सोमवार, 18 सितंबर 2017

आज क्यों तेरी याद आई ! ( जितेश सिंह )

ऐ मेरी जन्मभू!
तुझी से मेरा औचित्य है|
आज फिर तेरी याद आई!

कहीं दूर बैठे जब शांत
चित्त हो जाता हूं|
फिर घर की याद आई,
आज फिर तेरी याद आई!

संभावनाओं के अवसर
प्राप्त करते करते|
शायद मैं भटक गया,
इसीलिए तेरी याद आई!

इस भौतिकवादी दुनिया से,
शायद मैं रूठ गया|
तभी तो तेरी याद आई!

वह पीपल की छाव,
बाग़ और बगीचे,
कि यादे और
तेरी याद आई!

वो गंगा के किनारे,
पावन सा मंदिर!
आज फिर मुझे याद आई!

शायद वो बड़े
बदनसीब होते हैं!
जिन्हें गाँव का
गोद नहीं मिला|

सब कुछ तो तूने दिया है
मैं मांगू क्या?
बस मेरे बचपन की यादे
रखना संभाल कर!

थक कर दुनिया के
साज-बाज से,
एक वही आऊंगा|
और तुम भी तो मुझे
बुलायोगी!
                                           - जितेश सिंह 

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