बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

घाट पर हाथी-कोशिया भरात बा। गणिनाथ साहनी

घाट पर हाथी-कोशिया भरात बा।
         *****

गाँव-गिराव में श्रद्धा उमड़ल
गंगाघाट बा सजल-धजल
निरियल, केला, ऊँख, ठेकुआ भरल दउरा से
सुरुजदेव के अर्घ पड़ल।

लईकन सभे नया पहिन के
चहलकदमी कईले बा,
बुढ़वन के भी धोती-कुरता नया बा
जवनकन लोग भी नया-नया सिअईले बा।

छठी मईया के गीत-भजन से
घर-अंगना सुहावन लागत बा,
'केरवा जे फरेला घवद से'
छठव्रती सभे गावत बा।

चारोओर सुहावन लागे
घाट पर हाथी-कोशिया भरात बा,
डूबइत-उगइत दूनो बेरिया
आदितमल के गोर लगात बा।

छठ पर्व से जीवन में
नया ऊर्जा के संचार होखेला,
सुरुजदेव के कृपा होला
सालभर दुख-दलिद्दर के
आदितमल रोकेला।

छठी मईया के कृपा अपने सब पर लगातार बनल रहे। इहे कामना के साथ-

              अपने के
      गणिनाथ सहनी, रेवा

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

 दारुल उलूम जकरिया के वरिष्ठ उस्ताद और फतवा ऑन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारूकी के अनुसार ईमान शब्द सिर्फ मुसलमानों के लिए ही प्रयुक्त और उपयुक्त है इसलिए इमान शब्द और ईमानदारी शब्द का प्रयोग हिंदुओं के लिए होना अप्रत्याशित और अवांछित है विकपतः  निष्ठावान या नैषि्ठक शब्द का प्रयोग आपेक्षिक है |

ईमान बचाकर रखता क्या ? -गणिनाथ साहनी



बेईमानों की बस्ती में
ईमान बचाकर रखता क्या ?
जुल्मी दरिन्दो की हस्ती में
हौसला सजाकर रखता क्या ?
हो पथ काँटो से भरा हुआ
तो फूल सजाकर रखता क्या ?
नव जीवन का उल्लास लिए
अस्ताचल में छिपता क्या ?
उफ ! ये बादल है उष्ण लिए
फिर रिमझिम वर्षा करता क्या ?
बिन पतवार की नईया को
साहिल से हटाकर रखता क्या ?
जब भांग पड़ी हो कुँए में
तो नशा से मैं उबरता क्या ?

       - गणिनाथ सहनी (रेवा, मुजफ्फरपुर बिहार )

रविवार, 22 अक्तूबर 2017

आस्था और वैज्ञानिकता का समावेश छठ महोत्सव ! - जितेश सिंह

आस्था और वैज्ञानिकता का समावेश छठ महोत्सव । बिहार-उत्तरप्रदेश में छठ पूजा के प्रति लोगों की आस्था । पौराणिक परंपरा, अनुशासन,वैज्ञानिकता और समाजिकता चारों का । एक अद्भुत संगम है ।
आधुनिकता का प्रभाव आज भी छठ महोत्सव से कोसों दूर है । पुरानी परंपरा रीति-रिवाज, अनुशासन, समर्पण आज भी छठ पूजा की आधारशिला है । चार दिवसीय छठ उत्सव अपने आप में एक आधुनिक प्रबंध को छिपाए हुए हैं । प्रबंध का एक वैसा नियोजित व्यवस्था है । वर्तमान में नहीं, जिसमें परंपरा, अनुशासन, वैज्ञानिकता, सामाजिकता का एक अद्भुत मेल हो । 4 दिनों का यह महाउत्सव अद्वितीय है।
प्रथम दिन स्नान करके ही भोजन बनाया जाता है, जिसे 'नहा-खा' कहा जाता है| उपासक शुद्ध होकर घरेलू साम्रगी से बने स्वनिर्मित आहार का ही ग्रहण करती है। पूजा संबंधित सारी व्यवस्था क्रमानुसार इसी दिन तय हो जाती है। अगलेे दिन (दूसरा दिन)  निर्जल उपवास रखती है । रात को पूजा उपरांत जल तथा प्रसाद ग्रहण कर। गर्वगृह (पूजा घर) में ही प्रवास करना होता है। विश्राम के लिए हस्त से बने कुश के चटाई को शुद्ध माना जाता  है। पुनः आगले दिन उपवास रखती हैं । इसी दिन (छठ पूजा के तीसरे दिन) शाम को सूर्यास्त से ठीक पहले नदी किनारे भगवान सूर्य के साक्षात दर्शन कर। सूर्यदेव से परिवार के सभी सदस्यों के लिए बल, बुद्धि, विवेक, अटूट संबंधों बना रहे। इसके लिए उनका आह्वान करती है, साथ ही सूर्य देव जैसा यशस्वी, कल्याणकारी  वंश की कामना करती हैं। जिसका तेज सूर्य के समान और बल बुद्धि का प्रयोग सूर्य देव की प्रकाश की तरह लोक-कल्यान्कारी  हो । छठ पूजा के अंतिम दिन यानी चौथा दिन प्रात: नदी किनारे भगवान सूर्य की आराधना होती है । मंगल गीत, उत्सव के साथ सूर्य देव का उदय स्वागत, आराधना के बाद इस महाउत्सव की समाप्ति होती है ।
छठ पूजा में सभी घर के सदस्यों का आपसी तालमेल बढ़ता हैं । समाज के सभी लोगों का सहयोग, आपसी भाईचारा बना रहता हैं, सभी एक दूसरे के सहयोग से नदी तट की सफाई करते हैं । छठ पूजा हेतु आधिकांश साम्रगी गांव से निर्मित या उत्पादित होती हैं, जिसे आपस में सभी बांट लेते हैं । जिससे आर्थिक मदद मिलती हैं। और सामाजिकता बढाती हैं!  छठ पूजा के दौरान पूजा सामग्री और पूजा की विधि आज भी पुरानी रीति रिवाजों को सहजे हुए हैं । उन्हें संरक्षण दे रही । पुरानी व्यवस्था, शुद्धता और उसका महत्व जगजाहिर हैं, कितना संतुलित था,  छठ पूजा हेतु प्रसाद के रूप में जो भी फल-फूल उपयोग में लाए जाते हैं। सभी के सभी अमृत (औषधि) का कार्य करते । जिसे प्रकृति में बदलाव के समय ग्रहण करना अतिआवश्यक है । क्योंकि इस समय में ऋतु में परिवर्तित होती है अतः इन फलों का ग्रहण करना आवश्यक होता है। जल से परावर्तित होकर जब सूर्य की किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं । जिससे कुष्ठ रोग नहीं होता। जिसे यह रोग हुआ भी हैं । उसका खत्म हो जाता है । छठ से जुड़ी एक पौरााणिक कथा भी इसका उल्लेख करती हैं। पूजा के समय घर में एक देवीय अनुशासन का माहौल बन जाता है । जिसमें परिवार के सभी छोटे बड़े लोगों को इसका पालन करना होता है । उन्हें पूजा संबंधित कार्य उनके क्षमता के अनुसार दी जाती है। यह उत्सव एक ऐसा अनुशासन की विधि का संरक्षण करता है, जिसमें समाज के हर वर्ग को कोई न कोई कार्य अवश्य करना पड़ता है।  उन कार्यों को एक अनुशासन में करना इस पूजा पद्धति को अद्वितीय बनाती है।
छठ महोत्सव को समझने के लिए। इसके महत्व को करीब से जानने के लिए। छठ पूजा में उत्तर प्रदेश या बिहार में जरूर आए। आधुनिकरण के इस दौर में आज भी छठ पूजा की पद्धतियां अपने आप में कई पुरातन प्रक्रियाओं को सहेजें हुई है। इसे जानने और समझने की आवश्यकता है।
                                               - जितेश सिंह
                 

नंग-धरंग था ! - गणिनाथ साहनी

नंग-धरंग था
कड़ाके की ठंड में
किसी ने झिंगोला पहना दिया
काले-कलुठे बदन में, अंग में।

नंगे पाँव चला था
मंजिल की ओर
कुछ-कुछ अभाव में
किसी ने चप्पल पहना दिया
हमारे पाँव में।

बेघर, यायावर, अनिकेत था
किसी ने ठौर दिया,
क्षुधा अतृप्त थी
किसी ने निवाला दिया,
रोटी का कौर दिया।

जीवन से निराश था
किसी ने आस दिया,
कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा दी,
विश्वास दिया।
इस तरह जीवन की गाड़ी
पटरी पर चलने लगी,
स्नेह की चिकनाई से
धुरी में गति आ गई, फिसलने लगी।

वह कोई और नही था
माँ थी !
जिसने ममता की छाया में
पाल-पोसकर बड़ा किया,
अंगुली पकड़ाकर चलना सीखलाया
अपने पैरो पर खड़ा किया।

          - गणिनाथ सहनी (रेवा, मुजफ्फरपुर -बिहार)

संसार मुसाफ़िरख़ाना है ! गणिनाथ साहनी

जाग जरा वो सोने वाले
नींद में भी धन की गठरी
सिर पर ढ़ोने वाले।
स्नेहहीन वस्त्र से लिपटे रहते
केवल स्वार्थ से चिपटे रहते।
सारी गठरी यहीं रहेगी
देह की ठठरी यहीं रहेगी
यह तेरी सुकर्म भूमि है,
यहाँ न स्थायी ठिकाना है।
जाग जरा वो सोने वाले
संसार मुसाफ़िरख़ाना है।

मत व्यर्थ वितंडा बकवास में रहना
हरदम सत्य के पास में रहना।
दोनो पल में हँसते रहना
धन तो आता-जाता रहता
पर मन-हृदय से धनी रहना।
सब धन नष्ट हो जाता है,
संतोष का मिटता नही खजाना है।
जाग जरा वो सोने वाले
संसार मुसाफ़िरख़ाना है।

रजनी कितनी ही काली हो,
आती एक रोज दिवाली है।
सारी कालिमा छट जाती है,
सूर्य की लालिम से
धरा पट जाती है।
सौभाग्य बीज सदा
दबा नही रहता है,
आँधी-पानी सब सहता है।
एक दिन ऊपर आ जाता है,
मीठा फल पान कराता है।
फिर देख सभी ललचते हैं,
पीछे-पीछे पग धरते हैं।
पर वह मस्ती में गाता जाता है।
देखता रहजाता सारा ज़माना है।
जाग जरा वो सोने वाले
संसार मुसाफ़िरख़ाना है।

        - गणिनाथ सहनी, (रेवा,मुजफ्फरपुर,बिहार)

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

माँ का दर्द। - गणिनाथ सहनी

बहुत कमाया नाम व पैसा
छोड़के अपना गाँव-वतन
तरस गई है बूढ़ी आँखे
बरस रही बेमौसम झरझर।
अब तो उर भी सूख चुका है,
कहाँ से लाए नीर नयन।
नही टिकौना तुम बिन मेरा
उजड़ा लगता पल्लवित वन।
कहाँ गया किस देश में रहता !
न चिट्ठी न खोज खबर।
रोज-रोज टकटकी लगाए
बैठी रहती हूँ चौखट पर।

पूछा था रामभरोसी से
कहाँ रहता है मेरा रतन ?
कब आएगा कुछ खबर भी है ?
लौटकर वह अपने वतन।

रामभरोसी कम पढ़ा-लिखा है,
रामकथा में सुना है लंका
और केवल लंका को ही विदेश समझता है,
इसलिए कहा-
शायद वह लंका में है।

माँ बोली-
लंका में होता तो
राम की तरह चौदह वर्ष में आ जाता
अब तो पंद्रह बीत गये
शायद वह लंका से भी दूर
पलंका में है।

पथरा गई है माँ की आँखे
देखते-देखते राह
अब बची नही है शेष
जीने की चाह।

          - गणिनाथ सहनी, (रेवा, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार)

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

आज की पीढ़ी हमें भयंकर विनाश की ओर ले जा रही हैं ! - जितेश सिंह

भारत हमेशा दो प्रकार के व्यक्तित्व से घिरा रहा । यूं कहें भारत में दो प्रकार की विचारधारा हमेशा से ही प्रभावी रहा ।इन्हीं व्यक्तित्व और विचारधाराओं के प्रतिपादन । देश का वर्तमान और भविष्य निश्चित होते आ रहा है । अपेक्षानुसार इनकी संख्या में परिवर्तन ही वर्तमान और भविष्य को दिशा देती  हुई अाई है । जिसके कारण हम मुगलों, अंग्रेजो, पुर्तगालियों के गुलाम हुए । पुन: आजादी मिली । इतने संघर्षों के बावजूद । आज की भावी पीढ़ी उन कृत्यों के प्रति उतना ज्ञान नहीं रखती जितना आपेक्षित हैं । हिंदू लोगों की मानसिकता के निराशजनक पक्ष ने हमें अपने ही विषय में जानने समझने और विचार करने से निषिद्ध किया है । हमने हिंदुत्व के जीवंतता और जिजीविषा को कभी समझा ही नहीं ।
          कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।
           सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा ।।
आज दुःख की बात हैं कि उस 'कुछ बात' को स्वयं हमने ही नहीं समझ पाए । हिन्दू समाज में अपने ही प्रति व्याप्त निराशा का यह दुर्बलत्म पक्ष हमारे लिए अभिशाप बन गया है । इस अभिशाप के कारण हमारी आज की पीढ़ी हमें भयंकर विनाश की ओर ले जा रही हैं ।
                                          जितेश सिंह 

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

06. Abvhvv

समुच्यवाचक - जब दो या दो से अधिक वाक्यों को या उपवाक्यों को जोड़ने के लिए वाक्यों में जिन शब्दों का प्रयोग होता हैं, उसे समुच्यवाचक कहते हैं ।
जैसे - राम और श्याम बाजार जाते हैं ।
समुच्यवाचक के दो भेद होते हैं -
क. समानाधिकरण समुच्य - जो दो वाक्यों, उपावक्यो को आपस में जोड़ता हो । जिसमें दोनों पद समान हो, उसे समानाधिकरण समुच्य कहते हैं ।
जैसे - राम और कृष्ण महान थे । , राधा और कृष्ण एक ही थे।
ख. व्यधिकरण समुच्य - जिसमें एक प्रधान पद हो और दूसरा सरल या सहायक पद को आपस में जोड़ने वाले शब्द को व्यधिकरण समुच्य कहते हैं ।
जैसे - सीता के लिए राम ने रावण को मारना पड़ा ।, मैं स्कूल जाकर पढूंगा ।
क. समानाधिकरण के चार भेद होते है -
१. संयोजन वाचक
२. वियोजन वाचक
३. विरोध वाचक
४ . परिमाण वाचक
ख. व्यधिकरण के चार भेद होते हैं -
१. कारण वाचक
२. संकेत वाचक
३. उद्देश्य वाचक
४. स्वरूप वाचक




मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

05. Abvhvv -jitesh singh

संबंधवाचक - जिन अव्यायों शब्दों से संज्ञा तथा सर्वनाम के संबंध दूसरे शब्दों के साथ जाना जाता हैं, उस अव्यय को संबंधवाचक कहते हैं।
संबंधवाचक के वेद निम्न होते हैं -
कालवाचक - आज, कल ,पूर्व, बाद
स्थानवाचक - ऊपर, नीचे, बाहर, भीतर
साधन वाचक - द्वारा, बलबूते, कारण,
विरोध वाचक - उल्टा, विपरीत, विरुद्ध
दिशा वाचक - समाने, ओर, तरफ, आर - पार
समता वाचक - समान, तरह, भांति, बराबर
हेतु वाचक - लिए, सिवा
सहचर वाचक - संग, साथ, भर, मात्र
संग्रह वाचक - तक,भर, समेत
तुलना वाचक - अपेक्षा, आगे, सामने

04. Abvhvv -jitesh singh

क्रिया विशेषण - जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलावे उसे क्रिया विशेषण कहते हैं । जैसे - राम धीरे-धीरे चल रहा है । मोहन बहुत तेज दौड़ता है ।
क्रियाविशेषण के चार भेद होते हैं -
कालवाचक क्रिया विशेषण - वाक्य वह शब्दार्थ जो किसी क्रिया के किसी निश्चित काल में होने का बोध करें , उसे कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं जैसे - राम कल आएगा मोहन परसों से उदास है ।
स्थानवाचक क्रियाविशेषण - वैसा क्रियाविशेषण शब्द जिससे किसी कार्य को निश्चित स्थान पर होने का बोध हो उसे स्थानवाचक क्रिया विशेषण करते हैं । जैसे - राम पटना जाएगा । मोहन दिल्ली से आवेगा ।
परिणाम वाचक क्रिया विशेषण  - जो किसी के क्रिया के मापने या तौलने की विशेषता बतलावे उसे, क्रिया हो, उसे परिणामवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं ।
रितीवाचक क्रियाविशेषण - जो किसी कार्य की विशेषता बतलावे,उसे रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं । जैसे - राम साहसी है । मोहन तेज दौड़ता है ।

03. Abvhvv - jitesh singh

४. क्रिया - जिस वाक्य में किसी कार्य के करने या होने का बोध होता हो, उसे क्रिया कहते हैं । जैसे - राम खा रहा है। मोहन खेलता है ।
क्रिया के छ: भेद होते हैं -
क. सर्कमक क्रिया - जिस वाक्य में कर्ता प्रधान हो,  सर्कमक क्रिया कहते हैं । जैसे - सोनू पढ़ता हैं । , मोहन खाता है।
ख. अर्कमक क्रिया - जिस वाक्य में कर्म प्रधान हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते  मोहन बाजार जाता है। मोहन बाजार जाता है ।
ग. सहायक क्रिया - किसी वाक्य में जो शब्दांश प्रधान की सहायता करे उसे सहायक किया कहते हैं । जैसे - उसे लेकर आना ।, पढ़कर भोजन करना ।
घ. संयुक्त क्रिया - किसी वाक्य में जब एक से अधिक किया संयुक्त हो तो उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं जैसे मां बालक को दूध पिलाती है ।
च. प्रेरणार्थक क्रिया - किसी बात के मैं जाऊं स्वयं कोई व्यक्ति कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता हो तो उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं । जैसे - मैंने राम को पिटवाया ।
छ. क्रियात्मक क्रिया - जब किसी वाक्य में क्रिया संज्ञा की तरह कार्य करें तो उसे क्रियात्मक क्रिया कहते हैं । जैसे - टहलना एक अच्छा व्यायाम है ।

02. Abvhvv - jitesh singh

विशेषण - वह शब्दांश, जो किसी वाक्य में संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बतलावे, उसे विशेषण कहते हैं ।
जैसे - चोर, ईमानदार, मोटापा, काला, लाल, इत्यादि ।
विशेषण के छ: भेद है -
क. गुणवाचक विशेषण - जिससे किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का गुण/ दोष प्रकट हो, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे - वह गद्दार हैं ।, राम गुणवान हैं।, मोहन चोर है ।
ख. संकेतवाचक - वह शब्दांश जो किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करे, उसे संकेतवाचक विशेषण कहते हैं ।
ग. संख्यावाचक विशेषण - जिससे किसी वाक्य में संख्या का बोध हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे - दोनों चोर है ।, पांच छात्रों का भविष्य उज्ज्वल हैं ।
घ. परिणाम वाचक विशेषण - जिससे किसी वाक्य में मापने या तौलने का बोध हो, उसे परिणाम वाचक  विशेषण कहत
 हैं ।
जैसे - थोड़ा चावल देना ।, मुझे कुछ खाना है ।, वह बहुत चावल खाता हैं ।
च. व्यक्तिवाचक विशेषण - जो किसी वाक्य में व्यक्तिवाचक संज्ञा की विशेषता बतलावे, उसे व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे - मोहन चोर हैं। , कश्मीरी आतंकी हैं ।
छ. विभागावाचक - जिस विशेषण शब्द से पृथकता का बोध हो, उसे विभगावाचक विशेषण कहते हैं ।
जैसे - प्रत्येक लड़के को केला दो । तीनो मोमबत्तियां जल गई

01. Abvv - jitesh singh

१. संज्ञा - जो शब्द किसी व्यक्ति, स्थान, जाती, भाव के नाम का बोध करे, उसे संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - राम, सीता, बाघ, कौआ, बादल, पटना, हिमालय, भोपाल, इत्यादि ।
संज्ञा के पांच भेद होते हैं -
क. व्यक्तिवाचक संज्ञा - जिससे किसी व्यक्ति या स्थान के नाम का बोध हो, व्यक्तिवचक संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - राम, सीता, मोहन, पटना, हिमालय, भोपाल, इत्यादि ।
ख. जातिवाचक संज्ञा - जिससे किसी जाति का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - मनुष्य, पशु, पक्षी, इत्यादि ।
ग. समूहवाचक संज्ञा - जिससे किसी समूह का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - मेला, सभा, सेना, इत्यादि ।
घ. द्रव्यवाचक संज्ञा - जिससे किसी वस्तु के मापने या तौलने का बोध हो, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - चावल, आटा, तेल, पानी, इत्यादि ।
च. भाववाचक संज्ञा - जिससे किसी व्यक्ति का भाव ( गुण या दोष ) प्रकट हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं ।
जैसे - चोर, संत, मोटा, पतला, इत्यादि ।
२. सर्वनाम - जो शब्द किसी वाक्य में संज्ञा के बदले प्रयोग हो, सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे - यह, वह, तुम, मैं ,कोन, इत्यादि ।
सर्वनाम के छ: भेद होते हैं -
क. प्रश्नवाचक सर्वनाम - जिस वाक्य में प्रश्न करने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
तुम कोन हो ? उसका नाम क्या हैं ?  इत्यादि ।
ख. पुरुषवाचक सर्वनाम - जिससे पुरुष जाति का बोध हो, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे - मैं, तुम, यह, मोहन, इत्यादि ।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं -
अ. प्रथमपुरुष - मैं, हम, हमलोग
ब. माध्यमपुरुष - तुम, आप, आपलोग
स. उत्तमपुरुष - यह, वह, वे लोग, ये लोग
ग. निजवचक सर्वनाम - जिससे किसी कार्य के निजता का बोध हो, उसे नीजवचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे - मैं स्वंम यह काम करूंगा । तुम अपना काम करो ।इत्यादि ।
घ. निश्चयवाचक सर्वनाम - जिस वाक्य से निश्चयता का बोध हो, निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे - वे सब लड़के है । , वे लोग छात्र हैं ।
च. अनिश्चयवाचक सर्वनाम - जिस वाक्य में अनिश्चयता का बोध हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे - वहां कोन है ?  कोई वहां हैं ।, इत्यादि ।

छ. संबंधवाचक सर्वनाम - जिससे किसी वाक्य में संबंध का बोध हो, उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं ।

जैसे - मेरा, उसका, तुम्हारा, आपका, हमारा, इत्यादि ।

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

GDP और राजनीति ( जितेश सिंह )



अभी हाल में ही । देश में तिमाही GDP की गणना की गई । जिसमे गिरावट आई है । यह 7.4 ' /. से घट कर 5.7 '/. बताया गया । जिसके कारण विपक्ष मोदी सरकार पर । देश  की आर्थिक स्थिति खराब करने का आरोप लगा रहा है ।
आश्चर्य तो तब होता है । जब भाजापा के ही दो नेता विपक्षीयों के सुर से सुर मिला कर बोलने लगे ।
बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार को देश की आर्थिक स्थिति तबाह करने और सबको गरीब बनने का आरोप लगाया । तो वहीं बीजेपी नेता अरुण भौरी ने नोटबंदी को सबसे बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग स्कीम और GST को फेल बताया ।
थोड़ा सा हम कांग्रेस सरकार में GDP की चर्चा करे तो बाते स्पष्ट होगी । पिछले 6 साल में देश में 8 बार GDP 5 '/. से भी नीचे गया है । तिमाही (क्वार्टर ) में देखा जाए तो विकास दर 0.2 से 1.5 तक थी । कुछ वर्षों की तुलना वैश्विक विकास दर से की जाए । तो बाते और स्पष्ट होगी ।
वर्ष 2013-14 में देश का GDP 4.74 वैश्विक 11.54 । वर्ष 2012-13 में देश का GDP 4.47 वैश्विक 11.88 । वर्ष 1979-80 में देश का GDP -5.20 वैश्विक 9.12 । इसी तरह वर्ष 1976-77 और 1974-75 में देश का GDP 1.25 और 1.01 थी । 1972-73 में -0.35 थी । जब की मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल का GDP देखा जाए तो । आर्थिक मंदी के बावजूद 6.74 '/. अंकित किया गया । तब विपक्ष के लोग GDP मापने वाले पैरामीटर को उस समय गलत बता रहे थे । आज जब विकास दर कम बताया गया तो पैरामीटर पसंद आने लगे । ये राजनीती विडंबना ही है । जिस कांग्रेस पार्टी  देश में 60 वर्षों तक राज की । देश विकास दर  इनके शासन कल में न्यूनतम दर पर था । राजनीति, वैश्वीकरण, विदेशनीति, पाकिस्तान का तांडव, चीन की धमकियां, भ्रष्टाचार, लूट - खसोट, घोटाले, चरम सीमा पर थी । कई बार वृतिय आपातकाल भी घोसित हुआ था । फिर भी कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी 6 महीने में देश की सारी व्यवस्था सुधारने की क्षमता रखते है । भूतपूर्व प्रधानमंत्री तो बड़े अर्थशास्त्री थे । फिर भी विकास दर इतना कम क्यू था ? जवाब है इसका नहीं ना । सोनिया जी और आप राहुल गांधी जी आपने देश के प्रधानमंत्री का इस्तेमाल किया । आपकी तानाशाही इतनी थी कि , देश का प्रधामंत्री कहीं आम जनता को संबोधन तक नहीं कर सकता था ।
मोदी जी हमेशा प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाए रखे । आज निस्वार्थ भाव से देश को आगे बढ़ाने में  जुटे है । आज उन्हीं के संघर्षों का परिणाम है की, भारत विश्वमंच पर टीका हुआ है । भविष्य में भारत भी दुनिया को आपनी सूझ बूझ से प्रभावित करेगा । इसके लिए हमें सशक्त प्रधानमंत्री चुनना होगा । इतिहास और वर्तमान को परखे । फिर स्वर्थहित को त्याग दे, देशहित के लिए 2019 की तैयारियां में देश को आपका साथ चाहिए । स्वंम विचार करे ।
                                  जितेश सिंह

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ! -------- जितेश सिंह

विवेकानन्द क्यू शक्तिशाली बनाने की बात करते थे ? क्या हमने कभी सोच ? आधुनिक काल में हमारी स्मरण शक्ति मंद हो गई । इसी कारण हम स्वंम ही अपने आंतरिक शक्ति को एक दिशा नहीं दे पा रहे है । विदेशी रीति रिवाज में स्व भुल गए ।

आज हमारे देश की आवश्यकता है लोहे की मांसपेशियाँ और फौलाद के स्नायु तंत्र, ऐसी प्रचण्ड इच्छाशक्ति जिसे कोई न रोक सके, जो समस्त विश्व के रहस्यों की गहराई में जाकर अपने उद्देश्यों को सभी प्रकार से प्राप्त कर सके। इस हेतु समुद्र के तल तक क्यों न जाना पड़े या मृत्यु का ही सामना क्यों न करना पड़े।’’

-स्वामी विवेकानन्द

श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य, स्वामी विवेकानन्द आधुनिक समय के प्रथम धर्म-प्रचारक थे जिन्होने विदेश जाकर विश्व के सम्मूख सनातन धर्म के सर्वासमावेशक, वैश्विक संदेश को पुनःप्रतिपादित किया। ऐसा संदेश जो सब को स्वीकार करता है किसी भी मत, सम्प्रदाय को नकारता नहीं। विदेशी शासन से विदीर्ण शक्ति, परास्त मन व आत्मग्लानी से परिपूर्ण राष्ट्र के पुनर्निमाण हेतु राष्ट्रवादी पुनर्जारण को प्रज्वलित करनेवाले पुरोधा स्वामी विवेकानन्द ही थे। भारत को उसकी आत्मा हिन्दू धर्म के प्रति सजग कर उन्हांने इस पुनर्जागरण की नीव रखी थी।
                                                 जितेश हिन्दू

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

वर्षों से मां गंगा के गोद का भिखारी रहा हूं । ( गणिनाथ साहनी )

गणिनाथ जी शायद हमारे बीच अपरिचित हो । परंतु हिन्दू दर्शन वेबसाइट के माध्यम से इनकी कुछ कविताएं  हमलोगों ने जरूर पढ़ी होगी।

गणिनाथ जी मूलरूप से बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित रेवा ग्राम के निवासी है । एक सुयोग्य एवं कर्मठ शिक्षक / कवि । आपके कविताओं में ग्राम-गीत का मर्म छिपा होता है । आपने हास्य, व्यंग, धार्मिक, राष्ट्रवादी तथा गंगा मां के संबंधित अनेकों कविताएं लिखी है । ग्रामीण जीवन पद्धति ही प्रेम एवं वास्तविक जीवन है । आपने प्रत्येक कविताओं के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सार्थकता को समझाने का प्रयास किया है । ग्रामीण जन जागरण के लिए आपकी कविताएं अनमोल हैं ।
स्मरणीय है !

कहते हैं -  " गंगा किनारे वह पवन सा मंदिर ।
                  वर्षों से मै इसका सेवक रहा हूं ।
   
                 नहीं चाहिए मुझे धन और दौलत ।
               मैं वर्षों से मां गंगा के गोद का भिखारी रहा हूं । "


लाल बहादुर शास्त्री के बारे में आपने क्या खूब लिखा है  ?    
विरले ही सौभाग्य जागता है धरती का
विरले ही नियति वैसी प्रतिमा गढ़ती है,

विरले ही आता है कोई दीदावर जग में
जिसको दुनिया लालबहादुर कहती है।

धन्य है भारत की भूमि
जिस पर ऐसे रत्न उपजते है,

जो राष्ट्रहित के लिए समर्पित हो
अपना सबकुछ ही तजते हैं ।
























मेरा बचपन लौट आया ! ( गणिनाथ साहनी )

मेरा बचपन लौट आया !
           *****

मेरा बचपन लौट आया !
यह कहते हुए उनकी आँखे भर आई,
अनायास एक वाक्य निकला
बड़ी लम्बी जुदाई।

समवयस्को का दीदार
बड़ी मुद्दत पर हुआ है,
कमाया या गमाया इसका ज्ञान
बड़ी शिद्दत से हुआ है।

देखते ही हमउम्रो को
ताजी हो गई भूलि-बिसरी यादें
शायद वक्त कुछ बदल गया है,
तब होते थे हाथ मे गुल्ली-डंडे
अब उसका विस्तार होकर
वही लाठी बन गई है।

बहुत दिनों बाद आएं हैं वो गाँव में
मिडिल तक यहीं पढ़े थे पेंठिया पर के स्कूल में,
खेले थे बालमित्रो के संग दोलापाति,
कबड्डी, गुल्ली-डंडा पुराने बरगद की छाँव में।

थक गई है आँखे
देखकर दुनिया की चातुरी-चकाचौंध।
बीतगए कितने मधुमास
न सुनी कोयल की कूक
न चिड़ियों की चहचह।
सुनता रहा सायरन
गाड़ी की पों पों, पी पी की आवाज।

साथ में आया था उनका बेटा
घुमाने गाँव।
कुछ ही देर में करने लगा
लौटने की तैयारी।
वृद्धइच्छा पर युवाइच्छा पड़ी भारी।

वह बूढ़ा कुछ ही पल में
अपनी पूरी जिन्दगी जी लिया।
मन ही मन सिसकियाँ भरकर
फटे हृदय को सी लिया।

पथराई आँखे और थके पाँव
अब शहर लौटना नही चाहते।
पर ....  .... अलविदा ! अलविदा !
अपने धूल-कण पर
चलना सीखाने वाली धरती माँ।
अब शायद मिलन न हो सकेगा !

          - गणिनाथ सहनी, रेवा ( मुजफ्फरपुर, बिहार )

आतंकवादियों का मुहर्रम ! ( जितेश सिंह )

भारत ही नहीं । अपितु विश्व के इतिहास में कोई भी ऐसा इस्लामिक पर्व नहीं । जिसमें मुस्लिमों द्वारा हिंसक प्रदर्शन नहीं हुआ ।

हाल में ही नवरात्रि समाप्ति के ठीक बाद मुस्लिमों का पर्व मुहर्रम के । अवसर पर कानपुर के परम पुरवा इलाके में मुसलमानों ने दंगे शुरू कर दिए । इसमें 25 से ज्यादा लोग घायल हुए । कितने को चोट लगी । 5 से ज्यादा लोगों की अब तक मृत्यु हो चुकी है और लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जा रहा है । अभी स्पष्ट नहीं हुआ । परंतु यह दंगा क्यों ? कहां गए हिंदू मुस्लिम भाई-भाई कहने वाले देशद्रोही । कहां गए वो मुल्ला -मौलवी ? जो इस्लाम को शांति का मजहब बताते रहे है । आज इस हिंसक प्रदर्शन का खंडन करें । कहां गए वो स्वतंत्र मीडिया ? जिन्होंने BHU की घटना को खूब उछाला । झूठी खबरें बनाकर 'बनारस हिंदू विश्वविद्यालय' को बदनाम करने साजिश की । आखिर कब तक इस झूठे को झेलते रहे । आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता । अब इसे बदले , सत्य का स्मरण करें । आतंकवाद का एक ही धर्म होता है , वह है इस्लाम !
बौद्ध भिक्षु विराथु का कहना सही है - " कोई व्यक्ति पागल कुत्ते के साथ नहीं सो सकता बर्बरता पूर्वक वह मारा जाएगा।" इतिहास और वर्तमान दोनों साक्षी है । पूरी दुनिया में शांति को भंग करने वाला कोई धर्म है, तो वह इस्लाम है । अगर पूरे विश्व को किसी से खतरा है , तो वह इस्लाम से है । समग्र विश्व को एक मंच पर । एक साथ इसके विरुद्ध खड़े होने की आवश्यकता है । ऐसे देशद्रोहियों को पांव तले कुचले दे या देश से बहिष्कृत करें । तभी शांति की पुनर्स्थापना होगी । यही भागवत गीता का उपदेश और यही धर्म है । भय को त्यागे और अपने धर्म का पालन करे । शत्रुओं को जवाब उन्ही की भाषा में देना होगा । भारत भू के पुनर्निर्माण के लिए सामर्थ्यवान बने । शक्तिशाली बने ! आवश्यकता पड़ने पर अधर्मियों का नाश करने योग्य बने । जल्द ही एक बड़ी चुनौतीओं का सामना करना है । क्या आप तैयार हो ? आर-पार की लड़ाई होगी । धर्म की पुनर्स्थापना होगी या फिर अधर्मी नंगा नाच करेगा । कल जो घटित होगा । उसे कोई नहीं बदल सकता । आपको तय करना है । जो भी हो लड़ाई तो होगी । शांति की पुनर्स्थापना भी होगी । यह निश्चित है । आप सजग हो सशक्त बने अस्त्र को धारण करें । स्वार्थ का त्याग करे । इसी में देश और समाज का कल्याण है ।
               स्वयं विचार करें !
                                                     जितेश हिंदू




सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

प्रदर्शन नहीं यह आतंकी साज़िश थी ( जितेश सिंह )

अब बर्दाश्त नहीं होता । आखिर कब तक हाथ पर हाथ रख कर  बैठेंगे ।
यही कहता है । ये छोटा शेर ....

मैं उन तथाकथित हिंदुओं से बोल दू । जो हिंदू होते हुए । भारत की संस्कृति, समाजिक, राजनीतिक, व्यवस्था को कोसते रहते हैं । और अपने दोगलेपन होने का हमेशा एहसास दिलाते रहते हैं । वे सभी इसका खड़न करे । BHU के परिसर में छात्राओं साथ छेड़छाड़ के बारे में हुए । हिंसक प्रदर्शन कहा तक सही है । जब वे प्रदर्शकर्ता प्रशासन से नहीं डरते । उन पर पेट्रोल बम बना कर फेंकते है । तोड़फोर कर सकते पुलिस की गाड़ियां जला सकते । इतना साहसी और प्रशिक्षित है । फिर भी कोई लड़का उन पर कॉमेंट कर देता है । ये बात हजम नहीं होती ।
प्रदर्शन के दौरान जो प्रदर्शनकर्ता थे । उसमे जेएनयू , हैदराबाद यूनिवर्सिटी , जोधपुर के छात्रों को देखा गया । आज यह भी विभिन्न मीडिया चैनल के द्वारा स्पष्ट हो गया । अब सवाल उठता है । क्या यह घटना  देशविरोधी ताकतो की चाल है ? क्या फिर से मोदी जी निशाने पर थे ? आपको पता होगा कि उसी रास्ते से मोदी जी जाने वाले थे । अंत में प्रशासन की सूझ बूझ के कारण उन्हे दूसरे रास्ते से जना पड़ा । कुछ भी मामला हो, पर प्रदर्शन का हिसंक रूप धारण करना । कई सवाल खड़े कर दिए है । इसकी जांच होने चाहिए । उग्र प्रदर्शनकर्ता एवं बाहरी छात्रों की पहचान कर । पूछताछ की जाए । गत वर्षो में हुई आतंकी घटना से सबक लेने की आवश्यकता है । इसका बचाओ और संरक्षण देने वाले नेता , मीडिया,कम्युनिस्टों , को भी पकड़ा जाए । सुरक्षा के लिए कड़े कानूनी कदम उठाने की जरुरत है । वो दिन दूर नहीं जब मुस्लिमों (अतांकवादी ) , कम्युनिस्टों तथा देशविरोधी ताकतों का नंगा नाच होगा । इतिहास और वर्तमान दोनों घटनाओं से हम भलीभांति अवगत है । ऑल आउट की आवश्यकता कश्मीर में ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न भागों में भी है । 50-60 तो दोगले मेरी नज़रों में भी है । कुछ तो करे सरकार !
                                                   जितेश हिन्दू

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

मीडिया जिसे BHU का छात्र बता रही है , JNU का निकला । जितेश सिंह



मीडिया जिसे BHU का  का छात्र बात रहा था । वास्तव में वो BHU का नहीं वह तो JNU का निकला ।

  

जी हां कुछ दिनों से BHU मीडिया बंधुओ का केेंद्र  बना रहा ।परिसर के छात्रों ने BHU के कुछ छात्रों पर यह आरोप लगाया कि उनके साथ कुछ लड़के अभद्र टिप्पणी करते है ।

इसकी सत्यता की भी जांच अभी नहीं हुई है । क्या सही में ऐसी दुर्व्यवहार किया गया है या नहीं ? पर यह मामला राजनीति रूप ले लिया । तीन दिनों तक यह मामला काफी चर्चित भी रहा । इसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए । NDTV इस  संद्रभित  घटना को प्रस्तुत किया । छात्रों से लाइव बाते की ।  उसमे से कोई भी छात्र BHU के नहीं थे । वाही सोशल साइट पर यह वीडियो काफी चर्चित भी रहा । 
पता नही ये मीडिया का कैसा चरित्र है ? 
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में छात्र हंगामा कर रहे है । पुलिस पर पेट्रोल बम फेंक रहे है । मतलब BHU के छात्रों को पेट्रोल बम बनाना आता है । वो इतने प्रशिक्षित है । फिर क्या  छेड़खानी करने वाले गुंडों से नहीं लड़ सकते ? पुलिस पर पेट्रोल बम फेंक सकते है । BHU में कैसे वामपंथ का खेल चलाया जा रहा है ? ये खेल कौन खेल रहा है ? जिस छात्र की तस्वीर हमने ऊपर लगाई है, जिसके चेहरे को हमने लाल घेरे से घेरा हुआ है । इसकी ये तस्वीर अख़बार में मीडिया ने छापी है, बताया जा रहा है की ये सब BHU छात्र है । चलिए मीडिया के अनुसार ये छात्र भी BHU का छात्र है । पर इस छात्र पहचान हुई , तो जनाब का नाम है, मृत्युंजय सिंह और ये BHU तो छोड़िये बनारस के भी नहीं है, वहां से 700 किलोमीटर दूर दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र है, वामपंथी है । JNU छात्रसंघ से भी जुड़े हुए है । पर दिल्ली से 700 किलोमीटर दूर बनारस में जाकर BHU का छात्र बनकर घूम रहे है । अब अंदाजा लगाइये की नक्सलियों के स्टाइल में पुलिस पर पेट्रोल बम फेंकने वाले कौन लोग है । सिर्फ 1 मृत्युंजय सिंह ही नहीं, हैदराबाद, जाधवपुर से भी कई कई दर्जन वामपंथी काशी में घुसे हुए है । और BHU का छात्र बनकर घूम रहे है । ये है वामपंथ का खेल, जिसे मीडिया और सेक्युलर पार्टियां, सभी मिलकर चला रहे है । पुलिस पर पेट्रोल बम ये माओवादी फेंक रहे है, और बदनाम BHU और उसके छात्र हो रहे है । 
खैर जो देशविरोधी ताकते है । ये उनकी गलती ही नहीं वो अापना नजायज बाप पाकिस्तान का काम पूरे समर्पण के साथ कर रहे है । लेकिन आए दिन मोदी कि आलोचना करने वाले व्यक्ति और मीडिया या यूं कहिए स्वत्रंत मीडिया चुप क्यू है ? शायद ये घटना उनके दोहरे चरित्र को प्रदर्शित करती है । अगर वो स्वात्रंता की बात करते है । पहले इसका खंडन करे । नहीं तो आम लोगों में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं ।
                                                          जितेश सिंह

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...