शनिवार, 23 सितंबर 2017

संचार की अवधारणा और आवश्यकता :- ( जितेश सिंह)

मनुष्य प्रारंभ काल से । किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से संचार करता  आ रहा है । अर्थात संचार के उदय का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मनुष्य का निर्माण ।
मनुष्य के उदय के समानांतर ही संचार का उदय माना जाता है  । सरल शब्दों में अपने विचारों सूचनाओं का आदान प्रदान संचार कहलाता है । मनुष्य प्राचीन काल से ही संचार के लिए विभिन्न माध्यमों का विकास किया है , और यह विकास की प्रक्रिया आज भी प्रचलन में है ।
प्राचीन काल में भी आदिम मानव संचार के कई विधियों का प्रयोग करते थे । वह एक दूसरे से संकेततो एवं भिन्न -भिन्न तरह के ध्वनियों का उच्चारण कर । आपस में अपने विचारों को अभिव्यक्त करते थे ।
कुछ समय बाद संचार के लिए सर्वाधिक प्रचलित माध्यम ध्वनि थी , जिसे भाषा कहते हैं । भाषा के विकास के बाद संचार प्रक्रिया काफी विकसित और सरल हो गई । अब लोग अपने विचारों को भाषा में व्यक्त करने लगे । भाषा के विकास के बाद नाट्य,गीत,कहानियां,भाषण तथा चर्चा विभिन्न माध्यमों के द्वारा लोग आपस में सामूहिक संचार करने लगे ।
वर्तमान समय में संचार के वृहद रूप का अंदाजा भी नहीं लगा सकते । आज मनुष्य की गणना बुद्धिजीवी प्राणियों में होती है । तो उसका कारण संचार है । संचार से ही मनुष्य आपस में संगठित हुए । शिक्षित चिंतक और विश्लेषक बने । संचार के विभिन्न माध्यमों के विकास ने संपूर्ण विश्व को इतना छोटा कर दिया है । कि हम जिस भौगोलिक क्षेत्र के विषय में वहां की प्रकृति स्थिति या अन्य जानकारियां प्राप्त करना चाहे । सभी संचार के माध्यम से हमारे सामने उपस्थित हो जाते हैं । शिक्षा,
सामाजिक निर्माण तथा मनोरंजन के सापेक्ष । संचार के विकास अतुल्य है । आदिम काल से वर्तमान समय में संचार को समझने का प्रयास किया जाए , तो हमें ज्ञात होगा । संचार ही वह कारक या संचार ही वह माध्यम हैं । जिसके कारण समाज का निर्माण , विचारों की अभिव्यक्ति , विचारधारा की उत्पत्ति , राजनीति , शिक्षा , मनोरंजन ,कई महत्वपूर्ण पद्धतियां विकसित हुई । और आज हमारे जीवन चक्र को एक दिशा दे रही है ।
मेरे मत के अनुसार -  " संसार प्रक्रिया नहीं अपितु संपूर्ण विश्व का दर्पण है ।  इसमें सभी भगौलिक क्षेत्रों को देखा जा सकता है । इसके बारे में कई माध्यमों के द्वारा जानकारी प्राप्त किये जा सकता है । और सभी के सभी माध्यम संचार  कहलाते हैं । "
संचार की अवधारणा - अवधारणा का अर्थ संकल्पना से हैं, कल्पना यानी सोच ! संचार को वर्तमान समय के अनुसार विकसित करना । इसकी व्याख्या करना । इसके सार्वभौमिक उपयोगों को जन-जन तक पहुंचाना है । संचार के माध्यमों का  प्रयोग ज्यादा से ज्यादा आसान और सरल करना है ।
वर्तमान समय में संचार के विभिन्न माध्यम रेडियो , समाचार पत्र - पत्रिका , टेलीविजन , मोबाइल , टेलीफोन इत्यादि विकसित हैं । पूर्व समय में यही संचार के माध्यम  समय के लोगो  की अवधारणा होगी । जो आज विकसित रूप में हमारे बीच  है । वर्तमान में भी संचार के प्रारूपों को जनकल्याण के लिए सरल बनाने की आवश्यकता है । संप्रेषण की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है । और संचार के तकनीकी उपयोग को जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है ।
संचार के बहुमुखी प्रयोग भी संचार की अवधारणा है -
पत्र-पत्रिका , समाचार पत्र , रेडियो , टेलीविजन , इंटरनेट Google , WhatsApp , ईमेल , टेलीग्राम , इत्यादि तकनीकी माध्यमों को बहुजन के प्रयोग में लाने की आवश्यकता है ।
संचार की आवश्यकता -मनुष्य के अतीत से वर्तमान तक की यात्रा संचार है । मनुष्य के निर्माण की प्रक्रिया और समाज के निर्माण की प्रक्रिया के बीच कार्य कर रही माध्यम संचार है ।संस्कृति रहन सहन सामाजिक पद्धति बोलचाल विचार सोच तथ्य जानकारी शिक्षा आवश्यकता के विभिन्न स्रोत संचार है , या संचार का ही एक रूप है । किसी व्यक्ति को स्वयं से और समाज से जोड़ने की प्रक्रिया संचार है । संचार की आवश्यकता सार्वभौमिक है । प्रत्येक बच्चा जन्म काल से  संचार करने लगता है । उसके रोने हंसने और विभिन्न गतिविधियों को मां समझ जाती है । सनातन से वर्तमान तक जितने भी माध्यमों का विकास हुआ है । वह सब माध्यम संचार  या संचार के अंग है । संचार के बिना मनुष्य का कोई औचित्य नहीं है । संचार हमें सृष्टि के विभिन्न रूपों से अवगत कराती हैं । संचार केवल शिक्षा , मनोरंजन , तथ्य , इतिहास और समाचार इत्यादि तक ही सीमित नहीं है ।
जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए विचार किया गया सोचा गया क्रिया संचार है ।
अतः जीवन के लिए प्राण वायु की आवश्यकता और जीवन जीने के लिए संचार की आवश्यकता दोनों समान हैं ।
                                           जितेश सिंह

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