कैसे पहुँचे लक्ष्य से आगे ?
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कैसे पहुँचे लक्ष्य से आगे ?
ये पूछते ही वो गंभीर हो गए।
वर्तमान से निकल कर
अतीत में खो गए।
और कहने लगे-
हौसला बुलन्द था
सफर मुश्किल से कटता था।
धारा के मध्य थी नैया
लाचार था मैं,
क्योंकि मैं ही था खेवैया।
आँधी का ज़ोर था
बारिश का शोर था।
तूफ़ान से लहरो ने
कश्ती को बचाया।
थपेड़ो ने मझधार से
साहिल तक पहुँचाया।
ऐसे ही मेरा सफर चलता रहा
और मैं मंजिल से आगे निकलता रहा।
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कैसे पहुँचे लक्ष्य से आगे ?
ये पूछते ही वो गंभीर हो गए।
वर्तमान से निकल कर
अतीत में खो गए।
और कहने लगे-
हौसला बुलन्द था
सफर मुश्किल से कटता था।
धारा के मध्य थी नैया
लाचार था मैं,
क्योंकि मैं ही था खेवैया।
आँधी का ज़ोर था
बारिश का शोर था।
तूफ़ान से लहरो ने
कश्ती को बचाया।
थपेड़ो ने मझधार से
साहिल तक पहुँचाया।
ऐसे ही मेरा सफर चलता रहा
और मैं मंजिल से आगे निकलता रहा।
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