संवेदना दम तोड़ रही
मरघट के उस पार
और हम संवेदनशील होने का
स्वाँग रचाते रहे।
मंच से उन्हे सुनकर आया था
तो मन बड़ा प्रसन्न था
पर घर जाकर नेताजी ने
भाषण लिखने वाले को
पुरष्कृत किया।
तब हमें एहसास हुआ
संवेदना जिंदा है,
कुछ किताबो में,
गिने चुने इनसान में,
फुटपाथ की चाय की दुकान में,
क्योंकि एक बृद्ध व्यक्ति
शीत में काँप रहा था।
बस चाय वाले ने
चूल्हे से बर्तन उतारा
और उन्हे आग सेकने के लिए बुला लिया।
- गणिनाथ सहनी, रेवा
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