शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास

भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास-
संप्रेषन मानवीय स्वभाव, विकास की उपरोक्त क्रम में, मानव भाषा और लिपियों का विकास किया है. जो आपस में संचार के लिए संप्रेषण का माध्यम बन गया है. आज भी भारत के प्राचीन कालीन मंदिर के शिलालेख और स्तभों में खुरदी हुई राष्ट्रीय घोषणाएँ पढ़ सकते हैं. इससे भी पहले हड़प्पाकालीन सभ्यता के दौरान का शिलालेख, ताम्रपत्रों में सूचनाओं के संप्रेषण के उदाहरण हमें मिलते हैं. आर्य सभ्यता के समय भी शास्त्रों के महाकाव्य, वेद, पुराण, ग्रंथों को लिखा गया है. बाद में गुप्त काल के दौरान राष्ट्रीय आदेशों में मुनादी के जरिए लोगों तक सूचनाओं को पहुंचाने के लिए घुड़सवार और धावक हुआ करते थे. खास तौर पर इस दौरान लगान वसूली और अन्य आर्थिक मामलों की जानकारियां और सूचनाओं को देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाने की विशेष व्यवस्था की गई थी. मुगल काल में औरंगजेब के समय हस्तलिखित समाचार पत्रों के विवरण का इतिहास मिलता है. तब तक इन्हें शाही दरबार में ही वितरित किया जाता था. मुगलों के अलावा अन्य हिंदुस्तान (हिन्दू) के शासकों के भी शासनकाल में भी समाचार लिखने का जिक्र है. सामाचार को प्रसारित करने वाले को खबरी कहा जाता था. इस तरह प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों में नारद जी को सर्वप्रथम पत्रकार के रूप में माना जाता है. जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचनाएं पहुंचाने का कार्य भी करते थे. 1768 में अंग्रेजी राज के दौरान विलियम वोट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विरोध जताते हुए. कोलकाता के ब्रिटिश सभा के दौरान सभागार में एक पोस्टर चिपका दिया. जिसमे यह उल्लेख था कि, कोई भी भारतीय अगर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध भारतीय समाज को जागृत करता है तो, वो उसे आर्थिक मदद देने के लिए तैयार थे. लेकिन तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी ने वोट को सजा देते हुए भारत से उसे निष्काषित कर दिया. इसके बाद 29 जनवरी 1780 को जेम्स अगस्तत्स हिर्थो ने  बंगाल गजट नाम के 4 पेज का एक अखबार निकाला. इसे भारत का पहला अखबार माना जाता है. जिसमे अँग्रेज़ी शासको के काले कारनामों का पर्दाफाश करने वाले आलेखों को मजाकिया और व्यंगात्मक अंदाज में लिखा गया था. जिसके कारण अगस्तत्स को सजा हुआ और उन्हें जेल में डाल दिया गया.जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना एक प्रिंटिंग प्रेस खोला और उसमें कई पत्र-पत्रिकाओं को छापने का काम शुरू किया. इसी समय अंग्रेजी शासक लार्ड वेलेंजरी ने पत्रकारिता की धार को काटने के लिए कुछ नियन कानून लागू किये. इस कानून के अनुसार कई अंग्रेजी पर छापे भी और बंद भी हुए.
हांलाकि अंग्रेजों की ईसाई मिशनरियां को तब के प्रेस नियमों का पूरा फायदा हुआ. भारतीय समाज में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसारित करने के लिए कई पत्र-पत्रिकाएं निकाले. इसके विरोध में राजा राममोहन राय ने पहले ब्रह्मा निकाला और फिर फारसी भाषा में नीरा-उल-अखबार निकाला. नीरा-उल-अखबार 1923 में बंद हुआ. क्योंकि उसी साल अंग्रेजी राज ने प्रेस एक्ट लागू किया. जिसमें अखबारों के प्रकाशन संबंधित नियमों को बहुत कठोर कर दिया गया. इसके बावजूद हिंदी का पहला समाचार पत्र उदंत मार्तंड प्रकाशित हुआ. फिर 1829 में राजा राममोहन राय ने एक और अखबार वग-दुत निकाला. जो हिंदी, फारसी और बंगला में छपा. यह सभी अखबार सुधारवादी और राष्ट्रवादी थे. जिनका मुख्य उद्देश्य ईसाई मिशनरियों के धर्म प्रसार का जवाब देना था. 1857 की पहली क्रांति ने भारतीय समाज और पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया. इस क्रांति में शामिल भारतीय शासको, जमींदारों, फौजदार और बाघी जवानों ने एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपनी सूचनाएं पहुंचाने के लिए कहीं रोटी, भोजपत्र तो कहीं कागज का हस्त लिखित संदेश का आदान प्रदान किया. अब अंग्रेज समझ चुके थे कि, ब्रिटिश राज के प्रति भारतीयों के गुस्से को रोक पाना संभव नहीं है उन्होंने 1887 में भी प्रिंट प्रेस की स्थापना के लिए अनुमति को आवश्यक कर दिया.

भारतेंदु युग(1867-1900)- भारतेंदू हरिशचन्द्र ने  हिंदी पत्रकारिता के नवजागरण की दिशा में नई आशा का संचार किया हैं.उन्होंने कवि वचन,सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका, बालगोधिनी जैसी रचनाओं के माध्यम से, स्थानीय भाषा और बोलियों का प्रयोग करते हुए, कवितामय तरीके से लोगों तक अपनी बात पहुंचाया. उन्होंने 'अंधेर नगरी चौपट राजा' में तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के दमन को बहुत ही सजीवता से दर्शाया गया था. इस काल में 'भारत मित्र' नाम के एक अन्य समाचार पत्र भी जन जागरण में प्रमुख योगदान दे रहे थे.

तिलक युग (1900-20)- महान साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी और बाल गंगाधर तिलक ने साहित्यिक पत्रकारिता को समाज सुधार और राजनीति के विषय बनाकर अखबारों में लेख लिखें. सर्वसुधा निधि, उचित वक्ता उस समय के राजनीतिक अखबार थे. इसके अलावा सरस्वती, बंगवासी वैश्य प्रकार के अलावा 'भारत मित्र' जैसा पुराना अखबार भी वर्चस्व में था. तिलक ने महाराष्ट्र में गणपति उत्सव का आरंभ करते हुए. लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने के लिए, आग उगलने वाले लेख लिखें. 16 अक्टूबर 1905 बंगाल विभाजन पर शोक दिवस मनाया गया. पूरे बंगाल में         वंदे-मातरम् और बंग-भंग के नारे से बंगाल गुँज उठी. तिलक ने इसका जोरदार विरोध करते हुए. 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे लेकर रहेंगे'  का नारा दिया और लेख लिखे. मराठा और केसरी के नाम से उनके लेख अंग्रेज शासन का विरोध करते रहे. उनको कई बार जेल जाना पड़ा. मगर वो झुके नहीं.
1920 में कांग्रेस के अधिवेशन में हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया गया और इस अधिवेशन में माखनलाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, माधवराव,  विष्णु परासर, चंद्रधर शर्मा, गुलेरी जैसे प्रमुख पत्रकार भी शामिल थे. 1920 में भारत की भाषाई पत्रकारिता अंग्रेजी शासन के दमन के सामने सीना तान कर खड़ा था.

गांधी युग -  गांधी युग या छाया युग क्योंकि इस दौर में गांधी अगुवा के रूप में सामने थे. और उनके पीछे पत्रकार और साहित्यकारों की पूरी फौज जैसे परछाई का पीछा करते हुए चल रहे थे. विभिन्न विद्वानों ने छायावाद को अपने शब्दों में परिभाषित किया हैं-
डॉ रामकुमार वर्मा- परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती और आत्मा की छाया परमात्मा पर यही छायावाद है.

आचार्य रामकृष्ण शुक्ल-  छायावाद के दो अर्थ है.
रहस्यवाद से ओतप्रोत काव्यवस्तु, दूसरा काव्य शैली और पद्धति के विशेष रूप के तौर पर.

डॉक्टर नागेंद्र-  छायावाद एक विशेष भाव पद्धति है. जीवन के प्रति एक भावनात्मक दृष्टिकोण है.
                           इसी छायावादी दौर में मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, मुंशी प्रेमचंद्र जैसे साहित्यकार भी पत्रकारिता के मूल्य में समाहित हो गए. जिन्होंने अपनी कविता और आलेखों के माध्यम से जनता में अंग्रेजी दमन के प्रति आक्रोश और एकजुटता जैसी भावना जगाने की कोशिश की. इसी दौर में गांधी ने हरिजन, नवजीवन, हरिजन बंधु, हरिजन सेवक और यंग इंडिया जैसे समाचार पत्रों का संपादन किया. 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में गांधी ने अंग्रेजी राज में समाचार पत्रों की रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरे किए बिना 'सत्याग्रह' नाम की पत्रिका निकाली.यह वह दौर था, जब अंग्रेजी शासन के कई अखबारों को बंद करवा दिया था. वही रणभेरी जैसे कुछ अखबार भूमिगत रूप से छपने लगे. जिसमें अंग्रेजो को भारत से निकालने के लिए सशस्त्र क्रांति की बात कही गई थी.

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