गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे "वृंदावन कहते है"

ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे "वृंदावन कहते है"


एक बार जब ग्रहण के समय सभी व्रज वासियों और द्वारिका वासियों को कुरुक्षेत्र में जाने का अवसर मिला तब श्री राधा रानी भी अपनी सखियों से साथ वहाँ गई,जब रुक्मणि आदि रानियों को पता चला की व्रजवासी सहित राधा रानी जी भी आई है तो उनके मन में तो बहुत वर्षों से उनसे मिलने की इच्छा थी,क्योकि भगवान हमेशा यशोदा जी नन्द बाबा और राधा रानी जी के प्रेम में इतना डूबे रहते थे कि द्वारिका में सभी रानियों को बड़ा आश्चर्य होता था.आज जब पता चला तो सभी ने भगवान कृष्ण से राधा रानी से मिलने की इच्छा व्यक्त की.

भगवान श्री कृष्ण ने कुछ सैनिको के साथ रानियों को भेजा,रानियाँ वहाँ पहुँची जहाँ राधा रानी जी ठहरी हुई थी,रुक्मणि आदि रानियाँ जैसे ही अन्दर गई,तो देखा एक बहुत सुन्दर युवती खड़ी हुई,वह इतनी सुन्दर थी कि सभी रानियाँ उनके सामने फीकी लगने लगी, सभी उसके चरणों में गिर गई,तब वह बोली - आप सभी कौन है?

तब रुक्मणि आदि रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?
तब सखी बोली - मै राधा रानी नहीं हूँ , मै तो उनकी सखी हूँ ,मेरा नाम इन्दुलेखा है.में तो राधारानी जी की दासी हूँ, वे तो सात द्वारों के अन्दर विराजमान है.रानियों को बड़ा आश्चर्य हुआ जिसकी दासी इतनी सुन्दर है तो वे स्वयं कितनी सुन्दर ना होगी?-आगे फिर एक-एक करके अष्ट सखियाँ मिली - रंगदेवी, तुंगविद्या, सुदेवी, चम्पकलता, चित्रा, विशाखा, ललिता.सभी रूप और सुंदरता की मिसाल थी. रानियों ने अपना परिचय बताया और कहा कि हम आपसे ही मिलने आये है आप राधा हो ना ?

सभी रानियाँ आश्चर्य में थी जब ये सभी इतनी सुन्दर है तो राधा रानी कैसी होगी ?

सभी अष्ट द्वार के अन्दर पहुँची,देखा राधा रानी जी के दोनों ओर ललिता विशाखा सखियाँ खड़ी है और श्री राधा रानी जी सुन्दर शय्या पर लंबा सा घूँघट करके बैठी हुई है.रुक्मणि जी ने चरणों में प्रणाम किया और दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की.तब श्री राधा रानी जी ने अपने कोमल करो से अपना घूँघट ऊपर उठाया,घूँघट ऊपर उठाते ही इतना प्रकाश उनके श्रीमुख से निकला कि सभी रानियो की आँखे बंद हो गई.

जब उन्होंने राधारानी जी के रूप और सौंदर्य को देखा तो वे बस देखती ही रह गई.तब रुक्मणि जी की नजर राधा रानी जी के चरणों पर पड़ी देखा चरणों में कुछ घाव बने हुए है रुक्मणि जी ने पूंछा तो श्री राधा रानी जी कहने लगी आपने कल रात श्री कृष्ण को दुध पिलाया था,वह दूध गर्म था,जब वह दूध उनके ह्रदय तक पहुँचा तो उनके ह्रदय में हमारे चरण बसते है,इसी से ये घाव मेरे पैरों में आ गए.

इतना सुनते ही रानियों का सारा अभिमान चूर चूर हो गया,वे समझ गई कि कृष्ण क्यों हम सभी से अधिक राधा रानी जी को प्रेम करते है.

वास्तव में वृंदावन श्रीराधा रानी जी का शयनकक्ष हैं, जिसे निजकक्ष कहते है, वे रोज रात में वृंदावन आती है रासलीला करती है और प्रातः फिर बरसाने चली जाती है. यदि हमारे घर कोई अपरिचित आये तो हम अपने घर के फाटक के अन्दर होते है वह अपरिचित बाहर होता है हम बाहर से ही उससे बात करते है,यदि कोई परिचित आ जाए तो हम घर के बरामदे में उससे बात करेगे,कोई व्यवहारी आ जाए तो ड्रोइंग रुम में बैठाकर उससे बात करेगे,कोई सगा रिश्तेदार आ जाए तो रसोई घर तक आ सकता है.

पर हमारे निज कक्ष में किसी का भी प्रवेश नहीं होता,यहाँ तक की एक समय के बाद बच्चे भी नहीं आते,श्रीजी का बैडरूम वृंदावन है और उन्होंने हमें अपने निज कक्ष में प्रवेश दिया है. इसलिए वृंदावन साक्षात् राधारानी है. जहाँ ब्रह्म भी उनकी आज्ञा से ही आ सकते है. जिसके संकेत पर ब्रह्माण्ड नाचता है वह "ब्रह्म" है, और ब्रह्म जिसके इशारे पर नाचता है उसे"वृंदावन" कहते है.

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