शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

पत्रकारिता पूँजी प्रौद्योगिकी और बाजार के प्रभाव!

1980 और 90 के दशक में कुछ घटनाओं ने, राजनीतिक आर्थिक और संचार के अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं को, फिर से परिभाषित कर दिया. 80 के दशक में विकास के सोवियत समाजवादी मॉडल चरमराने लगी. 1991 सोवियत संघ टूट कर बिखर गया. इसे पश्चिम उदार लोकतंत्र और मुक्त अर्थव्यवस्था की जीत माना गया.  2000 के दशक में सूचना क्रांति ने नई ऊंचाइयों ऊंचाइयों तय की. इसी के साथ भारत सहित दुनिया भर में मुक्ति अर्थव्यवस्था और आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में सुधार हुआ. तब तक! शीतयुद्ध कालीन वैचारिक राजनीति की जगह, अवसरवादी भूमंडलीकरण और नए उपभोक्ता संस्कृति का जन्म हुआ. इसका सर्वाधिक प्रभाव जनसंचार के माध्यम पर पड़ा. वे सभी नवउदारवादी उपभोक्ता संस्कृति के हिस्से बनते  चले गए. और वे वैश्विक राजनीति और व्यापारियों के अधीन होने लगे. यह प्रक्रिया अब चरम पर है. राजनीतिक अर्थव्यवस्था के स्वरूप के अनुसार ही सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य बदल रहे हैं. इसलिए कहा जा सकता है कि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में पश्चिमी जीवन शैली और सांस्कृतिक मूल्यों का ही विस्तार हो रहा है. इसे आगे बढ़ाने में वैश्विक मीडिया की भूमिका है. इस तरह मीडिया एक बहुरंगी और विविध दुनिया को स्वरूप बनाकर उसे वैश्विक सुपर बाजार के रूप में पेश करते हुए दिखाता हैं. नई वैश्वीक व्यवस्था ने विकासशील देशों के उन तमाम अपीलों को लगातार ठुकराया. जो उन्होनें विश्व की एक नई सूचना व्यवस्था कायम करने के लिए पेश की थी. 1980 में मैंब्राइड आयोग ने यूनेस्को में विकासशील देशों की इस मांग को प्रमुखता तो दी. पर सूचना और समाचार की मांग में संतुलन की मांग करने वाले विकासशील देश. दूर संचार उपग्रह और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी पर केंद्रित वैश्विक सूचनाओं के प्रवाह के इस तरह बह गये कि, उन पर अंकुश लगाना है उसके लिए समय नहीं था. विकासशील देश पश्चिमी देशों से सूचना की एकतरफा प्रवाह की शिकायत करते थे. लेकिन आखिर में उन्हें भी भूमंडलीकरण का रास्ता अपना ही लिया. नई वैश्वीक व्यवस्था में पश्चिमी देश वैश्विक मीडिया को नियंत्रित करती है. मीडिया को नियंत्रित करना यानी किसी देश और समाज के छवि पर भी नियंत्रण करना है. मीडिया ऐसे मानक तय करता है. जिससे सही गलत सभ्य-असभ्य का पैमाना तय होता है. इसी निर्धारण से संस्कृति उपनिवेशवाद की सीमा शुरू होती है. उदारीकरण और निजीकरण के दौर में आयी. आर्थिक समृध्दी ने उपभोक्ताओं का एक नया वर्ग स्थापित किया है. जिसके कार्य शक्ति अधिक है. आज के दौर की मीडिया क्रांति इसी वर्ग पर टिकी है. क्योंकि मीडिया उत्पादों की मांग इसी वर्ग से ज्यादा है. सूचना क्रांति के इस दौर में दुनिया भर में जितना संवाद हो रहा है. उनका आकार तो अपेक्षाकृत बड़ा हुआ है. लेकिन विषय वस्तु सीमित है. उदाहरण के लिए आतंकवाद! मीडिया का एक नया उपभोक्ता का वर्ग अधिक से अधिक मनोरंजन चाहता है. लेकिन वह कम सूचित और कम जानकार होता जा रहा है. असल में मीडिया नई जीवनशैली और नए मूल्यों का कुछ इस तरह सीजन कर रहा है. जिससे एक नया बाजार शुरू हो सके. यह सिलसिला 1990 के दशक से जारी है. फिलहाल मीडिया अब सार्वजनिक-व्यवहारिक से हटकर, व्यवहारिक-सार्वजनिक का उद्गम बन गया है. जिसे व्यापारिक हित संचालित कर रहे हैं. दुनिया अगर वैश्विक गांव बन गई तो उस गांव में वैश्विक मीडिया का नियंत्रण विभिन्न देशों की सीमा के भीतर तक हो चुका है. और इसीलिए अधिकतर देशों की राजनीति सामाजिक और सांस्कृतिक दीवारें ढह रही है. मीडिया संगठन या तो खुद व्यापारिक संस्था बन गई बन गए हैं, या फिर पूरी तरह विज्ञापन पर टिकी हुई हैं. एक तरफ इंटरनेट जैसी नहीं प्रौद्योगिकी ने किसी भी व्यक्ति को अपने बात को वैश्विक मंच तक पहुंचाने का अवसर दिया
है. वही मुख्यधारा में मीडिया का केंद्रीयकरण भी तेजी से हो रहा है. मीडिया का आकार बड़ा होता जा रहा है. लेकिन इस पर स्वामित्व रखने वाली कंपनियों की संख्या कम होती जा रही है. पिछले कुछ दशकों ने कई बड़ी मीडिया कंपनियों ने छोटी मीडिया का अधिग्रहण किया है. वही बड़ी मीडिया कंपनी का विलय से भी मीडिया के केंद्रीयकरण को ताकत मिली है.  उदाहरण के लिए रुपर्ट मेग्जिन का न्यूज़ कॉर्पोरेसन अमेरिका के साथ, कनाडा, यूरोपीय देशों, एशिया और लैटिन अमेरिका के मीडिया में खासा दखल रखता है. विश्व की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी और दूसरी सबसे बड़ी मीडिया कंपनी वायकॉम दोनों ही अमेरिकी है विश्व बाजार के बड़े हिस्से पर इनका नियंत्रण है. सोनी टीवी (Sony TV), माइक्रोसॉफ्ट, गुगल (Google), याहू (Yahoo) से लेकर हथियार बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल ने भी मीडिया जगत में पाव रखना शुरु कर दिया. कुल मिलाकर मीडिया बाजार की वर्तमान होर के बीच गंभीर राजनीति विर्मश पर कम और उन उत्पादों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहा है. जैसे- मनोरंजन!
जो व्यापक जनमानस का ध्यान खींच सके. कई मौकों पर बड़ी राजनीतिक विषय को सही रूप में पेश नहीं किया जाता है. और आलोचनात्मक होने का ढोंग करके वास्तविक आलोचना को दरकिनार किया जाता है. टेलीविजन पर राजनीतिक बहस का मूल्यांकन करें तो कमोवेश इसी तरह का कार्यक्रम तु-तु-मैं-मैं  के मनोरंजन की ओर अधिक झुके नजर आते हैं. जबकि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य इससे गायब हो जाता है. इसीतरह राजनीतिक नेताओं का उदय भी नए मीडिया का उदाहरण है. जिस का असली मकसद मनोरंजन परोसना है.

उपरोक्त कथन के आधार पर निम्न प्रश्नों का जवाब दे सकते हैं-
1. एक संतुलित समता मूलक और विकास उन्मुखी समाज के निर्माण में मीडिया की केंद्रीय भूमिका को संक्षेप में बताएं.
2. पत्रकारिता पर पूजी प्रौद्योगिकी और बाजार के प्रभाव को विस्तृत रूप में दर्शाएं.
3. वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता को समझाएं. पत्रकारिता के व्यवसाय के रूप पर टिप्पणी लिखें.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...