सोमवार, 22 जनवरी 2018

देशविरोधी और वामपंथी की चाल: कोरेगाॉव

पुणे के कोरेगांव भीमा इलाके में, भड़की हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही|

 महार समाज के द्वारा 3 जनवरी (बुधवार) महाराष्ट्र बंद का व्यापक असर देखा गया|जिसके कारण ठाणे में धारा 144 और औरंगाबाद में इंटरनेट सेवा ठप रही| बिजली की गति से दौड़ता महाराष्ट्र कछुए की चाल से चलने लगा|वही बंदी का असर ट्रेन, बस और छोटे बड़े सभी वाहनों पर दिखा|प्रदर्शन के दौरान  दुकानों में तोड़फोड़ और कई गाड़ियां जलाई गई|तो लोकसभा और राज्यसभा भी हंगामे की बलि चढ़ा|लोकसभा में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाए, तो वही जुबानी भिड़ंत शुरू हो गई|दिलचस्प बात तो यह है कि अटल जी के जमाने से भाजपा पर एक ही प्रकार का आरोप लगते रहे हैं...
इधर घटना के कारण की विवेचना करें तो, बात 1 जनवरी 2018 की है| वर्षों से दलित समाज एकजुट होकर 1 जनवरी को शौर्य शौर्य दिवस मनाते आया है|जानकारी एेसा है कि, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर एक बार कोरेगॉव आये थे और उन्होंने यहाँ एक जनसभा की|जिसके बाद से महार जाति यहां पीछले कई दशको से अपनी संगठन शक्ति और आपसी भाईचारे के लिए शौर्य दिवस मनाते आ रही है|लेकिन इसका एक दृश्य और भी है|भारत के ही बुद्धिजीवी पश्चिमी विचारक लोगों ने इस शौर्य दिवस को 1 जनवरी 1818 से जोड़ा|जी हां! 1 जनवरी 1818 वही दिन था, जब मराठी सेना पेशवा बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों से पराजित हुई|जिसमें ब्रिटिश सैनिक को महार जाति के कुछ लोगों का सहयोग रहा| क्योंकि उनमें ब्राह्मणों के सामाजिक पाबंदी एवं अत्याचार के कारण नाराजगी थी|जब कि युद्ध में मराठा सैनिकों में भी सभी जाति-वर्ग के लोग थे| मगर इस बात का क्या मतलब? देश में अलगाववाद की राजनीति जो करनी थी|वही ध्यान दें तो राज्यसभा में ऐतिहासिक बिल तीन तलाक के विरुद्ध पारित होना था| जो कि विपक्षी दलों को भा नहीं रहा था| जैसे उन्हें कोरेगांव में आग लगने की खबर मिली| पहुंच गए सभी डीजल और पेट्रोल लेकर हिंसा फैलाने| 1 जनवरी को हुई घटना आग की तरह पूरे महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और देश के छोटे बड़े राज्यों में फैल गया| देश की मीडिया की भी सराहनीय भूमिका रही| वही शौर्य दिवस पर नजर डाले तो, केवल वामपंथी ही नहीं, बासपा, कांग्रेस, और कई राजनीतिक दलों के अलावे विवादास्पद लोगों की भी उपस्थिति रही|उनकी उपस्थिति अकस्मात नहीं बल्कि एक सुनियोजित चाल थी|हिंसक घटना तो इसी ओर ध्यान खिचती है|कार्यक्रम में गुजरात के जिग्नेश मेवाणी आकर्षण का केंद्र बने रहे|तो उपस्थित महानुभावों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव मौलाना अब्दुल हामिद अंसारी, नक्सलों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली सोनी सोरी, उमर खालिद, तीस्ता सीतलवाड़ जैसे कई विवादित चेहरे भी उपस्थिति रहे|जिन्होंने  कार्यक्रम के दौरान जमकर केंद्र सरकार और सीबीआई,एटीएस,रॉ,आईबी,एनएसजी, देश के सैनिकों के बारे में जहर उगला| फिर ऐसे में इस कार्यक्रम को महारों का शौर्य दिवस मानना गलत होगा| यह शुद्ध रूप से देशविरोधी दलों की योजना थी|जिसमें महार जाति को आगे कर उसके आर में एक बार फिर विपक्षियों ने घटिया राजनीति की है| देश में जातिवाद और अराजकता को बढ़ावा दिया है|                                                                                                          
                                                                                                                   - जितेश सिंह

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