शनिवार, 18 अप्रैल 2020

अंधा गांव में कनहा राजा है नीतीश कुमार।

जितेश कुमार
पत्रकारिता छात्र
हमर बिहार में बहुत लोकप्रिय लोकोक्तियां बा अंधा गांव में कनहा राजा। आज से लगभग 15 साल पहले बिहार के राजनीति पर विचार करते है तो यह उपयुक्त लोकोक्तियां सटीक साबित होती है। 
हम बात कर रहें है, भजपा-जदयू गठबंधन 2005 की। जब पहली बार बिहार में भजपा-जदयू गठबंधन की जीत हुई थी और NDA के नेता श्री नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था। राजद गठबंधन की सरकार से जनता का मोह भंग होने के कारण, जनता ने अपना मत राजद के विरुद्ध में दिया था और NDA की जीत हुई और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। बिहार के लोगों
को अपने भावी मुख्यमंत्री के बहुत आशा थी, बिहार की गणना बीमारू राज्य में होती थी। नीतीश कुमार ने प्रथम कार्यकाल मैं कुछ करणीय कार्य किये जैसे राज्य मार्ग को दुरूस्त किया और बिजली के खंभे गांव-गांव तक पहुंचाये। पक्के स्कूलों तथा आंगनबाड़ी केंद्रों (समुदाय भवनों) का प्रत्येक पंचायत में निर्माण करवाया। किन्तु शिक्षा और रोजगार का कोई कार्य बिहार में इन्होंने नहीं किया। केवल आश्वासन ही बिहार के युवा पीढ़ी के हाथों में लगा। फिर भी जनता ने राजद से बेहतर कार्य करने का पुरस्कार दिया। दूसरे कार्यकाल में भी नीतीश कुमार बहुमत साबित करने में सफल रहें और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। कहते है ना जब गोकुल को श्री भगवान कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया तो कुछ लोग ऐसे थे जो लाठी पर्वत से अड़ा कर खड़ा कर दिये और अपनी महिमा मंडन करने लगे कि यह करिश्मा को वो अपने बलबूते किये है। ठीक ऐसा ही धमण्ड नीतीश बाबू में आया (दूसरा कार्यकाल) वो राजद के विरुद्ध मिलेने वाले वोट को अपनी प्रसंशा और लोकप्रियता समझने लगे और सत्ता के मदहोशी को संभाल नहीं सके। अपने आप को प्रधानमंत्री के भावी उमीदवार समझने लगे। किन्तु उसी समय गुजरात के कदावर और लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री बनने के लिए देशभर में जगह-जगह सभाएँ की और काँग्रेस के विरुद्ध उठ रहे आवाज को व्यापी बनाने में सफल रहें और प्रखर नायक ईमानदार छवि और कट्टर हिन्दू समर्थक राष्ट्रवादी नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए, मोदी ने नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने पर पानी फेर दिये और मोदी के इसी सफलता को देखते हुए भजपा को अपने कदावर नेता लालकृष्ण आडवाणी को साइड कर उनको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करना पड़ा। और अंततः 2014 में पूर्ण बहुमत के NDA की जीत हुई और मोदी  प्रधानमंत्री बने। लेकिन नीतीश बाबू खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नहीं बनाये जाने के कारण गठबंधन से अलग हो गये थे और अपना मुख्यमंत्री पद भी इस आन पर त्याग दिया अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गये तो वो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे और नीतीश कुमार ने ऐसा ही किया जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाये। कुछ ही महीनों में जीतन राम मांझी जब रिमोड कंट्रोल की तरह कार्य करने को तैयार नहीं हुये तो फिर से मुख्यमंत्री पद पर नीतीश कुमार ने कब्ज़ा कर लिया। इस घटना से जदयू में फूट पड़ गई जीतन राम मांझी जदयू से इस्तीफा देकर अलग पार्टी बना लिये यह बात सर्व विदित है। दूसरे कार्यकाल के अंतिम 2 साल को देखे तो इसमें व्यक्तिगत धमण्ड के कारण नीतीश कुमार का इस्तीफा देने का ड्रामा करना और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना और फिर अपना नुकसान देखते हुए पुनः षडयंत्र कर मांझी को हटाना, खुद मुख्यमंत्री बनना। यह बात साफ साफ दर्शता है कि जिस मुख्यमंत्री को बिहार के लोगों ने नायक फ़िल्म के हीरो अनिल कपूर के रूप में देखा था। वही अपने अहंकार में 2 साल तक संवैधानिक पद का दुरप्रयोग करता रहा। और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के विरुद्ध जनता  उनको अपना विश्वास मत दिया करती थी और जिस राजद पार्टी के विरुद्ध में नीतीश कुमार दो-दो बार पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बने। उसी राजद पार्टी के साथ गठबंधन करके लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। किंतु कहते है ना भ्रष्टाचार के महासागर में छोटे छोटे भ्रष्टाचारी का प्रभाव कम होता है तेजस्वी-तेजप्रताप का साथ नीतीश कुमार को नहीं भया। राजद के कार्यकर्ताओं की दादागिरी और गुंडागर्दी से अपना नुकसान देखते हुये। फिर से NDA में शामिल हुये। ऐसे में देखे तो 2013 से 2018 तक केवल अपना कद ऊंचा करने लिए असफल प्रयोग करके बिहार के राजस्व को तहस नहस कर दिया। बिहार में शराब बन्दी हुई, मानव श्रृंखला बना। इसके बावजूद आज बिहार की जनता कहती है, शराब की
दुकान भले नीतीश कुमार ने बंद करवाये किन्तु होम डिलीवरी शुरू करवा दिये।
दूसरा परियोजना नल जल योजना भी फेल साबित हुआ। देखा जाये तो नीतीश कुमार अपने दूसरे और तीसरे कार्यकाल में केवल अपनी छवि चमकने में व्यस्त रहे ऐसे में बिहार की शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार में कोई सुधार नहीं हुई। जो आंगनबाड़ी केंद्र (समुदायिक भवन) इनके प्रथम कार्यकाल में बना था वो भूतिया खण्डर जैसा प्रतीत होता है सच तो यह है कि गांव के बच्चे उधर से गुजरने पर डर जाते है। बिहार में स्कूल की बड़ी-बड़ी दो मंजिला भवन तो बना किन्तु शिक्षा रसातल में पहुंच गई। फिर भी नीतीश कुमार डिंग बड़ी-बड़ी हाकते है। जनता करें भी तो क्या करें एक ओर लालू यादव का जंगलराज याद आता है तो देह सीहर जाता है, शाम होते ही लोग घर के बाहर नहीं निकलते थे, रोज हत्या, लुटपाट, बलात्कार और गुंडागर्दी से जनता को अब तक नीतीश कुमार ही सही लगते थे। कारण साफ है बिहार में  विकल्प नहीं। 
देखा जाये नीतीश कुमार 3.0 भी उसी जंगलराज के पैटर्न पर ही चल रही है। नीतीश कुमार अब हिन्दू-मुस्लिम तुष्टिकरण और जातपात की राजनीति पर उतर गये है। इनके कार्यालय में शिक्षा चिकित्सा बेरोजगारी गुंडागर्दी लुटपाट बढ़ते जा रहा है जैसा की राजद सरकार के समय था। आज भी बिहार में मुख्यमंत्री के लिए कोई  उम्मीदवार नहीं होने कारण नीतीश कुमार ही है, भजपा में गिरिराज सिंह ने थोड़ी हिम्मत दिखाई थी किन्तु वो भी अभी गठबंधन धर्म के कारण मौन और अलग-थलग पड़ गए है। ऐसे में नीतीश कुमार वैसे ही सत्ता का सुख भोग रहे है जैसे कि उपयुक्त लोकोक्तियां में कही गई है अँधे गांव में कनहा राजा

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