रविवार, 31 दिसंबर 2017

नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं! - रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी  सिंह " दिनकर " जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं

~~~~~~राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ~~~~~~~

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

मैं रिपोर्टिंग करता हूं........ जितेश हिन्दू

मैं रिपोर्टर हूं,                                
रिपोर्टिंग करता हूं. .....

पक्ष-विपक्ष के चक्कर में,
खबरों का मोल-भाव करता हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं......

मैं समाज का पहरेदार,
खुद ही कलम को बेचता हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं......

मैं ही, समाज को पथ दिखलाता,
और खुद लक्ष्यहीन हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं......

मैं घुमक्कड़ हूं,
फिर भी मार्ग से भटक जाता हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं.......

मैं विज्ञप्ति को,
समाचार बना देता हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं.......

मैं इस दौर का सबसे बड़ा मजहबी
कलमों से आतंकवाद फैलाता हूं|
मैं रिपोर्टिंग करता हूं......
                          जितेश हिन्दू








शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

युवा बने! जितेश हिन्दू

युवा अपने आप में बहुत ही आकर्षित शब्दांश है. हमें अक्सर नेताओं के भाषण, संबोधन और रैलियां में सुनने को मिलता है. लेकिन कभी हमने विचार किया, युवा कोन है? वर्तमान में सबसे चर्चित शब्द है 'देश के युवाओं' कौन देश का युवा है? एक विशाल जनसमूह का विचार जब क्रियान्वित होता है तो वही विचार को क्रिया में बदलने की यही प्रक्रिया युवा है. इसका तात्पर्य है कि 'देश का युवा' वही हो सकता है, जो देश के लिए सामर्थ्य और कौशल का परिचय दें. युवा माँ भारती की वाणी की को सुनने वाला देैविय पुरुष है. युवा देश की आवाज नहीं, देश का चारित्र है. अपने आंतरिक और बाह्य प्रत्येक स्थिति में देश के नवनिर्माण और संस्कृतिक उत्थान के लिए संघर्षवान पौरूष ही युवा है नहीं तो वो किशोर है. जिसे ऐतिहासिक और संस्कृतिक मार्गदर्शन की जरुरत हैं.
भारत के किशोरों को युवा बनना है, मातृ भू के निर्माण के लिए सतत मनन चिंतन करना और फिर राष्ट्रकल्याण के लिए उसे क्रियांवित करना है. इसके  लिए हमें शासन, प्रशासन और सरकार पर निर्भर न होकर स्वयं को प्रेरित कर देश के नवनिर्माण की ओर अग्रसर होना है.
विवेकानंद ने भी युवाओं के बारे में कहा "किसी राष्ट्र का भविष्य कैसा होगा,अगर यह जानना हो तो वहां के युवा उस राष्ट्र के बारे क्या विचार करते?"
                                      - जितेश हिन्दू  
                         

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

भारत की राजनीति यात्रा! जितेश हिन्दू

जब शंखनाद हुआ भारत भू पर,    
वीर आंखों की अग्नि से ,
भस्म हो गई अंग्रेजी शासन.
भारत माता गौरवान्वित हुई 
ऐसे वीर पुत्रों को पाकर 
दुर्भाग्य से पवित्र माता के आंचल पर
राजनीति के बीज बोए गए 
गरीबी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद 
जैसे- दुष्ट पहिए ने संपूर्ण
भारत को कुचल डाला.
चारों ओर निराशा थी 
भय था तो आक्रोश भी था
संपूर्ण क्रांति का नारा दिया,
जब लोकनायक ने हुंकार भरो 
थर्रा गई सारी भ्रष्ट कुर्सीया 
राजनीति ने दांव पेच खेले
आपातकाल नामक पहिए ने 
जब राष्ट्रवाद को कुचलना शुरू किया
वो कुचल ना सके अटल जी को 
सुशासन का रथ निकला 
वर्षों से प्यासी धरती को
 मानो जैसे अमृत मिला 
विकास पथ पर बढा़ भारत
परमाणु परीक्षण कर
बन गये हम शक्तिमान 
कूटनीतिज्ञ चाल को
समझ ना सकी
भारत की जनता 
10 वर्षों का मौनवास हुआ
भ्रष्टाचार और आतंकवाद ने
बदल डाले सारे आकड़े
दुष्ट शत्रुओं की छाया
भारत पर मडरा रही
लेकिन!
पुनः सूर्योदय हुआ!
सशक्त और संगठित भारत,
विकास पथ अग्रेसित
अब वक्त तय करेगी,
हम परखेंगे,
कितने वादे, कितने सफल..

संचार के प्रभावी सिद्धांत!

संचार विशेषज्ञ और फ्रांसीसी नागरिक बर्जेट ने संचार को प्रभावी बनाने के लिए 7 सी सिद्धांत की अवधारणा पेश की. और कहा कि इसका उपयोग का संचारकर्ता अपनी बात बड़ी आसानी से प्राप्तकर्ता के मस्तक में पहुंचा सकता है. उनके अनुसार एक संचारकर्ता के पास इस प्रकार के गुण होने चाहिए-
 1. स्पष्टता (clasity)
2. संदर्भ (Context)
3. निरंतरता (continuity)
4. विश्वसनीयत (credibility)
5. विषय वस्तु (content) 
6. माध्यम (channel)
7. पूर्णत (completeness) 
1. स्पष्टता- वही संदेश प्राप्तकर्ता को आसानी से समझ आता है. जो स्पष्ट हो, इससिए संदेश को सरल और यथाशक्ति समान्य शब्दों में तैयार करना चाहिए. उलझाने और उलझाव या मुहावरे युक्त संदेशों को प्राप्तकर्ता अनदेखा कर देते हैं.

2. संदर्भ- बिना संदर्भ के कोई भी संदेश अधूरा है. संदर्भ से संदेश की विश्वसनीयता बढ़ जाती है. संदर्भ से संदेश में गलती होने की संभावना कम होती है. क्योंकि आपका संदेश संदर्भ के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है. यही कारण है कि गलती नहीं होती और होती भी है तो पकड़ में आ जाती है. संदर्भ के कारण संबंधित प्राप्तकर्ता की भागीदारी या सहभागिता बढ़ जाती है.

3. निरंतरता- संचार एक अनवरत प्रक्रिया है. संदेश में एक साथ कई तथ्यों के समावेश होने की स्थिति में निरंतरता का होना आवश्यक है. इसका मतलब मुख्य तथ्य के बाद संदर्भ में क्रमश: कम महत्वपूर्ण, उससे कम महत्वपूर्ण ,सबसे कम महत्वपूर्ण, और अंत में बिना महत्व के संदेश से है. आदर्श संदेश वह होता है. जिसमें महत्वपूर्ण तत्व की पूर्णवृत्ति या दोहराव होती है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है अगर पहले बार में प्राप्तकर्ता संदेश के अर्थ को किसी वजह से समझ नहीं पाता. तो निरंतर दोहराव से तीसरी बार में जरूर समझ लेता है.

4. विश्वसनीयता- संचार का मूल आधार विश्वास है. जो संचारकर्ता की नियत पर निर्भर करता है. संदेश में विश्वसनीय होने का प्राप्तकर्ता के मन में संचारकर्ता की अच्छी छवि बनती है. एक समय ऐसा भी आता है. जब संचारकर्ता से प्राप्तकर्ता संदेश को प्राप्त कर, उसे अपने परिचय में फैलाता है. विश्वास पर खरा नहीं उतरने वाले संदेश को प्राप्तकर्ता जल्द ही नजर अंदाज कर देते हैं. 

5. विषय-वस्तु- संदेश किस से भेजा जाए या प्राप्तकर्ता की रूची पर निर्भर करता है. इसी के अनुसार संदेश के विषय वस्तु भी तैयार करनी पड़ती है. संदेश प्राप्त करने वाले की उम्र, शिक्षा, भौगोलिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्तर, और रुचि के विषय जैसे कला,संस्कृत, आदि के अनुरूप संदेश को तैयार करना चाहिए. विषय वस्तु अगर रोचक, सूचनापद्र और ज्ञान वर्धन हो तो, प्राप्तकर्ता उसी तरह की और संदेशों की अपेक्षा रखता है.
6. माध्यम की भूमिका इसी लिए महत्व होती है. क्योंकि परिस्थिति, प्राप्तकर्ता और संदर्भ की प्रकृति एवं विषय वस्तु के माध्यम का प्रभावशीलता घटती बढ़ती रहती है. उदाहरण के लिए अगर किसी को ए प्लस ग्रुप का खून तुरंत चाहिए तो, संदेश का माध्यम समाचार और पत्र और टेलीविजन ना होकर सोशल मीडिया या इंटरनेट या इसके उपलब्ध प्लेटफार्म हो   जैसे ह्वाटएेप, फेसबुक इत्यादि और मोबाइल प्लेटफार्म जैसे एस.एम.एस हो तो संदेश को प्रभावशाली तरीके से बहुत व्यापक समूह में पहुंचाया जा सकता है. इसी तरह किसी धार्मिक आयोजन याद हादसे की सूचना तत्काल देने हो तो माध्यम का चुनाव ऐसा होना चाहिए ताकि प्राप्तकर्ता तक तुरंत संदेश पहुंच जाये. सरकारी कार्यक्रम हो या किसी दिलचस्प विषय-वस्तु से जुड़ी सूचना कोई सूचना हमें प्राप्तकर्ता तक बाते जल्द पहुंचाने में प्राप्तकर्ता की पहुंचने के लिए ऐसा माध्यम चुनना चाहिए, जो लोकप्रिय हैं.

7. पूर्णता- प्रभावी संचार के संदेश का पूर्ण होना जरूरी है. संदेश अपूर्ण हो तो प्राप्तकर्ता को संतुष्टि नहीं होगा. परंतु संदेश पूर्ण होने पर प्राप्त करता को आत्मसंतुष्टि होती है. अतः संदेश का पूरा होना आवश्यक है, नहीं तो आपका संचार अधुरा रह जायेगा और आपके संसार को प्राप्तकर्ता अवहेलना करेंगे.

शनिवार, 16 दिसंबर 2017

यह पाप मैंने किया है..... जितेश सिंह

न्यायपति श्री राम को,
न्यायालय पहुचा कर आया हूं|
यह पाप मैंने किया है....

पवित्र गंगा स्नान कर,
मन का स्वार्थ बढ़ाया है|
यह पाप मैंने किया है....

हिंदू शब्द का प्रयोग कर,
कायरता दिखाया है|
यह पाप मैंने किया है....

दुश्मनों को पनाह दे कर,
उसे घर बैठाया है|
यह पाप मैंने किया है....

श्री राम का उपासक हो कर,
उचित न्याय नहीं कर पाया|
यह पाप मैंने किया है....

कब लहराएगी भागवा ध्वज?
कब उठाएंगे तलवारे?
अब तक तिथि निर्धारित ना कर,
यह पाप मैंने किया है....

                            जितेश हिंदू

संपादक और उसके लेखनी के मनोभाव के क्रम! जितेश सिंह

संपादक औपचारिक रूप से समाज का मार्गदर्शन भले ही नहीं करता हो. परंतु अनौपचारिक यानि मानसिक रूप से समाज का मार्गदर्शन तो करता ही है. लेखन की एक ऐसी कला जो आपके विचार को प्रभावित करता हो. आपके भविष्य के निर्धारित कार्यक्रमों को आपके हाथों ही बदलने की दक्षता रखता हो, संपादक कहलाता है. जब हम कोई लेख या प्रेरक प्रसंग पढ़ते या सुनते हैं. तो उसी कालखंड में अपना मन विचलित करता है. जो उस महान व्यक्तित्व और इतिहास को पुनर्जीवित कर समाज के बीच रख देता है. मन के अंतर्भाव में उसका अनुसरण करने. उनके बताए हुए मार्ग पर चलने का पहला कदम रखा जैसे कि  पृष्ठ पलटना पड़ा. पुनः मेरा मन 16 दिसंबर 2017 में वापस आ गया. ऐसी लेखन शास्त्र की यह जादूगरी, जो आपको वास्तविक तो नहीं बल्कि मानसिक तौर पर इतिहास का दर्शन करने की क्षमता रखता हो, आगे की कार्यक्रम और योजना की भविष्यवाणी करने की दक्षता हो, वही संपादक है. जब हम-आप हजारों वर्ष पुराने श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद में खो जाते हैं. यह काला कुछ और नहीं संपादकीय लेखन है. जिसे एक कुशल संपादक की भावना से कलम के द्वारा कोरे कागज पर लिखी जाती है. वर्तमान परिपेक्ष्य में संपादकीय लेखन की कला चुनौतीपूर्ण है. देश,काल, खंड, परिस्थिति के अनुसार संपादन करने के इस कला में परिवर्तन आ गया है. यानी संपादक वर्तमान में विभिन्न वादों और राजनीतिक दलों की भावना के वशीभूत हो गया है. काव्य, लेख, टिप्पणी आदि माध्यम से समाज के कष्टों का निवारण करना संपादन है या अपने विचारों, मनोभाव, दलगत बातों का प्रचार, एक संपादक के लेखनी में दिखते है. खौर जो भी हो. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि, इस विषय पर लिखना और समझना कठिन है. इसलिए नहीं कि संपादक शब्द में वह तेज नहीं रहा या समाज में उसका महत्व नहीं है. बल्कि जब हम संपादन की बात करते हैं. तो समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल, गीतकार, संगीतकार, लेखक, कलाकार, भाषणकर्ता, शिक्षक की पढ़ाने की कला, इन सबो में कूट-कूट कर संपादक के गुण भरे होते हैं. मगर हमें आज पत्र पत्रिका या न्यूज चैनल के संपादक के विषय में जानकारी साझा करनी है. तो इसी विषय को ध्यान में रखकर लिखना होगा. भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व आज विभिन्न प्रकार के वादों से ग्रसित है. इसका वैचारिक प्रभाव समाज के सभी घटकों पर समान रूप से पड़ा. इसके चपेट में लेखक, संपादक और उसकी लेख लेखनी भी आयी. वर्तमान में प्रत्येक लेखक, सूचनादाता और संपादक इन्हीं विचारधारा और वादो से ग्रसित है. यानी समाचार हमें, सामाजिक कुरीतियां, सरकार की योजनाएं, कार्यपद्धती की समीक्षा या कोई सामयिक घटना या कोई वगैरह विषय पर मिले, उसे तरह संपादित किया जाता है कि, बिना सामाजिक हानि यानी भड़काव या टकराव आदि भावना उत्पन्न किये बगैर. एक शराब की हल्के डोज की भाँति धीरे-धीरे  वैचारिक रूप से समाज को अपनी लेखनी और बाद में अपने विचारधारा से जुड़ना होता है. जब हम किसी सामाजिक पुस्तके या कहानी के पुस्तक पढ़ते हैं. तो उसके प्रथम पृष्ठ यानी प्रस्तावना में ही पूरी कहानी की भविष्यवाणी हमें मिल जाती है.
एक संपादक को इतिहास से लेकर वर्तमान में घटित और संभावित सभी योजनाओं को ध्यान में रखकर संपादन करना होता है. चाहे वह विभिन्न वादों से ग्रसित हो या किसी राजनीतिक दलगत, वामपंथी, पूंजीवादी या अन्य कोई वादों से संबंधित हो या किसी विचारधारा से. संपादक किसी भी विचारधारा के गोद में बैठकर कलम खींच रहा हो, वह अपने भावी संभावनाओं को नष्ट नहीं करता. ताकि आगे चलकर उसे परिस्थिति से समझौता ना करना पड़े. संपादक के यही गुण चाहे उसे हम-आप उसे स्वार्थपूर्वक या उज्जवल भविष्य की चिंता के लिए या लेखनी के दायित्व के रूप में देखे. वह अपने लेख को संपादित करने में बस अपने विचारधाराओं की गंध मात्र छोड़ देता है. उस वाद या विचार को अपनी लेखनी में आत्मसात नहीं करता. अगर ऐसा होता तो यह किसी पार्टी विशेष, या विभिन्न वादों का मात्र धोषणा पत्र बन कर रह जाता. परन्तु संपादन कला वाद मुक्त लेखन का वशीभूत है. वतर्मान में समाज को जाने-अनजाने में स्वयं चिंतिन और प्रेरित करने के लिए मजबूर करता है और यही कारण है कि संपादक की लेखनी समाज के लिए, समाज के हित के लिए, एक जीवन दायक प्रेरणा बनी है.

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

समाजीकरण में संचार की भूमिका

मनुष्य की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा के स्थान परिवर्तन को समाजीकरण करते हैं. यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक होता है. इस में संचार की महत्वपूर्ण भूमिका है. जैसे -जैसे संचार की मदद से इंसान नयी संस्कृति मूल्य और व्यवहारों को आत्मसात करता है. वैसे वह सामाजिक प्राणी बनता चला जाता है. सामाजिक संबंधों के लिए पारंपरिक जागरूकता जरूरी है. जैसे पंखे और बिजली या कलम और दवात के बीच पारस्परिक संबंध है.क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक संचार के तीन महत्वपूर्ण सामाजिक प्रक्रिया है. समाजिकरण, सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक नियंत्रण.
जेलि्डच के अध्यापन में जो की समाजीकरण के माता पिता की भूमिका से संबंधित था मैं कहा कि सभी समाजों में पिता नेतृत्वकारी भूमिका में  होता है, जो की साधक और प्रेरणा के तौर पर होता है. जब कि माता भावानात्मक नेतृत्व प्रदान करती है. सभ्यता के विकास के साथ-साथ सामाजिक कारण की कई संस्थाएं पैदा हुई. ऐसे में बच्चों का खेल समूह आस-पड़ोस, रिश्तेदार, मित्र-डोली, विवाह और शिक्षण संस्थाएं यह सभी संचार के अलग-अलग माध्यमों के जरिए समाजीकरण और सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक बन गए. पहले प्राथमिक संस्था संचार के लिए पौराणिक धर्म ग्रंथो के पीढ़ीयों का इस्तेमाल करते थे. बाद में इन की जगह पुस्तक ने ले ली. पुस्तकों को संचार का लिखित माध्यम बनाया गया. मुद्रण तकनीक के माध्यम से संचार के नयी माध्यमों का विकास हुआ. जैसे- रेडियो, टेलीफोन, इंटरनेट, आदि. इन माध्यम के विकास के साथ व्यक्ति के पास नई माध्यम से संदेश आने जाने लगे. जिससे उनके व्यवहार में बदलाव दिखाई पड़ने लगा. समाजशास्त्री श्यामचरण दुबे- मानव मनुष्य जैवीयप्राणी से सामाजिक प्राणी तभी बनता है, जब वह संचार के माध्यम से संस्कृति मूल्य और व्यवहारिक आदर्श को आत्मसात करता है. 
सामाजिक विचारक विलियम्स के मुताबिक नई सूचना प्रौद्योगिकी में सामाजिक अविष्कारों के रूप में एक नई भौतिक संस्कृति का विकास किया है. जिसने ना सिर्फ मानव जीवन को परिभाषित किया है. बल्कि सांस्कृतिक मूल्य को भी प्रभावित किया है. जीवन को भी प्रभावित किया है. जैसे वोट देने का अधिकार, स्त्री शिक्षा का प्रचार, बंधुआ मजदूरी उन्मूलन, अंधविश्वासों को दूर करने में संचार साधनों की भूमिका रही. इन्हीं संचार के माध्यमों ने जनजागरण का कल्याण किया और नए सामाजिक मूल्यों की स्थापना की.

उपरोक्ता आधार पर निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1. समाजीकरण में संचार का क्या अभिव्यक्ति है?
2. समाजीकरण में संचार की भूमिका को स्पष्ट करते हुए इसमें अलग-अलग संस्थाओं की भूमिका को भी अस्पष्ट कीजिए.

संचार की परिभाषा

संचार की उत्पत्ति मानव उत्पत्ति के साथ ही हो गई थी. प्रारंभिक युग में मानव अपनी भाषा भागियाओं और प्रतीक चिन्हों के जरिए संचार करता था. इसके प्रमाण हमें भीमबेटका, और अन्य पुराणे शिला लेख पर मिलती है. लेकिन मानव विकास की आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी ने रेडियो, टेलीविज़न, मोबाइल, इंटरनेट से लेकर समाचार पत्र तक की स्थापना की है. संचार माध्यमों को आधुनिक बनाने में युद्ध की काफी भुमिका रही है. प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) में संचार माध्यमों की काफी जरूरत हुई. तब टेलीप्रिंटर जैसे साधनों का आविष्कार हुआ. ताकि सैनिक अपनी स्थिति को बता सके. एक जगह से दूसरी जगह संचार कर सकें. दूसरे विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान टेलीफोन का आविष्कार हो चुका था. और यह एक सशक्त माध्यम बना. दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया दो हिस्सों में बट गई. एक साम्राज्यवादी अमेरिका के नेतृत्व वाले देशों का था. तो दूसरी साम्यवादी सोवियत संघ के गुट वाले देश. ऐसे में भारत जैसे तीसरी दुनिया के विकासशील देश भी है. जहां संचार साधनों का विकास धीरे धीरे हो रहा था. सोवियत संघ के विघटन से पहले अमेरिका ने दुनिया भर से अपनी खुफिया जानकारी को इकट्ठा करने के लिए इंटरनेट जैसे साधनों का आविष्कार किया. इंटरनेट के दरवाजे सोवियत संघ के पतन के बाद पूरी दुनिया के लिए खोल दिया गया.
संचार की परिभाषा शाब्दिक अर्थ है- किसी सूचना या संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना है. अंग्रेजी भाषा के कम्युनिकेशन से बना है जिसकी  उत्पत्ति कम्नियुज से हुई. जिसका अर्थ दैनिक सूचनाओं को फालाना है. यानी एक संचारकर्ता प्राप्त करने वाले के साथ उभयनिष्ठ संबंध बनाने के लिए अभिव्यक्ति के रूप में शब्दों, संकेतों, लिपियों या प्रतीक चिन्हों का सहारा लेता है. दूसरे शब्दों में कहें तो संसार एक एसा प्रयास है. जिसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचारों भावनाओं और मनोवृत्तियों में सहभागी को बनता है. इस प्रकार संचार का आधार संवाद और संप्रेषण के विभिन्न विशेषज्ञों ने संसार को अपने अपने स्तर पर परिभाषित करने का प्रयास किया है. लेकिन सर्वसम्मत परिभाषा नहीं बन पाई है-
चार्ल्स ई. आंसगुड-  "संचार तब होता है जब एक सिस्टम या स्रोत किसी दूसरे या गंतव्य को विभिन्न प्रकार के संकेतों से प्रभावित करें"
लुईस ए. एलेन-  "संसार उन सभी क्रियाओं का योग है, जिससे एक व्यक्ति दूसरे के साथ साझेदारी कायम करता है"
कैथ डेविस -  "संसार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना भेजने और समझाने की विधि है"
 क्रच और साथियों की परिभाषा-  "किसी वस्तु को विषय में सामान सहभागी ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रतीकों का उपयोग ही संसार है, जिसे भाषा के साथ प्रयोग किया जा सकता है" 

सर्वमान्य कही जाने वाली परिभाषा-  एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति अथवा समूह को कुछ सार्थक चिह्न प्रतीकों, संकेतों के माध्यम से ज्ञान, सूचना, जानकारी या मनोभावना को आपस में आदान प्रदान करना संचार है.

पत्रकारिता पूँजी प्रौद्योगिकी और बाजार के प्रभाव!

1980 और 90 के दशक में कुछ घटनाओं ने, राजनीतिक आर्थिक और संचार के अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं को, फिर से परिभाषित कर दिया. 80 के दशक में विकास के सोवियत समाजवादी मॉडल चरमराने लगी. 1991 सोवियत संघ टूट कर बिखर गया. इसे पश्चिम उदार लोकतंत्र और मुक्त अर्थव्यवस्था की जीत माना गया.  2000 के दशक में सूचना क्रांति ने नई ऊंचाइयों ऊंचाइयों तय की. इसी के साथ भारत सहित दुनिया भर में मुक्ति अर्थव्यवस्था और आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में सुधार हुआ. तब तक! शीतयुद्ध कालीन वैचारिक राजनीति की जगह, अवसरवादी भूमंडलीकरण और नए उपभोक्ता संस्कृति का जन्म हुआ. इसका सर्वाधिक प्रभाव जनसंचार के माध्यम पर पड़ा. वे सभी नवउदारवादी उपभोक्ता संस्कृति के हिस्से बनते  चले गए. और वे वैश्विक राजनीति और व्यापारियों के अधीन होने लगे. यह प्रक्रिया अब चरम पर है. राजनीतिक अर्थव्यवस्था के स्वरूप के अनुसार ही सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य बदल रहे हैं. इसलिए कहा जा सकता है कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में पश्चिमी जीवन शैली और सांस्कृतिक मूल्यों का ही विस्तार हो रहा है. इसे आगे बढ़ाने में वैश्विक मीडिया की भूमिका है. इस तरह मीडिया एक बहुरंगी और विविध दुनिया को स्वरूप बनाकर उसे वैश्विक सुपर बाजार के रूप में पेश करते हुए दिखाता हैं. नई वैश्वीक व्यवस्था ने विकासशील देशों के उन तमाम अपीलों को लगातार ठुकराया. जो उन्होनें विश्व की एक नई सूचना व्यवस्था कायम करने के लिए पेश की थी. 1980 में मैंब्राइड आयोग ने यूनेस्को में विकासशील देशों की इस मांग को प्रमुखता तो दी. पर सूचना और समाचार की मांग में संतुलन की मांग करने वाले विकासशील देश. दूर संचार उपग्रह और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी पर केंद्रित वैश्विक सूचनाओं के प्रवाह के इस तरह बह गये कि, उन पर अंकुश लगाना है उसके लिए समय नहीं था. विकासशील देश पश्चिमी देशों से सूचना की एकतरफा प्रवाह की शिकायत करते थे. लेकिन आखिर में उन्हें भी भूमंडलीकरण का रास्ता अपना ही लिया. नई वैश्वीक व्यवस्था में पश्चिमी देश वैश्विक मीडिया को नियंत्रित करती है. मीडिया को नियंत्रित करना यानी किसी देश और समाज के छवि पर भी नियंत्रण करना है. मीडिया ऐसे मानक तय करता है. जिससे सही गलत सभ्य-असभ्य का पैमाना तय होता है. इसी निर्धारण से संस्कृति उपनिवेशवाद की सीमा शुरू होती है. उदारीकरण और निजीकरण के दौर में आयी. आर्थिक समृध्दी ने उपभोक्ताओं का एक नया वर्ग स्थापित किया है. जिसके कार्य शक्ति अधिक है. आज के दौर की मीडिया क्रांति इसी वर्ग पर टिकी है. क्योंकि मीडिया उत्पादों की मांग इसी वर्ग से ज्यादा है. सूचना क्रांति के इस दौर में दुनिया भर में जितना संवाद हो रहा है. उनका आकार तो अपेक्षाकृत बड़ा हुआ है. लेकिन विषय वस्तु सीमित है. उदाहरण के लिए आतंकवाद! मीडिया का एक नया उपभोक्ता का वर्ग अधिक से अधिक मनोरंजन चाहता है. लेकिन वह कम सूचित और कम जानकार होता जा रहा है. असल में मीडिया नई जीवनशैली और नए मूल्यों का कुछ इस तरह सीजन कर रहा है. जिससे एक नया बाजार शुरू हो सके. यह सिलसिला 1990 के दशक से जारी है. फिलहाल मीडिया अब सार्वजनिक-व्यवहारिक से हटकर, व्यवहारिक-सार्वजनिक का उद्गम बन गया है. जिसे व्यापारिक हित संचालित कर रहे हैं. दुनिया अगर वैश्विक गांव बन गई तो उस गांव में वैश्विक मीडिया का नियंत्रण विभिन्न देशों की सीमा के भीतर तक हो चुका है. और इसीलिए अधिकतर देशों की राजनीति सामाजिक और सांस्कृतिक दीवारें ढह रही है. मीडिया संगठन या तो खुद व्यापारिक संस्था बन गई बन गए हैं, या फिर पूरी तरह विज्ञापन पर टिकी हुई हैं. एक तरफ इंटरनेट जैसी नहीं प्रौद्योगिकी ने किसी भी व्यक्ति को अपने बात को वैश्विक मंच तक पहुंचाने का अवसर दिया
है. वही मुख्यधारा में मीडिया का केंद्रीयकरण भी तेजी से हो रहा है. मीडिया का आकार बड़ा होता जा रहा है. लेकिन इस पर स्वामित्व रखने वाली कंपनियों की संख्या कम होती जा रही है. पिछले कुछ दशकों ने कई बड़ी मीडिया कंपनियों ने छोटी मीडिया का अधिग्रहण किया है. वही बड़ी मीडिया कंपनी का विलय से भी मीडिया के केंद्रीयकरण को ताकत मिली है.  उदाहरण के लिए रुपर्ट मेग्जिन का न्यूज़ कॉर्पोरेसन अमेरिका के साथ, कनाडा, यूरोपीय देशों, एशिया और लैटिन अमेरिका के मीडिया में खासा दखल रखता है. विश्व की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी और दूसरी सबसे बड़ी मीडिया कंपनी वायकॉम दोनों ही अमेरिकी है विश्व बाजार के बड़े हिस्से पर इनका नियंत्रण है. सोनी टीवी (Sony TV), माइक्रोसॉफ्ट, गुगल (Google), याहू (Yahoo) से लेकर हथियार बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल ने भी मीडिया जगत में पाव रखना शुरु कर दिया. कुल मिलाकर मीडिया बाजार की वर्तमान होर के बीच गंभीर राजनीति विर्मश पर कम और उन उत्पादों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहा है. जैसे- मनोरंजन!
जो व्यापक जनमानस का ध्यान खींच सके. कई मौकों पर बड़ी राजनीतिक विषय को सही रूप में पेश नहीं किया जाता है. और आलोचनात्मक होने का ढोंग करके वास्तविक आलोचना को दरकिनार किया जाता है. टेलीविजन पर राजनीतिक बहस का मूल्यांकन करें तो कमोवेश इसी तरह का कार्यक्रम तु-तु-मैं-मैं  के मनोरंजन की ओर अधिक झुके नजर आते हैं. जबकि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य इससे गायब हो जाता है. इसीतरह राजनीतिक नेताओं का उदय भी नए मीडिया का उदाहरण है. जिस का असली मकसद मनोरंजन परोसना है.

उपरोक्त कथन के आधार पर निम्न प्रश्नों का जवाब दे सकते हैं-
1. एक संतुलित समता मूलक और विकास उन्मुखी समाज के निर्माण में मीडिया की केंद्रीय भूमिका को संक्षेप में बताएं.
2. पत्रकारिता पर पूजी प्रौद्योगिकी और बाजार के प्रभाव को विस्तृत रूप में दर्शाएं.
3. वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता को समझाएं. पत्रकारिता के व्यवसाय के रूप पर टिप्पणी लिखें.

पत्रकारिता का भारतीय और वैश्विक परिदृश्य

पत्रकारिता की शुरुआत सरकारी नीतियों के बारे में जनता को बताने. जनता की जरूरतों और सरकारी नीतियों के खिलाफ लोगों के प्रतिक्रिया से अर्थात बताने के साथ की सरकार तथा आम लोगों को समसमायिक घटना की जानकारी देने के लिए की गई थी. पत्रकारिता की उपयोगिता और महत्व के बारे में माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र में लिखा था-"किसी भी देश या समाज की वर्तमान दशा को जानना हो तो वहां के समाचार पत्र को उठाकर पढ़ लीजिए"
राष्ट्र के संगठन में समाचार पत्र जो काम करते हैं वह कोई और नहीं कर सकता भारत में समाचार पत्रों के उद्भव और विकास के उत्तर क्रम के अंतर देखे तो, समय के साथ पत्रकारिता का उद्देश्य और स्वरूप बदलता रहा है. कभी पत्रकारिता देश को आजादी दिलाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया. तो कभी समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने और जागरूकता के लिए. यह वह दौर था जब किसी ने भी पत्रकारिता में व्यवसाय का चेहरा नहीं देखा था. आज का युग सूचना और संचार का युग है. इसमें पत्रकार कहीं तो पत्रकारिता के मूल आदर्श से मुंह मोड़ते नजर आते हैं. तो कहीं सामाजिक सरोकारों से विमुखता भी दिखाई देती है. इस समय पत्रकारिता केवल आदर्श खबरों को परोसना ही नहीं बल्कि किसी तरह खबरों को बेचने का भी कार्य कर रही है. खबरों में न केवल मिलावट हो रही है. बल्कि न्यूज़ के रूप में विज्ञापनों को खबरों की तरह छापकर, पाठकों को धोखा भी दिया जा रहा है. पत्रकारिता अगर व्यवसाय बन गई तो पत्रकारिता की भावना भी समाप्त हो जाएगी.

महात्मा गांधी ने पत्रकारिता और पत्रकार के कर्तव्य पर लिखा था- पत्रकारिता उस पानी के समान है जो बांध के टूटने पर पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेता है. 
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है. लेकिन इसका गलत प्रयोग एक अपराध है. इसलिए संपादकों को कोई ध्यान रखना चाहिए, इसकी कोई गलत रिपोर्ट ना चली जाए जो पाठको को उत्तेजित करते हो. वर्तमान में व्यावसायिक पत्रकारिता विज्ञापन और उससे प्राप्त आय के साथ पत्रकारिता को नए आयाम दे रहा है. अब मीडिया केवल राजनीति और सामाजिक जानकारी देने के माध्यम ही नहीं रहा. बल्कि वह भारतीय राजनीति का एक अंग बन चुका है. आजादी के पहले और आजादी के कुछ समय बाद तक, मीडिया तंत्र के पीछे किसी व्यक्ति या संस्था के कठिन प्रयास थे. जबकि वर्तमान में निकलने वाले समाचार पत्र और व्यवसायिक मीडिया के पीछे बड़े व्यवसायी वर्ग या किसी राजनीतिक दल का समर्थन है. पत्रकारिता में एकपक्षियों के प्रभाव को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी ने कहा था- मुझे दुख है के सारे प्रगतिवाद और ना किन-किन वादों के रहते हुए हमने पत्रकारिता के महान कला को पूजीवादी के हाथों सौंप दिया. ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को लेकर कई सवाल पूछे जा रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रेस और पत्रकारों को गंभीर और सुरक्षा के खामियाजा में जीना पड़ा है. रिपोर्टिंग युद्ध के मोर्चे से लेकर घरेलू खबरें तक, में झूठ का बोल बाला रहता है. इराक की लड़ाई किसका उदाहरण है. कॉर्पोरेट मीडिया का इस सोच के प्रति लगाओ. इसे प्रमाण के साथ पेश करने की कला का कुछ अन्य उदाहरण कोसोवो और पनामा पर हमले हैं. कुछ समय पहले दुनिया भीषण आर्थिक मंदी से जूझ रही थी. फिर भी मीडिया के लोगों ने आगाह नहीं किया.अमेरिका से लेकर जापान तक समुचे विकसित पूंजीवादी दुनिया में बैंकिंग व्यवस्था घोटालों में फंस गई थी. और व्यापार चैनल बाजार में उछाल का झूठा राग लगाते रहा. आखिर में यह पूछा जाना चाहिए कि पत्रकारिता का भविष्य का फैसला सूचना और मुनाफे से किसके आधार पर किया जाए. भारत में कॉर्पोरेट मीडिया ने जिस अंधभक्ती के साथ भूतपूर्व की सरकार और वामपंथियों को बढ़ावा और सहारा दिया है. इससे देश के आंतरिक सुरक्षा स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गई है. मीडिया का यह रूप उन्हें देश विरोधी दलों के साथ खड़ा कर दिया है.


उपरोक्त आ के आधार पर हम निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1. पत्रकारिता का भारतीय और वैश्विक परिदृश्य के बारे में विस्तार से लिखें और उसे आज के संदर्भ में परिभाषित करें
2. भारतीय पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को लिखे. 
3. पत्रकारिता के गिरते स्तर पर टिप्पणी लिखें.

भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास

भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास-
संप्रेषन मानवीय स्वभाव, विकास की उपरोक्त क्रम में, मानव भाषा और लिपियों का विकास किया है. जो आपस में संचार के लिए संप्रेषण का माध्यम बन गया है. आज भी भारत के प्राचीन कालीन मंदिर के शिलालेख और स्तभों में खुरदी हुई राष्ट्रीय घोषणाएँ पढ़ सकते हैं. इससे भी पहले हड़प्पाकालीन सभ्यता के दौरान का शिलालेख, ताम्रपत्रों में सूचनाओं के संप्रेषण के उदाहरण हमें मिलते हैं. आर्य सभ्यता के समय भी शास्त्रों के महाकाव्य, वेद, पुराण, ग्रंथों को लिखा गया है. बाद में गुप्त काल के दौरान राष्ट्रीय आदेशों में मुनादी के जरिए लोगों तक सूचनाओं को पहुंचाने के लिए घुड़सवार और धावक हुआ करते थे. खास तौर पर इस दौरान लगान वसूली और अन्य आर्थिक मामलों की जानकारियां और सूचनाओं को देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाने की विशेष व्यवस्था की गई थी. मुगल काल में औरंगजेब के समय हस्तलिखित समाचार पत्रों के विवरण का इतिहास मिलता है. तब तक इन्हें शाही दरबार में ही वितरित किया जाता था. मुगलों के अलावा अन्य हिंदुस्तान (हिन्दू) के शासकों के भी शासनकाल में भी समाचार लिखने का जिक्र है. सामाचार को प्रसारित करने वाले को खबरी कहा जाता था. इस तरह प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों में नारद जी को सर्वप्रथम पत्रकार के रूप में माना जाता है. जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचनाएं पहुंचाने का कार्य भी करते थे. 1768 में अंग्रेजी राज के दौरान विलियम वोट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विरोध जताते हुए. कोलकाता के ब्रिटिश सभा के दौरान सभागार में एक पोस्टर चिपका दिया. जिसमे यह उल्लेख था कि, कोई भी भारतीय अगर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध भारतीय समाज को जागृत करता है तो, वो उसे आर्थिक मदद देने के लिए तैयार थे. लेकिन तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी ने वोट को सजा देते हुए भारत से उसे निष्काषित कर दिया. इसके बाद 29 जनवरी 1780 को जेम्स अगस्तत्स हिर्थो ने  बंगाल गजट नाम के 4 पेज का एक अखबार निकाला. इसे भारत का पहला अखबार माना जाता है. जिसमे अँग्रेज़ी शासको के काले कारनामों का पर्दाफाश करने वाले आलेखों को मजाकिया और व्यंगात्मक अंदाज में लिखा गया था. जिसके कारण अगस्तत्स को सजा हुआ और उन्हें जेल में डाल दिया गया.जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना एक प्रिंटिंग प्रेस खोला और उसमें कई पत्र-पत्रिकाओं को छापने का काम शुरू किया. इसी समय अंग्रेजी शासक लार्ड वेलेंजरी ने पत्रकारिता की धार को काटने के लिए कुछ नियन कानून लागू किये. इस कानून के अनुसार कई अंग्रेजी पर छापे भी और बंद भी हुए.
हांलाकि अंग्रेजों की ईसाई मिशनरियां को तब के प्रेस नियमों का पूरा फायदा हुआ. भारतीय समाज में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसारित करने के लिए कई पत्र-पत्रिकाएं निकाले. इसके विरोध में राजा राममोहन राय ने पहले ब्रह्मा निकाला और फिर फारसी भाषा में नीरा-उल-अखबार निकाला. नीरा-उल-अखबार 1923 में बंद हुआ. क्योंकि उसी साल अंग्रेजी राज ने प्रेस एक्ट लागू किया. जिसमें अखबारों के प्रकाशन संबंधित नियमों को बहुत कठोर कर दिया गया. इसके बावजूद हिंदी का पहला समाचार पत्र उदंत मार्तंड प्रकाशित हुआ. फिर 1829 में राजा राममोहन राय ने एक और अखबार वग-दुत निकाला. जो हिंदी, फारसी और बंगला में छपा. यह सभी अखबार सुधारवादी और राष्ट्रवादी थे. जिनका मुख्य उद्देश्य ईसाई मिशनरियों के धर्म प्रसार का जवाब देना था. 1857 की पहली क्रांति ने भारतीय समाज और पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया. इस क्रांति में शामिल भारतीय शासको, जमींदारों, फौजदार और बाघी जवानों ने एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपनी सूचनाएं पहुंचाने के लिए कहीं रोटी, भोजपत्र तो कहीं कागज का हस्त लिखित संदेश का आदान प्रदान किया. अब अंग्रेज समझ चुके थे कि, ब्रिटिश राज के प्रति भारतीयों के गुस्से को रोक पाना संभव नहीं है उन्होंने 1887 में भी प्रिंट प्रेस की स्थापना के लिए अनुमति को आवश्यक कर दिया.

भारतेंदु युग(1867-1900)- भारतेंदू हरिशचन्द्र ने  हिंदी पत्रकारिता के नवजागरण की दिशा में नई आशा का संचार किया हैं.उन्होंने कवि वचन,सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका, बालगोधिनी जैसी रचनाओं के माध्यम से, स्थानीय भाषा और बोलियों का प्रयोग करते हुए, कवितामय तरीके से लोगों तक अपनी बात पहुंचाया. उन्होंने 'अंधेर नगरी चौपट राजा' में तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के दमन को बहुत ही सजीवता से दर्शाया गया था. इस काल में 'भारत मित्र' नाम के एक अन्य समाचार पत्र भी जन जागरण में प्रमुख योगदान दे रहे थे.

तिलक युग (1900-20)- महान साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी और बाल गंगाधर तिलक ने साहित्यिक पत्रकारिता को समाज सुधार और राजनीति के विषय बनाकर अखबारों में लेख लिखें. सर्वसुधा निधि, उचित वक्ता उस समय के राजनीतिक अखबार थे. इसके अलावा सरस्वती, बंगवासी वैश्य प्रकार के अलावा 'भारत मित्र' जैसा पुराना अखबार भी वर्चस्व में था. तिलक ने महाराष्ट्र में गणपति उत्सव का आरंभ करते हुए. लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने के लिए, आग उगलने वाले लेख लिखें. 16 अक्टूबर 1905 बंगाल विभाजन पर शोक दिवस मनाया गया. पूरे बंगाल में         वंदे-मातरम् और बंग-भंग के नारे से बंगाल गुँज उठी. तिलक ने इसका जोरदार विरोध करते हुए. 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे लेकर रहेंगे'  का नारा दिया और लेख लिखे. मराठा और केसरी के नाम से उनके लेख अंग्रेज शासन का विरोध करते रहे. उनको कई बार जेल जाना पड़ा. मगर वो झुके नहीं.
1920 में कांग्रेस के अधिवेशन में हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया गया और इस अधिवेशन में माखनलाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, माधवराव,  विष्णु परासर, चंद्रधर शर्मा, गुलेरी जैसे प्रमुख पत्रकार भी शामिल थे. 1920 में भारत की भाषाई पत्रकारिता अंग्रेजी शासन के दमन के सामने सीना तान कर खड़ा था.

गांधी युग -  गांधी युग या छाया युग क्योंकि इस दौर में गांधी अगुवा के रूप में सामने थे. और उनके पीछे पत्रकार और साहित्यकारों की पूरी फौज जैसे परछाई का पीछा करते हुए चल रहे थे. विभिन्न विद्वानों ने छायावाद को अपने शब्दों में परिभाषित किया हैं-
डॉ रामकुमार वर्मा- परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती और आत्मा की छाया परमात्मा पर यही छायावाद है.

आचार्य रामकृष्ण शुक्ल-  छायावाद के दो अर्थ है.
रहस्यवाद से ओतप्रोत काव्यवस्तु, दूसरा काव्य शैली और पद्धति के विशेष रूप के तौर पर.

डॉक्टर नागेंद्र-  छायावाद एक विशेष भाव पद्धति है. जीवन के प्रति एक भावनात्मक दृष्टिकोण है.
                           इसी छायावादी दौर में मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, मुंशी प्रेमचंद्र जैसे साहित्यकार भी पत्रकारिता के मूल्य में समाहित हो गए. जिन्होंने अपनी कविता और आलेखों के माध्यम से जनता में अंग्रेजी दमन के प्रति आक्रोश और एकजुटता जैसी भावना जगाने की कोशिश की. इसी दौर में गांधी ने हरिजन, नवजीवन, हरिजन बंधु, हरिजन सेवक और यंग इंडिया जैसे समाचार पत्रों का संपादन किया. 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में गांधी ने अंग्रेजी राज में समाचार पत्रों की रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरे किए बिना 'सत्याग्रह' नाम की पत्रिका निकाली.यह वह दौर था, जब अंग्रेजी शासन के कई अखबारों को बंद करवा दिया था. वही रणभेरी जैसे कुछ अखबार भूमिगत रूप से छपने लगे. जिसमें अंग्रेजो को भारत से निकालने के लिए सशस्त्र क्रांति की बात कही गई थी.

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे "वृंदावन कहते है"

ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे "वृंदावन कहते है"


एक बार जब ग्रहण के समय सभी व्रज वासियों और द्वारिका वासियों को कुरुक्षेत्र में जाने का अवसर मिला तब श्री राधा रानी भी अपनी सखियों से साथ वहाँ गई,जब रुक्मणि आदि रानियों को पता चला की व्रजवासी सहित राधा रानी जी भी आई है तो उनके मन में तो बहुत वर्षों से उनसे मिलने की इच्छा थी,क्योकि भगवान हमेशा यशोदा जी नन्द बाबा और राधा रानी जी के प्रेम में इतना डूबे रहते थे कि द्वारिका में सभी रानियों को बड़ा आश्चर्य होता था.आज जब पता चला तो सभी ने भगवान कृष्ण से राधा रानी से मिलने की इच्छा व्यक्त की.

भगवान श्री कृष्ण ने कुछ सैनिको के साथ रानियों को भेजा,रानियाँ वहाँ पहुँची जहाँ राधा रानी जी ठहरी हुई थी,रुक्मणि आदि रानियाँ जैसे ही अन्दर गई,तो देखा एक बहुत सुन्दर युवती खड़ी हुई,वह इतनी सुन्दर थी कि सभी रानियाँ उनके सामने फीकी लगने लगी, सभी उसके चरणों में गिर गई,तब वह बोली - आप सभी कौन है?

तब रुक्मणि आदि रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?
तब सखी बोली - मै राधा रानी नहीं हूँ , मै तो उनकी सखी हूँ ,मेरा नाम इन्दुलेखा है.में तो राधारानी जी की दासी हूँ, वे तो सात द्वारों के अन्दर विराजमान है.रानियों को बड़ा आश्चर्य हुआ जिसकी दासी इतनी सुन्दर है तो वे स्वयं कितनी सुन्दर ना होगी?-आगे फिर एक-एक करके अष्ट सखियाँ मिली - रंगदेवी, तुंगविद्या, सुदेवी, चम्पकलता, चित्रा, विशाखा, ललिता.सभी रूप और सुंदरता की मिसाल थी. रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?

सभी रानियाँ आश्चर्य में थी जब ये सभी इतनी सुन्दर है तो राधा रानी कैसी होगी ?

सभी अष्ट द्वार के अन्दर पहुँची,देखा राधा रानी जी के दोनों ओर ललिता विशाखा सखियाँ खड़ी है और श्री राधा रानी जी सुन्दर शय्या पर लंबा सा घूँघट करके बैठी हुई है.रुक्मणि जी ने चरणों में प्रणाम किया और दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की.तब श्री राधा रानी जी ने अपने कोमल करो से अपना घूँघट ऊपर उठाया,घूँघट ऊपर उठाते ही इतना प्रकाश उनके श्रीमुख से निकला कि सभी रानियो की आँखे बंद हो गई.

जब उन्होंने राधारानी जी के रूप और सौंदर्य को देखा तो वे बस देखती ही रह गई.तब रुक्मणि जी की नजर राधा रानी जी के चरणों पर पड़ी देखा चरणों में कुछ घाव बने हुए है रुक्मणि जी ने पूंछा तो श्री राधा रानी जी कहने लगी आपने कल रात श्री कृष्ण को दुध पिलाया था,वह दूध गर्म था,जब वह दूध उनके ह्रदय तक पहुँचा तो उनके ह्रदय में हमारे चरण बसते है,इसी से ये घाव मेरे पैरों में आ गए.

इतना सुनते ही रानियों का सारा अभिमान चूर चूर हो गया,वे समझ गई कि कृष्ण क्यों हम सभी से अधिक राधा रानी जी को प्रेम करते है.

वास्तव में वृंदावन श्रीराधा रानी जी का शयनकक्ष हैं, जिसे निजकक्ष कहते है, वे रोज रात में वृंदावन आती है रासलीला करती है और प्रातः फिर बरसाने चली जाती है. यदि हमारे घर कोई अपरिचित आये तो हम अपने घर के फाटक के अन्दर होते है वह अपरिचित बाहर होता है हम बाहर से ही उससे बात करते है,यदि कोई परिचित आ जाए तो हम घर के बरामदे में उससे बात करेगे,कोई व्यवहारी आ जाए तो ड्रोइंग रुम में बैठाकर उससे बात करेगे,कोई सगा रिश्तेदार आ जाए तो रसोई घर तक आ सकता है.

पर हमारे निज कक्ष में किसी का भी प्रवेश नहीं होता,यहाँ तक की एक समय के बाद बच्चे भी नहीं आते,श्रीजी का बैडरूम वृंदावन है और उन्होंने हमें अपने निज कक्ष में प्रवेश दिया है. इसलिए वृंदावन साक्षात् राधारानी है. जहाँ ब्रह्म भी उनकी आज्ञा से ही आ सकते है. जिसके संकेत पर ब्रह्माण्ड नाचता है वह "ब्रह्म" है, और ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे"वृंदावन" कहते है.

गुजरात में फिर से कमल खिलेगा! जितेश सिंह


गुजरात कुरुक्षेत्र बन गया|
रणभेरी बज गई|
परिणाम तय था, 
फिर भी अब तक गुप्त है!
शायद! 
कमलों के प्रदेश में 
कांग्रेस कर रही घुसपैठ|
अब कुछ दिन शेष बचे हैं| 
पप्पू के स्वदेश में, 
गुजरात के प्रदेश में|
चुनावी नतीजे आने से पहले,
देखना चले ना जाए,विदेश!
अध्यक्ष बने हैं, मन प्रसन्न है|
पर ध्यान रहे!
गुजरात है! कमलों का प्रदेश!
                                       जितेश हिन्दू

अबकी बार बिहार में कमल का खिलना तय! जितेश सिंह

जातिवाद के पोषक हर्षित और प्रफुल्लित है|
बिहार में अराजकता लाकर,
जातिवाद के बीज बोये,            
अयोग्यता को बढ़ावा दिया,
शिक्षा व्यवस्था चौपट कर,
फिर चारा किसने चुराया था?
परिवारवाद को बढ़ावा देकर,
निकम्मी व्यवस्था चलाई गई|
इनका भ्रष्ट गठबंधन टुटा,
क्योंकि, मुख्यमंत्री चरित्रवान है|
रैलियों के नाम पर,
लड़कियां सरेआम नाच रही|
फिर इन्हें कैसे बिहार देते?
जो मिला वह भी छिन जाएगा|
अगर कुत्ते की तरह भौकते रहे.......


अबकी बार बिहार में
सुरज उगेगा, अंधेरा छटेगा और कमल खिलेगा!
                                                               जितेश हिन्दू

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

पत्रकारिता से समाजिक परिवर्तन.

पत्रकारिता से समाजिक परिवर्तन-
स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद आज पत्रकारिता का स्वरूप बहुत बदल गया है. पत्रकारिता इस समय केवल रोजमर्रा की घटनाओं, सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण और आलोचना तक ही सीमित नहीं रह गई है. बल्कि रेडियो, टेलीविज़न, डिजिटल माध्यमों से दिख रही. कड़ी चुनौतियों के चलते पत्रकारिता आब 24 घंटे अपने पाठकों, के बीच हमेशा कुछ नया पेश करने की बाध्यता बन चुकी है. चाहे समाचार पत्र का हो या रेडियो, टेलीविजन, डिजिटल कोई माध्यम हर माध्यम में कोई भी समाचार या विचार के लिए जगह तभी निकाल पाती है, जब वह एक व्यापक समाज के लिए रोचक, ज्ञानवर्धक, सूचनाप्रद, उत्साहपूर्ण और पठनीय हो. इस तरह आप की पत्रकारिता ना सिर्फ समाज के व्यापक बदलाव का माध्यम है. बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को बरकरार रखने के लिए आम लोगों की व्यवहारिक और विचारों में बदलाव का माध्यम भी है . आज की पत्रकारिता में हम सबसे पहले, सबसे तेज, सबसे बेहतर, सबसे अलग, सबसे विश्वसनीय जैसे सूचनाओं से निर्धारित कर करते हैं. पत्रकार की लिखी हुई एक खबर, तंत्र को जहां विकसित भी कर सकती है, वही उसके सामने समस्या के निदान का उपाय सुझाने वाली भी हो सकती है. पिछले 20 वर्षों की पत्रकारिता का इतिहास देखे, तो बोफोर्स कांड से लेकर कोयला घोटाले, देश में बढ़ती सांप्रदायिकता, महिलाओं के साथ यौन हिंसा और विक्षिप्त जैसी घटनाओं से लेकर, अब तक तीन तलाक के मामले तक, भारतीय मीडिया ने अपने रिपोर्टिंग और अन्वेषण कार्य प्रगति के चलते केवल जनता के बीच रखा. अपने सतत् प्रक्रिया यानि लेखनी के माध्यम से समाज को जागृत किया. समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार, जातिगत एवं सांप्रदायिक भेदभाव जैसे प्रवृतियों को ही उजागर ना किया बल्कि इस दिशा में सहमति मित्रता बनाए रखने का प्रयास सतत् ही किया है. इसे कोई नाकार नहीं सकता. सरकारी योजनाओं, नीतियों और सोच को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाल में स्वच्छता अभियान 'स्वच्छ भारत मिशन' को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है. जिसे लेकर भारतीय लोकप्रिय मीडिया ने लगातार सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही तरह की रिपोर्टिंग की और स्वच्छता मिशन से जुड़ी खामियां को ही उजागर नहीं किया, बल्कि उन मानवीय पहलुओं को भी बेहद प्रेरक तरीके से प्रस्तुत किया. जिसमे दुल्हन ने सिर्फ इसलिए शादी से इंकार कर दिया. क्योकि ससुराल में शौचालय नहीं था. स्पष्ट है कि मीडिया समाज को बदल सकता है, बशर्ते उसकी रिपोर्टिंग निष्पक्ष दृष्टिकोण से हो लेखन की प्रवृत्ति विश्लेषणात्मक गुणों से परिपूर्ण हो और लिखा गया समाचार के पीछे पत्रकार की अन्वेषणा व्यापक दृष्टि में शामिल होते रहे.
यह सब जिस समय से सरकार हो रहा है. जब मीडिया प्रबंधन का बड़ा हिस्सा व्यावसायिक घरानों के हाथों में हैं. और मीडिया लगातार जनसरोकारों के मुद्दों पर, पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने के आरोप लगते रहे हैं. इसके बावजूद दशरथ मांझी जैसे नायकों की भी कहानियां सुर्खियां में होती है. जो अपने गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए पहाड़ खोदकर रास्ता निकालता है. इस तरफ कूट-खदानों एवं राशन आवंटन, किसानों की समस्या- खाद की उपलब्धता आदि, विषयों पर लगातार समाचार पत्रों में प्रमुखता दी जाती रही है. लगभग सभी अखबारों की पहुंच दूरदराज के आंचलों तक है. और स्थानीय संवाददाता लगातार लोगों की समस्या को उजागर कर अपना दायित्व निर्वाह कर रहे हैं. समाचार एक चराचर व्यवस्था है. जो कभी स्थित नहीं रहेगा. उसे हमेशा कुछ नया चाहिए. उसे हमेशा बदलाव पसंद हैं. और इसी चुनौती को मीडिया में बखूबी निभाया है. इसका परिणाम एक सामाजिक कार्यों में लगातार शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पानी, बिजली और लोक व्यवहार जैसे मुद्दों पर जनता की सोच में आए बदलाव में देखा जा सकता है. फिर भी लिंगभेद, बाल विवाह, मानव तस्करी, लैंगिक अपराध, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही बनाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना जरूरी है. इसलिए मीडिया को इस समय संक्रमण काल से गुजरा हुआ माना जा सकता है.

उपयोगिता के आधार पर हम निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1.पत्रकारिता सामाजिक परिवर्तन का साधन है कैसे?
2. पत्रकारिता का समाज के प्रति दायित्व का उल्लेख करें.
3. सामाजिक सौहार्द बनाने पत्रकारिता की  भूमिका को स्पष्ट करें.

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

पत्रकारिता के विविध स्वरूप

राजनीतिक पत्रकारिता- राजनीतिक चुनाव पार्टी विशेष के, विभिन्न कार्यक्रमों. सरकार की नीति योजनाओं, कार्यक्रमों के पीछे की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव. पार्टी पदाधिकारियों की बैठक, सभाओं, रैलियों की कवरेज के साथ जमीनी स्तर पर दलगत, गतिविधियों की निष्पक्ष, रिपोर्टिंग और लेखन राजनीतिक पत्रकारिता कहलाता है. एक राजनीतिक पत्रकार का संपर्क किसी राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के सत्ता में बैठे और विकक्ष के नेताओं से होता है. लेकिन वे दल विशेष का पक्ष लिए बगैर, अपनी रिपोर्टिंग करते हैं. विश्लेषणात्मक, शक्ति, धाराप्रवाह और सरल भाषा लेखन में रोचकता और सशक्त तारकीय दृष्टि राजनीतिक पत्रकार के विशेष गुण है. समय समय पर राजनीतिक घटनाक्रम, सुझाव,परिणाम, नेता के बयानों प्रेसवार्ता की पृष्ठभूमि में राजनीतिक पक्ष पर पैनी नजर राजनीतिक संवाददाता के लेखन में नजर आने चाहिए.
क्राइम पत्रकारिता या अपराध- समाचार पत्र माध्यम का सबसे पठनीय और चुनौतीपूर्ण कार्य है. क्राइम पत्रकारिता असल में 24 घंटे सजक चपल और संपर्क में रह कर की जाने वाली पत्रकारिता है और अपराध की खबर मैदानी पड़ताल विभिन्न धाराओं, कानूनों की जानकारी, पुलिस एवं जांच एजेंसियों की जांच एवं विवेचना तौर-तरीके को समझने की है. अपराधिक दंड सहिंता की विस्तृत विस्तृत जानकारी, फॉरेंसिक जांच और संबंधित राज्य के कानूनों की पूरी जानकारी एवं क्राइम पत्रकार को होनी चाहिए. उसे ना केवल घटनास्थल पर जाकर रिपोर्टिंग करनी होती है बल्कि, अपराध और पीड़ित पक्ष के लोगों को भी ध्यान में रखना होता है. क्राइम पत्रकारिता तब तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं करता. जब तक पत्रकार अपराधी घटना के कारणों के अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंच जाता और इसलिए उसे घटनाओं के लगातार फॉलोअर्स की जरूरत पड़ती है.
खेल पत्रकारिता- अपराध पत्रकारिता के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और पठ्नीय पत्रकारिता खेल पत्रकारिता है.देश विदेश में होने वाली स्पर्धाओं की जानकारियां और एजेंसी से प्राप्त खेल परिणामों को खबर के रूप में संपादित कर, फोटो और अन्य आंकड़ों के साथ पेश करना, खेल पत्रकारिता का हिस्सा है. उसके लिए पत्रकार की भाषा में गतिशीलता, फ्लेक्सिबिलिटी, रोचकता, प्रवाह में Action जीवंतता होनी चाहिए. वरना पत्रकारिता निरर्थक है. इसलिए खेल पत्रकार को विभिन्न खेलों की तकनीकी और क्रियाशील जानकारी बुनियादी रुप से होनी चाहिए. साथ ही उनके पास खेल और खिलाड़ियों की व्यक्तिगत, खेल से संबंधित तथ्यों का होना जरुरी है. पत्रकार को विश्लेषक भी होना चाहिए. तभी वह परिणामों की समीक्षा और उस पर अपनी टिप्पणी कर सकता है.
फिल्म पत्रकारिता- 1913 में भारत की बनी पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र और 1931 में पहली सवाक फिल्म आलम आरा की समीक्षा से बाद से लेकर आज तक भारतीय सिनेमा में तकनीकी, सिनेमा बनने की विभिन्न विधाओं की बहुत से पड़ाव देखे हैं. श्वेत-श्याम से Colors TV और अब LED,HD, 3D के जमाने में पटकथा विषय संवाद की लय विभिन्न शैली प्रस्तुतीकरण, संपादन, सिनेमाकला की और आधुनिक कंप्यूटर तकनीक के इस्तेमाल के साथ ही बहुत विविधता आ गई है. समानांतर सिनेमा डोकोमेंट्री और छोटी फिल्मों ने दर्शकों के व्यापक समूह तक अपनी पहुंच बनाई है. ऐसे में फिल्म पत्रकारिता की चुनौती पहले से कहीं अधिक है, व्यापक और मुश्किल है. एक फिल्म पत्रकार को फिल्म तकनीक से जुड़ी सभी पहलुओं को समझने. लक्षित पत्रकारिता को संकलित करने,दर्शकों के मनोभाव के अनुसार अपनी समीक्षा पेश करनी होती है. साथ ही वर्तमान समय में नायक, नायिका के निजी एवं सार्वजनिक जीवन के बारे में रोचक जानकारियां पेश करने की चुनौती भी होती है. फिल्म फेयर, पिक्चर प्लस,फिल्मी दूनिया, फिल्मी कालिया, माधुरी जैसी फिल्म पत्रिकाओं के लेखन के लिए एवं व्यवसाय के लिए पैनी दृष्टि अवश्य फिल्मों से जुड़ी जानकारी पर रखनी चाहिए. लोकप्रिय धारावाहिक की समीक्षा और उसमें आने वाले एपिसोड को लेकर आगे की चर्चा को पेश करना भी पड़ता है.

आजादी के पूर्व और आजादी के बाद की पत्रकारिता

भारतेंदु हरिश्चंद्र और राजा राममोहन राय से लेकर मुंशी प्रेमचंद, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और माखनलाल चतुर्वेदी तक सभी पत्रकार के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे. उस समय यानी अंग्रेजी राज में रूढ़िओं, अंधविश्वासों, तरह-तरह की कुरीतियों और कर्मकांड में उलछे भारतीय समाज को जगाने और उन्हें एक दिशा दिखाने का काम इन सभी ने किया. इनमें में राजा राममोहन राय प्रमुख है. जिन्होंने सती प्रथा के खिलाफ एवं विधवा विवाह के पक्ष में जनमत खड़ा करने की कोशिश की और निर्भयता से अपने समाचार पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जन समाज तक पहुंचाया. उसी तरह महात्मा गांधी ने अपने समाचार पत्र हरिजन के माध्यम से छुआछूत, जाति प्रथा और अंग्रेजी राज्य के दमन के खिलाफ लेख लिखें. जनसमूह को जागृत करने का प्रयास किया. इन सभी का मकसद समाज और तंत्र के विसंगतियों को दूर कर एक समतामूलक समाज की स्थापना करना और भारत को अंग्रेजी राज के चंगुल से मुक्त कराना रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले की पत्रकारिता. भले ही एक व्यापक जनमानस तक, आज की तरह आधुनिक तकनीक के जरिए प्रचार-प्रसार नहीं हो पाती थी. पर उन्होंने अंग्रेजी राज के काले कानून और विसंगतियों को जनता तक पहुंचाएं और उन्हें प्रेरित किया. इनके साथ ही भारतीय पत्रकारों ने यूरोप की औद्योगिक क्रांति, रूस की बोल्शेविक क्रांति, प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय आम लोगों तक सूचनाओं को पहुंचाने में अहम योगदान दिया. इसके अलावे पश्चिमी देशों में लगातार हो रही. तकनीकी क्रांति को भारतीय समाज तक पहुंचाने का कार्य भी इन पत्रकारों ने किया. मूल रूप स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले की पत्रकारिता भारतीय समाज को जगाने, उसे सशक्त करने और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध में एकजुट कर आंदोलित करने का एक मिशन रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय पत्रकारिता ने एक नए रूप में अपने आप को ढ़ालना शुरू कर लिया. समाज पर उसकी पैनी नजर हो गई. पत्रकारिता अन्वेषण का काम भी बन गया और समाजिक अभिव्यक्ति को सामने लाने का मंच बन गया. सामाजिक सरोकारों से जुड़ी खबरे, सरकार की नीतियों, योजनाओं की समीक्षा, कार्य की तथ्यपूर्वक, विवेचना समालोचना की जाने लगी. आजादी के बाद समाचार पत्रों ने देश के विभिन्न हिस्सों, समाज के अलग-अलग वर्गों और ग्रामीण दूरदराज के आंचलों तक, अपनी पहुंच बनाने के प्रयास किए. यही वह समय था, जब समाचार पत्रों ने अपने मिशन मोड को व्यवसायिक पत्रिका से जोड़ना शुरु किया. महिला बच्चे और वंचित वर्गों को अपने से जोड़ने की कोशिश की. मानवीय भावनाओं, सांप्रदायिकता, हिंसा, लैंगिक, उत्पीड़न जैसे विषय समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगे. आम लोगों की समीक्षाओं उनकी अभिव्यक्ति को आलेखों, पत्रों के माध्यम से सामने लाए जाने लगे.
स्पष्ट है कि पत्रकार और पत्रकारिता दोनों ही समाज में गहराई से जुड़े हुए हैं. समाज में होने वाली घटनाओं को, समाचारों के माध्यम से सामने लाना ही पत्रकार का एकमात्र उद्देश्य नहीं, बल्कि! सरकार की नीतियों योजनाओं कार्यक्रमों के अलावे कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका के कामकाज की समीक्षा और वहां से जुड़ी जानकारियों को आम लोगों के समक्ष पेश करना. उनके गुण दोषों को परखना और समाज को एक निष्पक्ष निर्भीक तरीके से सच से अवगत कराना. पत्रकारिता का उद्देश्य है. इस तरह हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि,पत्रकार हमारे समाज का लोकपहरी है बतौर पत्रकार का उद्देश्य समाज के सहयोग के बिना या समाज से हटकर, कटकर  पूरा नहीं हो सकता. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर हम कहें, समाज, पत्रकार और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक है.
उपयुक्त बातों के आधार पर निम्न प्रश्नों से संबंधित उत्तर दिए जा सकते हैं-
1. पत्रकारिता और समाज के बीच अंतर संबंधों को दर्शाते हुए पत्रकारिता के प्रारंभिक काल से लेकर आज की चुनौतियों को रेखांकित कीजिए.
2. स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता के उद्देश्य को लिखे.
3. भारतीय पत्रकारिता में बदलाव को समझाएं.



पत्रकारिता और पत्रकार की परिभाषा

पत्रकारिता असल में रोजमर्रा की घटनाओं, सूचनाओं, संदर्भों को इकट्ठा करके. उन्हें समाचार की शैली में लिखने और उन्हें प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल एजेंसी या किसी अन्य माध्यम से के जरिए, एक व्यापक जनमानस में प्रस्तुत करने का कार्य है.
हालाकि यह पत्रकारिता की व्यापक परिभाषा नहीं कही जा सकती. क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और उसके बाद से लेकर आज तक, पत्रकारिता का स्वरूप और उद्देश्य बदलता रहा है. फिर भी समाचार को इकट्ठा करने, उनका लेखन, संपादन, लेख, आलोचना, समालोचना, फीचर्स, रिपोर्ट और यहां तक की गलतियों का संशोधन भी पत्रकारिता का हिस्सा है. पत्रकारिता की व्यापक परिभाषा पर आने से पहले हमें 18 वी शताब्दी से लेकर आज 21वीं सदी तक के विभिन्न विचारों, पत्रकारों और साहित्यकारों की परिभाषा को समझना होगा. जिन्होंने अपने स्तर पर पत्रकारिता को तत्कालीन संदर्भ में परिभाषित किया. इसमें कुछ प्रमुख पत्रकार एवं साहित्यकारों की परिभाषा का उल्लेख करना आवश्यक है. ताकि हम व्यापक संदर्भों में आज की चुनौती को देखते हुए, पत्रकारिता को सर्वमान्य से परिभाषित कर सकें. 
प्रेमचंद्र- पत्रकारिता समाज का दर्पण है, जो आपके जनजीवन के विभिन्न छवियों और रंग-रेखाओं को उभारता है.
???????- पत्रकारिता को हमेशा समाचार पत्रों के कामकाज से जोड़ा जाता है. लेकिन वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता समाचार के साथ फोटोग्राफी, रेडियो के लिए समाचार लिखना, पब्लिसिटी, पत्रिकाओं के कार्य और ऐसे कई बातों से रहा हैै, जिसका समाचार पत्रों से कोई संबंध नहीं है.
पंडित जवाहरलाल नेहरू- पत्रकारिता राष्ट्रीयता के चिंतन और अन्याय के खिलाफ शक्तियों को एकजुट, जागरुक कर एक नए राष्ट्र निर्माण का सशक्त माध्यम है.
महात्मा गांधी- जनता की इच्छाओं और उनकी समस्याओं को समझने, उन्हें आपनी लिखनी के माध्यम से उजागर करना. समाज में व्याप्त बुराईओ, असमानता और विसंगतियों को निडर होकर सामने लाना, पत्रकारिता है
उपयुक्त परिभाषाओं का चिंतन मनन कर. हम पत्रकारिता का सार्वभौमिक और सर्वमान्य परिभाषा को इस प्रकार लिख सकते है- पत्रकारिता सिर्फ एक मिशन ही नहीं व्यवसाय भी है जो समाज को जागरुक करने उसके ज्ञान को बढ़ाने समाज में दायित्वबोध को जगाने अन्याय के खिलाफ जनमत खड़ा करने का ना सिर्फ एक हथियार है बल्कि रोजमर्रा की घटनाओं सूचनाओं जानकारियों के प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम है उपयुक्त संदर्भ में अब हम पत्रकार की परिभाषा पर आए तो हमें यह प्रतीत होता है कि, समाचार लिखने तथ्य सूचनाओं जानकारियों को एकजुट कर उन्हें स्पष्टता, से पंक्तिबद्ध कर समाचार का स्वरूप देने वाले, संपादन करने वाले, लेख लिखने वाले, साक्षात्कार लेने वाले या किसी भी विचार की समीक्षा, आलोचना, समालोचना करने वाले सभी व्यक्ति पत्रकार कहलाते हैं.

उपयुक्त बातें निम्न प्रश्न के उत्तर के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं-
1. पत्रकारिता क्या है? वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता के क्षेत्र में बदलाव को रेखांकित कीजिए.
2. पत्रकारिता की अलग-अलग और सर्वमान्य परिभाषा को देखते हुए पत्रकार के मानवीय नैतिक सामाजिक और व्यवसाय गुणों को बिंदुवाद उल्लेखित कीजिए.
3. पत्रकारिता की भूमिका को समझाइए.

अटल बिहारी वाजपेयी के नक्शे कदम पर मोदी. जितेश सिंह

बात 1996 के लोकसभा चुनाव की है.
वाजपेयी जी लखनऊ के विशाल मैदान में चुनावी भाषण दे रहे थे. अचानक पास की मस्जिद से अजान की आवाज सुनकर, उन्होंने अपना भाषण रोक दिया. लोग चकित
हो उठे . अजान पूरी होने के साथ ही एक
बार फिर उनका वैचारिक प्रभाव अविरल ओजस्विता के साथ गुंजने लगा. तब देश के संप्रदायिक राजनीति से खिलाफत करने वाले, महान राजनेता अटल जी को विरोधियों ने, सांप्रदायिकता के दुष्परिणाम में घसीटने की कोशिश की. उस दौर में जनता जनार्दन ने इसका करारा जवाब दिया. सैकड़ों मुस्लिम महिला सन् 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के जीत के लिए, अपनी दाहिनी भुजा पर इमान-जमीन अर्थात पवित्र ताबिज बांधकर प्रार्थना की.
मोदी जी के भी गुजरात और बंगाल की चुनावी रैलियों एेसा देखा गया. तो क्या अटल जी का अनुसरण कर रहे हैं मोदी?
गुजरात के नवसारी में एक चुनावी भाषण के दौरान पास के मस्जिद से अजान की आवाज सुनकर, मोदी ने अपने भाषण को रोक दिया. जिससे जनता चकित रह गई. अजान खत्म होने पर पुन: भाषण शुरू किये. 2016 पश्चिम बंगाल खड़गपुर में भी एक चुनावी भाषण के दौरान अजान की आवाज सुनकर, मोदी जी भाषण को रोक दिया. यही नही! इस साल जब वर्मा की यात्रा पर गए, तो भारत के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर चादर चढ़ाई. इसी वर्ष अहमदाबाद के एक पुराणे मकबरा में, जापान के प्रधानमंत्री के ले गए. मुस्लिमों के लिए कई क्रांतिकारी पहल मोदी सरकार ने की है. तीन तलाक, शिक्षा, रोजगार, मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान,आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, जैसे कई कल्याणकारी कानून बनाये गये. हज यात्रा के लिए सरकारी ने सब्सिडी 4000 से बढ़ाकर 15000 कर दी. 45 वर्ष से अधिक उम्र के मुस्लिम महिलाओं के लिए हज यात्रा के लिए विशेष प्रावधान लागू की. वर्तमान के 3 साल से अधिक के कार्यकाल में पूरे भारत में एक भी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए. फिर भी कुछ नेता राजनीतिक लाभ के लिए भारत को असहिष्णुता का जामा पहना रहे.        
      जितेश सिंह                                    
                                                 
                                             
                                             





कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...