सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

अश्वमेघ यज्ञ ने योद्धाओं के अहंकार को नष्ट किया

जितेश कुमार

रावण जैसे वैश्विक आतंकी के वध के पश्चात, राम की सेना सर्वशक्तिमान हो गई थी। इसके साथ ही लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सुग्रीव जैसे योद्धा अपने आप को सर्वशक्तिमान मान बैठे थे। इन्हें अपनी शक्ति पर अहंकार होते देख, राम ने अश्वमेध यज्ञ किया। एक दिव्य अश्व स्वतंत्र पूरे विश्व में भ्रमण के लिए छोड़ दिया 

गया। इसके वापस लौटते ही अश्वमेध यज्ञ पूर्ण होती है। किन्तु वाल्मीकि आश्रम के समीप दो बालकों ने यज्ञ के घोड़ा को पकड़ लिया। वो बालक कोई और नहीं माता जानकी और राम के पुत्र लव और कुश थे। लव-कुश ने अयोध्या की चतुरंगी सेना सहित सेनापति, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, भरत, सुग्रीव और हनुमान जैसे योद्धाओं को पराजित किया। लव-कुश के बाण के आगे सभी योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए। लव-कुश के बाण से आहत होकर सेना सहित सारे योद्धा मूर्छित पड़े थे। उसके बाद स्वयं भगवान राम युद्ध करने पहुंचे। उन्होंने देखा चतुरंगी सेना सहित सभी योद्धा जमीन पर मूर्छित पड़े हैं। वो मुस्काए और कहे "हे मुनि कुमार लव-कुश! आप किस प्रयोजन से यज्ञ का अश्व पकड़े है।" लव-कुश बड़े-बड़े योद्धाओं को पराजित करके। अब स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने लगे थे। उसे लगा अब मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता है। इसी अहंकार में दोनों भाई अपने ही पिता से बोले "हे अयोध्यापति राम हम दोनों भाइयों ने घोड़े के मस्तक पर लगे  स्वर्णपट पर लिखी चुनौती को स्वीकार किया है। हे राजन आपको यदि अश्व चाहिए तो हम से युद्ध करें, हमें पराजित करें फिर अश्व ले जाये" राम, लव-कुश के अहंकार भरे चुनौती को कैसे स्वीकार करते? पिता-पुत्र में युद्ध कैसे संभव था? भगवान राम ने देखा अयोध्या की सेना सहित महाबली योद्धाओं का अहंकार भी टूटना जरूरी था, वैसे ही लव-कुश का भी अहंकार टूटना जरूरी है। फिर उन्होंने युद्ध भूमि से एक तिनका उठाकर लव-कुश की ओर फेंका। उस तिनके को रोकने में लव-कुश के सारे अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए। वो तिनका जाकर लव-कुश को लगा और दोनों भाई मूर्छित हो गये। इस प्रकार भगवान राम ने अपने ही सेना, सभी भाई, मित्र और पुत्र के अहंकार को पराजित किया। इसके साथ ही मानव रूप में प्रकट स्वयं नारायण ने भी अपने मनुष्यता के कारण उत्पन्न अहंकार का नाश किया।

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