सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

अमानववीय घटनाओं के पीछे - न्यू इश्क ! -जितेश सिंह

अमानववीय घटना का केंद्र बिंदु पश्चिमपंथी विचारधारा है| देश-विदेश 


में बढ़ रहे, रेप और अभद्र घटनाओं का मूल कारण एेसे ही विचारधारा
है| इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर अधिकतर घटना के पीछे 'न्यु इश्क' हैं| जी हाँ! 'न्यु इश्क', जो संवैधानिक अधिकार माना जाता है| अधिकतर अमानवीय घटना इन्हीं संबंधों में मतभेद के कारण उजागर होते हैं| हम जिस शहर में रहते हैं| यहां प्रत्येक दिन माता-पिता के आंखों के नीचे इस तरह की घटनाएं घटित होती है| लड़कियां मनमर्जी से लड़के के प्रेम जाल में फसकर पार्क तक ही नहीं, बल्कि बिस्तर तक जाती है| उसका अपार विश्वास तब चकना चुर हो जाता हैं, जब कोई वीडियो सोशल नेटवर्क पर धुम मचती है, क्युकि एेसे लोगों से भरा पडा़ समाज, जो ऐसे पोस्ट, विडियो को बडे़ शौक से फैलाते है| फिर भी समाज का बुद्धिजीवी वर्ग और प्रशासन ऐसे  संवैधानिक 'न्यु इश्क' के प्रति आज भी मौन है| इस तरह की  घटनाएं आजकाल बढ़ी है, क्योंकि जल्द ही विदेशी पर्व (उत्सव) आने वाले होते हैं, जैसे- वैलेंटाइन डे, रोज डे, किस डे, फ्रेंडशिप डे, चॉकलेट डे, आदि आदि.....
उसके मार्केटिंग के लिए, आज के युवाओं में काफी उत्सुकता रहती है| खरीदारी जोर-शोर से चलने लगी हैं| देश के चुनिंदा पार्कों की बुकिंग शुरू हो गई है| 'न्यु इश्क' करने वाले जोडे़ अपना स्थान तय कर, कई तो अभ्यास भी शुरू कर दिये है| पार्को और बाग-बगीचे के, हरे भरे पेड़-पौधे भी शर्म के मारे सूख जाते हैं, पारदर्शी हो जाते हैं| लेकिन उनके नीचे की घटनाएं बदलती नहीं|
चलो बाग-बगीचे तक ही 'न्यू इश्क' रहे तो भी सही, लेकिन जब यह सड़क के किनारे से भी आगे बढ़कर, पब्लिक बस तक पहुंच जाए| जी हां MY BUS BCLL, समय करीब 6:40 CCTV सर के ऊपर, प्रकाश की कमी नहीं, कैमरा सही, उससे भी बड़ी बात बस खचाखच यात्रियों से भरा पड़ा| मेरे साथ कई विद्वान और वरिष्ठ लोग भी थे|
मैं गांव से आया, 'न्यु इश्क' की अवधारणा क्या समझूं?  हमारे यहां बातचीत तो दूर लड़कियां पलट कर नहीं देखती और हम अच्छे साबित होने के लिए पुरी रात विषयों को घोलकर पी जाते हैं, ताकि जब अगले दिन वर्ग में शिक्षक शाबाशी दे तो, कम से कम लड़कियों के चेहरे पर विस्मयादिबोधक चिन्ह ही दिखाई दे| यही वास्तव में इश्क समझा| फिर भी ऐसा नहीं होता, लड़कीयाँ नहीं हंसती| सचमुच! गांव की लड़कीयाँ गुणों और ज्ञान से अलौकिक थी| आज जब मैं शहर की स्थिति और व्यथा को सुनता और देखता हूं| यहां की लड़कियों का हाव-भाव देखता तो मानो, गांव की लड़कियां देवी की भांति और यहां की, खैर छोड़िए लिखना उचित नहीं! 
मैं आज BCLL के बस से, जिसका ऊपर जिक्र किया हूँ से, रंगमहल से मंदाकिनी आ रहा था|बस में बैठते ही मैं अचंभित रह गया देखकर| यह क्या हो रहा है एक लड़के की गोद में लड़की बैठी है| जैसे वह मां की गोद में बैठी हो| 
माफ कीजिएगा जो घटित हुआ मैं उसे व्यक्त भी नहीं कर सकता हूं, वास्तविकता तो कुछ और ही है| लड़के के हाथों की गति को भी बयान नहीं कर सकता| पर लिखने की वजह यह नहीं उस गोद में बैठी लड़की ने जब कंडक्टर को भैया कहां और कंडक्टर ने उसे टिकट देकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया| मैं उम्र में दोनों (न्यु इश्क करने वाले ) से काफी छोटा था, नहीं तो| पहला सवाल यही करता 'ऩ्यु इश्क' वाली लड़की से, मैं कोन हूँ? अगर जवाब भाई होता तो,  चार जूते लड़के को और दो थप्पड़ अपनी बस वाली बहन को लगाता जरूर|
मुझे समाज के विचारवान विद्वानों से कुछ और अपेक्षा थी| मगर यह प्रसंग, जो मेरी आंखो के सामने घटित हुआ उपेक्षा प्रकट की| हमें आजादी का अर्थ और इसका विश्लेषण करना जरूरी है नहीं तो, आज हुई या घटना आगे भी जारी रहेगी| और क्यों ना हो ? भारतीय सभ्यता का जिस तरह स्वयं भारतीय ने ही उपेक्षा की है, ऐसी घटना तो होना ही था| मुझे ही आखिरकार आँखें बंद करना और इन सब घटनाएँ को  लिखना भी छोड़ना होगा| शायद! मैं बेवकूफ हूं और नहीं तो क्या? तभी तो इतना सब लिखा, स्थिति जानते हुए | वही बात लिखी, जिससे हम सभी अवगत हैं बस वही दोहराया हूं !
                                                         
                                                              -  जितेश सिंह

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