोग के आदर्श चुनाव की पहल करनी होंगी. अगर चुनाव आयोग पहल नहीं करती तो मीडिया और जागरूक समझने वाले तबके आगे आये.

रविवार, 17 मार्च 2019

यह तो कांग्रेस का प्रोपागेंडा था

यह तो कांग्रेस का प्रोपागेंडा था. कुख्यात आतंकी जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित नहीं होने देने की. जानकारों का मानना है कि अगर मोदी सरकार ने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करवा देती तो जनता के मन में मोदी की छवि आतंक को लेकर और आक्रामक बनकर उभरती. इससे फायदा सीधे तौर पर लोकसभा 2019 में बीजेपी को होना था. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करवाने का श्रेय मोदी को होना था. इससे विपक्ष जो बार-बार मोदी की विदेश यात्रा पर तंज कस रहा था. यह आने वाले
लोकसभा में ठीक वैसा ही होता जैसे आसमान की ओर थूकने से थूक खुद के मुंह पर गिरता है. इन्हीं सब बातों का पूर्वाभास करने के बाद सत्ता और कुर्सीप्रेम की लालच में एक प्रोपगेंडा के तहत पहले सर्जिकल स्ट्राइक देश की सेना ने किया ही नहीं, सेना झूठ बोल रही है, सेना का राजनीतिक उपयोग किया जा रहा है के अलाप कांग्रेस के नेता जपते रहे और फिर आतंकी को 'अजहर जी' सरेआम मंच से राहुल गाँधी बोलते है. इस बात को चीन ने भी अपने अधिकार के प्रयोग करते हुये विश्वमंच के बोला है. देश में ही अजहर को लेकर दोनों पार्टियां यह तय नहीं कर पा रही है की मसूद अजहर मौलाना है या आतंकी तो हमें पुर्नविचार करना पडेगा. और एक बार फिर भारत अजहर को आतंकी
घोषित करने  से चूक गया. कूटनीति में हार गया. किन्तु देश में इसके बाद मोदी के विदेश यात्रा और नीति की आलोचना इसी प्रोपाडेंडा के अनुसार शुरू हो गई है. 
इससे कांग्रेस एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है. एक आतंकी मसूद अजहर को अजहर जी कह के सम्बोधित करके देश के कट्टर मुसलमानों को साधना और दूसरा आम लोगों में मोदी के विदेश नीति के विरुद्ध आवाजे बुलंद हो. इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक पर बेतुके सवालों के बौछार किये गये, ताकि विश्वमंच पर भारत अपने आतंरिक  विद्रोह के कारण दुनिया के सामने घिर जाये. चीन यही मौका के तलाश में था, भारत में कोई आवाज़ उठे. ऐसे में जानेमाने आतंकी मसूद अजहर को राहुल गाँधी अजहर जी बोलकर यह मौका पाकिस्तान-चीन को दे दिए. अब तो जनता ही तय करेंगी. इस प्रोपगेंडा में कांग्रेस की जीत होंगी या हार.

शनिवार, 16 मार्च 2019

मोदी 2.0 अपडेट


जितेश कुमार 
लोकसभा चुनाव की तिथि घोषित हो गई है. भाजपा सरकार भी 2014 के मोदी को अब अपडेट कर रोबोट 2.0 जैसा मोदी 2.0 बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. रजनीकांत और अक्षय कुमार की फ़िल्म
रोबोट 2.0 को जरूर देखे होंगे. इस रोबॉट के भीतर लगी एक रेड चिप 2.0 होती है. इसी चिप के जरिये रोबॉट को दिशा निर्देश दिए जाते थे. यानि दिशा और टारगेट का निर्देशन यह चिप करता था. जैसे हमारा दिमाग़ वैसे ही रेडचिप. जिस प्रवृति का है वैसा ही काम करेगा. चिट्टी रोबॉट का चिप मानवतावादी था, वह नफा-नुक्सान सोच सकता था और अपने टारगेट को भी इसके अनुरूप फेर बदल करने योग्य था. उससे मनुष्य को कोई हानि नहीं थी. किन्तु 2.0 रेडचिप वाला रोबॉट क्रूर था अपने टारगेट को हर संभव पूरा करने वाला था. चाहे किसी की जान जाये या बचे. हानि हो या लाभ,  हमेशा टारगेट को ही महत्व देने वाला था. 
अब समझना यह है कि मोदी 2.0  का टारगेट क्या क्या है? आने वाले लोकसभा 2019  के बाद मोदी सच में 2.0 वाले अपडेट मोदी होंगे तो चीन और पाकिस्तान की खैर नहीं. क्योंकि यह मोदी 2.0 टारगेट पूरा करेगा. नीति-कुनीति के चक्कर में नहीं रहने वाला होगा. कही इसी मोदी का टारगेट देश की ओर होगा तो यह मानकर चलना होगा कि जैसे  कि एक कांग्रेस के नेता ने भी आशंका जताई थी. इस बार मोदी आया तो आगे से चुनाव ही नहीं होंगे. यानि विपक्ष समाप्त हो जायेगा. यह डर नेता जी को सता रहा है.
सर्जिकल स्ट्राइक 2 के बाद देश की जनता को साधने का प्रयास उत्तम है. देखा जाये तो राष्ट्रीय मुद्दों और वैचारिक स्तर पर जनता का मन जितना अग्रसर होगा. कांग्रेस उतना ही नीचे गिरेगी और स्थानीय मुद्दों,  फुट डालो, दलगत राजनीति और जातिवाद मुद्दे जितने हावी होंगे भाजपा कमजोर होंगी. इसका मतलब यह नहीं कि सरकार ने कुछ नहीं किया है, किन्तु इसका तात्पर्य यह भी कदाचित नहीं की सरकार ने सब कुछ किया है. सभी वादे पूर्ण किये है. इतना जरुरी कहूंगा कि सरकार ने गरीबी और आम आदमी के लिए कुछ योजनाएं कल्याणकारी बनाई है- उज्जवला, पीएम मुद्रा, अटल पेंशन, आवास,  शौचालय निर्माण , बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ आदि. फिर भी इन क्षेत्रो में बहुत कुछ करना बाकि है. अभी भी इतने प्रयासों के बावजूद क्षेत्रफल की दृष्टि के करीब 50% भाग तक भी मोदी सरकार विकास की पेटारा लेकर नहीं पहुंची है. लेकिन मोदी कैबिनेट की रास्ता, उत्साह और नियत पर कोई शंका नहीं है. अब तो आने वाला लोकसभा का परिणाम ही बताएगा मोदी 2.0 या कोई और.

गुरुवार, 14 मार्च 2019

फ़िल्म लुका छुप्पी: एक पहल शादी से पहले लिविंग रिलेशनशीप

जितेश कुमार।
मनोरंजन की दुनिया में भारत ने भी एक लम्बी उड़ान भरी है. भारत बदल रहा है यह तो मालूम है. किन्तु इतने शीघ्रता के बढ़ना बॉलीवुड को मेरे समझ से ठीक नहीं है. सामाजिक रीती-रीवाज को भूलना नहीं चाहिए. क्युकि किसी देश की पहचान उसकी संस्कृति और परम्परा होती है. इसकी उन्नति और प्रगति की जवाबदारी हम सब की है. साथ ही इसमें उत्पन्न कुरीतियों का अंत भी हमें ही करना है. भारतीय फ़िल्म
पिछले कई दशकों से रीती-रीवाज और परम्परा के नाम पर चल रहे कुरीति को उजागर करके समाज को एक नई दिशा दिखाई है. किंतु यह भी बात सही है कि  बिगत कुछ सालों में भारतीय फ़िल्म अंग प्रदर्शन और हमारी संस्कृति चोट कर रही है. हमारी इतिहास के साथ खिलवाड़ कर रही है. ऐसे ही मनोदशा से बनी लुका छुप्पी फ़िल्म मनोरंजन के नाम पर वैवाहिक संबंध, बिना विवाह किये हुये ही निभाने पर जोड़ देती दिखाई दे रही है. इस फ़िल्म का उद्देश्य क्या है? आइये फ़िल्म के स्टोरी पर एक नजर डालते है- फ़िल्म में लड़की और लड़का न्यूज़ रिपोटर है. स्टोरी लिखने के लिए वो शहर-शहर और गांव-गावं धूमते है. उनका न्यूज़ स्टोरी शादी के पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना सही है या नहीं? इस बीच दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगते है. जब शादी की बात आती है तो लड़की का मन कुछ दिन लिविंग रिलेशनशीप में रहने का होता है. इसके बाद सब कुछ ठीक रहा और साथ रहना पसंद हो तो शादी बाद में कर लेंगे. ऐसा प्रस्ताव लड़की करती है. दोनों इसी प्लान के साथ ग्वालियर, मप्र पहुंचते है और शादीशुदा बनाने के ढोंग करते रहने लगते है. फिर फ़िल्म के अंत में शादी से पहले लिविंग रिलेशनशीप को सही ठहराने के प्रयास भी किये गये है. 
सरासरी इसप्रकार के फ़िल्म वैवाहिक रीती रीवाज और इसकी आस्था के विरुद्ध है. एक बार फिर फ़िल्म के माध्यम से हिन्दू संस्कृति का जबरदस्त उपहास  उड़ाया गया है. एक तो महिला उत्पीड़न और शोषण में हम शीर्ष देशों में सुमार है. वही अब वैवाहिक रिश्तों पर भी बॉलीवुड ने अपनी विकसित सोच के डोरे डालने लगी है. इसप्रकार की सोच वाली फ़िल्म नहीं दिखाये जाये. काश फ़िल्म भारत के किसान, ग्रामीण जीवन, राजनीति सक्रियता, लोकतंत्र में वोट पावर आदि सोशल और जन-जागरूकता पर आधारित हो. विज्ञान और व्यापार, आर्थिक सुधार के साथ लघु उद्योग और राष्ट्रवादी सोच को बढ़ावा देने के साथ ही एकता के सूत्र को पिरोता दिखता.

मंगलवार, 12 मार्च 2019

आतंकी अजहर को 'जी' देश के पीएम को चोर दोगली नीति है राहुल गाँधी जी

देश को दूसरे नंबर पर रख के हम नेशन फर्स्ट की बात करते है क्युकि हम राजनीति करते है. सर्जिकल स्ट्राइक 2 के बाद जिस प्रकार के बयानबनी हाल में चुनावी मंच और मीडिया साक्षात्कार से प्राप्त हुये है. यह देश की सरहद और  समाज की सुरक्षा के लिए चिंता कर विषय तो है ही. किन्तु देश के ही अंदर बैठे पाकिस्तानपंथी लोगों के भुरके से नकाब भी हट रहा है. देश के वीर बलिदानी सैनिकों का अपमान करता कई बयान हाल फिलहाल में अपनी राजनीति उल्लू सीधा करने के लिए कांग्रेस के कुछ नेताओं ने दिया है.
मणिशंकर अय्यर,  नवजीत सिंह सिद्धू, कपिल सिब्बल और अब पंडित राहुल गाँधी ने सेना के पराक्रम पर सवाल उठाये है. ग़ौरतलब हो कि पाकिस्तान के  बालाकोट और आस-पास के क्षेत्रों में एयर स्ट्राइक करने के बाद देश की सेना ने दो टूक शब्दों में कहा था ख़ुफ़िया विभाग के द्वारा मिली जानकरी के बाद हमने सटीक और सफल एयर स्ट्राइक किया गया था. जिसमे मसूद अजहर के आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया गया है. इस एयर स्ट्राइक में पाकिस्तान को भारी नुक्सान हुआ है. वही बीते दिन एक और भारतीय एजेंसी ने यह दवा किया. बालाकोट पर हमले  के समय वहां 280 के करीब मोबाईल फोन चालू थे. इसके बाद कुछ रह नहीं जाता कहने और बोलने को, अब देश की सेना इन राजनीतिक लफड़ों में ना पड़े. 
वैश्विक आतंकी मसूद अजहर को 'अजहर जी,  देश के 'प्रधानमंत्री को चौकीदार चोर है' और देश के रक्षा सलाहकार को तू-ताड़क करने वाले नेता पंडित राहुल गाँधी की समझदारी घुटने में जाकर बैठ गयी है या वो चुनावी नफा नुक्सान में इतना नमाज़लीन है कि देश के प्रधानमंत्री और रक्षा सलाहकार की बेइज्जती और आतंकी को आदरणीय पुकार रहे है.
इस तरह के बयान कांग्रेस अध्यक्ष  और नामित कांग्रेस के पीएम उम्मीदवार के मुंह से शोभा नहीं देती है. आतंक के समर्थन में राहुल गाँधी को बयानबाजी करना स्वयं उनके और कांग्रेस के आतंरिक स्वाथ्य के लिए हानिकारक है. तभी तो इस बयान के बाद से सोशल मीडिया पर जमकर लोग अपनी भावना और गुस्सा राहुल के प्रति व्यक्त कर रहे है. देश को बगैर सूझ-भुझ  की राजनीति संक्रमण काल में धकेलेने के लिए उतारू है. पंडित राहुल गाँधी इनको NCC की जानकारी नहीं, ऐसे लोग राजनीति शीर्ष पर पहुँच कर करेंगे क्या? अवरोध भारत के विकास को और कुछ नहीं. चैन के सोना है तो जनता जाग जाओ. नहीं तो किसी कारण आपकी निष्क्रियता आतंकी को भी आदरणीय बना देगा और तब केवल कश्मीर नहीं, देश में हर चौक चौराहे पर पुलवामा जैसी आतंकी  तांडव होगा, उस समय ना मोदी होगा ना सर्जिकल स्ट्राइक.  सावधान भारत!

सोमवार, 11 मार्च 2019

#सर्फ़एक्सेल # जिहाद #होली - जितेश कुमार

सोशल मीडिया पर आज #सर्फऐक्सल के विरुद्ध कई लोगों ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज करायी है. सोशल मीडिया पर लोग ऐक्सल कंपनी को धर्म विरोधी और हिंदू विरोधी बता रहे है. तो किसी ने आस्था के साथ खिलवाड़ का आरोप लगाया है.  
आपको बता दें कि #दाग अच्छे हैं  #हिन्दू विरोधी एक्सेल को टैग करके लोगों ने जमकर एक्सेल कंपनी पर अपना गुस्सा प्रदर्शित किया है. दाग अच्छे हैं 
टैगलाइन से कई विज्ञापन सर्फ ऐक्सल के  टेलीविजन पर प्रसारित होते रहते हैं. जो कई लोगों को अच्छे भी लगते हैं. इसके कुछ विज्ञापन तो सदाचारी भी मालूम पड़ते थे. इसमें माता-पिता, दादा-दादी और दोस्तों की  मदद करते हुए दिखाया गया था. बच्चे इससे प्रभावित भी होते थे. लेकिन हाल में टेलीविजन पर दिखाई जाने वाले सर्फ ऐक्सल के इस विज्ञापन पर कई लोगों ने अपनी आपत्ति जताई है. फेसबुक, टि्वटर और व्हाट्सएप पर इसके विरूद्ध आंधी चल रही है. विज्ञापन में होली के त्यौहार को केंद्रबिंदु बनाकर दिखाए गये है. होली भारत में सर्वाधिक हर्ष और उल्लास के साथ मनाये जाने वाला त्यौहार है. बसंत का त्यौहार है, रंग और उमंग का त्यौहार है. ऐसे में होली की पवित्रता को देखते हुए लोगों ने इस विज्ञापन का कड़ा विरोध किया है. 
विज्ञापन के अनुसार:-
एक हिंदू बच्ची होली के दिन साईकिल लेकर गली में निकलती हैं. जहाँ छतों पर बच्चे बाल्टियों में रँगों से भरकर बलून रखें हुए है. बच्ची पूछती हैं, रँग फेंकना हैं तो फेंको. सभी बच्चे उस पर कलर बलून फेंकने लगते हैं. बच्ची गली में साईकिल घुमा घुमाकर रंगों से सरोबार हो जाती हैं. जब बच्ची पर रँग पड़ना बन्द हो जाते है. वो साइकिल रोककर छत पर खड़े बच्चों से पूछती हैं. हो गये रँग खत्म या औऱ हैं?
बच्चों के मना करते ही एक घर से सफ़ेद कुर्ता पजामा पहने मुस्लिम बच्चा बाहर निकलता हैं. जिसे हिन्दू बच्ची अपने साईकिल के पीछे बैठाकर मस्जिद छोड़ने जाती हैं. बच्चा कहता हैं "नमाज पढ़कर आता हूँ।" और उसी दौरान विज्ञापन में शबाना आजमी की आवाज सुनाई देती हैं.अपनो की मदद करने मे #दाग लगे तो "दाग" अच्छे हैं. यहाँ विज्ञापन में एक साथ कई निशाने साधे हैं. पहला होली के पवित्र रँगों को "दाग" कहने की चेष्टा की गई. वह भी अन्य मज़हब के लिये. बच्ची द्वारा होली के रंगों में सरोबार होना. सर्फ विज्ञापन में "दाग" नजर आते है. एक प्रकार से नमाज की पवित्रता औऱ आवश्यकता होली के त्यौहार से अधिक महत्वपूर्ण बताने की इसमें चतुराई पूर्वक कुत्सित प्रयास किया गया हैं.
वही भड़के लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया पर भी जम कर बरस रहे है. कुछ लोगों ने तो यहाँ तक लिखा है कि सिर्फ हिंदुओं ने ही अपने आपको इतना सस्ता कर लिया है कि मिलार्ड, केजरी, ममता, बुद्धिजीवी, मीडिया, जेहादी, टुकड़े टुकड़े गैंग, वामपंथी,सेक्युलर कीड़े या जिसका भी दिल करे वही करता है, छेड़छाड़ इनकी परम्पराओं और धार्मिक मान्यताओं से. ये कुछ नहीं करेंगे. मरी हुई कौम है.
साथ ही कई लोगों ने निवेदक भी किया है. सर्फ एक्सेल का बहिष्कार कीजिए. अपनी बहुसंख्यक आर्थिक ताकत से इसे झुकाइये. ताकि सर्फ एक्सेल ये विज्ञापन वापिस ले औऱ भविष्य में दोबारा ऐसा दुःसाहस न करे.
और खूब होली खेलिए खुशियों के रंग अपने त्योहारों के संग!
#BuycutSurfExcel #SufExcel #Holi 
#Jihad #Propeganda #SurfAd 
#SurfExcelAd #BoyCottSufexcel

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

आतंकवादियों की बेग़म ये पत्रकार

एक मुहल्ले में कई बरस से सलीम मियां और उनकी बेगम रहती थी. सलीम मियां क्रूर और झगड़ालू थे और अक्सर उनका किसी न किसी से झगड़ा हो जाया करता था। सलीम मियां के मुक़ाबले उनकी बेगम बहुत समझदार थीं। वो हमेशा सलीम को समझाती
रहती थीं और मोहल्ले वालों को भी। उनके नशेड़ी होने की दुहाई देतीं और बतातीं कि किस तरह मियां अपने ही रिश्तेदारों के हाथों ज़मीन-जायदाद का मुक़दमा हार कर नशे की लत लगा बैठे हैं, अतः उन पर तरस किया जाए। जब कभी मियां किसी से मारपीट करते थे. उनकी बेगम दौड़ कर झगड़ा रुकवातीं और सलीम मियां को समझा-बुझा कर घर ले जातीं। अगले दिन मियां फ़िर किसी को मार बैठते। धीरे-धीरे मोहल्ले वालों को एक बात साफ़ हुई कि मियां जब भी किसी से मारपीट करते हैं तो उनकी बेगम बीचबचाव के दौरान हमेशा सामने वाले को पकड़ लेती थीं, उससे लिपट जाया करतीं और समझाने लगतीं। यही इसका फायदा उठा कर सलीम मियां सामने वाले को दो घूंसे और जड़ देते थे. साथ ही मार कर मौके से गायब भी हो जाया करते थे। फ़िर शुरू होता बेगम का रोना-पीटना-समझाने का दौर। अब लोंगो को भी लगने लगा हमेशा सलीम मियां की बेगम दूसरे को पिटवा देती है और जब मियां को कोई हाथ लगता तो बीचबचाओ में कूद पड़ती है. फ़िर क्या था? लोंगो में भी तय कर किया था मियां को अबकी बार सबक सीखा कर रहेंगे. अगले दिन फिर झगड़ा हुआ. और हर बार की तरह मियां की बेगम झगडे के दौरान सामने वाले को समझाने-लिपटने-चिपटने का प्रयास करने लगी. अबकी बार लोंगो ने बेगम को ही ठीक से कूट दिया। अगली बार मियां दूबारा लड़े तो बेगम प्रकट नहीं हुईं। और इस बार मियां भी अच्छे से कूटे गए। उस दिन के बाद मोहल्ले में शांति हो गयी। मियां कितना भी नशे में होते, किसी से उलझते नहीं थे। वर्तमान में कुछ लिबरल देशद्रोही , मीडियाकर्मी और राजनेता उसी बेगम का क़िरदार निभा रहे हैं। आतंक की किसी घटना के होते ही ये पहले तो आतंकवादी की मज़बूरियां और हालात बताने लगते हैं, उसके आतंकवादी बनने में सरकार और समाज का कितना दोष है, समझाने लगते हैं, और फ़िर अपने वाक्जाल से मुल्क को ऐसा बांधते हैं की लोगों को आतंक की जड़ में खुद अपनी गलती समझ में आने लगती है। उधर आतंकवादी अपना अगला निशाना तय कर रहे होते हैं। 
अब बेगम को पीटे बगैर मियां सुधरने वाले नहीं!

गुरुवार, 7 मार्च 2019

बाल विवाह के विरुद्ध एक पहल - स्पंदन

आज शाम 4:30 से स्पंदन, एनएच-12 क्रियेटिव वूमेंस क्लब, बीएमएमएलएफ, वूमेन प्रेस क्लब और नाजिया वेलफेयर के तत्वधान में महिला दिवस कि पूर्व संध्या पर 'बाल विवाह के विरुद्ध एक पहल' संगोष्ठी का आयोजन किया गया था. इसमें कई विषय विशषज्ञों ने भाग लिया और कड़े स्वर में बाल विवाह के विरुद्ध अपनी बात रखी. इसी कड़ी में अपने विचार को साझा करते हुए डॉ. अंशुल उपाध्याय जम्मू-कश्मीर से शैन्य विज्ञान की शोधार्थी ने कहा कि ग्रामीण या पहाड़ी क्षेत्र की महिलाएं समय से जुड़ी नहीं होती है. उनका जीवन झुग्गी-झोपड़ियों से बाहर निकल ही नहीं पता है. ऐसे में
सरकार और सामाजिक संस्था को उक्त क्षेत्रों मे कार्य की अधिक जरुरत है. आर्य श्रद्धा (बाल आयोग,मप्र) ने सरकार द्वारा बाल विवाह के विरुद्ध चलाये जाने वाले मुहीम की बात कही और बताया बाल विवाह की दर में लगातार कमी आ रही है. सरकारी और गैर सरकारी संस्था की मदद से इसे जल्द जड़ से ख़त्म करना होगा. वरिष्ठ लेखक घनश्याम सक्सेना ने कहा आज भी प्रबुद्ध समाज और शिक्षित महिलाएं अपने घरों में सशक्त नहीं है, उनका भी स्वर घरों में दबाया जाता है. अगर माँ खुद निर्णय कर ले कि मेरी शांतन अभी शिक्षा ग्रहण करेंगी है तो घर में कितने भी रूढ़िवादी लोग है वो विवाह नहीं करवा सकेंगे. ऐसा प्रयास उन महिलाओं की तरफ से होनी चाहिए लेकिन उनकी
उदासीनता के कारण मुख्य रूप से जिम्मेदार वो भी है. यही टीवी रिपोर्टर श्रुति कुशवाहा ने कहा स्त्री को लेकर सामाजिक धरना को बदलना होगा. बेटी बोझ नहीं होती है. दहेज़ जैसी कुप्रथा ने बाल विवाह को बल दिया है. डॉ. कनिका शर्मा (राज्य स्वास्थ्य आयोग) ने कम उम्र में शादी के कारण होने वाले परेशानियों की  बात कही. उन्होंने आकड़ो के हवाले से बताया कि कुपोषण जैसी गंभीर समस्या का मूल बाल  विवाह ही है. कम उम्र में विवाह  के कारण नवजात शिशु भी अस्वस्थ पैदा लेते है. सुश्री सुमन त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार
ने ऐसे कार्यक्रम को ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रो में करने पर जोड़  दिया. उन्होंने कहा सरकार कि योजना की तरह यह प्रयास केवल  टेबल कुर्सी तक ना सिमट कर रहे इसके की जरुरी है. सामाजिक लोग धरातल तक जाये और वहां लोगों को जागरूक करें. स्पंदन संस्था में सक्रिय रहे पेशे से वकील जी.के. छिब्बर ने कहा क़ानून से नहीं सामाजिक जागरूकता से बाल विवाह ख़त्म होगा. ब्रम्हा कुमारी ईश्वरीय विवि से सुश्री बहन बी.के. द्वारिका ने कहा पुराणों में बाल विवाह का कोई उल्लेख नहीं है. विदेशी आक्रांताओं के कारण बाल विवाह शुरू हुआ. कन्याओं को बचाने हेतु कालांतर में, ताकि कोई विदेशी उसकी अस्मत ना लुटे उसका अपहरण ना करें. इसी कारण इसकी शुरुआत हुई. अब इसे नैतिक मूल्यों का ज्ञान और शिक्षा के दूर करने की पहल होनी जरुरी है. डॉ. लक्ष्मी नारायण पाण्डेय ने कहा यह
 सामाजिक विषय है क़ानून के साथ समाज का प्रबोधन जरुरी है. डॉ. आर.एच. लता ने कहा बाल विवाह को रोकने के  लिए अब सख्ती से क़ानून का पालन जरुरी है. चिन्मथी भटनागर परिवार अपनी जिम्मेदारी समझे और उसे निभाएं. इस कार्यक्रम में राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता भी मौजूद रहे भाजपा से नेहा बग्घा ने  कहा केंद्र की भाजपा की सरकार बाल विवाह के विरुद्ध पूरी तरह कमर कसी हुई है. विगत कुछ सालों में बाल विवाह में कमी आयी है. मोदी जी कि बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ योजना इसी प्रयास को फलीभूत कर रही है. इसमें और शीघ्रता की जरुरत है. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सुश्री संगीता शर्मा ने कहा कि मप्र सरकार बाल विवाह के विरुद्ध सख्त क़ानून बनाएंगी ऐसी मैं हमारी सरकार  से दरख्वास्त करुँगी. कुछ इसी प्रकार के कार्यक्रम में उपस्थित हुए अन्य लोगों के विचार रहे थे. आज के  इस संगोष्ठी में अनेक मीडिया के मित्र और सामाजिक बुद्धिजीवी भी मौजूद रहे. सुश्री  बीणा श्रीवास्तव, डॉ. अनिल सौमित्र (स्पंदन संस्था), रितु शर्मा, डॉ. प्रतिभा चतुर्वेदी, उमाशंकर पटेल, गीत धीर, अभिताश कुमार जायसवाल, हरीश बरैठीया, ऋषि सिंह बघेल, डॉ. ऋतु यादव, बी.के. किरण बहन, सिद्धांत यादव, जितेश कुमार अन्य रहे.


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