मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

पत्रकारिता के विविध स्वरूप

राजनीतिक पत्रकारिता- राजनीतिक चुनाव पार्टी विशेष के, विभिन्न कार्यक्रमों. सरकार की नीति योजनाओं, कार्यक्रमों के पीछे की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव. पार्टी पदाधिकारियों की बैठक, सभाओं, रैलियों की कवरेज के साथ जमीनी स्तर पर दलगत, गतिविधियों की निष्पक्ष, रिपोर्टिंग और लेखन राजनीतिक पत्रकारिता कहलाता है. एक राजनीतिक पत्रकार का संपर्क किसी राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के सत्ता में बैठे और विकक्ष के नेताओं से होता है. लेकिन वे दल विशेष का पक्ष लिए बगैर, अपनी रिपोर्टिंग करते हैं. विश्लेषणात्मक, शक्ति, धाराप्रवाह और सरल भाषा लेखन में रोचकता और सशक्त तारकीय दृष्टि राजनीतिक पत्रकार के विशेष गुण है. समय समय पर राजनीतिक घटनाक्रम, सुझाव,परिणाम, नेता के बयानों प्रेसवार्ता की पृष्ठभूमि में राजनीतिक पक्ष पर पैनी नजर राजनीतिक संवाददाता के लेखन में नजर आने चाहिए.
क्राइम पत्रकारिता या अपराध- समाचार पत्र माध्यम का सबसे पठनीय और चुनौतीपूर्ण कार्य है. क्राइम पत्रकारिता असल में 24 घंटे सजक चपल और संपर्क में रह कर की जाने वाली पत्रकारिता है और अपराध की खबर मैदानी पड़ताल विभिन्न धाराओं, कानूनों की जानकारी, पुलिस एवं जांच एजेंसियों की जांच एवं विवेचना तौर-तरीके को समझने की है. अपराधिक दंड सहिंता की विस्तृत विस्तृत जानकारी, फॉरेंसिक जांच और संबंधित राज्य के कानूनों की पूरी जानकारी एवं क्राइम पत्रकार को होनी चाहिए. उसे ना केवल घटनास्थल पर जाकर रिपोर्टिंग करनी होती है बल्कि, अपराध और पीड़ित पक्ष के लोगों को भी ध्यान में रखना होता है. क्राइम पत्रकारिता तब तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं करता. जब तक पत्रकार अपराधी घटना के कारणों के अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंच जाता और इसलिए उसे घटनाओं के लगातार फॉलोअर्स की जरूरत पड़ती है.
खेल पत्रकारिता- अपराध पत्रकारिता के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और पठ्नीय पत्रकारिता खेल पत्रकारिता है.देश विदेश में होने वाली स्पर्धाओं की जानकारियां और एजेंसी से प्राप्त खेल परिणामों को खबर के रूप में संपादित कर, फोटो और अन्य आंकड़ों के साथ पेश करना, खेल पत्रकारिता का हिस्सा है. उसके लिए पत्रकार की भाषा में गतिशीलता, फ्लेक्सिबिलिटी, रोचकता, प्रवाह में Action जीवंतता होनी चाहिए. वरना पत्रकारिता निरर्थक है. इसलिए खेल पत्रकार को विभिन्न खेलों की तकनीकी और क्रियाशील जानकारी बुनियादी रुप से होनी चाहिए. साथ ही उनके पास खेल और खिलाड़ियों की व्यक्तिगत, खेल से संबंधित तथ्यों का होना जरुरी है. पत्रकार को विश्लेषक भी होना चाहिए. तभी वह परिणामों की समीक्षा और उस पर अपनी टिप्पणी कर सकता है.
फिल्म पत्रकारिता- 1913 में भारत की बनी पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र और 1931 में पहली सवाक फिल्म आलम आरा की समीक्षा से बाद से लेकर आज तक भारतीय सिनेमा में तकनीकी, सिनेमा बनने की विभिन्न विधाओं की बहुत से पड़ाव देखे हैं. श्वेत-श्याम से Colors TV और अब LED,HD, 3D के जमाने में पटकथा विषय संवाद की लय विभिन्न शैली प्रस्तुतीकरण, संपादन, सिनेमाकला की और आधुनिक कंप्यूटर तकनीक के इस्तेमाल के साथ ही बहुत विविधता आ गई है. समानांतर सिनेमा डोकोमेंट्री और छोटी फिल्मों ने दर्शकों के व्यापक समूह तक अपनी पहुंच बनाई है. ऐसे में फिल्म पत्रकारिता की चुनौती पहले से कहीं अधिक है, व्यापक और मुश्किल है. एक फिल्म पत्रकार को फिल्म तकनीक से जुड़ी सभी पहलुओं को समझने. लक्षित पत्रकारिता को संकलित करने,दर्शकों के मनोभाव के अनुसार अपनी समीक्षा पेश करनी होती है. साथ ही वर्तमान समय में नायक, नायिका के निजी एवं सार्वजनिक जीवन के बारे में रोचक जानकारियां पेश करने की चुनौती भी होती है. फिल्म फेयर, पिक्चर प्लस,फिल्मी दूनिया, फिल्मी कालिया, माधुरी जैसी फिल्म पत्रिकाओं के लेखन के लिए एवं व्यवसाय के लिए पैनी दृष्टि अवश्य फिल्मों से जुड़ी जानकारी पर रखनी चाहिए. लोकप्रिय धारावाहिक की समीक्षा और उसमें आने वाले एपिसोड को लेकर आगे की चर्चा को पेश करना भी पड़ता है.

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