हुनर मिला है जिन पेड़ों को
आंधी में झुक जाने का ।
उन्हें बसंत भरमा न पाया
जड़ में जिसने पैर जमाया
इस जग में वो ही बड़े हुए है
जो जड़ को जकड़े अड़े हुए है
प्रतिमाओं में वो मढ़े हुए है
जो झुक कर फिर से खड़े हुए है,
हर हिन्दू के सीने का त्याग
कहीं ढह जाए न
भरत भूमि की माटी पर
दाग कहीं रह जाए न
जिसने हमको सत्ता दी है
और दिया सारा शासन
उसी राम को दे न पाए एक
दिव्य ऊँचा आसन .....
आंधी में झुक जाने का ।
उन्हें बसंत भरमा न पाया
जड़ में जिसने पैर जमाया
इस जग में वो ही बड़े हुए है
जो जड़ को जकड़े अड़े हुए है
प्रतिमाओं में वो मढ़े हुए है
जो झुक कर फिर से खड़े हुए है,
हर हिन्दू के सीने का त्याग
कहीं ढह जाए न
भरत भूमि की माटी पर
दाग कहीं रह जाए न
जिसने हमको सत्ता दी है
और दिया सारा शासन
उसी राम को दे न पाए एक
दिव्य ऊँचा आसन .....
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