शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

किताबी शिक्षा के साथ युद्घकला भी सीखे लड़कियाँ -हिन्दू भूमी!

शिक्षा के विषय की बढ़ती उत्तकृष्ठता के साथ सशक्तिकरण की चिंता भी सताने लगी है| आज हम किसी से कम नहीं! सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के विभिन्न राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दो पर देश की बेटियों ने लोहा मनवाया| लेकिन आज भी हमें सामाजिक दृष्टि
से स्त्री होने के कारण कमजोर समझा जाता हैं| जब लड़कियाँ घर से बाहर निकलती है तो एक भय की लकीर माँ- पिता के चेहरे पर दिखाई देती है| आखिर क्यु! आज भी सामाजिक स्थिति बदल नहीं पायी या इसके अकस्मात् यूरोपीय बदलाव का साइड इफेक्ट है| भारतीय इतिहास की बात करे तो हड़प्पा संस्कृति, वैदिक काल, शून्य काल हमारी चोरों वेद-पुरान, उपनिषद गद्य-पद्म सभी में लड़कियों को शक्ति, विद्या और धन का प्रतीक माना जाता है| स्त्रीयों को सबसे उच्च दर्जा हमारे पुर्वजों ने दिया था| लेकिन आज समाज में लड़कियों के प्रति वो सम्मान नहीं दिखता है| जिस तरह से देश भर में अमानवीय घटनाओं की दिन प्रतिदिन खबरे आ रही हैं| जो एक बार फिर समाज को सबसे हाशिए पर खड़ा कर दिया है| इन सभी अवरोधो को मात देकर लड़कियाँ आज चाँद तक पहुँच गई| पढ़ाई में किसी से कम नहीं| इसके बावजूद भी बिना प्रतिभा को देखे! पड़खे समाज सिर्फ लड़की है, पढ़ लिख कर क्या करेगी? क्या ऐसे लोगों की मानसिकता कभी नहीं बदलेगी? क्या स्वर्णिम भारत के इतिहास से स्त्रियों के योगदान को इन्हों भुला दिया? आखिर क्यु हमारे प्रति ऐसा विचार है? इसका कारण सिर्फ समाज में बढ़ रहे घटनाएं है या हमारे आत्मनिर्भर नहीं होने का तोफा! अगर शिक्षा के साथ-साथ हमने दुर्गावती, लक्ष्मीबाई,सावित्रीबाई फूले, रानी चेनम्मा, कनकलता बरूआ जैसे महान वीरांगना का इतिहास पढ़ा होता, उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयत्न किया होता| अगर अपने शक्तियों से हम अनभिज्ञ नहीं होते, शक्ति और सामर्थ्य भी किताबी शिक्षा के साथ अर्जित की होती तो क्या समाज ऐसे बेतुके प्रश्न हमारे बारे में करता? कभी नहीं! स्त्रीयों को कमजोर और बेबस समझने वाले लोग शायद होते ही नहीं और नहीं होता सड़को पर छेड़छाड़  की धटना! कब तब आखिर हम सरकार, शासन, प्रशासन और समाज के शिक्षित वर्गो पर निर्भर रहेंगे| जब तक हम सशक्त नहीं होंगे समाज हमारी सम्भावनाओं को कुचलता रहेगा और माँ- पापा के चेहरे पर भय शाश्वत ही बनी रहेगी| हमें लिंगभेद को नग्नय करना है तो स्वयं आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना होगा| चाहे वो युद्घ का ही मैंदान ही क्यु ना हो| पढ़ाई के साथ ही हमें बचाव और आत्मरक्षा के सभी उपायों को जानना, सिखना और समझना चाहिए, ताकि विपत्ती के समय Help me some body का आलप नहीं you fight with me की चेतावनी निकले| सामाजिक स्थिति को जल्द ही भाप लेना समझदारी होगी| हमें किताबी शिक्षा के साथ ही आधुनिक युद्धशास्त्र और युद्घकला की शिक्षा भी लेनी होगी| इसके लिए स्कूलों में किताबी शिक्षा के साथ ही युद्घ कला को विषय भी अनिवार्य करनी होगी| स्वयं हमें आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ानी होगी| किताबी शिक्षा के साथ हमें आत्मनिर्भर होना आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य है! 

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

समाधान या साफ के कगार पर फेसबुक! - जितेश सिंह

फेसबुक पर बढ़ाते फेक आई.डी. को लेकर कई देशों ने चिंता प्रकट की है|

जितेश कुमार
अ.बि.वा.हि.वि.वि.,भोपाल 

देश भर से लाखों लोगों ने इससे दूरियां बनाना शुरू भी कर दिया है| पिछले कुछ महीनों में इसके यूजर में एकदम से भारी गिरावट आयी है| यह संकेत है,कि आगे भी फेसबुक पर यूजर की संख्या में गिरावट आएगी| इसका एक बड़ा कारण लोगों की व्यक्तिगत जानकारी के साथ खिलवाड़ और फेसबुक पर बढ़ाते फेक यूजर की वह बड़ी संख्या है, जो राष्ट्रिय और सामाजिक मूल्यों को तार-तार कर रही| जिसने फेसबुक के सहारे जातीय-मजहबी द्वंद्ध और विरोधी ताकतों को बढ़ावा दिया है| इसके साथ ही हैकिंग जैसी समस्या भी लोगों के होश उडाए हुए है| अब देखाना ये है, कि क्या फेसबुक के
  आदि हो चूका एक बड़ा वर्ग किस तरह इन चुनौतियों का सामना करता है? फेसबुक कंपनी क्या बदलाव करती है? क्या सुरक्षा को महत्व दिया जायेगा? लोगों की व्यक्तिगत जानकारी को कितना सुरक्षा यह कंपनी दे पायेगी? शिक्षित वर्ग जो बड़े संख्या में फेसबुक के यूजर है, उनके चिंता का समाधान किस कहाँ तक फेसबुक कर पाती है? या फेसबुक जैसा लोकप्रिय विकल्प भी मार्केट आ सकते है? यह एक भविष्यवाणी ही होगी, पर नये विकल्प की तलाश की चर्चा आतंरिक रूप से चल जरूर रही है| तभी तो मामला एक दम से इतना तूल पकडे हुए है|  अगर ऐसा ही कोई एप्प मार्केट में आने के साथ लोगों व्यक्तिगत जानकारी और फेक यूजर के विरोध सक्रियता दिखाने का दावा करती है, तो फेसबुक की छुट्टी समझा जाये| इधर फेसबुक भी अपने एक्सपर्ट से मिलाकर फेक आई.डी. पर नकेल कैसे कसने के की सोच में है, और इस ओर प्रयास लगातार कर रही है| परन्तु जब तक समस्या का समाधान नहीं होता है, स्वमं फेसबुक पर लोगों को सावधानी बरतनी होगी| भड़काऊ और गलत अफवाह से बचे| बिना जानकारी के किसी सूचना को शेयर नहीं करे| सतर्कता और जायज भाषा का प्रयोग करे| वैसी बाते आजादी के नाम पर नहीं करे, जिससे वर्ग संधर्ष जैसी तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो| भावना में बहक कर द्वंद्ध जैसी स्थिति निर्मित ना करे| असभ्यता और कुतर्क, भड़काऊ, अपमानित आलेख, जातीय-मजहबी संधर्ष, नेताओं का चरित्र-चित्रण, अफवाह, अभाषित और अमर्यादित पोस्ट ना लिखे और नहीं ऐसे पोस्ट को शेयर करे| इस तरह के खबरों से परहेज करके पुन: फेसबुक को सार्थक बनाया जा सकता है| एक सामाजिक क्रांति लेन वाला यह डिजिटल एप्प आज असुरक्षा, फेक यूजर और विवादित पोस्ट लिखने वाले और शेयर करने वाले लोगों के कारण दुर्गति के कगार पर है| यह डिजिटल मीडिया के लिए अच्छा संकेत नहीं है! ऐसे फेक यूजर को चिन्हित कर ब्लॉक करना जरूरी नहीं बल्कि अपरिहार्य है|   

शनिवार, 21 अप्रैल 2018

बेकार और फेक मीडिया जिसे हम सोशल मीडिया कहते! - जितेश सिंह

नववादी विचार और तकनीकी सामाजिक परम्परा ही नही बल्कि समाज नाम की संस्था को ही नष्ट कर देगी| आजकल आपसी तनाव बढ़ाते जा रहे है| हर व्यक्ति आपने आप को सामाजिककरण के चंगुल से निकलना चाहता हैं| रिश्ते-नाते, भाईचारा से उब चूका है| यह तनावपूर्ण स्थिति भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं| जिस मोबाइल के अधीन हम दिन-प्रतिदिन होते जा रहे हैं| यह तो यही सन्देश दे रहा हैं| सामाजिक रीती-रिवाज,

जितेश कुमार
अ.बि.वा.हि.वि.वि., भोपाल
 

आपसी संबंध, दोस्ती भाईचारे, से कही बढ़कर हमारा एक हमसफ़र है, मेरा पर्सनल मोबाईल! जिससे हम दिन-रात चपके रहते है| मोबाइल से ही सारे दुःख-दर्द और खुशियाँ शेयर करने वाला युवा आपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं से बेफिक्र है| मोबाइल का घंटों प्रयोग करना तो हानिकारक है, इससे कई खतरनाक बीमारियाँ जन्म ले सकती है| मानशिक कमजोरी से लेकर लाखो बीमारियों का वाहक हो सकते है| हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, आदि रोग का भी वाहक है, हमारा हमसफ़र! साथ ही इसके प्रयोग से सोचने की क्षमता, बुद्धि-विवेक में गिरावट आ रही है| हमारा स्मरण शक्ति दिन-प्रतिदिन कमजोर होते जा रहा है| आज इस तकनिकी दौर में प्रत्येक मानव आपहिज बनता जा रहा है| आत्मनिर्भरता से तकनीक के अधीन हो चूका समाज क्या नवचेतना और नव-इतिहास रच पायेगा? आपनी विवेक और सामर्थ्य को स्वमं आज का समाज एक विध्वंश की ओर खपा रहा है| इसका कई बार हमें प्रमाण भी मिला है| सोशल मीडिया जिसे माना जाता है|  इसमे कुछ सोशल नाम की थीम ही नहीं! यह एक बकवास, फर्जी, अनसोशल मीडिया है| जिसका उपयोग समाज को नष्ट करने के लिए किया जा रहा है| आज स्थिति कैसी है? आपका साथी वर्षो बाद भी मिले तो भी कोई ख़ुशी और वो माहौल नहीं बनता है जैसा पहले किसी आने से ख़ुशीयों की लहर दौर जाती थी| अब वो गाँव और शहर के चौपाल ख़त्म हो गए| बच्चो ने मित्र बनाना छोड़ दिया| क्या ऐसे ही भविष्य के मानव निर्मित होंगे, जिसे किसी से कोई मतलब नहीं? आज जिसे हम शिक्षित वर्ग की संज्ञा देते है| उनकी स्थिति क्या?  सबसे ज्यादा सोशल मीडिया और शिक्षा के नाम पर एक विध्वंश तकनीक को ऐसे ही वर्गों ने बढ़ावा दिया है| आपने बच्चों को इतना आजादी इसी उम्र में दे देते हैं| जब उन्हें ठीक से बाते करने तक नहीं आती| पापा को पु और माँ को मु कहने वाले बच्चे अपने  माँ-पिता के साथ वह मामतत्व और आज्ञापालन, भावनात्मक संपर्क ही बना पाते है| माँ-पिता भी इतना व्यस्थ अपने कार्य में रहते है उचित समय पर उचित निर्णय हीं ले पाते है| बच्चों से बाते करने, उनके कार्यों की समीक्षा करने का भी समय नहीं रहता हैं| ऐसे में एक नशायुक्त पदार्थ की तरह मोबाइल थमा देते है| जिससे उस वक्त तो बच्चों को ख़ुशी मिलाती हैं पर क्या वो मोबाइल पर आ रहे गलत और अनुपयोगी फीचर से खुद को उभर पाते है?  अगर आज का समाज ये समझाता है, सोशल माध्यम के कारण एक-दूसर के हमेशा पास रहते हैं तो उसकी सबसे  मुर्खता है| जहाँ भानात्मक संपर्क नहीं हो सकते| शारीर की सभी ज्ञान्द्रियाँ स्पर्श नहीं हो सकती वहाँ कभी कोई संबंध ही नहीं बन सकता है| आज इसी भूल ने वृद्ध आश्रम और प्लायिंग स्कूल का निर्माण किया हैं| सीधी सी बात है, सोशल मीडिया भी ऐसे ही अनसोशल  भूल की सबसे बड़ी एक खोज है| जिसका उपयोग आज जातीय-मजहबी, दंगे, आलागवाद, समाज के विध्वंश के लिए किया जा रहा है|            

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

मीडिया का भारतीयकरण होना आज की युगीन आवश्यकता है| - जितेश सिंह

पिछले कुछ दशकों से खबरों का बाजारवाद करना मीडिया संस्थानों की रीत बन गई हैं| समाज की आधुनिकीकरण का मुद्दा हो या संस्कृतिक-परम्परा की सुरक्षा की| मीडिया अपने पक्षपाती न्यूज़ के कारण केवल द्वंद और भ्रम ही उत्पन्न की है| समाधान की ओर मीडिया का ध्यान ही आकर्षित नहीं हुआ या इस मामले से मीडिया पल्ले झाड रही हैं| वैसे भी समाधान की फिक्र करना बाजारवाद के पेशों के खिलाफ हैं| मीडिया आजकल ऐसे ही बाजारवादियों के चंगुल में फसी पड़ी हैं| जहां सिर्फ खबरों के मूल्य तय होने के बाद ही प्रकाशन संभव है| रोजमर्रा की खबरों में डिजिटल मीडिया से लेकर प्रिंट अखबार, मग्जीन, सोशल मीडिया सभी में ऐसे ही

जितेश सिंह (अ.बि.वा.हि.वि.वि.,भोपाल )

बजारवादियों का दबदबा हैं| जहाँ से मानकीकरण बिलकुल गायब है| आफवाहों को तुल देकर नए खाबरों के सृजन करने में मीडिया को आज महारथ हासिल है| ऐसे ही अफावोहों के कारण आज भारतीय समाज में आपसी द्वन्द जैसी स्थिति निर्मित हुई है| देश के राजनीति पार्टियों को जिम्मेदार ठहराने वाली मीडियाकर्मी भी स्व 'फूट डालो और राज करो' की विदेशी मंशा को बढ़ावा दे रही है| खबरों की गुणवक्ता और समाजहित, राष्ट्रीयहित, शिक्षा और शांति के स्थान पर जातीय मजहबी- संधर्ष को बढ़ावा दिया जा रहा है| जिससे समाज में आपसी भाईचारे और अंत:सम्बन्ध को खतरा है| खबरों का तारका, लाल मिर्ची ना जाने कैसे-कैसे शीर्षकों का प्रयोग किया जाता है| जो भय और मानशिकि तनाव के साथ-साथ आपसी संधर्ष को भी उत्पन्न कर रही| किसी अमानववीय खबरों को जाति-मजहब का चोला पहनाया ही नहीं जाता, बल्कि इस तरह से खबरों की बनावट की जाती है| एक वर्ग- दुसरे के खिलाफ खड़ा हो जाता है| राजनीतिक पार्टियों के एजेंडा से मीडिया को शुद्धिकरण और भारतीय कारण की अग्रसर होना समय की मांग है| आखिर कब तक मतभेद और आपसी द्वन्द से मीडिया घराने आक्षुते रह सकते है? एक ही खबर को किसी मीडिया सोसायटी वामपंथी तो कोई दक्षिणपंथ विचार से ग्रषित होकर लिखता रहा है, तो कोई उसकी चुंगली करता है तो कोई इसकी, कोई सरकार के खिलाफ रिपोर्टिंग करता है तो कोई पक्ष में सरकार और सत्ताधारी पार्टी का प्रवक्ता नजर आता है| ऐसे में बेसहारा जनार्धन की परेशानी, सामाजिक समता, सुरक्षा, शिक्षा जैसे मुद्दे गायब रहते है| उसके बावजूद जब राजनीती कारणों से ओत-पोत मीडिया अपनी कलमों को नोटों के स्याही में डुबाकर किसी खबर को लिखता है, तो सच मानों मेरे भी मन में जातिगत भाव और विनाशक विचार का सृजन होता है| कई बार भी ऐसी खबरों को पढ़कर जातिवादी विचारो से ग्रसित खुद को पाया हुआ| ऐसे विनाशकारी दलदल में समाज को डालने का शत प्रतिशत कारक मीडिया ही है| मीडिया को ऐसे मजहबी संधर्ष के बजाए, समाज में समरसता के भाव का प्रचार करना चाहिए| लोकभावना, देशहित और सामाजिक सुरक्षा जैसे उपायों का नवनिर्माण करना चाहिए|

नवनिर्माण का ही पर्याय मीडिया का सामाजिककरण, राष्ट्रीयकरण और भारतीयकरण है-   

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

किसानों की बदहाली पर, तुम राजनीति करना छोड़ दो|

                         दीपक द्विवेदी

                      
राजनीति के गलियारों में,
किसानों की लाश पडी़!    

अन्नदाता पर गोली दागी,
इनको है शासन की पड़ी|
चाहे कर लो विकास की, 
तुम कितनी ही बड़ी-बड़ी| 
पर किसान की बदहाली पर,
मेरी कलम रो पड़ी।।

शास्त्री जी के नारे को,
राजनीति में झूठला बैठे|
जय जवान! जय किसान!
नारे को मिठुला बैठे।
जवानों से किसानों पर,
तुम गोली चलवा बैठे,
जो नहीं मरे गोली से,
उनको फाँसी पर लटका बैठे।।

किसी किसान की विधवा रोयी, 
किसी किसान की माता!
किसानों की बदहाली पर,
आज फिर से भारत माता रोयी।
फसल नष्ट हो जाने पर,
उसने अपनी तकदीर खोयी|
अत्म स्वाभिमान तु ना बचा सका, 
तो फाँसी भी गले लगा लिया|

बार बार किसानों पर,
तुम लक्ष्य साधना बंद करो,
किसानों और जवानों पर,
राजनीति करना बंद करो,
गर तुमसे कुछ नहीं होता,
तो तुम न यह परपंच रचो,
वादे निभा ना सको,
तो झूठ बोलना बंद करो|

किसी किसान के घर में,
बैठी जवान बेटी है|
जब किसान की अर्थी,
सूने आंगन में लेटी है|
कौन करेगा कन्या दान?
यह सोच रही बेटी है!
और अर्थी को कंधा देने,
घर पे खड़ी जनता  है|
अर्थी को इंसाफ चाहिए! 
यूं ढ़ोग करना छोड़ दो|
नहीं तो, किसानों की बदहाली पर,
तुम राजनीति करना छोड़ दो|

          

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

कर्म की कहानी! - बालगोविन्द जी

एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों? -एक प्रेरक कथा एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि- “ मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना , किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ? इसका क्या कारण है ?
बालगोविन्द  जी 
राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं ?
सब सोच में पड़ गये कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले - महाराज की जय हो ! आपके प्रश्न का उत्तर यहां भला कौन दे सकता है ? आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।
राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं , सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है ,मैं भूख से पीड़ित हूँ ।तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं ।”
राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे ।
राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है , आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है ”
सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, उत्सुकता प्रबल थी। कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ ,वहाँ भी जाकर देखता हूँ ,क्या होता है ।
राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और *शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।
राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुन लो –
तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले के चारों भाई व राजकुमार थे । एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली ।जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेंकी और 
अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये । अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –
“बेटा ,मैं दस दिन से भूखा हूँ ,अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो , मुझ पर दया करो , जिससे मेरा भी जीवन बच जाय  ,  इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी ।”
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ? चलो भागो यहां से ….।
वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि “बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा ? ”
भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये , मुझसे भी बाटी मांगी… तथा दया करने को कहा किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि ” चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ?”।
बालक बोला “अंतिम आशा लिये वो महात्मा , हे राजन !आपके पास भी आये,दया की याचना की, सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी ।
बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले “तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा । ”
बालक ने कहा “इस प्रकार हे राजन ! उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं ,धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं,किन्तु सबके फल रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद में भिन्न होते हैं।”
इतना कहकर वह बालक मर गया । राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के हॆ-ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र । एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्मते हैं किन्तु सब अपना किया, दिया, लिया ही पाते हैं । जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही योग बनेंगे । जैसा योग होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा!

रविवार, 8 अप्रैल 2018

मीडिया के दोहरे चरित्र! जितेश सिंह

भाजपा की लोकाप्रियता अपने चरम सीमा पर है| प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष श्री अमित साह के आगुवाई में भाजपा एक के बाद एक राज्य में सफलता हासिल करती जा रही है| वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि देश के सभी राजनीतिक दल क्या राष्ट्रीय और क्या क्षेत्रीय सभी के सभी अपने अस्तिव बचने में लगे है? कुछ ऐसे भी गठबंधन किये बैठे है, जिनका अस्तित्व ही उस पार्टी के विरोधी और उसके काट के रूप में समाज ने माना है| जिनके समर्थक एक दुसरे को आये दिन कोसते रहते है| विचारणीय है कि क्या ये राजनीती है या कुर्सीनीति? देश में 

जितेश सिंह
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल
जातिवाद, क्षेत्रवाद, आराजकता, साम्प्रादायिकता, आपसी मतभेद, धर्म परिवर्तन, हिन्दू विभाजन करा कर किसी तरह राजनीति में बने रहने को उतारू पार्टी| आज विकास और हिंदुत्व की राजनीति में आपने आस्तित्व को तलास रही है| पाकिस्तान से लेकर चीन तक कुछ राजनीति दल हाथ-पाव मार रही है तो कई दुश्मन देशों में इनके राजनीतिक नेता मारे-मारे फिर रहे है| कुछ पार्टियां कुतर्क करके तो कुछ दंगे  फैलाकर अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति करने के लिए तैयार खडी़ है|  इनके साथ खडा़ है देश का चौथा स्तम्भ| अभी हाल में ही तीन दंगे हुए जिसमें मीडिया की भी रिपोर्टिंग मतभेद के कुचक्र में फसी हुई दिखी| मीडिया संस्थानों ने दंगे के पीछे खड़ी राजनीती दलों को और उनका समर्थन कर रही पार्टियां को बचने का प्रयास किया है|  पहला पद्मावती विरोध- जिनकी वीरता की कहानी सुन कर हमारा मस्तक गगन को छूता है ऐसे शौर्य प्रतीक माता पद्मवाती के इतिहास से छेड़छाड़ और उसे तोड़-मरोड़ कर फिल्म बनाने के विरोध में राजपूत समाज खास कर करणी सेना ने आपत्ति जतायी थी| परन्तु फिल्म निर्माता और सेंसर बोर्ड चुप था ऐसे में मीडियाकर्मी विभिन्न प्रकार के सर्वे और दावे करना शुरू कर दिये| इतिहास में पहली ऐसी घटना होगी जब सेंसर बोर्ड से बिना अनुमति लिए फिल्म को मीडिया से  जुड़े लोगों को  दिखाई गई हो| ऐसे में अफवाहे के स्वर बढ़ाते गई| कुछ मीडिया पक्ष में तो कुछ विपक्ष में नजर आये और यही कारण था कि विरोध बढ़ा, आखिर क्या सीरीज से पहले फिल्म को दिखाई गई या देखने की जरूरत पड़ी? विरोध फिल्म का नहीं इतिहास के साथ छेड़छाड़ का परन्तु मीडियाकर्मी ने खबर को गलत स्वर में पेश किया और देखते-देखते पूरे भारत में फिल्म के पक्ष और विपक्ष में काना-फूसी शुरू हो गई| सोशल मीडिया के आज्ञात महानुभावों ने अनबन फेसबुक और ट्वीटर के माध्यम से फेकना शुरू कर दिया| कुछ देश विरोधी तकते वामपंथी ने आग में धी डालने का कार्य किया| करणी सेना भी फिल्म बैन को लेकर अड़ी हुई थी| जिसके बाद सड़क पे जैसे ही लोग उतारे एक साजिस के तहत दंगे के मंशा से गाड़ियाँ और दूकान में तोड़-फोड़ किये गये| जाँच में बच्चों के स्कूल बस पे पत्थर मरने वाले से लेकर पूरे  प्रदर्शन को हिंसक बनने के पीछे कोई और ही था| परतु मीडिया ने करणी सेना की खूब आलोचना की और करनी भी चाहिए| क्योंकि प्रदर्शन का समर्थन और सानिध्य तो करणी सेना ही कर रही थी, तो शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी भी उनकी थी| योजना और उचित दिशानिर्देश नहीं होने के कारण कुछ अराजकवादी ने प्रदर्शन को दंगे के रूप में बदलने का प्रयास किया परन्तु टीआरपी के चक्कर में करणी सेना को पूर्वाग्रह का शिकार बनाया गया और मुख्य आरोपी के रूप में मीडिया ने उनका परिचय कराया था|दूसरा घटना कोरेगांव- पिछले कई वर्षो से महार समाज कोरेगांव के समीप इकठ्ठा होता रहा है| सम् 1939 के करीब बाबा साहब भीमराव अम्बेदकर ने वहां एक जन सभा को संबोधित करते हुये कहे थे हमे एकत्रित, एकता और सशक्त होना जरूरी है,जिसके बाद से महार समाज बाबा साहब के सम्मान में और अपने संगठन और समाज के सशक्तिकरण के लिए दूर-दराज से महारों को एकत्रित करते है, 1 जनवरी को उत्सव क रूप में महार वर्ग मनाने आये है क्योंकि इसी दिन बाबा साहब में जनसभा की थी| वे इसे शौर्य दिवस के रूप में मनाया आये है| किसी प्रकार की कोई दंगे और ना ही किसी समाज ने कोई आपत्ती व्यक्त की| परन्तु 1 जनवरी 2018 को ऐसा क्या हुआ? जो जगह-जगह दंगे शुरू हो गये, महार समाज का शौर्य दिवस कलंकित हो गया| क्या करण थे? उपस्थित जन सभा में किस प्रकार के व्यक्तियों की उपस्थिती थी? क्यों वो बादाम चहरे वाह आये थे, जिन पर देश विरोधी, जातिवाद भड़काने के आरोप लगे है| ऐसा मालूम हो रह था कि महार समाज के शौर्य दिवस को वामपंथी और देश विरोधी ताकतों ने हाइजैक कर लिया हो| परन्तु मीडिया ने स-समय सही खबरे नही परोसी नतीजा देश भर में गाड़ियाँ और दुकाने जलाये गये| लेकिन ताजुब इस बात की है इस बार के दांगे में दंगाई को बचाया गया| सही स्थिति को छुपाया गया| इस दंगे में पूरी तरह दंगाई को मीडिया के कुछ घरानों का समर्थन प्राप्त था| तीसरा घटना भारत बंद- देश भर में मायावाती के समर्थक ने सुप्रीम कोट के विरोध में जगह-जगह हिंसक दंगे शुरू किये| जबरन डंडे और लाठी के दम पर दुकाने बंद करवाए गई| सडकों पर आगजनी की गई| यहाँ तक की एम्बुलेस तक तो जाने के आनुमति नहीं दी गई जिसके कारण एक माँ के गोद में ही नन्ही सी जान से दम तोड़ दिया| देश भर में एक दर्जन से ज्यादा लोग मारे गये| सैकडे़ धायल हुए फिर कांगेस और बाकि के भाजपा विरोधी राजनीती गुट ने दंगे को पूरा-पूरा समर्थन दिया| इसके बाद भी मीडिया सवाल नहीं पूछ सकी! आखिर क्या वजह थी कि हिंसक दंगे का समर्थन करना पड़ रहा है? कांगेस जैसी गाँधीवादी विचार के पार्टी ने भी दंगे को अपना समर्थन दिया| जो हर रोज डंके के चोट पर अपने आप को गाँधी का सबसे बड़ा हितैषी मानती है| आज फिर से भारत असहिष्णु लगता कुर्सी की राजनीति ने मानवता की सीमा लांघ दी हैं| घोर संकट तो हैं ही एक दंगे को समर्थन दिया जा रहा है| हिंसात्मक और उग्रवादी घटना को बढावा दिया जा रहा है सरेआम राजनितिक पार्टियां दंगाईयों के समर्थन का अलाप जप रही  है और मीडिया आपना कान और आँख बंद किये हुए है| आज देश बड़े-बड़े पत्रकार और एंकर मानों मृत हो गये हो| ऐसी स्थिति में देश का चौथा स्तंभ  और लोकतंत्र का पहरी 'पत्रकारिता' | एक हेर-फेर, बेच- खरीद, दलाल के अलावा और कुछ नही है|

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...