शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

परिक्षा में नकल नहीं, अक्ल चलाए!

बिहार बोर्ड 10 वीं परिक्षा
प्रशासन और परिजन कर्तव्यनिष्ठ रहे, विधार्थी हित के प्रति आपकी सजकता भविष्य निर्माण में अहम भुमिका निभाएगी|












  1. कमर कस चुकी हैं, शासन और प्रशासन| किसी प्रकार की नकल बर्दाश्त नहीं की जाएगी|परीक्षा में कदाचारी नहीं चलेगी| पिछले कुछ वर्षों से नकल जैसी कुप्रथा से ग्रसित प्रदेश में, नकल नहीं होगी|परीक्षा में किसी प्रकार की पैरवी और नकल की गुंजाइश नहीं है|बीते वर्षों में जिस तरह से मीडिया ने परीक्षा व्यवस्था को लेकर,परिक्षा केन्द्र पर हो रहे नकल और टॉपर घोटाले के कई मामले उजागर किए|शासन और प्रशासन के मिलीभगत का मामला प्रकाशित हुई है|उनकी निष्क्रियता को लेकर सतत् आलोचनाएं और रिपोर्ट लेखे गये|आज उसी का परिणाम है,कि फरवरी 2018 में होने वाली 12वीं की परीक्षा शांति और कदाचारमुक्त रही है, कल, 21 फरवरी से आरंभ 10वीं की परिक्षा में भी प्रशासन ने पूरी तरह कमर कस ली है|इसी बीच कई अफवाहें भी उजागर हुए, परंतु शासन और प्रशासन की सतर्कता कुछ और बया कर रही|
धारा 144 के बीच कल जब दसवीं की परीक्षा आरंभ हुई,तो  शासन और प्रशासन चुस्त-दुरुस्त नजर आया|परीक्षा केंद्र मानो सैनिक छावनी में बदल गई हो|अंग्रेजी विषय की परीक्षा पूर्णतः शांति और कदाचारमुक्त रही|जहां कुछ छात्र और परिजन भययुक्त भी रहे| क्योंकि, बीते बर्षों में परिक्षा केन्द्र की सुरक्षा इस तरह की नहीं देखी गई,तो भयभीत होना स्वाभाविकता था|उधर शांति व्यवस्था और कदाचार मुक्त परीक्षा को लेकर छात्रों के चेहरे पर संतोष का भाव रहा,तो कई तरह की काना-फुसी अफवाहों से कुछ विद्यार्थियों के चेहरे पर भय की लकीर साफ देखी गई|परंतु हताश और डरने की आवश्यकता नहीं|अवांछित गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए प्रशासन है|आप तो भयमुक्त होकर परीक्षा में बैठे|परीक्षा में किसी प्रकार की बाधाएं नहीं हो, इस कारण प्रशासन की ठाठ-बाठ दिख रही है|विद्यार्थी हित के प्रति शासन-प्रशासन पूर्णतः जवाबदेही रहेगी|
परीक्षार्थियों के परिजनों को भी सावधानी बरतने की आवश्यकता हैं|प्रशासनिक व्यवस्था में पूर्ण सहयोग करें|समय पर अपने बच्चों को परीक्षा केंद्र पहुंचाए|यातायात के नियमों का पालन करें| बच्चों से नकारात्मक सवाल ना करें| बच्चो को खुशी और शांति का वातावरण दें,ताकि वो आनंदित रहे|उन्हें परिक्षा के प्रति उत्साहित करें|उनमें परिक्षा को लेकर उत्पन्न अपवाहो को दुर करने का प्रयास करे|
परीक्षार्थी भी परिक्षा के दौरान प्रश्नपत्र को कम से कम तीन बार सावधानी से पढ़े|पहले उपस्थित प्रश्न का उत्तर ना देकर,आपको सटीक याद है उसी प्रश्न का हल करें| आसपास के ताक-झांक से बचें| किसी प्रकार की नकल ना करें|अवांछित सामग्री जैसे-मोबाइल,संगणक और विशेषत: कागज के किसी प्रकार के टुकड़ा अपने पास ना रखें, जिससे आप पर संदेह किया जा सके|अधिक से अधिक प्रश्नों के उत्तर दें| यथासंभव अपने शब्दों में जवाब दें|छोटे और शुद्ध वाक्य लिखें|परीक्षा केंद्र में जाने से पूर्व आवश्यक सामग्री प्रवेश पत्र, कलम, आदि साथ रखें| व्यवस्था के अनुरुप व्यवहार करें|
 नमस्कार!
                                  जितेश कुमार 
          अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल

रविवार, 11 फ़रवरी 2018

ये हत्या नहीं जवानों की, लोकतंत्र की हत्या है! - दीपक द्विवेदी

ये हत्या नहीं जवानों की,               
लोकतंत्र की हत्या है।
ये सत्तर साल की बीती,
आजादी की हत्या है।

ये पचीस नहीं एक सौ पचीस, 
करोड़ की हत्या है।
भारत माँ के आँचल में,
पलते बच्चों की हत्या है।।

हम अपने घर के गद्दारों को 
मात नहीं देते है।
इनको इनकी हरकतों पर 
लात नहीं देते है।

हम कैसे लड़ेगे चीन और पाक
 के गद्दारों से ?
चूँकि हमारे नेता सैनिकों का 
साथ नहीं देते है।।

नेताओं ने चुप्पी साधी, 
ये कैसा परिवर्तन है।
फेसबुक और ट्वीटर पर 
करते आवर्तन है।

हम जिस दिन नेताओं को छोड़कर,
सैनिकों के साथ हो जाएंगे,
उस दिन नक्सली क्या ?
पाक -चीन भी हमसे थर्राएंगे।।

                        ---दीपक द्विवेदी---

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

परिन्दो का चमन।. @ गणिनाथ साहनी

परिन्दो का चमन।                          
       *****

वो मुसाफ़िर ! थके लगते हो !
बैठले ! विश्राम करले !
यह परिन्दो का चमन है,
यहाँ न कोई छीना झपटी।
अपने सिर की गठरी रखकर
थोड़ा-सा आराम करले !
वो मुसाफ़िर ! थके लगते हो !
बैठले ! विश्राम करले !

राह चलते-चलते तेरी
कृशकाया श्रांत हो गई;
जेठ की तपती दुपहरी
थोड़ा-सा मन शांत करले !
वो मुसाफ़िर ! थके लगते हो !
बैठले ! विश्राम करले !

मत घबरा !
अब पहुँच चुके हो गाँव अपने।
बड़े दिन बाद लौटे हो,
चेहरे पर शहरी थकान है !
न चंचलता है, न मुस्कान है।
अभी सूरज मध्य में है, परवान पर है;
थोड़ा बिलम ले ! हम रंगबिरंगी चिड़ियों के संग
कलरव गान करले !
वो मुसाफ़िर ! थके लगते हो !
बैठले ! विश्राम करले !

          - गणिनाथ सहनी, रेवा

सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

मैं चाणक्य का वंशज हूं! - दिपक द्विवेदी

मैं चाणक्य का वंशज हूं,                
सत्य की भाषा को दोहराऊंगा।
मैं चन्द्रगुप्त की गलती पर,
उसको फटकार लगाऊंगा।
मैं छली- कपटी शकुनी,
नंन्दऔर राछस से तुम्हें बचाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह, 
स्वाभिमान से गाऊंगा।।

मैं गंगा की निर्मल धारा,
की आवाज सुनाऊंगा।
मैं गौ माता की रक्षा के,
लिए कदम बढाऊंगा।
मैं इनकी हत्या करने पर,
गांडीव धनुष उठाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह, 
स्वाभिमान से गाऊंगा।।

मैं वेदों की ऋचाओं का,
ज्ञान तुम्हें कराऊंगा।
मैं गीता के श्लोकों का, 
अर्थ तुम्हें बताऊंगा।
मैं रामायण के छंदो का,
रसपान तुम्हें कराऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह, 
स्वाभिमान से गाऊंगा।।

मैं राखी पर बहन की,
रक्षा का बीड़ा उठाऊंगा।
मै दिवाली पर लक्ष्मी,
पूजन का महत्व बताऊंगा।
मैं शरहद पर खड़े वीर, 
जवानों की गाथा सुनाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।

मैं आजादी के परवानों पर, 
श्रद्धा के सुमन चढ़ाऊंगा।
मैं सुभाष,भगत और शेखर के, 
बलिदानों को गाऊंगा।
मैं शहीद हुए वीर जवानों के, 
चरणों में शीश झुकाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।

                                     दीपक द्विवेदी, इंदौर (म. प्र.)
                                         

अमानववीय घटनाओं के पीछे - न्यू इश्क ! -जितेश सिंह

अमानववीय घटना का केंद्र बिंदु पश्चिमपंथी विचारधारा है| देश-विदेश 


में बढ़ रहे, रेप और अभद्र घटनाओं का मूल कारण एेसे ही विचारधारा
है| इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर अधिकतर घटना के पीछे 'न्यु इश्क' हैं| जी हाँ! 'न्यु इश्क', जो संवैधानिक अधिकार माना जाता है| अधिकतर अमानवीय घटना इन्हीं संबंधों में मतभेद के कारण उजागर होते हैं| हम जिस शहर में रहते हैं| यहां प्रत्येक दिन माता-पिता के आंखों के नीचे इस तरह की घटनाएं घटित होती है| लड़कियां मनमर्जी से लड़के के प्रेम जाल में फसकर पार्क तक ही नहीं, बल्कि बिस्तर तक जाती है| उसका अपार विश्वास तब चकना चुर हो जाता हैं, जब कोई वीडियो सोशल नेटवर्क पर धुम मचती है, क्युकि एेसे लोगों से भरा पडा़ समाज, जो ऐसे पोस्ट, विडियो को बडे़ शौक से फैलाते है| फिर भी समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और प्रशासन ऐसे  संवैधानिक 'न्यु इश्क' के प्रति आज भी मौन है| इस तरह की  घटनाएं आजकाल बढ़ी है, क्योंकि जल्द ही विदेशी पर्व (उत्सव) आने वाले होते हैं, जैसे- वैलेंटाइन डे, रोज डे, किस डे, फ्रेंडशिप डे, चॉकलेट डे, आदि आदि.....
उसके मार्केटिंग के लिए, आज के युवाओं में काफी उत्सुकता रहती है| खरीदारी जोर-शोर से चलने लगी हैं| देश के चुनिंदा पार्कों की बुकिंग शुरू हो गई है| 'न्यु इश्क' करने वाले जोडे़ अपना स्थान तय कर, कई तो अभ्यास भी शुरू कर दिये है| पार्को और बाग-बगीचे के, हरे भरे पेड़-पौधे भी शर्म के मारे सूख जाते हैं, पारदर्शी हो जाते हैं| लेकिन उनके नीचे की घटनाएं बदलती नहीं|
चलो बाग-बगीचे तक ही 'न्यू इश्क' रहे तो भी सही, लेकिन जब यह सड़क के किनारे से भी आगे बढ़कर, पब्लिक बस तक पहुंच जाए| जी हां MY BUS BCLL, समय करीब 6:40 CCTV सर के ऊपर, प्रकाश की कमी नहीं, कैमरा सही, उससे भी बड़ी बात बस खचाखच यात्रियों से भरा पड़ा| मेरे साथ कई विद्वान और वरिष्ठ लोग भी थे|
मैं गांव से आया, 'न्यु इश्क' की अवधारणा क्या समझूं?  हमारे यहां बातचीत तो दूर लड़कियां पलट कर नहीं देखती और हम अच्छे साबित होने के लिए पुरी रात विषयों को घोलकर पी जाते हैं, ताकि जब अगले दिन वर्ग में शिक्षक शाबाशी दे तो, कम से कम लड़कियों के चेहरे पर विस्मयादिबोधक चिन्ह ही दिखाई दे| यही वास्तव में इश्क समझा| फिर भी ऐसा नहीं होता, लड़कीयाँ नहीं हंसती| सचमुच! गांव की लड़कीयाँ गुणों और ज्ञान से अलौकिक थी| आज जब मैं शहर की स्थिति और व्यथा को सुनता और देखता हूं| यहां की लड़कियों का हाव-भाव देखता तो मानो, गांव की लड़कियां देवी की भांति और यहां की, खैर छोड़िए लिखना उचित नहीं! 
मैं आज BCLL के बस से, जिसका ऊपर जिक्र किया हूँ से, रंगमहल से मंदाकिनी आ रहा था|बस में बैठते ही मैं अचंभित रह गया देखकर| यह क्या हो रहा है एक लड़के की गोद में लड़की बैठी है| जैसे वह मां की गोद में बैठी हो| 
माफ कीजिएगा जो घटित हुआ मैं उसे व्यक्त भी नहीं कर सकता हूं, वास्तविकता तो कुछ और ही है| लड़के के हाथों की गति को भी बयान नहीं कर सकता| पर लिखने की वजह यह नहीं उस गोद में बैठी लड़की ने जब कंडक्टर को भैया कहां और कंडक्टर ने उसे टिकट देकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया| मैं उम्र में दोनों (न्यु इश्क करने वाले ) से काफी छोटा था, नहीं तो| पहला सवाल यही करता 'ऩ्यु इश्क' वाली लड़की से, मैं कोन हूँ? अगर जवाब भाई होता तो,  चार जूते लड़के को और दो थप्पड़ अपनी बस वाली बहन को लगाता जरूर|
मुझे समाज के विचारवान विद्वानों से कुछ और अपेक्षा थी| मगर यह प्रसंग, जो मेरी आंखो के सामने घटित हुआ उपेक्षा प्रकट की| हमें आजादी का अर्थ और इसका विश्लेषण करना जरूरी है नहीं तो, आज हुई या घटना आगे भी जारी रहेगी| और क्यों ना हो ? भारतीय सभ्यता का जिस तरह स्वयं भारतीय ने ही उपेक्षा की है, ऐसी घटना तो होना ही था| मुझे ही आखिरकार आँखें बंद करना और इन सब घटनाएँ को  लिखना भी छोड़ना होगा| शायद! मैं बेवकूफ हूं और नहीं तो क्या? तभी तो इतना सब लिखा, स्थिति जानते हुए | वही बात लिखी, जिससे हम सभी अवगत हैं बस वही दोहराया हूं !
                                                         
                                                              -  जितेश सिंह

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

दर्पण ! @गणिनाथ सहनी

दर्पण।                                            
                                 
 ***

मैंने पूछा दर्पण से-
दर्पण !
तू सबकुछ स्पष्ट दिखाता है,
पर चेहरे तक ही सिमटकर
क्यो रह जाता है ?


अंतर में क्या हलचल है ?
क्यो मन इतना चंचल है ?
क्यो मृगमरीचिका में फँसा हुआ है ?
क्यो दलदल में धँसा हुआ है ?
यह क्यो नही दर्शाता है ?


दर्पण !
तू सबकुछ स्पष्ट दिखाता है,
पर चेहरे तक ही सिमटकर
क्यो रह जाता है ?


इस प्रश्न को सुनते ही तत्क्षण
कई दर्पण टूटे, कई दरक गए।
कई कँगूरे की शोभा थे
वो भी ज़मीन पर सरक गए।


फिर भी मैं न समझ सका तो
महल का अंतिम दर्पण भी टूट गया
वह दीवार में टंगा हुआ था
वह भी ज़मीन पर आकर फूट गया।

मैं समझ गया !
मैं समझ गया !
यह कहकर मैंने चिल्लाया।
सच बोलना कितना मुश्किल है !
शायद ! इसी बात को दर्पण ने समझाया।

         - गणिनाथ सहनी, रेवा

कांग्रेस की निफ्टी और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट के पूर्वानुमान

भविष्य में क्या होंगी, मैं नहीं जनता हूँ |  इस दौर में बहुत लोग अभिव्यक्ति की आजादी का अलाप जप रहे है |  तो मुझे भी संविधान के धारा  19  क...