शिक्षा के विषय की बढ़ती उत्तकृष्ठता के साथ सशक्तिकरण की चिंता भी सताने लगी है| आज हम किसी से कम नहीं! सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के विभिन्न राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दो पर देश की बेटियों ने लोहा मनवाया| लेकिन आज भी हमें सामाजिक दृष्टि
से स्त्री होने के कारण कमजोर समझा जाता हैं| जब लड़कियाँ घर से बाहर निकलती है तो एक भय की लकीर माँ- पिता के चेहरे पर दिखाई देती है| आखिर क्यु! आज भी सामाजिक स्थिति बदल नहीं पायी या इसके अकस्मात् यूरोपीय बदलाव का साइड इफेक्ट है| भारतीय इतिहास की बात करे तो हड़प्पा संस्कृति, वैदिक काल, शून्य काल हमारी चोरों वेद-पुरान, उपनिषद गद्य-पद्म सभी में लड़कियों को शक्ति, विद्या और धन का प्रतीक माना जाता है| स्त्रीयों को सबसे उच्च दर्जा हमारे पुर्वजों ने दिया था| लेकिन आज समाज में लड़कियों के प्रति वो सम्मान नहीं दिखता है| जिस तरह से देश भर में अमानवीय घटनाओं की दिन प्रतिदिन खबरे आ रही हैं| जो एक बार फिर समाज को सबसे हाशिए पर खड़ा कर दिया है| इन सभी अवरोधो को मात देकर लड़कियाँ आज चाँद तक पहुँच गई| पढ़ाई में किसी से कम नहीं| इसके बावजूद भी बिना प्रतिभा को देखे! पड़खे समाज सिर्फ लड़की है, पढ़ लिख कर क्या करेगी? क्या ऐसे लोगों की मानसिकता कभी नहीं बदलेगी? क्या स्वर्णिम भारत के इतिहास से स्त्रियों के योगदान को इन्हों भुला दिया? आखिर क्यु हमारे प्रति ऐसा विचार है? इसका कारण सिर्फ समाज में बढ़ रहे घटनाएं है या हमारे आत्मनिर्भर नहीं होने का तोफा! अगर शिक्षा के साथ-साथ हमने दुर्गावती, लक्ष्मीबाई,सावित्रीबाई फूले, रानी चेनम्मा, कनकलता बरूआ जैसे महान वीरांगना का इतिहास पढ़ा होता, उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयत्न किया होता| अगर अपने शक्तियों से हम अनभिज्ञ नहीं होते, शक्ति और सामर्थ्य भी किताबी शिक्षा के साथ अर्जित की होती तो क्या समाज ऐसे बेतुके प्रश्न हमारे बारे में करता? कभी नहीं! स्त्रीयों को कमजोर और बेबस समझने वाले लोग शायद होते ही नहीं और नहीं होता सड़को पर छेड़छाड़ की धटना! कब तब आखिर हम सरकार, शासन, प्रशासन और समाज के शिक्षित वर्गो पर निर्भर रहेंगे| जब तक हम सशक्त नहीं होंगे समाज हमारी सम्भावनाओं को कुचलता रहेगा और माँ- पापा के चेहरे पर भय शाश्वत ही बनी रहेगी| हमें लिंगभेद को नग्नय करना है तो स्वयं आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना होगा| चाहे वो युद्घ का ही मैंदान ही क्यु ना हो| पढ़ाई के साथ ही हमें बचाव और आत्मरक्षा के सभी उपायों को जानना, सिखना और समझना चाहिए, ताकि विपत्ती के समय Help me some body का आलप नहीं you fight with me की चेतावनी निकले| सामाजिक स्थिति को जल्द ही भाप लेना समझदारी होगी| हमें किताबी शिक्षा के साथ ही आधुनिक युद्धशास्त्र और युद्घकला की शिक्षा भी लेनी होगी| इसके लिए स्कूलों में किताबी शिक्षा के साथ ही युद्घ कला को विषय भी अनिवार्य करनी होगी| स्वयं हमें आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ानी होगी| किताबी शिक्षा के साथ हमें आत्मनिर्भर होना आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य है!
से स्त्री होने के कारण कमजोर समझा जाता हैं| जब लड़कियाँ घर से बाहर निकलती है तो एक भय की लकीर माँ- पिता के चेहरे पर दिखाई देती है| आखिर क्यु! आज भी सामाजिक स्थिति बदल नहीं पायी या इसके अकस्मात् यूरोपीय बदलाव का साइड इफेक्ट है| भारतीय इतिहास की बात करे तो हड़प्पा संस्कृति, वैदिक काल, शून्य काल हमारी चोरों वेद-पुरान, उपनिषद गद्य-पद्म सभी में लड़कियों को शक्ति, विद्या और धन का प्रतीक माना जाता है| स्त्रीयों को सबसे उच्च दर्जा हमारे पुर्वजों ने दिया था| लेकिन आज समाज में लड़कियों के प्रति वो सम्मान नहीं दिखता है| जिस तरह से देश भर में अमानवीय घटनाओं की दिन प्रतिदिन खबरे आ रही हैं| जो एक बार फिर समाज को सबसे हाशिए पर खड़ा कर दिया है| इन सभी अवरोधो को मात देकर लड़कियाँ आज चाँद तक पहुँच गई| पढ़ाई में किसी से कम नहीं| इसके बावजूद भी बिना प्रतिभा को देखे! पड़खे समाज सिर्फ लड़की है, पढ़ लिख कर क्या करेगी? क्या ऐसे लोगों की मानसिकता कभी नहीं बदलेगी? क्या स्वर्णिम भारत के इतिहास से स्त्रियों के योगदान को इन्हों भुला दिया? आखिर क्यु हमारे प्रति ऐसा विचार है? इसका कारण सिर्फ समाज में बढ़ रहे घटनाएं है या हमारे आत्मनिर्भर नहीं होने का तोफा! अगर शिक्षा के साथ-साथ हमने दुर्गावती, लक्ष्मीबाई,सावित्रीबाई फूले, रानी चेनम्मा, कनकलता बरूआ जैसे महान वीरांगना का इतिहास पढ़ा होता, उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयत्न किया होता| अगर अपने शक्तियों से हम अनभिज्ञ नहीं होते, शक्ति और सामर्थ्य भी किताबी शिक्षा के साथ अर्जित की होती तो क्या समाज ऐसे बेतुके प्रश्न हमारे बारे में करता? कभी नहीं! स्त्रीयों को कमजोर और बेबस समझने वाले लोग शायद होते ही नहीं और नहीं होता सड़को पर छेड़छाड़ की धटना! कब तब आखिर हम सरकार, शासन, प्रशासन और समाज के शिक्षित वर्गो पर निर्भर रहेंगे| जब तक हम सशक्त नहीं होंगे समाज हमारी सम्भावनाओं को कुचलता रहेगा और माँ- पापा के चेहरे पर भय शाश्वत ही बनी रहेगी| हमें लिंगभेद को नग्नय करना है तो स्वयं आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना होगा| चाहे वो युद्घ का ही मैंदान ही क्यु ना हो| पढ़ाई के साथ ही हमें बचाव और आत्मरक्षा के सभी उपायों को जानना, सिखना और समझना चाहिए, ताकि विपत्ती के समय Help me some body का आलप नहीं you fight with me की चेतावनी निकले| सामाजिक स्थिति को जल्द ही भाप लेना समझदारी होगी| हमें किताबी शिक्षा के साथ ही आधुनिक युद्धशास्त्र और युद्घकला की शिक्षा भी लेनी होगी| इसके लिए स्कूलों में किताबी शिक्षा के साथ ही युद्घ कला को विषय भी अनिवार्य करनी होगी| स्वयं हमें आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ानी होगी| किताबी शिक्षा के साथ हमें आत्मनिर्भर होना आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य है!