सोमवार, 10 दिसंबर 2018

एक प्रेम कहानी - जितेश सिंह

दो लब्ज ही बया करती हूँ| तुम समझ जाते हो, मेरी कहानी क्या है, कैसे? सासों से भी पहले याद एक बार तू आता है| मेरी आँखें देखते ही तुझको दिल में उतर लेती है| मैं हमेशा डरती हूँ, जो मैंने  महसूस किया वो तूने किया, किया तो बताया क्यों नहीं और नहीं किया तो मैं क्यों दीवानी होते जा रही हूँ| एक-एक प्रश्न मुझे अंदर ही
अंदर मीठा दर्द  दे रही थी| एक बात बोलू , मैं इस दर्द से निकलना भी चाहती थी अगर तू हाथ थामे तो; नहीं तो
हमेशा के लिए इसी दर्द में जीना चाहती थी तेरी दीवानी बन कर| सब्र की नैइआ पर मैं बैठी सोचती रहती थी कि तू आये और हाथ थम ले| सारे आस-पास के लोगों को खबर मिल चुकी थी मैं तेरी दीवानी हूँ; फिर भी तेरा अनजान बना रहना मुझे तरपा रहा था| देखते ही देखते दो साल बीत गए| तू वैसा ही रहा जैसा था, बस अपने हंसी में जिया जा रहा था मेरी प्रवाह तो दूर; तुम तो पास आकर भी इतने दूर थे जैसे गगन के टिमटिमाते तारे को पसंद किया हूँ मैं| मेरी दर्द, तकलीफ, तरप, मायूसी से कही दूर तू टिमटिमाते रहा और मैं टूट कर तुमको प्यार करती रही| देखते देखते हम दोनों उस पाठशाला से उत्तीर्ण हो गये और तुम रेत की तरह मेरे हाथों से निकल गए| जब आखरी बार भीगी आँखों के तुमको देखा और चली गयी| शिकायत तुझसे तो था ही नहीं; कभी तुमको मैंने बताया नहीं की मैं तुमसे प्यार करता हूँ और मन ही मन सोच लिया एक दिन खुद तू ही आकर हाथ थम लेगा| सच बोलू तो मैं आज भी तुझे देखकर जीना चाहती हूँ| कमबख्त समय और नियति ने हमें जुदा कर दिया|
आज तुमसे बिछड़े हुए लगभग चार साल बीत गए| बहुत दिनों बाद मेरी एक सहेली मिली थी| वो बड़ी दुखी थी| जब मेरे साथ पढ़ती थी तो बहुत ही तेज-तरार थी| कई बार तो मैंने उसकी कॉपी से नक़ल की| वो और अपने कक्षा के दूसरे बेंच पर तीसरे नंबर पर जो लड़का बैठता था ना, क्या नाम है उसका याद नहीं आ रहा है| उसी को पसंद करती थी| तब वो भी उसे चाहता था| दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी लगाती थी| लगता था एक दूसरे के लिए ही बने हो| मुझे तनिक संदेह नहीं था कभी उसके साथ ऐसा होगा और वो कभी ऐसा करेगा| जिसका सुबह और शाम उसी को हंसाने और लुभाने के लगता था| लेकिन जब मैंने अपनी सहेली जो कल तक एक फूल जैसी दिखती थी| उसका मुरझाया चेहरा और मायूस आठों ने सब बया कर दिया| क्या हुआ होगा उसके साथ 'साले ये लड़के' ऐसे ही होते है| अच्छा हुआ कि हम कभी इसके चक्कर में नहीं पड़े| नहीं तो मेरी भी स्थिति ऐसी ही होती| मैंने उसे बहुत समझाया-बुझाया वो चला गया तो गया| उसके चक्कर में मत पड़ उसे छोड़ कर जो तुमसे प्यार करते है उसके लिए हंसो| बहुत प्रयास के बाद उसके चहरे पर चार साल पहली वाली मुस्कान ने मेरे अंदर की तरप को ठंडा कर दिया| 

जितेश सिंह

कुछ भी मैं बोलू; मैं जिसे पसंद करती थी वो लड़का बहुत अच्छा था| मैंने कई बार उससे बात करने की कोशिश की| आँखों ही आँखों से कई प्रेम-पत्र सामने से उसको दिया पर उसने एक बार पलट कर जवाब नहीं दिया| जैसे ही मेरे मन ये सवाल आया फिर से मैंने उसकी दीवानी होने लगी|  
एक समय के लिए उससे पूरी कहानी सुन कर मैं चकित रहा गया| कोई इतना प्यार मुझे करता था| फिर भी पास आने पर तनिक एहसास भी नहीं होने दिया| सच मानों उसने मुझे जीता लिया था आज| हाँ ये बताना तो भूल ही गया जब मैं उसके अलग हो गया तो फिर मिला कब? आज हम एक दूसरे के साथ है और मैं उस पगली से बेहद प्यार करता हूँ| आज 5 साल बाद जब हम एक साथ आये तो उसका मेरे लिए जो 'अमर प्रेम' था| वो सब कुछ आज बया कर दी| हाँ लेकिन आज भी सालों  बाद मैंने ही उसका हाथ थाम लिया और जो कुछ जैसा उसने पिछले 7 साल में महसूस की थी| उसे उसी भाषा में कागज पर उतार दिया|
(एक काल्पनिक प्रेम कथा- JITESH SINGH )     

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