सोमवार, 25 सितंबर 2017

पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं यूरोपिय दार्शनिकों के बीच मतभेद


पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी उत्सव में उपस्थित । मुख्य वक्ता रामेश्वर मिश्र 'पंकज' ने अपने उद्बोधन में कहा ।पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिस समय जन्म लिए । उस समय समग्र विश्व दो विचारधाराओं में बटा हुआ था । पूंजीवाद और साम्यवाद । उन्होंने कार्ल मार्क्स की विचारधाराओं का भी खंडन किया । माक्स अपनी पुस्तक में लिखते थे । आज तक जो संघर्ष हुआ है । वो पूंजीपतियों और सर्वहारा के बीच हुआ ।  जबकि पूरे विश्व के इतिहास में कोई ऐसी घटना नहीं है ।   जो इसकी सत्यता को प्रमाणित कर सके । आज तक कोई भी ऐसी घटना पूंजीपतियों और सर्वहारा वर्ग के बीच नहीं हुई  ।
उन्होंने कहा कम्युनिस्ट हर चीज को धन से तौलते हैं ।
१९ वीं शताब्दी से पहले यूरोप शब्द का कोई नाम तक नहीं जानता था । यूरोप शब्द का शाब्दिक अर्थ समुद्र की ओर धसी हुई वस्तु है। जिसका कोई औचित्य नहीं है।
उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध शब्दों का खंडन किया । इसे  महायुद्ध कहा, जो कुछ आर्थिक संपन्न देशों के बीच सुपर पावर बनने के लिए हुई थी । प्रथम महायुद्ध में १५ लाख भारतीय सैनिक सामिल हुए। महात्मा गांधी ने भारत के लोगों से अंग्रेज के पक्ष में रहकर युद्ध करने को तैयार किया। प्रथम और द्वितीय महायुद्ध में । इंग्लैंड के प्रत्येक घर से एक युवक मारा गया । वह अपने वीरता के कारण नहीं बल्कि युद्ध में  कुशल ना होने कारण और अपनी मूर्खता के कारण । अगर गांधी अंग्रेजो के पक्ष में खड़ा नहीं होते तो । भारत १९१४  ही आजाद हो जाता । महायुद्ध में भी गांधी , जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस के नेता अंग्रेजों के पक्ष में थे । परंतु नेताजी ने के द्वारा गठित आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया । जिससे विवश होकर अंग्रेजों को हमें आजादी देनी पड़ी ।
गांधी और दीनदयाल जी कई विषयों में एक दूसरे से जुड़े हुए थे । वो दोनो संस्कृति में विश्वास रखते थे। गांधी युद्ध में विश्वास नहीं रखते पर दीनदयाल जी धर्म युद्ध को आवश्यक मानते थे। गांधी हिन्दू से कहते फिरते थे अहिंसा मत करो, मुस्लिमो को मारने दो, तुम मत मारो । मारते मारते उसका हृदय परिवर्तन हो जाएगा । पर यही बात गांधी मुस्लिमों से नहीं कहते कि तुम ऐसा मत करो ।
दक्षिण के सभी चिंतक दार्शनिक का मत समग्र व्यक्तित्व विकास है , के प्रति आर्थिक था । उनका मानना था ।  इस समग्र व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति को संपन्न होना पड़ेगा । परंतु इसके ठीक विपरीत दीनदयाल जी ने समग्र व्यक्तित्व विकास को परिभाषित करते हुए कहा । किसी व्यक्ति के अंदर समग्र व्यक्तित्व विकास तभी कहा जाएगा । जब उसके जीवन कार्य से समाज और राष्ट्र का लाभ हो । वह अपने जीवन के कार्य को राष्ट्र और समाज को समर्पित कर दें । उनका कहना था जो व्यक्ति राष्ट्र और समाज के प्रति समर्पित होते हैं । उन्हें स्वयं भी लाभ होता है ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मदिवस शताब्दी का आयोजन । अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय एवं भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया था । यह कार्यक्रम भोज मुक्त विश्वविद्यालय परिसर में रखा गया ।  जिसके बतौर मुख्य वक्ता के रुप में रामेश्वर मिश्रा ने एकात्म मानववाद एवं समग्र व्यक्तित्व विकास को केंद्र बिंदु रखकर अपने उद्बोधन को इस प्रकार रखा ।
वही कुलपति, प्रो. रविन्द्र आर कान्हेरे (भोज मुक्त विश्वविद्यालय) ने उपस्थित अतिथियों के स्वागत करते हुए कहा । कि वर्तमान में पूरे विश्व में दो प्रकार के लोग रहते हैं एक नास्तिक और दूसरा आस्तिक ।
नास्तिक वह होता है जो ईश्वर प्रकृति में विश्वास नहीं रखता और जो कुछ भी प्राकृतिक प्रदत वस्तु है उसको स्वयं के लिए मानकर उसका दोहन करता है ऐसे लोगों की सोच संकीर्ण होती है और यह अपने परिवार में ही सिमट कर रह जाते हैं आस्तिक वह होते हैं जो ईश्वर और प्रकृति में विश्वास रखते हैं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं । संसाधनों पर एकाधिपत्य ना कर  पूरे विश्व के लिए मानते हैं । पंडित दीनदयाल जी का एकात्म मानव दर्शन एवं समग्र व्यक्तित्व विकास आस्तिक लोगों के लिए है जो ईश्वर में विश्वास करते हैं जो प्राप्त प्राकृतिक संपदा पर  स्व का आधिपत्य नहीं करते हैं । समग्र विश्व का इस पर अधिकार मानते हैं जो समग्र विश्वको अपना परिवार मानते हैं जो भारतीय संस्कृति में आस्था रखते हैं  । जो वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखते हैं ।
वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं कुलपति,प्रो. रामदेव भारद्वाज (अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय) ने । समग्र व्यक्तित्व विकास पर जोर देते हुए कहा । समग्र व्यक्तित्व विकास का अर्थ यह नहीं कि आपको आप अच्छे कपड़े पहनते हो , बड़े बड़े होटलों में जाते हो , पैसा वाले लोगों के साथ बैठते हो , अधिक पैसे वाले हो , अंग्रेजी बोलते हो । इसके ठीक विपरीत समग्र व्यक्तित्व विकास । किसी व्यक्ति के अंदर निर्मित वह विकास  है । जो राष्ट्र के संस्कृति , संप्रदाय , इतिहास एवं नव निर्माण के लिए तत्पर एवं समर्पित हो ।  समग्र व्यक्तित्व विकास का अर्थ शिक्षा , संस्कृति , रहन सहन , व्यवहार , राष्ट्रभक्ति , इत्यादि से है ना की आर्थिक स्थिति से ।
                                              जितेश सिंह



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