भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ| इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है| तो मुझे भी संविधान के धारा 19 का प्रयोग करना चाहिए ऐसा मुझे कल सपने में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने कहा| उन्होंने कहा- “शांत मत बैठो आने वाली पीढ़ी गलियां देगी| आवाज उठाने वाले इतिहास में अमर हो जाते है और शांत होकर देखने वाले की मृत्यु होती है, इनके 13वीं के बाद स्वयं के घर के लोग ही भूल जाते है|” उन्होंने ने ये भी कहा कि देश और समाज में उठ रही प्रत्येक समसामयिक मुद्दे पर अपनी राय और अपनी बात रखो| कोई नहीं पढ़े और सुने तो भी पागलों की तरह लिखते बोलते रहो| अपने ज्ञान्द्रियों से जो नजर आ रहा है उसे अपनी ह्रदय की सच्चाई से सभी के बीच रखो|
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार के लगभग तीन माह बीत गये है| अभी कुछ भी उटपटांग भविष्यवाणी करना ठीक नहीं है| इतना तो कहने कि स्थिति है ही कि बीते तीन महीने की कमलनाथ सरकार से भय का वातावरण निर्मित हुआ है| लेकिन यह भय गुंडों, दरिंदों, बदमाशों, भ्रष्टाचारियों में कतई नहीं है| भोपाल और इंदौर जैसे सुरक्षित शहरों में भी आराजकता और गुंडागर्दी बढे है| अपहरण और बलात्कार के भी मामले पहले से ज्यादा हुए है| लोगों का कहना है कि कर्जमाफ़ी और बेरोजगारी भत्ता के नाम पर मध्यप्रदेश की कांग्रेस की सरकार ने आम जनता को अंगूठा दिखाया है| रोजगार और किसानों की कर्जमाफ़ी के साथ महिला उत्पीडन जैसे विषय विधानसभा चुनाव के केंद्र में थे| ऐसा प्रतीत होता था कमलनाथ युवा जो बेरोजगार है, किसान जो परेशान है और महिलाएं जो असुरक्षित है इनकी सबसे पहले कष्ट हर लेंगे| कर्ज माफ़ी का सिर्फ ढोल पीटा गया है, किसान का कर्ज माफ़ी तो दूर ऐसी स्थिति है कि बोये क्या कटे क्या? पैगम्बर ने कर्जमाफ़ी के नाम पर ऐसा प्रपंच किया है कि बैंक लोन अब देने को तैयार नहीं और किसान कुछ करने की स्थिति में नहीं है? ऐसे में कमलनाथ के गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा में किसान की आत्महत्या ने सरकार की धोखाधड़ी की पोल खोल दी है| कर्ज माफ़ी हुई है और स्थिति पहले से बेहतर है तो आत्महत्याएं क्यों नहीं रुक रही है? अपने आप को किसानप्रेमी सरकार की उपाधि देने वाले, सत्ता संभालते ही युरियां खा गये और युरियां मांगने गये किसान को डंडे दिखाये गये| दुकान के पीछे से दुगुना-तिगुना दाम देकर युरियां कुछ किसानों को नसीब हुई है| यह काण्ड मीडिया के माध्यम से लोगों ने देखा है और भुलाया भी नहीं है| दबे-कुचले वर्ग जो कल तक कांग्रेस की हवाहवाई वादे पर मोहीत थे| आज वही लोग भड़के हुए है, ऐसा इसलिए क्योकि हाल में सीबीआई के छापे में जप्त 281 करोड़ की अवैध सम्पति ने प्रदेश की सरकार को कलंकित किया है| सरकार इस कदम से इतना बौखलाये हुये है कि रोज अखबार में खबर छपती है ‘अधिकारीयों को देखेंगे’, कोई कहता है ‘जूता साफ करवाएंगे’ और तो और सरकार ने पार्टी के सदस्यों से ऐसे अधिकारी का लिस्ट भी तैयार करने को कहा है, चुनाव के बाद इनसे निपटा जायेंगा| जनता मौन रूप धारण किये समय के इन्जार में है या कमलनाथ पर भरोसा करके शांत है यह तो वक्त जानता है| फिलहाल तो माहौल तीन महीने की रिपोर्ट से असंतुष्ट और भड़की दिखाती है|
यह तो बात किसान, युवा और मजदूर की है| कर्मचारी, अफसर, शिक्षक और प्रोफेसर के साथ एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग ने सरकार के रवैये से नाराजगी जाहिर की है| उनका कहना है कि कमलनाथ ने प्रदेश की स्थति (गरीबी, किसानी, रोजगार, सुरक्षा, शिक्षा और अपने संकल्प पत्र) से मुंह मोड़ लिया है| बदले की राजनीति में हाथ धोकर पड़े हुये है प्रदेश में अपने से विपरीत विचार के विरुद्ध साम, दाम, दंड और भेद किसी भी तरीके से उसे समाप्त करना ही अपना लक्ष्य मान लिया है| प्रशासनिक अधिकारीयों के स्थानांतरण के ताबतोड़ निर्णय के साथ तमाम शैक्षणिक संस्थानों के साथ ही माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी में सरकार के द्वारा और मुख्यमंत्री के इशारे पर जो कुछ बीते महीने हुआ है वह बेहद ओछी और नीचता कर प्रमाण है| प्रदेश सरकार को सोचना चाहिए माखनलाल यूनिवर्सिटी पुरे भारत में ही नहीं समूचे एशियाई देशों में अपने योग्यता से लोकप्रियता और पहचान हासिल की है| ऐसे संस्थानों में इस प्रकार की राजनीतिक उथल-पुथल अशोभनीय है| प्रदेश और देश की जनता इसे ठीक नहीं मानती है कि कोई दल अपने सत्ता के में मद में शिक्षण संस्थाओं को भंडोल करे| पूर्व की सरकार के खामियों की वजह से कुछ अवगुण उत्पन्न हुए है या भ्रष्टाचार के ही मामले प्रकाश में आये है तो वैधानिक जाँच होनी चाहिए ऐसे प्रतिशोध की भावना से जल्दीबाजी में नहीं, माखनलाल यूनिवर्सिटी प्रदेश की शान है ऐसे में इसे कलंकित करने जो प्रयास वर्तमान की कमलनाथ सरकार ने की है| इससे बुद्धिजीवियों में ठीक सन्देश नहीं पहुंचा है| बातचीत में एक विद्वान ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में सत्ता में विराजमान पार्टी को भी भारतीय संविधान की निहित प्रक्रियाओं का अनुकरण कारण पड़ता है, उन्होंने उदाहरण देते हुये कहा कि एक न्यायधीश किसी व्यक्ति को हत्या करते हुये भी देखता है, फिर भी उसे सीधा फंसी की सजा नहीं सुना सकता है, जज को संविधान में निहित प्रक्रियाओं और आरोपी पक्ष के वकील और स्वयं आरोपी के बयान को सुनना होगा और संपूर्ण प्रक्रियाओं की सत्यता के बाद ही निर्णय लेने के कर्तव्य न्यायधीश को है| फिर दो दिन की कमलनाथ सरकार ने कौन-सी संवैधानिक नैतिकता का पालन करके 20 विद्वानों की नियुक्ति रद्द की है और माननीय कुलपति के पद को अपमानित किया है| इसका जवाब कमलनाथ को देना होंगा| अंत में उन्होंने कि तत्काल मुख्यमंत्री क्षमा मांगे और विद्वानों की नियुक्ति करे| अपने घोषणा और वादे को पूरा करे; ना की सत्ता के मद में तानाशाही और अराजकता उत्पन्न करे| जो बीते दिनों गैर-जिम्मेदाराना और बदले की भावना से कमलनाथ सरकार ने कार्य किये है इससे आम जनता काफी नाराज है ऐसे में अब तक की रिपोर्ट से लगता है इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें