मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

आजादी के पूर्व और आजादी के बाद की पत्रकारिता

भारतेंदु हरिश्चंद्र और राजा राममोहन राय से लेकर मुंशी प्रेमचंद, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और माखनलाल चतुर्वेदी तक सभी पत्रकार के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे. उस समय यानी अंग्रेजी राज में रूढ़िओं, अंधविश्वासों, तरह-तरह की कुरीतियों और कर्मकांड में उलछे भारतीय समाज को जगाने और उन्हें एक दिशा दिखाने का काम इन सभी ने किया. इनमें में राजा राममोहन राय प्रमुख है. जिन्होंने सती प्रथा के खिलाफ एवं विधवा विवाह के पक्ष में जनमत खड़ा करने की कोशिश की और निर्भयता से अपने समाचार पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जन समाज तक पहुंचाया. उसी तरह महात्मा गांधी ने अपने समाचार पत्र हरिजन के माध्यम से छुआछूत, जाति प्रथा और अंग्रेजी राज्य के दमन के खिलाफ लेख लिखें. जनसमूह को जागृत करने का प्रयास किया. इन सभी का मकसद समाज और तंत्र के विसंगतियों को दूर कर एक समतामूलक समाज की स्थापना करना और भारत को अंग्रेजी राज के चंगुल से मुक्त कराना रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले की पत्रकारिता. भले ही एक व्यापक जनमानस तक, आज की तरह आधुनिक तकनीक के जरिए प्रचार-प्रसार नहीं हो पाती थी. पर उन्होंने अंग्रेजी राज के काले कानून और विसंगतियों को जनता तक पहुंचाएं और उन्हें प्रेरित किया. इनके साथ ही भारतीय पत्रकारों ने यूरोप की औद्योगिक क्रांति, रूस की बोल्शेविक क्रांति, प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय आम लोगों तक सूचनाओं को पहुंचाने में अहम योगदान दिया. इसके अलावे पश्चिमी देशों में लगातार हो रही. तकनीकी क्रांति को भारतीय समाज तक पहुंचाने का कार्य भी इन पत्रकारों ने किया. मूल रूप स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले की पत्रकारिता भारतीय समाज को जगाने, उसे सशक्त करने और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध में एकजुट कर आंदोलित करने का एक मिशन रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय पत्रकारिता ने एक नए रूप में अपने आप को ढ़ालना शुरू कर लिया. समाज पर उसकी पैनी नजर हो गई. पत्रकारिता अन्वेषण का काम भी बन गया और समाजिक अभिव्यक्ति को सामने लाने का मंच बन गया. सामाजिक सरोकारों से जुड़ी खबरे, सरकार की नीतियों, योजनाओं की समीक्षा, कार्य की तथ्यपूर्वक, विवेचना समालोचना की जाने लगी. आजादी के बाद समाचार पत्रों ने देश के विभिन्न हिस्सों, समाज के अलग-अलग वर्गों और ग्रामीण दूरदराज के आंचलों तक, अपनी पहुंच बनाने के प्रयास किए. यही वह समय था, जब समाचार पत्रों ने अपने मिशन मोड को व्यवसायिक पत्रिका से जोड़ना शुरु किया. महिला बच्चे और वंचित वर्गों को अपने से जोड़ने की कोशिश की. मानवीय भावनाओं, सांप्रदायिकता, हिंसा, लैंगिक, उत्पीड़न जैसे विषय समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित होने लगे. आम लोगों की समीक्षाओं उनकी अभिव्यक्ति को आलेखों, पत्रों के माध्यम से सामने लाए जाने लगे.
स्पष्ट है कि पत्रकार और पत्रकारिता दोनों ही समाज में गहराई से जुड़े हुए हैं. समाज में होने वाली घटनाओं को, समाचारों के माध्यम से सामने लाना ही पत्रकार का एकमात्र उद्देश्य नहीं, बल्कि! सरकार की नीतियों योजनाओं कार्यक्रमों के अलावे कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका के कामकाज की समीक्षा और वहां से जुड़ी जानकारियों को आम लोगों के समक्ष पेश करना. उनके गुण दोषों को परखना और समाज को एक निष्पक्ष निर्भीक तरीके से सच से अवगत कराना. पत्रकारिता का उद्देश्य है. इस तरह हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि,पत्रकार हमारे समाज का लोकपहरी है बतौर पत्रकार का उद्देश्य समाज के सहयोग के बिना या समाज से हटकर, कटकर  पूरा नहीं हो सकता. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर हम कहें, समाज, पत्रकार और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक है.
उपयुक्त बातों के आधार पर निम्न प्रश्नों से संबंधित उत्तर दिए जा सकते हैं-
1. पत्रकारिता और समाज के बीच अंतर संबंधों को दर्शाते हुए पत्रकारिता के प्रारंभिक काल से लेकर आज की चुनौतियों को रेखांकित कीजिए.
2. स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता के उद्देश्य को लिखे.
3. भारतीय पत्रकारिता में बदलाव को समझाएं.



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