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रुको जिंदगी!
जी भर के आलिंगन कर लूं
पता नही
कब मौत गले का हार बने।
अपने सखा-मित्रो संग खेल लूं
आनंद ले लूं।
सुख-दुख के साथी का
दीदार कर लूं।
बचपन के चित्र में फिर से
नया रंग टहकार कर लूं।
पता नही
कब मौत गले का हार बने।
जिन-जिन ने मेरी ख़ातिर
अपने सुखो का त्याग किया
उन महामानव की चरण वंदना कर लूं।
हमें सुलाने में जो जगा करते थे
उनका हृदय से सत्कार कर लूं।
पता नही
कब मौत गले का हार बने।
गुरु की बातों का अक्षरश:
ध्यान कर लूं।
सच्ची श्रद्धा-निष्ठा से सम्मान कर लूं।
काल की गति पर एक छंद
कविता का लिख लूं।
पता नही
कब मौत गले का हार बने।
- गणिनाथ सहनी
मुजफ्फरपुर बिहार
मुजफ्फरपुर बिहार
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