रविवार, 28 अक्तूबर 2018

राजनीति बनाम पत्रकारिता! - जितेश कुमार

mp congress or press के लिए इमेज परिणाम27 अक्टूबर को भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा और कुछ पत्रकारों के बीच तू-तू-मैं-मैं हो गयी| आखिर क्यों कोई देश के सबसे बड़े प्रवक्ता; पत्रकार को कोई कुछ भी बोल देता है? कारण साफ है कि बिगत वर्षों में मीडिया ने अपना आत्मसम्मान गिराया है| समय की मांग है; मीडिया अपने उत्तरदायित्व को समझे| अपने अंदर आये विकारों को दूर करे| मीडिया सवाल पूछे ना कि राजनीतिक पार्टी का प्रवक्ता बने| जजमेंट का अधिकार लोकतंत्र में जनता का है और जनता अपना दायित्व समझती है| पत्रकारों में पत्रकारिता की झलक धुंधली हो रही और राजनीतिक पार्टियों के मेल-मिलाप का गहरा रंग चढ़ रहा है| इससे पत्रकारों और मीडिया हाउस की साख ख़राब हुई है| पहले तो लोग नेता को ही अनब-शनाब बकते थे- दलाल,घोटालेबाज,जुमलेबाज, भष्ट्राचारी कई नामों के पुकारते थे| ये टैग पत्रकारों के लिए भी लगने शुरू ए है| पत्रकार अपने दिशा-दशा का मूल्यांकन करे|
संबंधित इमेजदेखा जाये तो मप्र में चुनावी मोर्चे पर कांग्रेस के दिग्गज रणछोड़ के दिल्ली भाग बैठे हैं| सत्ता से 15 वर्ष बेदखल होने के बावजूद भी कांग्रेस में एकता नहीं हैं| कमलनाथ-ज्योतिरादित्या-दिग्गी आपस में ही ये एक दूसरे के सबसे बड़े विरोधी बने है| शिवराज और भाजपा से बाद में निपटने की जरुरत है| कांग्रेस पार्टी को इन तीनों घोर विरोधी का काट चुनना चाहिए| कांग्रेस पार्टी की चिंता प्रदेश में भाजपा बाद में है, पहले प्रदेश के तीन त्रिमूर्ति है, कैसे इन तीनों को एक मूर्त में पिरोया जाये? दिल्ली में मप्र के चुनावी रण छोड़  भाग जाना; प्रदेश में कांग्रेस के स्वास्थ के लिए ठीक नहीं है| अध्यक्ष भी कमाल के है, सिखाते है, सब कुछ नहीं जानते? कही राहुल को गांधी परिवार के कारण झेलना कांग्रेस को शांतिधाम ना पहुंचा दे| वैसे राहुल गांधी जब फर्जी गांधी है, तो कोई विवेकशील कांग्रसी को गांधी का इस्तेमाल करना चाहिए| जिसके  गोत्र और हिंदुत्व पर प्रश्न कोई ना करे? 
प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चूका है, प्रदेश से कांग्रेस के महारथी रण क्षेत्र से फरार है| ऐसे में कुछ चाटुकार मोर्चा संभाले हुए है, सावधान मप्र! पिक पत्रकारों पर जनता को पैनी नजर रखने की जरुरत है| समाज का प्रवक्ता

जितेश कुमार 

बिक हुआ है| हाँ, कुछ मीडिया हाउस और कुछ चाटुकार गले में कुत्ते की तरह पट्टा पहने, अपने मालिक के स्वामिभक्ति कर रहे है, पट्टे की पहचान मुश्किल है क्यों कि उस पर प्रेस लिखा है| किसी पार्टी का चुनावी अभियान में पत्रकार को नहीं पड़ना चाहिए| पत्रकार जनता के प्रति जवाबदेह है, किसी पार्टी और विचार से बांध कर अपना कद बौना  नहीं करे| मूल्यों और सिद्धांतो को बेच कर को ज्यादा दिन तक अपने अस्तित्व को नहीं सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है| बिगत कुछ वर्षों में जनता के

संवाद घटा है और राजनीति पार्टियां और पूँजीपत्तियों के संवाद बढ़ा है, जो पत्रकारिता के स्वास्थ्य लिए सही नहीं है| पत्रकार को राजनीति पार्टियां के मोहभंग कर, जनता कि ओर झुकना समय की मांग है| रोजगार, शिक्षा, सड़क, बिजली पानी के साथ देश की आतंरिक ओर बाह्य सुरक्षा को नहीं समझने को दरकार है| इसके लिए मीडिया हाउस को परिशुध्द होना पडेगा नहीं तो,दिन दूर नहीं जब हमारी स्थिति पर भी जनता नोटा दबाना शुरू कर देंगे|

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