सर झुका रहे दरबार में !
*****
पूजता जिन्हे जहाँ सारा
छप्पन भोग की थाली से
मैं उन्हे पूज रहा केवल
अड़हुल फूल की डाली से।
यह मेरा अहं भाव नही
मेरा अकिंचनपन ही है,
और कुछ भी पास नही
अपना तो समर्पित तन-मन ही है।
तन भक्ति का साधन है,
मन में श्रद्धा उपजती है,
तन-मन दोनो के समावेश से
हृदय की प्रतिमा सजती है।
सर झुका रहे हमेशा
माँ के चरणों मे, दरबार में
श्रद्धा की चुनरी, भक्ति का पुष्प
अर्पित करता रहूँ हरबार मैं।
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पूजता जिन्हे जहाँ सारा
छप्पन भोग की थाली से
मैं उन्हे पूज रहा केवल
अड़हुल फूल की डाली से।
यह मेरा अहं भाव नही
मेरा अकिंचनपन ही है,
और कुछ भी पास नही
अपना तो समर्पित तन-मन ही है।
तन भक्ति का साधन है,
मन में श्रद्धा उपजती है,
तन-मन दोनो के समावेश से
हृदय की प्रतिमा सजती है।
सर झुका रहे हमेशा
माँ के चरणों मे, दरबार में
श्रद्धा की चुनरी, भक्ति का पुष्प
अर्पित करता रहूँ हरबार मैं।
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