शनिवार, 9 दिसंबर 2017

पत्रकारिता से समाजिक परिवर्तन.

पत्रकारिता से समाजिक परिवर्तन-
स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद आज पत्रकारिता का स्वरूप बहुत बदल गया है. पत्रकारिता इस समय केवल रोजमर्रा की घटनाओं, सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण और आलोचना तक ही सीमित नहीं रह गई है. बल्कि रेडियो, टेलीविज़न, डिजिटल माध्यमों से दिख रही. कड़ी चुनौतियों के चलते पत्रकारिता आब 24 घंटे अपने पाठकों, के बीच हमेशा कुछ नया पेश करने की बाध्यता बन चुकी है. चाहे समाचार पत्र का हो या रेडियो, टेलीविजन, डिजिटल कोई माध्यम हर माध्यम में कोई भी समाचार या विचार के लिए जगह तभी निकाल पाती है, जब वह एक व्यापक समाज के लिए रोचक, ज्ञानवर्धक, सूचनाप्रद, उत्साहपूर्ण और पठनीय हो. इस तरह आप की पत्रकारिता ना सिर्फ समाज के व्यापक बदलाव का माध्यम है. बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को बरकरार रखने के लिए आम लोगों की व्यवहारिक और विचारों में बदलाव का माध्यम भी है . आज की पत्रकारिता में हम सबसे पहले, सबसे तेज, सबसे बेहतर, सबसे अलग, सबसे विश्वसनीय जैसे सूचनाओं से निर्धारित कर करते हैं. पत्रकार की लिखी हुई एक खबर, तंत्र को जहां विकसित भी कर सकती है, वही उसके सामने समस्या के निदान का उपाय सुझाने वाली भी हो सकती है. पिछले 20 वर्षों की पत्रकारिता का इतिहास देखे, तो बोफोर्स कांड से लेकर कोयला घोटाले, देश में बढ़ती सांप्रदायिकता, महिलाओं के साथ यौन हिंसा और विक्षिप्त जैसी घटनाओं से लेकर, अब तक तीन तलाक के मामले तक, भारतीय मीडिया ने अपने रिपोर्टिंग और अन्वेषण कार्य प्रगति के चलते केवल जनता के बीच रखा. अपने सतत् प्रक्रिया यानि लेखनी के माध्यम से समाज को जागृत किया. समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार, जातिगत एवं सांप्रदायिक भेदभाव जैसे प्रवृतियों को ही उजागर ना किया बल्कि इस दिशा में सहमति मित्रता बनाए रखने का प्रयास सतत् ही किया है. इसे कोई नाकार नहीं सकता. सरकारी योजनाओं, नीतियों और सोच को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाल में स्वच्छता अभियान 'स्वच्छ भारत मिशन' को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है. जिसे लेकर भारतीय लोकप्रिय मीडिया ने लगातार सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही तरह की रिपोर्टिंग की और स्वच्छता मिशन से जुड़ी खामियां को ही उजागर नहीं किया, बल्कि उन मानवीय पहलुओं को भी बेहद प्रेरक तरीके से प्रस्तुत किया. जिसमे दुल्हन ने सिर्फ इसलिए शादी से इंकार कर दिया. क्योकि ससुराल में शौचालय नहीं था. स्पष्ट है कि मीडिया समाज को बदल सकता है, बशर्ते उसकी रिपोर्टिंग निष्पक्ष दृष्टिकोण से हो लेखन की प्रवृत्ति विश्लेषणात्मक गुणों से परिपूर्ण हो और लिखा गया समाचार के पीछे पत्रकार की अन्वेषणा व्यापक दृष्टि में शामिल होते रहे.
यह सब जिस समय से सरकार हो रहा है. जब मीडिया प्रबंधन का बड़ा हिस्सा व्यावसायिक घरानों के हाथों में हैं. और मीडिया लगातार जनसरोकारों के मुद्दों पर, पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाने के आरोप लगते रहे हैं. इसके बावजूद दशरथ मांझी जैसे नायकों की भी कहानियां सुर्खियां में होती है. जो अपने गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए पहाड़ खोदकर रास्ता निकालता है. इस तरफ कूट-खदानों एवं राशन आवंटन, किसानों की समस्या- खाद की उपलब्धता आदि, विषयों पर लगातार समाचार पत्रों में प्रमुखता दी जाती रही है. लगभग सभी अखबारों की पहुंच दूरदराज के आंचलों तक है. और स्थानीय संवाददाता लगातार लोगों की समस्या को उजागर कर अपना दायित्व निर्वाह कर रहे हैं. समाचार एक चराचर व्यवस्था है. जो कभी स्थित नहीं रहेगा. उसे हमेशा कुछ नया चाहिए. उसे हमेशा बदलाव पसंद हैं. और इसी चुनौती को मीडिया में बखूबी निभाया है. इसका परिणाम एक सामाजिक कार्यों में लगातार शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पानी, बिजली और लोक व्यवहार जैसे मुद्दों पर जनता की सोच में आए बदलाव में देखा जा सकता है. फिर भी लिंगभेद, बाल विवाह, मानव तस्करी, लैंगिक अपराध, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही बनाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना जरूरी है. इसलिए मीडिया को इस समय संक्रमण काल से गुजरा हुआ माना जा सकता है.

उपयोगिता के आधार पर हम निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1.पत्रकारिता सामाजिक परिवर्तन का साधन है कैसे?
2. पत्रकारिता का समाज के प्रति दायित्व का उल्लेख करें.
3. सामाजिक सौहार्द बनाने पत्रकारिता की  भूमिका को स्पष्ट करें.

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