सत्य की भाषा को दोहराऊंगा।
मैं चन्द्रगुप्त की गलती पर,
उसको फटकार लगाऊंगा।
मैं छली- कपटी शकुनी,
नंन्दऔर राछस से तुम्हें बचाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।
मैं गंगा की निर्मल धारा,
की आवाज सुनाऊंगा।
मैं गौ माता की रक्षा के,
लिए कदम बढाऊंगा।
मैं इनकी हत्या करने पर,
गांडीव धनुष उठाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।
मैं वेदों की ऋचाओं का,
ज्ञान तुम्हें कराऊंगा।
मैं गीता के श्लोकों का,
अर्थ तुम्हें बताऊंगा।
मैं रामायण के छंदो का,
रसपान तुम्हें कराऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।
मैं राखी पर बहन की,
रक्षा का बीड़ा उठाऊंगा।
मै दिवाली पर लक्ष्मी,
पूजन का महत्व बताऊंगा।
मैं शरहद पर खड़े वीर,
जवानों की गाथा सुनाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।
मैं आजादी के परवानों पर,
श्रद्धा के सुमन चढ़ाऊंगा।
मैं सुभाष,भगत और शेखर के,
बलिदानों को गाऊंगा।
मैं शहीद हुए वीर जवानों के,
चरणों में शीश झुकाऊंगा।
मैं भारत को विश्व गुरु कह,
स्वाभिमान से गाऊंगा।।
दीपक द्विवेदी, इंदौर (म. प्र.)
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