शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

पत्रकारिता का भारतीय और वैश्विक परिदृश्य

पत्रकारिता की शुरुआत सरकारी नीतियों के बारे में जनता को बताने. जनता की जरूरतों और सरकारी नीतियों के खिलाफ लोगों के प्रतिक्रिया से अर्थात बताने के साथ की सरकार तथा आम लोगों को समसमायिक घटना की जानकारी देने के लिए की गई थी. पत्रकारिता की उपयोगिता और महत्व के बारे में माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र में लिखा था-"किसी भी देश या समाज की वर्तमान दशा को जानना हो तो वहां के समाचार पत्र को उठाकर पढ़ लीजिए"
राष्ट्र के संगठन में समाचार पत्र जो काम करते हैं वह कोई और नहीं कर सकता भारत में समाचार पत्रों के उद्भव और विकास के उत्तर क्रम के अंतर देखे तो, समय के साथ पत्रकारिता का उद्देश्य और स्वरूप बदलता रहा है. कभी पत्रकारिता देश को आजादी दिलाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया. तो कभी समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने और जागरूकता के लिए. यह वह दौर था जब किसी ने भी पत्रकारिता में व्यवसाय का चेहरा नहीं देखा था. आज का युग सूचना और संचार का युग है. इसमें पत्रकार कहीं तो पत्रकारिता के मूल आदर्श से मुंह मोड़ते नजर आते हैं. तो कहीं सामाजिक सरोकारों से विमुखता भी दिखाई देती है. इस समय पत्रकारिता केवल आदर्श खबरों को परोसना ही नहीं बल्कि किसी तरह खबरों को बेचने का भी कार्य कर रही है. खबरों में न केवल मिलावट हो रही है. बल्कि न्यूज़ के रूप में विज्ञापनों को खबरों की तरह छापकर, पाठकों को धोखा भी दिया जा रहा है. पत्रकारिता अगर व्यवसाय बन गई तो पत्रकारिता की भावना भी समाप्त हो जाएगी.

महात्मा गांधी ने पत्रकारिता और पत्रकार के कर्तव्य पर लिखा था- पत्रकारिता उस पानी के समान है जो बांध के टूटने पर पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेता है. 
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है. लेकिन इसका गलत प्रयोग एक अपराध है. इसलिए संपादकों को कोई ध्यान रखना चाहिए, इसकी कोई गलत रिपोर्ट ना चली जाए जो पाठको को उत्तेजित करते हो. वर्तमान में व्यावसायिक पत्रकारिता विज्ञापन और उससे प्राप्त आय के साथ पत्रकारिता को नए आयाम दे रहा है. अब मीडिया केवल राजनीति और सामाजिक जानकारी देने के माध्यम ही नहीं रहा. बल्कि वह भारतीय राजनीति का एक अंग बन चुका है. आजादी के पहले और आजादी के कुछ समय बाद तक, मीडिया तंत्र के पीछे किसी व्यक्ति या संस्था के कठिन प्रयास थे. जबकि वर्तमान में निकलने वाले समाचार पत्र और व्यवसायिक मीडिया के पीछे बड़े व्यवसायी वर्ग या किसी राजनीतिक दल का समर्थन है. पत्रकारिता में एकपक्षियों के प्रभाव को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी ने कहा था- मुझे दुख है के सारे प्रगतिवाद और ना किन-किन वादों के रहते हुए हमने पत्रकारिता के महान कला को पूजीवादी के हाथों सौंप दिया. ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को लेकर कई सवाल पूछे जा रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रेस और पत्रकारों को गंभीर और सुरक्षा के खामियाजा में जीना पड़ा है. रिपोर्टिंग युद्ध के मोर्चे से लेकर घरेलू खबरें तक, में झूठ का बोल बाला रहता है. इराक की लड़ाई किसका उदाहरण है. कॉर्पोरेट मीडिया का इस सोच के प्रति लगाओ. इसे प्रमाण के साथ पेश करने की कला का कुछ अन्य उदाहरण कोसोवो और पनामा पर हमले हैं. कुछ समय पहले दुनिया भीषण आर्थिक मंदी से जूझ रही थी. फिर भी मीडिया के लोगों ने आगाह नहीं किया.अमेरिका से लेकर जापान तक समुचे विकसित पूंजीवादी दुनिया में बैंकिंग व्यवस्था घोटालों में फंस गई थी. और व्यापार चैनल बाजार में उछाल का झूठा राग लगाते रहा. आखिर में यह पूछा जाना चाहिए कि पत्रकारिता का भविष्य का फैसला सूचना और मुनाफे से किसके आधार पर किया जाए. भारत में कॉर्पोरेट मीडिया ने जिस अंधभक्ती के साथ भूतपूर्व की सरकार और वामपंथियों को बढ़ावा और सहारा दिया है. इससे देश के आंतरिक सुरक्षा स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गई है. मीडिया का यह रूप उन्हें देश विरोधी दलों के साथ खड़ा कर दिया है.


उपरोक्त आ के आधार पर हम निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1. पत्रकारिता का भारतीय और वैश्विक परिदृश्य के बारे में विस्तार से लिखें और उसे आज के संदर्भ में परिभाषित करें
2. भारतीय पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को लिखे. 
3. पत्रकारिता के गिरते स्तर पर टिप्पणी लिखें.

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